भील मित्र - कीका (महाराणा प्रताप)

सूर्यवंश, इक्ष्वाकु वंश और रघुवंश

आज विश्व के भूगर्भ शास्त्रियों का एक मत यह भी है कि ''अयोध्या'' विश्व का प्रथम गाँव है ''सूर्य'' पुत्र 'विवस्वान', विवस्वान पुत्र 'विवस्वान मनु' तथा ''इक्ष्वाकु वंश'' के राजाओं ने यहीं अयोध्या को राजधानी बनाकर सम्पूर्ण पृथ्वी पर शासन किया, पहले मनुष्य जंगलों में नदियों के किनारे रहता था ''वैदिक काल'' में खेती नहीं होती थी लोग फल-फूल खाते थे धीरे- धीरे इसी 'इक्ष्वाकु वंश' के राजाओं ने इस मानव जीवन को खेती करना सिखाया, इन्हीं राजाओं ने गांव व नगर विकसित किया इसी कारण ''वैदिक संस्कृति'' को ''नदीय संस्कृति'', ''वनीय संस्कृति'' भी कहते हैं इसी वंश ने ''राजा सागर, राजा अज़, राजा रघु, राजा हरिश्चंद्र तथा पुरुषोत्तम राम'' जैसे सम्राट दिये जिसने इस धरती को सुजला- सुफला बनाया और मनुष्यों को सद्चरित्र, सुसंस्कारित बनाया 

और अब गोहिल वंश

इसी वंश में विक्रम संवत 625 ( ई.568) 'गुहिल' नाम का एक प्रतापी राजा हुआ, आगरा में गड़े हुए 2000 चाँदी के सिक्के प्राप्त हुए जिस पर इस राजा का नाम अंकित है, नरवर से एक सिक्का ऐसा मिला है जिस पर "श्रीगुहिलपति" लिखा हुआ है, इसी वंश में पैदा हुए "बप्पा रावल" नाम से सोने का सिक्का मिला है। 'बप्पा रावल' ने ई.713 में 'मौर्यवंशी' राजा 'मानमोरी' से चित्तौड़गढ़ विजित लिया और फिर यहीं राजधानी बनाकर शासन कर राज्य विस्तार करने लगे ये वास्तविक रघुवंशी थे। "प्राण जाय पर वचन न जाय" का सिद्धांत हमेशा बनाये रखा यह वंश स्वतंत्रता का पुजारी था ये हिन्दू धर्म रक्षक थे, हिंदू धर्म पर आए हुए संकट को राष्ट्र का संकट मानकर बड़े से बड़े शत्रु से संघर्ष के लिए तैयार रहते थे। बारहवीं शताब्दी में 'कर्णसिंह' नामक राजा हुआ जिसमें गहलौतों में दो शाखाये हो गयीं एक 'चित्तौड़गढ़' का राजा हुआ दूसरा 'सीसोद' का जागीरदार चित्तौड़गढ़ के राजा 'रावल' कहलाये और 'सीसोद' के जागीरदार 'राणा' कहलाये।

बप्पा रावल ने अरब तक शासन विस्तार किया

अरब देश में इस्लाम अपना विस्तार कर चुका था उसका खलीफा केवल धार्मिक अधिकारी नहीं होता था बल्कि वह राजनीतिक निर्णय भी करता था। 712 ई. में खलीफा के निर्देश पर 'मुहम्मद बिन कासिम' ने सिंध पर विशाल सेना लेकर आक्रमण किया उस समय मुसलमान जो भी युद्ध लड़ते वह सीधा जिहाद था यानी "धर्मयुद्ध" सिंध पर "महाराजा दाहिरसेन" का शासन था। उसकी राजधानी "ब्राह्मणवाद" (कराची) थीं उस समय इस्लाम के बारे में किसी भी हिन्दू को कुछ भी जानकारी नहीं था। दाहिरसेन कई बार कासिम को पराजित कर चुके थे लेकिन धोखे से वे पराजित हो गए। काशिम के आदेश से 17 वर्ष से ऊपर के पुरुषों को मौत के घाट उतार दिया गया महिलाओं वच्चों को गुलाम बना लिया गया। "ब्राह्मणवाद" में महारानी ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए "जौहर" किया बहुत सारे लोगों को मुसलमान बनाया गया। एक प्रश्न आज भी खड़ा है कि इतिहासकार आठवीं शताब्दी का इतिहास क्यों नहीं लिख रहे? उसे क्यों छिपाने का प्रयत्न किया गया ? राजा दाहिर के पराजय के पश्चात 'हरित मुनि' के शिष्य 'चित्तौड़गढ़' के 'राजा बप्पा रावल' के नेतृत्व में हिन्दू सेनाओं ने 'अरब देशों' तक विजय प्राप्त किया। जितने सेनापतियों को जीता व पराजित किया सभी की लड़कियों से विवाह किया। कहते हैं 'बप्पा रावल' ने 32 मुस्लिम महिलाओं से विवाह किया था फिर लगभग तीन सौ वर्ष तक इस्लामिक ख़लीफ़ाओं की हिम्मत नहीं हुई कि वे भारत की ओर आँख उठाकर देख सकें।

