मुगलों को पराजित करने वाले महाराजा वीर छत्रसाल बुंदेला

 

इतिहास पुरुष महाबाहुबली महाराज वीर छत्रसाल 

पराजित मुगल

औरंगज़ेब जब अपना परचम भारतवर्ष में फहराना चाह रहा था उस समय उत्तर मेवाड़ में वीर शिरोमणि ''महाराणा राजसिंह'', दक्खन से सिसौदिया कुलवंश ''छत्रपति महाराज शिवाजी'' ने और बुंदेलखंड की वीर प्रसूता भूमि से ''महाराज छत्रसाल'' ने ऐसा भीषण सिंहनाद किया कि दिल्ली के तख़्त की चूलें हिल गयीं। इनकी महा सिंह गर्जना से अपने को आलमगीर कहने वाले मुगल औरंगज़ेब का हृदय भय से बेचैन हो गया। औरंगज़ेब ने तमाम यत्न किए किंतु इन सिंह पुरूषों के शौर्य के आगे उसकी एक न चली और अंततः हारकर उसे इनकी राजसत्ता को स्वीकारने पर विवश होना पड़ा। 

छत्रसाल का जन्म

वीर छत्रसाल का जन्म 'बुन्देलखण्ड' के टीकमगढ़ जिला में एक जागीरदार परिवार में 'चम्पतराय' के यहाँ 4 मई 1649 को हुआ था। बचपन में ही घुड़सवारी का शौक था युद्व लड़ने का कौशल जैसे जन्म से ही रहा हो, तलवार भाला और धनुष बाण उनके सहयात्री थे। एक दिन वे अपने साथियों के साथ तलवार चलाने का अभ्यास कर ही रहे थे कि मुगलों की एक टुकड़ी एक मंदिर के सामने से गुजरी कि युवा छत्रसाल देखा कि वे तुर्क मंदिर की ओर बढ़ रहे हैं और वह मूर्तियों को तोड़ने जा रहा था, उस समय ऐसा समय था कि हिंदू समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए मुसलमान कहीं भी कोई भी देवालय की छति पहुचाते, हिन्दू आस्था पर चोट करते ! लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि एक हिंदू रक्षक भी पैदा हो गया है! वीर बुंदेला ने ललकारा अपने साथियों के साथ मुगलों को मारकर गिरा दिया एकाध बचकर भाग गया। अब यहीं से छत्रसाल का नया जीवन प्रारंभ होता है, वे विचार में डूब गए कि हिंदू समाज का क्या होगा? उन्हें लगा कि दक्षिण में शिवाजी महाराज की सेना में भर्ती होकर मुगलों, तुर्कों और विदेशी इस्लामी आतंकवाद को समाप्त किया जा सकता है और वे शिवाजी महाराज की सेना में भर्ती हेतु दक्षिण दिशा में रवाना हो गए।

क्षत्रपति शिवाजी महाराज

छत्रसाल महराज के दरबार में हाजिर हुए, वे केवल 17 वर्ष के थे क्षत्रपति शिवाजी महाराज ने उन्हें गौर से देखा उन्हें उसमे राज अंश दिखाई दे रहा था, एक ही भेंट में पहचान लिया और आने का प्रयोजन पूछा छत्रसाल ने अपना परिचय देते हुए हिंदू समाज के दुर्दशा का वर्णन किया शिवाजी महाराज बहुत प्रभावित हो गए और कहा कि आप अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर सकते हैं सेना में भर्ती नहीं बल्कि हिंदू राज्य की स्थापना के लिए भगवान ने आपको भेजा है। छत्रसाल को महराज की बात समझ में आ गई और वे राज्य स्थापना के लिए दृढ़ निश्चय कर लिया। उनके जो पांच मित्र थे जिनके साथ वे शस्त्र अभ्यास करते थे उन्हें ही अपनी सेना में भर्ती कर सैनिक मान लिया।

