रोहितास गढ़ और उराँव समाज-----!

राजा हरिश्चंद्र के वंशज---!


"रोहतास गढ़" 'उरांव समाज' का उद्गम स्थल माना जाता है, मैं कई बार गढ़ पर जाना चाहता था लेकिन संयोग नहीं मिला जाने का, "वनवासी कल्याण आश्रम" प्रति वर्ष उस गढ़ पर उरांव समाज को दृष्टि में रखकर कार्यक्रम आयोजित करता है, यह कार्यक्रम उरांव समाज के तीर्थ स्थल के रूप में मनाया जाता है, पूरे देश से इस समाज के लोग आते हैं इस वर्ष "छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, प. बंगाल, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश तथा नेपाल" से हज़ारो की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे स्थानीय लोगों ने सबके भोजन इत्यादि की ब्यवस्था की थीं 'रोहिताश गढ़' पर जाने पर ध्यान में आया तथा वहां जो एक पट लगा है जिसमें इस गढ़ पर उरांव, वैगा तथा खरवार वंश के लोगों ने शासन किया है, खरवार वंश सूर्य वंश के क्षत्रिय माने जाते हैं उराँव भी सूर्यवंशी ही है माता अंजनी का विवाह पम्पापुर राजवंश में हुआ था, राजा हरिश्चंद्र सत्यवादी राजा थे आज भी भारत के गाँव- गाँव में किबदंती कही जाती है "क्या आप राजा हरिश्चंद्र बन गए हैं" यह तो किबदंती है लेकिन आज भी उरांव समाज का स्वाभाव पुरे "राजा हरिश्चंद्र" के सामान ही है, 1540 में अकबर के सेनापति 'राजा मानसिंह' यहां उड़ीसा जाने के क्रम में रुके थे उस समय किले की कुछ मरम्मत करायी गई थी लेकिन कभी भी इस दुर्ग पर कोई भी मुस्लिम आक्रान्ता कब्ज़ा नहीं कर पाया था, किले को देखने के पश्चात लगता है कि चित्तौड़गढ़ से शायद कुछ कम यह दुर्ग 28 वर्ग किमी में फैला है विभिन्न देशों राज्यों से आने वाले राजदूतों व राजनयिकों के रहने की ब्यवस्था तथा दरबार लगने, बाजार व सेना का घुड़साल इत्यादि आज भी दिखाई दे रहे हैं, यह दुर्ग गणेश मंदिर, शिव मंदिर सहित कई मंदिर अपने में समेटे हुए है यदि किसी विधर्मी का शासन यहाँ हुआ होता तो यह मंदिर तो नहीं दिखाई देता, इस किले का वास्तु शास्त्र सामरिक दृष्टि से बहुत ही अधिक सुरक्षित है तीन तरफ से 'सोन नदी' अपने घेरे में लिये हुए है एक तरफ से आप किसी साधन से जा सकते हैं, इस दुर्ग को त्रेता युग में "राजा त्रिशंकु" के पौत्र सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के पुत्र "रोहिताश" ने बनवाया था किले का सम्पूर्ण घेरा 45 किमी में फैला हुआ है इसमें कुल 85 द्वार है मुख्य रूप से चार दरवाजे घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट और मेढ़ाघाट है यह समुद्र तल से 4500 फिट की उचाई पर है।

धरती के प्रथम राजा भगवान मनु--!

