भारत (दिल्ली) का अंतिम हिंदू सम्राट हेमचन्द विक्रमादित्य -!


सम्राट हेेमचंद्र विक्रमादित्य

परायी तलवार 

हुमायूं को पराजित कर शेरशाह सूरी गद्दी पर बैठा मुगलों, तुर्कों का अत्याचार लगातार हिन्दू समाज पर बढ़ता ही गया 'हेमू कलाणी' नाम का एक अग्रसेन बंशी दिल्ली के पास 'रेवाणी गाँव' का निवासी जो छोटा-मोटा ब्यापार करता था (कहते हैं कि वह ठेला पर 'चाट' बेचा करता था ) । और फिर बारूद का काम करने लगा एक दिन उसने दिल्ली की एक गली मे देखा कि सरे आम रास्ते मे एक राजपूत का लड़का अपनी पत्नी अथवा बहन को लेकर जा रहा था। तब -तक कुछ तुर्कों का झुंड आकर उससे छेड़-छाड़ करने लगे राजपूत ने अपनी तलवार निकाल ली युद्ध शुरू हो गया। कई तुर्कों को उसने मौत के घाट उतार दिया और वह लड़की भी युद्ध करते मारी गयी, लेकिन वह अकेला था पीछे से वार मे घायल हो गया वह पराजित ही नहीं बीर गति को प्राप्त हुआ। यह घटना 'हेमू' अपनी आंखो से देख रहा था हेमू को उस राजपूत लड़के ने बहुत प्रभावित किया। जब सब मुसलमान चले गए तो उसने उस राजपूत लड़के की तलवार उठा लिया उस तलवार को हेमचंद हमेसा अपने पास रखते थे। सहिया सुमानी (रामदास पुरी) ने अपने सुप्रसिद्ध उपन्यास पराई तलवार में इसका बृहद वर्णन किया है । उसने तय किया कि वह पुनः हिंदू साम्राज्य स्थापित करेगा, पृथ्वीराज चौहान के पतन के पश्चात भारत मे हिंदुओं की दुर्दशा उससे देखी नहीं जाती थी---!

प्रेरणा द्वारा प्रतिज्ञा

हेमचन्द ने उस राजपूत की वीरता, सौर्य की प्रतिज्ञा किया कि मै हिन्दू साम्राज्य की पुनर्स्थापना करुगा । फिर वे आगे बढ़ना शुरू किया और एक दिन अपनी बुद्धि, बिवेक व शौर्य के बल दिल्ली में सिपाही हुआ फिर दिल्ली का कोतवाल, फिर सेनापति और फिर दिल्ली का शासक बना, मुगल हुमायू को शेरशाह सूरी ने पराजित कर सत्ता हथिया ली अवसर पाकर हेमू की योग्यता देख दिल्ली का शासक नियुक्त किया 1545 मे सूरी की मृत्यु हो गयी आदिलशाह गद्दी पर बैठा उसने ग्वालियर के किले मे इनकी प्रतिभा देख अफगान सेना का सेनानायक व प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया अब हेमू को अपनी प्रतिभा व शौर्य दिखाने का समय मिल गया बुद्धि और विवेक के बल हिन्दू राज्य की विस्तार योजना शुरू कर दी उसने अफगान सामंत जो टेक्स नहीं देते, ऐसे अनुशासन हीनों को कुचल डाला योजना वद्ध तरीके से धीरे -धीरे मुस्लिम सुल्तानों- सामंतों को समाप्त कर जगह-जगह राजपूत सामंत नियुक्त कर वह दिल्ली का असली शासक बन गया।

