देश के इस वैचारिक युध्द को समझना होगा----!

देश के वैचारिक युद्ध 

चक्रवर्ती सम्राट राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक विश्वकवि कालिदास ने अपने अद्भुत ग्रंथ 'अभिज्ञान शाकुंतलम' में दुष्यंत कहते हैं कि-- "अविश्रमोयं लोकतंत्राधिकारः", अर्थात लोकतंत्र में विश्राम के लिए, आराम के लिए अवसर प्राप्त नहीं होता, वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस युक्ति को स्वीकार कर "अविश्राम" के इस मूल मंत्र को सरकार का कर्म दर्शन बनाने में जुटे हैं।

विचारधारा का संघर्ष

देश में दो विचारधारा है लेकिन मुझे लगता है कि दो नहीं तीन विचारधारा है जिसे हम आगे स्पष्ट करेंगे एक विचारधारा समाजवाद है जिसे नेहरू जी पोसित किया डॉ लोहिया, आचार्य नरेन्द्रदेव, कृपलानी इसलिए कांग्रेस से अलग हुए क्योंकि वे नेहरू के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करते थे जयप्रकाश नारायण, चन्द्रशेखर इत्यादि इंदिरागांधी के विरोध में इसलिए उतरे क्योंकि इंद्रा गांधी ने इमरजेंसी लगायी थी सभी को जेल में डाल दिया था इससे यह पता चलता है कि ये सभी ब्यक्तिगत बिरोधी थे न कि वैचारिक, वामपंथी विचारधारा भी कहीं न कहीं समाजवाद के अंदर समाहित होता दिखाई देता है देश के अंदर सत्ता परिवर्तन के बाद नेहरू ने प्रथम कार्य किया कि बामपंथियों को बौद्धिक संस्थान सौंपकर सत्ता में साझीदार बनाया, दूसरी तरफ समाजवाद जो विदेशी विचार धारा थी जो टुकड़े- टुकड़े होने लगी पहले लोहिया, आचार्य नरेंद्रदेव तथा कृपलानी के नेतृत्व में एक दूसरे को गलत सावित करने लगे यही समाजवाद लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में चलकर धीरे-धीरे परिवार वाद में समाहित हो गया किसी का नेतृत्व सोनिया राहुल तो किसी का तेजस्वी यादव और किसी का अखिलेश यादव के हाथ में है, देश में महाभारत के समान दो विचारधारा है दो कैम्प है एक पांडव का कैम्प जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शिविर है जिसका राजनैतिक नेतृत्व नरेंद्र मोदी के हाथ में है दूसरा कैम्प शिविर सारे के सारे विरोधी दल हैं जो विदेशी विचार से लवलेस हैं जिन्हें भारतीय विचारधारा अच्छी नहीं लगती उन्हें प्रत्येक भारतीय हित में साम्प्रदायिकता दिखाई देती है, चाहे कश्मीर की धारा 370 हो या समान नागरिक संहिता हो अथवा भारत के अस्मिता के प्रतीक भगवान श्रीराम का मंदिर निर्माण, बांग्लादेशी घुसपैठ अथवा रोहंगियो की घुसपैठ यह वैचारिक युद्ध है जिसके दो खेमे हैं यह कह सकते हैं कि एक शिविर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का है तो दूसरा इसके विरोधियों का, एक तरफ संघ विरोधी खेमा जो केवल कुर्सी जिसे देश से कोई लेना देना नहीं वे घुश्पैठियों, रोहंगियो और पाकिस्तानी प्रायोजित आतंकवाद के पक्ष में हमेशा खड़े दिखाई देते हैं (समाजवादी, वामपन्थी व सत्ता लोलुप), दूसरी तरफ राष्ट्रवादी विचारधारा है जो आतंकवाद, घुश्पैठियों का विरोधी अंदर व बाहरी आतंकवाद का समूल नष्ट करने का जज़्बा ऐसे देश इस समय दो खेमों में दिखाई देता है। पर नरेंद्र मोदी माने या न माने वैसे मोदी जी जैसा तराशा व मजा हुआ राजनेता इस समय देश का नेतृत्व कर रहा है जिसका विपक्ष के पास कोई विकल्प नहीं, इतना ही नहीं वर्तमान परिदृश्य ऐसा वन गया है कि इतिहास नरेंद्र मोदी को बरबस भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के बगल खड़ा कर दिया है, राष्ट्रवादी विचारधारा को राजनीतिक स्तर पर मुख्यधारा के रूप में भारत की सर्वप्रमुख विचारधारा के रूप में, भारत को सम्पूर्ण रूप से प्रतिध्वनित व प्रतिविम्बित करने वाली प्रतिनिधि विचारधारा के रूप में प्रतिष्ठित करने का दायित्व नरेन्द्र मोदी पर आ गया है, यह दायित्व इतिहास ने डाल दिया है, इस पर नरेन्द्र मोदी की केवल यही प्रतिक्रिया हो सकती है--! "न दैन्यम न पलायनम!" यानी राजनीतिक संघर्ष अब मोदी और नेहरू के बीच होना तय हो चुका है, वल्कि ऐसा कह सकते हैं कि यह राजनैतिक संघर्ष भारत की विचारधारा के लिए शुरू हो गया है।

