इस्लाम "मजहब" अथवा राज्य विस्तारवादी "दल"

कैसे फैला इस्लाम दुनियां में

जब हम 'इस्लाम' के बारे में विचार करते हैं तो यह ध्यान में आता है कि यह कोई आध्यात्मिक पंथ नहीं बल्कि यह 'क्रूर राजनैतिक' महत्वाकांक्षा पालने वाला ''राजनैतिक दल'' है। जिसके पास न तो दया है न तो क्षमा ही, ''कुरआन'' में वर्णन है कि ''काफिरों'' (मूर्ति पूजकों) पर हमला करो उन्हें तब तक प्रताड़ित करो जब तक वे ईमान (इस्लामी न स्वीकार करें) न लाये अथवा जजिया न कबूल करे-! वास्तव में 'अल्लाह' बड़ा ही क्षमा, शील व दयावान है"। यही है इस्लाम की दया और क्षमा! लाखों करोड़ों वर्षों से भारत मे जो आध्यात्मिक ज्वाला प्रज्वलित हो रही है भारतीयों ने 'इस्लाम' को भी इसी प्रकार कोई 'आध्यात्मिक पंथ' समझा यही भारतीयों की सबसे बड़ी गलती हुई। इस्लाम मतावलंबियों ने कभी कोई शास्त्रार्थ नहीं किया यदि किया भी तो पराजित हुए, इसीलिए 'इस्लामी खलीफा' हीन भावना से ग्रसित थे। वे ''जिहाद'' यानी मानवता विरुद्ध युद्ध करने के लिए अपने अनुयायियों को लूट, हिंसा व बलात्कार को प्रोत्साहित करना इतना ही नहीं इससे भी एक कदम आगे इस रास्ते में मरने पर जन्नत, अब जन्नत में क्या मिलेगा ? तो 72 हूरें, गिलवे (सुंदर लड़के), शराब फिर लड़ते- लड़ते एक मोमिन 'मुहम्मद साहब' के पास आया कि मैं अकेला वो 72 तो उसे बताया कि सेक्स करने की सैकड़ों गुना शक्ति बढ़ जाएगी, थोड़ी देर बाद फिर आया वे बूढ़ी हो जायेंगी तो फिर 'मुहम्मद' ने बताया नहीं वे हमेशा 16 वर्ष की ही रहेंगी वास्तव में यही है 'इस्लाम' के बढ़ने का कारण और उसका तरीका।

अध्यात्म से नहीं युद्ध से

इस्लामी अक्रान्ताओ विस्तार वादियों ने 622ई. से लेकर 634 ई. तक मात्र 12 साल में अरब के सभी 'मूर्तिपूजकों' को 'इस्लामी तलवार' के बल मुसलमान बना दिया गया। 634 ईस्वी से लेकर 651 तक, यानी मात्र 16 साल में सभी पारसियों को तलवार की नोक पर ''कलमा पढ़वाया'' गया। 640 ईसवी में 'मिस्र' में पहली बार इस्लाम ने पांव रखे और देखते ही देखते मात्र 15 सालों में 655 तक 'इजिप्ट' में लगभग सभी लोग मुसलमान बना दिये गए। उत्तरी अफ्रीका के देशों जैसे - अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को आदि देशों को 640 से 711 ई तक पूर्ण रूप से तलवार के बल इस्लाम मे बदल दिया गया। 3 देशों का सम्पूर्ण सुख चैन छीन लेने में मुसलमानो ने मात्र 71 साल लगाए। 711 ईस्वी में "स्पेन" पर आक्रमण हुआ, 730 ईस्वी तक मात्र 19 वर्षों में स्पेन की 70% आबादी मुसलमान हो गई, तुर्क थोड़े से वीर निकले, तुर्को के विरुद्ध जिहाद 651 ईस्वी में शुरू हुआ और 751 ईस्वी तक सारे तुर्क मुसलमान बना दिये गए ।