वामी इतिहासकारों ने इतिहास को विकृति किया

हुमायु की मृत्यु के पश्चात 24 जनवरी 1956 को अकबर गद्दी पर बैठा पंजाब के 'कलानौर' मे 24 फरवरी को 14 वर्षीय अकबर का राज्याभिषेक हुआ, सेकुलर इतिहासकारों ने ये तो लिखा कि हुमायूँ के बाद शेरशाह सूरी दिल्ली की गद्दी पर काबिज हुआ। इन्हीं इतिहासकारों ने "हेमचन्द विक्रमादित्य" को भुला दिया जो यह कहते नहीं थकते की भारत का अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान थे । पर इतिहास की किसी किताब ने सायद भूल की, नहीं बताया कि शेरशाह सूरी और अकबर के बीच दिल्ली की गद्दी पर पूरे वैदिक रीति से राज्याभिषेक करवाते हुए एक हिन्दू सम्राट राज्यासीन हुए। जिन्होंने 350 साल के इस्लामी शासन को उखाड़ फेंका। इन इतिहासकारों ने यह नहीं लिखा कि दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद मध्यकालीन भारत के इस अंतिम हिन्दू सम्राट ने "विक्रमादित्य" की उपाधि भी धारण की थी। अपने नाम के सिक्के चलवाये और गो हत्या के लिये मृत्युदंड की घोषणा। इन्होंनें 1553 से लेकर 1556 तक इस पराक्रमी शासक ने अपने जीवन में 24 युद्ध का नेतृत्व करते हुए 22 में विजय प्राप्त किया। ग्वालियर इत्यादि से हिंदुओं को सेना मे भर्ती कर अपनी स्थिति मजबूत कर ली। हेमू ने तुगलकावाद की लड़ाई मे 6 अक्तूबर को मुगल सेना को पराजित कर दिया लगभग तीन हज़ार मुगल सैनिक मारे गए। मुगल कमांडर बेग दिल्ली छोडकर बचे खुचे सैनिको के साथ भाग गया। अगले दिन दिल्ली के पुराने किले मे "हेमू का राज्याभिषेक" हुआ, मुस्लिम शासन के 350 वर्ष पश्चात उत्तर भारत मे पुनः "हिन्दू राज्य" स्थापित हुआ, 'अकबरनामा' के अनुसार "हेमचन्द विक्रमादित्य" 'काबुल' पर चढ़ाई की तयारी कर रहा था और अपनी सेना मे कई बदलाव किए ।

और पानीपत का दूसरा युद्ध

दिल्ली- आगरा पतन के पश्चात "कलानौर" मे मुगल परेशान हो गए कई मुगल सेनानायक हेमचन्द से लड़ने के बजाय काबुल की तरफ जाने को तैयार हो गए। बैरम खान युद्ध के पक्ष मे था निर्णय बैरम के पक्ष मे हुआ अकबर ने एक बड़ी सेना लेकर दिल्ली की तरफ कूँच किया 5 नवंबर को पानीपत का ऐतिहासिक युद्ध हुआ मैदान मे दोनों सेनाओं का सामना हुआ, बैरम खान और अकबर ने युद्ध मे भाग नहीं लिया तय किया कि यदि युद्ध हार जाएगे तो वापस काबुल लौट जाएगे। बीर पराक्रमी हेमचंद विक्रमादित्य ने अपनी सेना का नेतृत्व स्वयं किया हेमू की सेना मे 1500 युद्धक हाथी और उत्कृष्ट तोपखाने से सुसज्जित थी हेमू की पिछली सफलता ने उसे स्वाभिमान से भर दिया था 30000 की प्रशिक्षित राजपूत सेना और अफगान अश्वारोही के साथ उत्कृष्ट क्रम से आगे बढ़ा, युद्ध मे कोहराम मच गया मुगल सेना मे भगदड़ मच गयी। हेमू के तीन पत्नियाँ थी उसमे एक मुस्लिम थी वह युद्ध के समय हेमू के साथ थी उसने हेमू को धोखा दिया। धोखे से किसी का बाण हेमचंद विक्रमादित्य की आँख मे लगा फिर क्या था ! पाँसा पलट गया वह पराजित हुआ और गिरफ्तार कर अकबर का जालिम सलाहकार बैरम खान ने इस्लाम काबुल कराने, कलमा पढ़ने को मजबूर किया इस्लाम नहीं स्वीकार करने पर उसका सिर काटने का आदेश दिया किसी भी मुगल सैनिक की हिम्मत नहीं थी कि इस हिन्दू सम्राट का सिर काट सके। अंत मे हेमचन्द विक्रमादित्य का सिर काटकर काबुल के दिल्ली दरवाजे पर प्रदर्शन हेतु लगाया गया, उनका धड़ दिल्ली के पुराने किले मे लटकाकर हिन्दुओ को डराया- दहसत पैदा करने का काम किया, हेमचंद्र विक्रमादित्य की रानी अपने खजाने के साथ गायब हो गयी वह पकड़ी नहीं गयी। उनके अस्सी वर्षीय पिता 'पुरनदास' को गिरफ्तार कर इस्लाम काबुल करने को कहा अस्वीकार करने पर उनकी हत्या कर दी, दिल्ली मे हिन्दू समाज से प्रतिशोध व हिन्दू समाज को भयाक्रान्त करने हेतु हिन्दुओं का समूहिक नरसंहार कराया गया। 1556 के पानीपत के दूसरे युद्ध की विजय ने वास्तविक मुगल सत्ता को स्थापित कर दिया, बंगाल तक का सारा का सारा क्षेत्र हेमू के अधिकार मे था अकबर को उसे अधिकार मे लेने हेतु आठ वर्ष लग गया हेमू का जन्म दिल्ली के एक गाव 1501 मे हुआ था 1556 मे वे वीरगति को प्राप्त हुए कई इतिहास कारों ने उसे भारत का "नैपोलियन" कहा ।   