एक धार्मिक आन्दोलन की आश्यकता

मध्यकाल में हिन्दू समाज जब पद्दलित हो रहा था इस्लामिक सत्ता गजवाए हिन्द पर अमादा थी जजिया कर लागता था मठ- मंदिर तोड़े जा रहे थे हिन्दू महिलओं का हरण सामान्य बात थी, हिन्दू समाज में कभी भी उंच-नीच भेद- भाव नहीं था डॉ भीमराव आंबेडकर अपनी पुस्तक "शूद्रो की खोज" में लिखते है कि वैदिक काल में वर्ण ब्यवस्था थी कोई भी ब्राह्मण ग़लत कार्य व् अपने कार्य से बिचलित होने से शूद्र और कोई भी शूद्र अपने कर्मो से ब्राह्मण हो सकता था उदहारण देते हुए उन्होंने लिखा कि दीर्घतमा, कवष एलूष शूद्र कुल में उत्पन्न होने पर वे वैदिक मंत्रद्रष्टा होकर ब्रह्मण हो गए इसीलिए डॉ आंबेडकर कहते है कि ये वो शूद्र नहीं है तो ये सूद्र इस्लामिक काल की देंन हैं जो वीर जातियां थी जिन्होंने धर्म नहीं छोड़ा संघर्ष किया उन्हें पददलित कर अछूत घोषित कर दिया ऐसे काल में एक प्रसिद्द समाज सुधारक वैष्णव आचार्य हुए जिनका नाम था स्वामी रामानंद उन्हें भक्ति आन्दोलन का प्रणेता कहा जाता है उन्होंने उद्घोषणा की ''जाति पाति पूछे न कोई हरि का भजे सो हरि का होई'', वे इतने बड़े आचार्य थे कि उनकी बात असर हुआ हिन्दू समाज को वचा लिया उनके द्वादश भगवत शिष्य संत रबिदास, संत कबीरदास, धन्ना जाट, राजा पीपा जैसे सभी जातियों में बड़े-बड़े संत खड़े कर दिए सारा समाज खड़ा हो गया उनके परंपरा के बाहक संत तुलसीदास, चैतन्य महाप्रभु, सूरदास तथा शंकरदेव जैसे संतों ने सम्पूर्ण देश में कमान सम्हाल ली और केवल समाज को सुरक्षित ही नहीं किया बल्कि देश को जागृत कर खड़ा कर दिया, आज देश में ऐसे ही एक धार्मिक आन्दोलन कि आवस्यकता है जिसमे भारत में जन्मे प्रत्येक धार्मिक पंथ और दर्शन के स्कूलों के मूल बिंदु क्या है ? तो ध्यान में आता है आत्मा, पुनर्जन्म, पंचमहाभूत, जगत-वन्धन, धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष चार पुरुषार्थ कर्म, कर्मफल, इत्यादि इन्हीं विचारो को लेकर विभिन्न सामाजिक आन्दोलन धार्मिक आन्दोलन किये गए, ब्रिटिश काल में स्वामी दयानंद सरस्वती ने वेदों को आधार मानकर एक बड़ा सामाजिक धर्म सुधार आन्दोलन खड़ा किया जो देशब्यापी हो गया और देश आज़ादी का तो "आर्यसमाज" मंत्र ही हो गया आज समय की आवस्यकता है देश में आई विकृति उंच-नीच, भेद-भाव असमानता को लेकर एक वड़े भक्ति अन्दोलन अथवा आर्यसमाज जैसा बड़ा धार्मिक आन्दोलन खड़ा करने की जिससे समता, ममता बंधुत्व के अधार पर हिंदू समाज को खड़ा किया जा सके।