मंगोलिया व अन्य देशों में भी यही

मंगौलो यानी इंडोनेशिया के विरुद्ध जिहाद मात्र 40 साल में पूरा हुआ, 1260 में मुसलमानो ने इंडोनेशिया में मार काट मचाई और 1300 ईस्वी तक सारे इंडोनेशिया के मंगोल मुसलमान बन चुके थे। नाम मात्र लोग बचे और सभी संस्कृति समाप्त कर दी, फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान, जॉर्डन आदि देशों को 634 से 650 के बीच मुसलमान बना दिया गया। उसके बाद 700 ईस्वी में भारत के विरुद्ध जिहाद शुरू हुआ वह अब तक चल रहा है, मुसलमानो की क्रूरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मुसलमानो का ईरान पर आक्रमण हुआ, इस्लामी सेना ईरानी राजा के महल तक पहुंच गई, महल में लगभग 2 या 3 साल की पारसी राजकुमारी बची थी। ईरान पर आक्रमण अली ने किया था जिसे शिया मुसलमान मानते है ।

इस्लामी क्रूरता

आपको लगता होगा कि अली कोई बहुत बड़ा महात्मा रहा होगा ऐसा बिल्कुल नहीं था! हम हिन्दू हैं इस कारण हमें अपने ऋषियों जैसे ही दूसरे पंथों के लोग लगते हैं। लेकिन यह सच नहीं है कासिम, अकबर, औरंगजेब और इस 'अली' नाम के राक्षस में सूत मात्र का भी फर्क नही था। उस पारसी राजकुमारी को बंदी बना लिया गया, अब वह तीन वर्ष की कन्या थी, तो लूट के माल पर पहला हक़ "खलीफा मुगीरा इब्न सूबा" का था। खलीफा को वह मासूम बच्ची भोग के लिए भेंट की गई लेकिन खलीफा ईरान में अली की लूट से इतना खुश हुआ कि अली को कह दिया, इसका भोग तुम करो, इस्लामी क्रूरता 'पशु संस्कृति' का एक सबसे गलीच नमूना देखिये, कि तीन साल की बच्ची में भी उन्हें औरत दिख रही थी वह उनके लिए बेटी नही! भोग की वस्तु थी ।

इस्लामी संस्कृति

बेटी के प्रेम में पिता को भी बंदी बनना पड़ा, इस्लाम या मौत में से एक चुनने का बिकल्प पारसी राजा को दिया गया, पारसी राजा ने मृत्यु चुनी । अली ने उस तीन साल की मासूम राजकुमारी को अपनी पत्नी बना लिया, अली की पत्नी 'अल सभा बिंत रवीआह' (Al Sahba' bint Rabi'ah) मात्र 3 साल की थी, और उस समय अली 30 साल से भी ऊपर था। यही है इस्लाम और यह है इस्लामी संस्कृति, मैंने मात्र ईरान का उदाहरण दिया है, इजिप्ट हो या अफ्रीकन देश सब जगह यही हाल है। जिस समय सीरिया आदि को जीता गया था, उसकी कहानी तो और दर्दनाक है, मुसलमानो ने ईसाई सैनिकों के आगे अपनी औरतों को कर दिया, 'मुसलमान औरते' गयी ईसाइयों के पास कि मुसलमानो से हमारी रक्षा करो, बेचारे 'मूर्ख ईसाइयों' ने इन धूर्तो की बातों में आकर उन्हें शरण दे दी, फिर क्या था ? सारी सुपर्णखाओ ने मिलकर रातों रात सभी सैनिकों को हलाल करवा दिया ।

