1857 स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना झलकारीबाई

 

झलकारी की झलक

परंपरा अनुसार गौरी पूजन के पश्चात स्त्रियां महारानी को पुष्पमाला पहिनाने आती थी, मंदिर के एक कोने में खड़ी एक नववधू को रानी ने इशारे से बुलाया। वह हाथ में माला लिए धीरे-धीरे सहमी हुई आगे बढ़ रही थी, रानी की निगाहें उस पर एकचित टिक गई थी, वह रंग विरंगे कपड़ों में लैस चाँदी के आभूषणों से दीप्तमान लग रही थी। पैरों में पैजनी माथे पर दावुनी (दामिनी) की छटा आकर्षक थी, रानी उसके रूप लावण्य को देखकर चकित थी। उसकी आँख, नाक, कान और मुखाकृति सब रानी जैसे थी, अंतर था तो केवल रंग का वह अपेक्षाकृत सांवली थी। रानी ने पूछा, तुमको पहले कभी रानिवास में नहीं देखा प्रथम बार आयी हो क्या ?

     जी सरकार उसने उत्तर दिया। तुम कौन हो ? रानी ने पूछा

     उसने उत्तर दिया हौं तो कोरिन। मैंने जाति नहीं पूछा!

     सरकार झलकारी दुलैया, उसने सहजता से उत्तर दिया!

     रानी के मुख से अनायास निकल गया-- जैसा नाम वैसा ही लक्षण।

      हां झलकारी, पहना दे अपनी माला। और क्या करती है ? रानी ने पूछा।

कुछ बोलने जा ही रही थी कि लालभाऊ की पत्नी ने कहा, सरकार ये भोजला गांव की है। भोजला गांव नगर के उत्तर-पश्चिम करीब 12 मील दूर बालाजी सड़क के किनारे पर है। ये आपके सामने छुई-मुई सी दिख रही है, है बड़ी बहादुर इस कारण आस-पास गांवों के सभी लोग जानते हैं।

रानी ने पूछा कैसी बहादुरी हमे भी बताओ, रानी ने जिज्ञासा की!

एक दिन ये लकडी बीनने जंगल में गई थी, शाम हो गया, भगवान सूरज भी अस्तांचल की ओर थे गांव में हल्ला मचा की जंगल में शेर आ गया है, इसके घर वालों ने गुहार लगायी कि झलकारी अभी लकड़ी लेकर नहीं लौटी है। गांव वाले लाठी, भाला, बरछी जो जिसके हाथ लगा सभी दौड़े, झलकारी का नाम लेकर चिल्ला रहे थे तभी एक ओर से आवाज आई, मैं यहाँ हूँ। लोग वहां पहुंचे तो सामने का दृश्य देखकर सब हतप्रभ रह गए हाथ में कुल्हाड़ी लिये थी और बेचारा शेर धरती की गोद में निष्प्राण पड़ा था।

            क्यों रे झलकारी ऐसा हुआ ? रानी ने पूछा।

सरकार क्या करती ? मैं उसे न मारती तो वह मुझे ही खा जाता!

शाबास झलकारी! मैं तुम्हारी बहादुरी से अत्यंत प्रसन्न हुई लो माला! झलकारी बाई ने अपने महारानी के समक्ष सिर झुका दिया। रानी ने अपने गले से माला निकल कर उसके गले में पहना दिया। यह घटना पूरे गांव में आग की तरह फैल गई।

झलकारी बाई का जन्म

झलकारी बाई का जन्म भोजला गांव के एक निर्धन कोली (जुलाहा) परिवार में 22 नवम्बर 1830 को हुआ था, कोली समाज बुनकर समाज में माना जाता है। इनके पिता का नाम 'सदोवर सिंह' माँ 'यमुना देवी' था। झलकारी बहुत छोटी थी तभी माँ का आँचल ऊपर से उठ गया। पिता ने इसे लड़के के समान पाला जो सुविधा प्रशिक्षण एक पुत्र को दिया जाता है वह सब झलकारी को मिला पिता ने कभी भी यह अनुभव नहीं किया कि उनके लड़का नहीं है इसी को वे अपना पुत्र मानते थे। झलकारी भी अपने को एक योद्धा के रूप में विकसित किया, बचपन में ही वह बड़ी दृढ प्रतिज्ञ और साहसी बालिका थी, घर में काम काज के अतिरिक्त पशुओं की देखभाल करना और जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने का काम भी किया करती थी। उसी में एक बार जंगल में तेंदुए से मुठभेड़ हो गई और झलकारी बाई ने तेदुएं को कुल्हाड़ी से मार गिराया। गांव में डकैती पड़ी झलकारी ने बहादुरी से डाकुओं को पीछे हटने को मजबूर किया। गांव वाले बेहद खुश हो कर उसका विवाह महारानी लक्ष्मीबाई के एक सैनिक पूरन कोरी से करवा दिया।