नेहरू विचारधारा (समाजवादी विचारधारा)

नेहरू विचारधारा धर्मनिरपेक्षता की बात करती है जिसमें पूरे देश को धर्म से निरपेक्ष बनाना यानी वेधर्म, अनैतिक, अनाचारी, बेईमान, वेशर्म और नैतिकता विहीन समाज बनाने का अभ्यास कराना यानी धर्मनिरपेक्ष बनाना यही है नेहरूवाद। नेहरूवाद पश्चिम परस्त जीवन शैली का प्रतिपादन करता है जिसमें भारतीय संस्कृति, मर्यादा को कोइ स्थान नहीं, नेहरूवाद के विचार की जड़ भारत में नहीं तो समाजवादी विचारधारा विदेशी विचारधारा है जिसमें केवल अर्थ पर चिंतन है मनुष्य केवल आर्थिक प्राणी है न कि सामाजिक! नेहरूवाद विभाजक विचार है जो सम्प्रदाय के आधार पर विदेशी शक्ल -सूरत वाले धर्म (रिलिजन) के आधार पर, जाति के आधार पर, भाषा में आधार पर, प्रान्त के आधार पर, जातियों के आधार पर देश और समाज को बाटता है। आज देश में जितना संघर्ष है, जितनी वैचारिक असहिष्णुता है, जितना राजनीति वैमनस्यता है, जितनी देश विभाजक धाराएं हैं, वे सभी नेहरूवाद की देन हैं, इसी विभाजक दृष्टिकोण बनाम समरसता पूर्ण दृष्टिकोण में भेद के आधार पर नेहरूवाद के परिणाम स्वरूप आज देश की सम्पूर्ण राजनीति जाति के इर्द -गिर्द चलने की अभ्यस्त हो चुकी है। सारा आर्थिक उपक्रम पश्चिम के इर्द गिर्द विकसित हो रहा है और सम्पूर्ण सामाजिक ताना -बाना जातियों के आधार पर बन- बिगड़ रहा है।

राष्ट्रवादी विचार धारा

"परमवैभव नेतुमेंतत स्वराष्ट्रम" अपने राष्ट्र को परमवैभव पर ले जाने के संकल्प--- राष्ट्रवाद विचार का प्रतिनिधित्व व नेतृत्व करने वाला केवल और "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ" नाम का संगठन ही है दूसरा कोई नहीं यही विचार व यही विचारधारा समाजवाद व साम्यवाद दोनों से अपने को अलग करती है। संघ विचार राष्ट्रवाद पर बल देती है देशभक्ति सर्बोपरि इसी के अनुसार हमारी नीति, संगठन, संवाद, विचार सबकुछ अर्थात राष्ट्र हित किसमे है, इसी आधार पर विकसित, पल्लवित और पोषित होते हैं, देश में संघर्ष नहीं एकात्मकता, वैमनस्य नहीं सौमनस्यता, विषमता नहीं समरसता, संघ चाहता है कि देश के सवा सौ करोड़ लोगों को समझाना कि देश में सभी जनजाति, गिरिवासी, वर्ण व्यवस्था के अनुसार सभी के पूर्वज हिन्दू यानी भारतीय हैं सभी सवा सौ करोड़ भारतवासी हिन्दू संस्कृति मनाने वाले सभी हिन्दू हैं। एक ही प्रकार की विचारधारा परम्परा व वैचारिक समृद्धि की संतान हैं और सत्ता ही नहीं देश को जोड़ने वाली संस्कृति तत्व समान है इसलिए हम जाती नहीं समाज मानकर चलते हैं जिसमें परस्पर संगठित दृष्टिकोण के आधार पर सारा देश संस्कृति, विचार, आचरण, राष्ट्रभाषा, राजनीति की राह पर रचनात्मक तरीके से बढ़ सके, अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवन्तिका भारतीय तीर्थ जिनके प्रति प्रत्येक भारतीय की अशीम श्रद्धा, गंगा, सिन्धुश्च, काबेरी यमुना च सरस्वती जैसी सारी नदियों से मां जैसा ब्यवहार, देवतात्मा हिमालय, अरावली, सह्याद्रि, मलय विंध्याचल पर्वत सभी के कंकड़ कंकड़ में शंकर देख श्रद्धा पूजा करने की परंपरा हमारे राष्ट्र को पुष्ट करता है विभाजित नहीं होने देता ताकी भारत नामक राष्ट्र को परम वैभवशाली सम्पन्न महाशक्ति बनाया जा सके।

वर्तमान समस्या वोट बैंक--!