आके गंगा जहाने में डूबा 

अब आप भारत की स्थिति देखिये जिस समय मुसलमान ईरान तक पहुंचकर अपना बड़ा साम्राज्य स्थापित कर चुके थे, उस समय उनकी हिम्मत नही थी की भारत के राजपूत साम्राज्य की ओर आंख उठाकर भी देख सकें। जब ईरान, सऊदी आदि को जबरन मुसलमान बना लिया गया था, तो मुसलमानो का मन हुआ कि अब हिंदुस्थान के क्षत्रियों को जीता जाएं। लेकिन यह स्वपन उनके लिए काल बनकर खड़ा हो गया, 636 ईस्वी में खलीफा ने भारत पर पहला हमला बोला एक भी मुसलमान जिंदा वापस नही जा पाया, कुछ वर्ष तक तो मुसलमानो की हिम्मत तक नही हुई कि भारत की ओर मुंह कर सके। लेकिन कुछ ही वर्षो में गिद्धों ने अपनी जात दिखा ही दी, दुबारा आक्रमण हुआ, इस समय खलीफा की गद्दी पर "उस्मान" आ चुका था, उसने हाकिम नाम के सेनापति के साथ विशाल इस्लामी टिड्डिदल भारत भेजा, जिस सेना का पूर्णतः सफाया हो गया, और 'सेनापति हाकिम' बंदी बना लिया गया। हाकिम को भारतीय राजपूतो ने बहुत मारा, और बड़े बुरे हाल करके वापस अरब भेजा, जिससे उनकी सेना की दुर्गति का हाल, उस्मान तक पहुंच जाएं यह सिलसिला लगभग 700 ईस्वी तक चलता रहा, जितने भी मुसलमानो ने भारत की तरफ मुँह किया, राजपूतो ने उनका सिर कंधे से नीचे उतार दिया।

और हिंदू सूर्य "बप्पारावल"

उसके बाद भी भारत के वीर जवानों ने हार नही मानी जब 7वी सताब्दी में इस्लाम की शुरूवात हुई, जिस समय अरब से लेकर अफ्रीका, ईरान, यूरोप, सीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया, तुर्की इत्यादि बड़े- बड़े देश मुसलमान बन गए। स्पेन तक कि 70% आबादी मुसलमान थी, तब आपको ज्ञात है उस समय भारत मे "बप्पा रावल" महाराणा प्रताप के पितामह का जन्म हो चुका था, वे पूर्णतः योद्धा बन चुके थे। इस्लाम के पंजे में जकड़ गए अफगानिस्तान तक से मुसलमानो को उस वीर ने मार भगाया। केवल यही नही, वह लड़ते- लड़ते खलीफा की गद्दी तक जा पहुंचा, जहां खुद खलीफा को अपनी जान की भीख मांगनी पड़ी। उसके बाद भी यह सिलसिला रुका नही ''नागभट्ट प्रतिहार'' द्वितीय जैसे योद्धा भारत को मिले जिन्होंने अपने पूरे जीवन राजपूती धर्म का पालन करते हुए पूरे भारत की न केवल रक्षा की, बल्कि हमारी शक्ति का डंका विश्व मे बजाए रखा। पहले ''बप्पा रावल'' ने साबित किया था कि अरब अपराजित नही है, उन्होंने ''महाराजा दाहिर'' का बदला चुकाया जब अरब देशों पर हमला किया तो खलीफा के सभी 32 सेनापतियों को पराजित कर सभी की लड़कियों से विवाह कर मेवाङ की राजधानी वापस आये। लेकिन 836 ई के समय भारत मे वह हुआ जिससे विश्व विजेता मुसलमान थर्रा गए, मुसलमानो ने अपने इतिहास में उन्हें अपना सबसे बड़ा दुश्मन कहा है! वह सरदार भी राजपूत ही थे ''सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार'' मिहिरभोज को मलेक्ष नाशक कहा जाता है। मलेक्ष अरब के थे जो सिंध पर अधिकार करना चाहते थे, मिहिरभोज के कुल देवता ''भगवान वाराह'' थे इस्लाम के लोगों को इतना भय था कि वाराह से बड़ी घृणा करने लगे और भयाक्रांत रहने लगे। मिहिरभोज ने अरब तक परचम फहराया ४९ वर्ष तक शासन (८३६-८८५) तक राज्य किया, 'मुल्तान' से बंगाल तक शासन था मुस्लिम इतिहास प्रतिहार को इस्लाम का शत्रु बताया गया है मुस्लिम इतिहासकार कहते है कि 'मिहिरभोज' की सेना में 36 लाख सैनिक थे!