महारानी से भेंट

गौरी पूजा के अवसर पर सभी महिलाएं झांसी के किले में पूजा तथा महारानी लक्ष्मीबाई के दर्शन के लिए जाती थी। झलकारी भी कुछ महिलाओं के साथ झाँसी किले में गौरी पूजा और महारानी लक्ष्मीबाई के सम्मान देने हेतु गई! रानी उसे देखकर अवाक रह गई क्योंकि उसका चेहरा बिल्कुल महारानी जैसा ही था। दोनों में अलौकिक समानता थी अन्य औरतों ने झलकारी बाई के बहादुरी के किस्से रानी को सुनाये तो महारानी ने उसे दुर्गा सेना में भर्ती करने का आदेश दे दिया। झलकारी ने बंदूक, तोप, तलवार चलाना सीखना, प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया रानी को जैसे झलकारी बाई को ही खोज रही थी वे उसकी वीरता से बड़ी प्रभावित हुई और उन्हें दुर्गा सेना का प्रधान नियुक्त कर दिया। धीरे - धीरे महारानी लक्ष्मीबाई ने किले के आंतरिक सुरक्षा की भी जिम्मेदारी सौंपी। स्वतंत्रता संग्राम तो 1857 में शुरू हो चुका था "ऋषि दयानन्द सरस्वती" द्वारा भारतीय राजाओं को जागृत करने का काम हो रहा था। युद्ध सिर पर था झांसी भी तैयार थी।

मै अपनी झाँसी नहीं दूँगी-!

महारानी लक्ष्मीबाई ने चिल्ला कर कहा मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी-! अप्रैल1857 के दौरान रानी लक्ष्मीबाई ने किले के भीतर सेना का नेतृत्व किया! ब्रिटिश और उसके स्थानीय सहयोगियों द्वारा किए गए हमलों को नाकाम कर दिया। महारानी के एक सेना नायक ने उन्हें धोखा दे दिया था और किले का संक्षिप्त द्वार खोल दिया। रानी के सेनापतियों तथा झलकारी बाई ने उन्हें किला छोड़ने की सलाह दी और महारानी किले से बाहर निकल गई । झलकारीबाई के पति पूरन किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गया, लेकिन झलकारी को शोक मनाने का समय कहाँ था ? वह तो महारानी लक्ष्मीबाई को बचाने के लिए अंग्रेज सैनिकों को धोखा देना तय किया, झलकारी बाई ने रानी के कपड़े पहने और झांसी सेना की कमान अपने हाथ में ले लिया और इसके बाद किले के बाहर जनरल "रोज" के शिविर में जा पहुँची। उसने चिल्लाकर कहा ओ 'जनरल रोज' से मिलना चाहती है अंग्रेज सैनिक प्रसन्न थे कि झाँसी सहित रानी को कब्जे में ले लिया है, रोज उसे लक्ष्मीबाई ही समझ रहा था।

प्रयाण

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में महारानी लक्ष्मीबाई के साथ ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अद्भुत पराक्रम दिखाया उसने योजनाबद्ध तरीके से महारानी को किले से निकलने के लिए रानी का वेश धारण कर अंग्रेजों से भिड़ गई और रानी किले से बाहर निकल गई। धोखेबाज दूल्हेराव झलकारी बाई को पहचानता था जनरल रोज से कहा यह महारानी नहीं है ये तो झलकारी बाई है, झलकारी बाई ने दूल्हेराव को धिक्कारा कैसा राजपूत है तू थूक रही हूं तुझपर। रोज ने कहा तुम रानी नहीं हो झलकारी बाई हो, तुमको गोली मारी जाएगी। झलकारी ने निर्भय होकर कहा, मार दे! मैं का मरवे खों डरतौ ? जैसे इतने सैनिक मरे तैसे एक मैं सई। यह पागल हो गई है, एक अंग्रेज अधिकारी ने कहा कि यदि एक प्रतिशत भी महिलाएं इस प्रकार पागल हो गई तो हमे बोरी बिस्तर वाध लेना होगा।

 इस पर बड़ा मत भेद है कुछ का कहना है कि वही अंग्रेजों से संघर्ष करते हुए झलकारी बाई मारी गई कुछ इतिहासकारों का मत है कि उसे गिरफ्तार कर लिया गया और  4 अप्रैल 1858 को ग्वालियर में फाँसी हुई। लेकिन यह सत्य नहीं है जो लोकगीतों व स्थानीय किवदंतियां है उससे यह स्पष्ट होता है कि झलकारी बाई अंग्रेजों से युद्ध करते हुए हुतात्मा हुई।

झलकारी बाई की गाथा ग्वालियर के आस-पास लोक गाथाओं के माध्यम लोकगीतों के रुप में भी मिलती है यह उसका जीवित स्वरूप है। भारतीय इतिहास ने झलकारी बाई के साथ अन्याय किया वामपंथी विचारधारा व कांग्रेसी इतिहासकारों ने तो कही झलकारी को कोई महत्व ही नहीं दिया। उत्तर प्रदेश सरकार (कल्याण सिंह) ने उनकी प्रतिमा आगरा स्थापित किया है उनके नाम से धर्मार्थ चिकित्सालय शुरू किया गया है और एक स्मारक अजयमेरू, राजस्थान में निर्माणाधीन है। जब तक महारानी लक्ष्मीबाई और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास रहेगा झलकारी बाई को याद किया जाएगा वे अमर है आइये इस हुतात्मा को देशभक्ति का काम करके श्रद्धांजलि अर्पित करें।


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