कहते हैं कि 'सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र' भगवान श्री राम के पूर्वज थे भगवान राम को हुए 'सत्तरह लाख' वर्ष हुए हैं राजा हरिश्चंद्र कम से कम राम के पहले के हैं यह सत्य सिद्ध होता है, पृथ्वी का प्रथम गांव व प्रथम राजधानी "अयोध्या" थी इसी अयोध्या के प्रथम राजा, मानव समाज जीवन के नियम बनाने वाले प्रथम ऋषी हुए "भगवान मनु", भगवान मनु ने "मनुर्भव" का उद्घोष किया मनुष्य को कैसे रहना चाहिए, क्या खाद्य, क्या अखाद्य ! घर- परिवार, संस्कृति, समाज रचना, गाँव, नगरों का निर्माण इसलिए बहुत से विदेशी विद्वानों ने बताया कि मनु विश्व के प्रथम संबिधान निर्माता थे, राजा हरिश्चंद्र उसी कुल के सुप्रसिद्ध सत्यवादी राजा थे जिन्होने स्वप्न में जो दान दिया उसे स्वीकार कर डोमराज के हाथ बिककर "ऋषी विश्वामित्र" को स्वप्न में दिया गया वचन पूरा किया, उत्तर प्रदेश में खरवारों को एक तरफ जनजाति माना जाता है वहीं वे अपने को राजवंश से जोड़कर देखते हैं कुछ लोग उन्हें आज भी क्षत्रिय मानते हैं झारखंड में उरांव ''रोहतास गढ़'' पर शासन किये हैं और तुर्कों के छक्के छुड़ाया है तो इससे लगता है कि उराँव का सम्वन्ध राजा हरिश्चंद्र से तो नहीं है--! हम सभी जानते हैं भारतीय संस्कृति की मान्यता अनुसार 'अयोध्या' में 'मनु महाराज' ने प्रथम राज्य की स्थापना की सारा का सारा हिन्दू समाज भगवान मनु की संतान हैं विश्व के बहुत से वैज्ञानिक अब यह मानने लगे हैं कि अयोध्या विश्व का प्रथम गाँव है राजनैतिक दृष्टि से प्रथम 'राजा मनु' हैं जिन्होंने मनुर्भव का ज्ञान दिया, ऐसा लगता है कि उरांव वँश का संबंध 'सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र' से था, राँची से लगभग सौ किमी पर गुमला जिले में अंजनी धाम है ऐसी मान्यता है कि माता अंजनी का जन्म इसी गाँव में हुआ था आज भी बड़ी संख्या में नर नारी पूजा के लिए आते हैं, भगवान भक्त हनुमानजी का जन्म वर्तमान के विजयनगर साम्राज्य के अंतर्गत पम्पापुर राज्य में हुआ था यह स्थान महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित है माता अंजनी का विवाह वहां के राजवंश में हुआ था इससे यह सिद्ध होता है कि उराँव वंश क्षत्रिय सूर्यवंश की शाखा है इससे ऐसा लगता है कि खरवार, उराँव सभी कहीँ न कहीँ इसी राजवंश के हैं।

धर्म वीर----!

''स्वामी रामानंद'' बचपन में छः वर्ष की आयु में ''प्रयागराज'' से भारत की सांस्कृतिक राजधानी ''काशी'' शिक्षा हेतु जा रहे थे रास्ते में उन्हें रात्रि विश्राम करना पड़ा शायं काल जब वे संध्या के लिए वैठे तो उन्होंने देखा सैकड़ों लोग उनके आस पास आकर उनके प्रवचन सुनने लगे प्रचवन में ''स्वामी रामानंद'' नाम के बालक ने कहा कि आप सभी हिन्दू धर्म की नींव हैं आपने धर्म नहीं छोड़ा संघर्ष कर धर्म रक्षा हेतु अपना घर द्वार त्यागा है आप धर्म रक्षा के अनथक योधा हैं, ध्यान में आता है कि हिंदू संस्कृति को वनीय संस्कृति, नदीय संस्कृति और ग्रामीण संस्कृति ही कहते हैं, यहां कोई आदिवासी नहीं सभी जो जिस क्षेत्र में रहता है वह वहाँ का वासी है जैसे पहाड़ में रहने वाले गिरिवासी, गाँव में रहने वाले गाँव वासी, शहर में रहने वाले नगर वासी और जंगल में रहने वाले नगरवासी कहा जाता है जहाँ तक वामपंथियों द्वारा यह भ्रम फैलाया जाता है कि आर्यों ने हमला कर इन्हें जंगल में खदेड़ दिया यह पूर्णतः असत्य पर टिका हुआ संवाद है क्योंकि आर्यों मूल ग्रन्थ ''वेद'' है वेदों में गौ- गंगा- गायत्री की उपासना तथा प्रकृति पूजा का वर्णन है, आज भी सारे भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में आर्य (हिंदू) गायत्री, गाय, गंगा का उपासक है, दूसरी तरफ भारत में जो भी उराँव जनजाति है सभी प्रकृति पूजक है वेदों में मूर्ति पूजा का वर्णन नहीं है इस लिये सभी वनवासी गिरिवासी जिन्हें हम आदिवासी कहते हैं वे वैदिक धर्म मानने वाले हैं बामपंथियों ने गलत तरीके से इतिहास लिखकर भ्रम पैदा करने का काम किया ये सब धर्म रक्षक और धर्म वीर हैं जिन्होंने धर्म के लिए संघर्ष किया।