 योग्य सेनापति

1555 ईस्वी में जब मुगल सम्राट हूमायूं की मृत्यु हुई थी उस समय वो मिर्जापुर चुनार के किले पर था । वहीं से वो मुगलों को भारत भूमि से खदेड़ने की प्रबल इक्षाशक्ति से सेना लेकर ग्वालियर के रास्ते दिल्ली चल पड़े कई युद्धों को जीतते हुए आगरा पर हमला कर दिया । हेमू का कालपी और आगरा प्रान्तों पर नियंत्रण हो गया अपनी स्थिति मजबूत करने हेतु उन्होने हिंदुओं को अपनी सेना भर्ती करना शुरू कर दिया धीरे-धीरे मुस्लिम सेना नायकों को हटा राजपूत साने नायकों की भर्ती कर अपनी स्थिति मजबूत कर मुगलों को पराजित किया। 7 अक्टूबर 1556 को दिल्ली के सिंहासन पर विराजमान हुये, दिल्ली के पुराने किले मे 350 वर्ष पश्चात पूर्ण वैदिक रीति से एक हिन्दू सम्राट का राज्याभिषेक होते एक बार पुनः लोगों ने देखा। 

एक धोखे के पराजय ने इतिहास बदल दिया

अगर पानीपत के द्वितीय युद्ध में छल से प्रतापी सम्राट हेमू नहीं मारे जाते तो आज भारत का इतिहास कुछ और होता मगर हमारी बदनसीबी है कि हमें अपने इतिहास का न तो कुछ पता है न ही उसके बारे में कुछ जानने में का कोई प्रयास करते हैं आज बिदेशी आक्रांता मुगलों के नाम से सड़कें मिल जाएगी उनके मकबरे, मजारें सुरक्षित मिल जाएगी समय-समय पर उनकी साफ सफाई होती है। आज समय की आवस्यकता है की हेमचन्द विक्रमादित्य, उस सम्राट की हवेली जो रेवाड़ी के कुतुबपुर मुहल्ले में स्थित हैं उसे उचित सम्मान मिलना चाहिए और ऐसे महान पराक्रमी हिन्दू सम्राट के चरित्र को अपने पाठ्यक्रम मे सामील कर अपने भारतीय बच्चो को ऐसे गौरव शाली इतिहास को पढ़ना चाहिए। आज के सेकुलर -वामपंथी दोगले इतिहासकार तो हेमू को यथोचित स्थान देने से रहे इसलिये आखिरी हिंदू सम्राट 'हेमचंद विक्रमादित्य' के बारे में खुद भी पढ़ने जानने की आवस्यकता है।

और बप्पारावल की पंक्ति में खड़े हो गए

हिन्दू सम्राट "हेमचंद विक्रमादित्य" भारत की वह धारा हैं जो "सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य " से शुरू होकर बाप्पा रावल, राणा सांगा, महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह, क्षत्रपति शिवाजी, शम्भाजी राजे तक आती है इस भारतीय स्वर्णिम इतिहास को समाप्त करने का प्रयत्न किया जा रहा है। लेकिन वे हमे हमेशा याद आएगे वह वीर राजपूत की तलवार, पराई तलवार जो हेमचन्द विक्रमादित्य के प्रेरणा श्रोत बनी आज की भी हिन्दू समाज की स्थिति वैसी ही है जिस समय हेमू ने उस पराई तलवार को लेकर प्रतिज्ञा की थी। वही तलवार कभी "स्वामी दयानन्द" बनकर हिन्दू रक्षार्थ भारत भूमि पर आई तो कभी "डॉ केशव बलीराम हेडगेवार" बनकर इस धरा पर आई, महान हिन्दू सम्राट "हेमचन्द विक्रमादित्य" का बलिदान हमेशा प्रेरणा बनकर प्रत्येक हिन्दू को प्रेरित करता रहेगा। 

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2 टिप्पणियाँ

  1. हेमचन्द विक्रमादित्य अप्रतिम योद्धा थे उन्होंने बुद्धि और शौर्य से पुन: हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की जबतक हिन्दुत्व और भारत रहेगा वे हम प्रेरित रहेंगे।

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  2. हेमू ने बहुत कम समय मे विक्रमादित्य की उपाधि धारण कर हिन्दुत्व चिरंजीवी है यह दिखा दिया और भारतीय स्वाभिमान को अमर कर दिया।

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