राणा हम्मीर ने पुनः चित्तौड़गढ़ जीता

चित्तौड़गढ़ पर "सूर्यवंशी क्षत्रिय" (गुहिलों) को शासन करते 550 वर्ष हो गए 1303 में "रावल रतन सिंह" का शासन था। अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर हमला किया जिसमें 'रावल रतनसिंह 'पराजित हुए "महारानी पद्मिनी" ने 16 हज़ार रानियों को लेकर जौहर किया यह चित्तौड़ का पहला शाका था। 'रावल रतनसिंह' के साथ ही "रावल शाखा" का अंत हो गया, चित्तौड़ किले पर 23 वर्ष अलाउद्दीन खिलजी का कब्जा रहा, लेकिन चित्तौड़ की धरती किसी बाहरी को स्वीकार नहीं करती 1326 में महा प्रतापी "राणा हम्मीर" ने ख़िलजी को पराजित कर किले पर कब्जा कर लिया और वे राणा से "महाराणा" हो गए वे सम्पूर्ण "मेवाङ राज्य" के महाराणा बन गए, यहीं से यह राजवंश राणा फिर महाराणा के नाते प्रसिद्ध हुआ।

भील मित्र कीका

इस वंश में एक से एक प्रतापी राजा हुए महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप इत्यादि मुगलों तुर्कों के हमले भारतवर्ष पर लगातार हो रहे थे। बाबर मुगल सेना के साथ "महाराणा सांगा" का युद्ध खानवा के मैदान में हुआ, बाबर को एक इंच भूमि चित्तौड़ की नहीं दिया कहते हैं "चौहत्तर घाव लगे थे तन में तब भी ब्यथा नहीं थीं मन में"। 'महाराणा उदयसिंह' के समय अकबर के लगातार हमलों के कारण "मेवाड़" कमजोर पड़ गया था "राणा उदयसिंह" को किला छोड़कर जंगलों में रहना पड़ा उन्होंने चित्तौड़ छोड़कर सुरक्षित उदयपुर राजधानी बनाया। 'महाराणा उदय सिंह' की मृत्यु 'गोगुन्दा' में हुई 32 वर्ष की आयु में 'मेवाङ राज्य' के सामंतो ने 'प्रताप' को मेवाङ का महाराणा खून से तिलक लगाकर बनाया। "महाराणा प्रताप" को यह अनुभव हो गया था कि मुझे क्यों "महाराणा" बनाया गया है और उसके पालन के लिए वे जीवन भर मुगलों से संघर्ष करते रहे, वे बचपन से भीलों के साथ खेलते थे भील उनको अपना सहोदर ही मानते थे वे प्रताप को 'कीका' नाम से पुकारते थे। 'भीलों में वच्चे को कीका कहते हैं' "प्रताप" भीलों के "कीका" बन गए उनके विस्वसनीय सबके सब भील थे उनकी सेना में अग्र भाग में लड़ने वाले भील उनका अंग रक्षक भी भील, 'अरावली पर्वतमाला' में हज़ारों साल से दूर -दूर तक भीलों की बस्तियां वसी हुई थी। उन्हें सारे पर्वत - जंगलों के रास्ते बीहड़ पहाडों के रास्ते की जानकारी थी वे 'राणा प्रताप' के सहोदर भाई मित्र जैसे थे, वैसे सम्वन्ध भी निभाया।

(सन्दर्भ ग्रन्थ --- एकलिंग महात्म्य , उदयपुर राज्य का इतिहास -गौरीशंकर ओझा, हल्दीघाटी का युद्ध और महाराणा प्रताप-- मोहनलाल गुप्ता )  

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2 टिप्पणियाँ

  1. महाराणा प्रताप जैसा आज भी सभी को बस अनुभव करने की आवश्यकता है।कई चुनौतिया स्वतः समाप्त हो जाएगी

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  2. वास्तविकता से परिचय हुआ

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