धर्म के लिए संघर्ष जारी

उराँव राजवंश की "वीरांगना सिनगी दई" के नेतृत्व में तुर्कों से युद्ध किये उराँव स्त्रियों की सेना ने तुर्कों के छक्के छुड़ा दिये आज भी रोहतास गढ़ पर उराँव राजवंश का 'लेख पट' पर उरांव, वेगा और खरवार राजवंशो ने शासन किया मिलता है, यह जाती बिरोचित (लड़ाकू) जाती है 1831 में छोटानागपुर में इस राजवंश के राजा सगरनाथ ने राज्य स्थापित किया, इस दुर्ग को 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू करने का गौरव प्राप्त है अमर सिंह ने यहीं से संग्राम शुरू किया था, इस किले पर कई बार हार कई बार जीत हुई संघर्ष हुआ, धीरे-धीरे समाज अपने धर्म संस्कृति बचने हेतु जंगलों की ओर बढ़ता गया इस जाति ने अनेक योद्धा स्वतंत्रता सेनानी दिये, जहाँ 1831 में गंगानाराय ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष का बिगुल बजाया वहीँ विरसा मुंडा ने 1895 में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी कहते हैं कि विरसा मुंडा के पिता जी गरीब थे अपने बच्चे को पढ़ना चाहते थे लेकिन वे गरीबी के कारण मजबूर हो चर्च के कुचक्र में फसकर ईसाई धर्म स्वीकार कर लिए विरसा मुंडा को चर्च के स्कूल में प्रबेश मिल गया वे कच्छा नौ में ही थे कि मिशनरी स्कूल के अध्यापक रामायण, महाभारत और श्रीराम- श्रीकृष्ण का विरोध करते थे इस पर विरसा ने बिरोध किया परिणाम स्वरूप उन्हें विद्यालय से निकाल दिया गया विरसा प्रसन्नता पुर्बक धर्म बचाने उसके लिए संघर्ष के लिए आगे बढ़े और हज़ारों बने हुए ईसाईयों को पुनः हिंदू धर्म में वापस ले लिया और अनवरत ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनके शोषण के खिलाफ और धर्म परिवर्तन चर्च के खिलाफ एक प्रकार की सेना ही खड़ी कर दिया और बहूत कम आयु में चर्च से लड़ते हुए चले गए, इस जाति में कार्तिक उराँव जैसे संघर्ष शील विद्वान पैदा हुए।

सभी संस्कृति हिन्दुओं की

इस समाज ने अपनी संस्कृति और धर्म को बचाने के लिए लड़ते लड़ते जंगलों को अपना आशियाना बनाया और चुप नहीं बैठे देश समाज और धर्म बचाने के लिए आज भी सतत संघर्ष जारी है, जहाँ उराँव समाज ने लगभग अपनी भाषा मुंडा भाषा को विकसित किया है वहीं सौ के आस पास गोत्र भी है जिसमें 16 जँगली, बारह पक्षियों के 14 जलचर, 19 बनस्पतियों तथा एक सर्प के नाम से गोत्र पाये जाते हैं संघर्ष जीवन होने के कारण आखेट इनकी जीविका का मुख्य साधन है, इसलिए इस समाज में बहुत से उपनामों को देखा जाता है इतना ही नहीं तो सगोत्रीय विवाह वर्जित है यह जो कुछ लक्षण दिखाई देता है सब कुछ आर्यों के लक्षण हैं इसलिए इन्हें द्रविड़ कहना इनके साथ घोर अत्याचार है सभी वनवासी सुद्ध आर्य हैं 'वनीय संस्कृति' आर्यन समाज का एक हिस्सा है, लेकिन आज दुर्भाग्य कैसा है एक तरफ इन्हें द्रविड़ बताने का प्रयास चर्च व बामपंथी इतिहासकारों ने किया दूसरी तरफ चर्च ने षडयंत्र पुर्बक शिक्षा चिकित्सा के नाम पर ''धर्मांतरण'' का खेल शुरू किया है लेकिन वनवासी समाज में आज जागरूकता पैदा हुई है धर्मांतरण का खेल सीधे साधे समाज को समझ में आ गया है स्थान स्थान पर संघर्ष होना स्वाभाविक ही है और कई स्थानों पर चर्च जहाँ सनातन धर्म के प्रति अविस्वास भ्रम फ़ैलाने का कार्य कर रहा है वहीँ धर्म के प्रति सतर्क वनवासी चर्च को सरना स्थान के रूप में परिवर्तित होता दिखाई देता है।

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 122वीं जयंती - अमरनाथ झा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

    जवाब देंहटाएं