देश में दो प्रकार की राजनीति है एक जो नेहरूवाद है जिसमें समाजवादी, बामपंथी और कांगी हैं अथवा जो अपने को नेहरूवाद से प्रभावित मानते हैं वे वोट बैंक की राजनीति करते हैं उन्हें किसी न किसी तरह केवल और केवल सत्ता चाहिए क्योंकि उन्हें देश से कोइ लेना देना नहीं है और राष्ट्र की तो बात ही मत करिए वह तो उनकी दृष्टि में साम्प्रदायिक है। क्योंकि उनका वोट बैंक अर्बन नक्सली, रोहंगिया, बांग्लादेशी, चर्च और अराष्ट्रीय तत्व हैं जो किन्ही प्रकार से पाकिस्तान और चीन को फायदा पहुंचाने में लगे रहते हैं वे मौका मिले तो सरकार को कौन कहे भारतीय सेना को भी आरोपित करने में संकोच नहीं करते आज भारत मजबूत देश राष्ट्र के नाते सारे विश्व में जाना जाता है लेकिन इन सबको बड़ा कष्ट हो रहा है कि तिब्बती भूभाग हो अथवा कश्मीर यह देश का हिस्सा जो इन्हीं के शासन में गया। ६२ चीन के  युद्ध में पराजय होने के पश्चात् संसद में बहस के दौरान तत्कालीन प्रन्धन्मंत्री नेहरु ने भाषण में कहा कि उस ककरीली-पथरीली जमीन जिसपर घास का एक तिनका भी नहीं उगता क्या उसके लिए हम अपने सैनिको को बलिदान कर देते-! तुरंत जनसंघ के संसद सदस्य "भाई महाबीर" खड़े हुए उन्होंने कहा कि मेरे सिर में एक भी बाल नहीं है इसे काट डालिए नेहरु और जनसंघ के राष्ट्रवाद में यही अंतर। जहाँ हमेशा पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद (युद्ध) द्वारा हमारी सेना, मंदिर, मुंबई व संसद इत्यादि महत्वपूर्ण स्थानों पर हमले करते रहता वहीँ हम शान्ति के नाम पर सफेद कबूतर उड़ाते रहते हैं। लेकिन आज देश बदल रहा है आज बदला हुआ भारत है आज राष्ट्रवादी सरकार है जिसका नेतृत्व नरेन्द्र मोदी जैसे मजबूत हाथों में है जो एक के बदले दो घर में घुसकर मारने की क्षमता इतना ही नहीं सारा विश्व भारत के साथ खड़ा दिखाई देता है । आज विश्व का मुस्लिम संगठन (OIC) भारत को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाती है, जहाँ पाकिस्तान को कोइ महत्व नहीं मिलता यह है राष्ट्रवादी सोच का परिणाम, सभी बिरोधी (अराष्ट्रीय तत्व) परेशान हैं किसी न किसी प्रकार पाकिस्तान और चीन के पक्ष में बोलते नज़र आ रहे हैं क्योंकि वे आज भी मुसलमानों को पाकिस्तानी ही मानते हैं। जहाँ तक राष्ट्रवाद का विचार है वह वोट बैंक की राजनीति नही करता वह सभी भारतीय भाषाओं में, सभी प्रांतो में, सभी अंचलों में, सभी वनवासियों में, सभी दलितों में भारतीय चिंतन धारा को देखता है यह कैसा राष्ट्र है ? यहाँ भाषा कोई भी हो लेकिन बिबाह का मंत्र संकल्प एक ही है देश का चिन्तन वेदों, राम, कृष्ण और शंकर के रास्तों से होकर चलता है, भारत को समझना है यानी उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ, रामायण और महाभारत को समझना होगा भारत को जानना है तो यहाँ के तीर्थों, पर्वतों और पवित्र नदियों को जानना जरूरी है। यही भारत और भारतीय संस्कृति है जिसमें सभी को जोड़ने की क्षमता है जो कंकड़- कंकड़ में शंकर और सभी नदियों में पवित्र गंगाजी को देखते हैं यही है भारत, एक -एक इंच भूमि की रक्षा करना, अखंड भारत का निर्माण क्योंकि राष्ट्रवादी इसे भूमि का टुकड़ा नहीं इसे मां मानते हैं यही भाव लेकर देश खड़ा हो यही है हमारा राष्ट्रवाद-!

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