राज्य की स्थापना

मात्र पाँच घुड़सवारों की सेना से अपने राज का आरम्भ करने वाले ''महाबाहुबली महाराज छत्रसाल'' ने औरंगज़ेब के देखते ही देखते, औरंगजेब को पराजित कर उसकी नाक के नीचे मध्यभारत यानी ''बुंदेलखंड'' में एक विशाल वैभवशाली साम्राज्य गढ़ दिया और महाराजा की उपाधि ग्रहण किया, जिसकी सीमा के बारे में कहा जाता है। छत्रसाल बुंदेला के राष्ट्र प्रेम, वीरता और हिंदुत्व के कारण छत्रसाल का हिंदू समाज में बहुत प्रेम व सम्मान था, देखते ही देखते छत्रसाल ने एक विशाल सेना तैयार कर ली। जिसमें 72 सरदार थे, वसिया युद्ध में पराजय के पश्चात मुगलों ने छत्रसाल बुंदेला को स्वतंत्र राजा स्वीकार कर लिया, महाराजा छत्रसाल ने (1678) पन्ना को अपनी राजधानी बनाया। विक्रम संवत 1744 में योगी प्राणनाथजी के निर्देश पर छत्रसाल का राज्याभिषेक किया गया। छत्रसाल अपने समय के शूरवीर, संगठक व कुशल सेनानायक और प्रतापी राजा थे। ''शिवाजी महाराज'' के दरबारी ''कबि भूषण'' ने 'छत्रसाल दशक' लिखा कहा ---!

                    ''छत्रसाल को सराहूं कि सराहूं शिवराज को।''

छत्रसाल बुंदेला के बारे में कबि कहते हैं---! 

                       ''इत यमुना उत नर्मदा, इत चम्बल उत टौंस।

                        छत्रसाल सों लरन की, रही न काहू हौस।।''            

फिर मुगलों को जीता

1729 में प्रयागराज के 'सूबेदार बंगश' ने बुंदेलखंड पर आक्रमण कर दिया वह एरच, कोच, जालौन पर अधिकार कर लेना चाहता था फिर क्या था वीर बुंदेला मुगलों से लड़ने के लिए ललकारा लेकिन दतिया, सेवड़ा आदि राजाओँ ने साथ नहीं दिया। तब 'वीर छत्रसाल' ने ''बाजीराव पेशवा'' से सहयोग मांगा और एक संदेश भेजा-----!

           ''जो गति भई गजेन्द्र की सो गति पहुंची आय।

              बाजी जात बुंदेल की राखौ बाजीराव।।''

'बाजीराव पेशवा' सेना सहित सहायता के पहुंचे 'छत्रसाल बुंदेला' और 'बाजीराव पेशवा' ने बंगश को 30 मार्च 1729 को पराजित कर दिया, 'बंगश' मुख छिपाकर भाग खड़ा हुआ। छत्रसाल और बाजीराव पेशवा के संबंध पिता पुत्र के थे, महोबा के आस पास का क्षेत्र उन्होंने बाजीराव को दे दिया । वीर छत्रसाल के नाम पर मध्यप्रदेश में छतरपुर जिला है, छत्रसाल पुत्रों ने (1707से1752) पन्ना, जैतपुर, अजयगढ, विजवार, चरखारी, छतरपुर और जासो राज्यों का आपस में बंटवारा कर लिया। बुंदेला राज्य की सीमा के बारे में कहा जाता है---!

“भैंस बंधी है ओरछा, पड़ा होशंगाबाद। 

लगवैया हैं सागरे और चपिया रेवा पार॥''

अर्थात ओरछा से लेकर होशंगाबाद तक और सागर से लेकर नर्मदा की शिवभूमि तक महाराज साहब के शौर्य की विजय पताका लहराने लगी। और उन्होंने स्वतंत्र बुंदेलखंड राज्य की नींव रख दी। महाराज छत्रसाल के ४४ वर्ष के राजकाल में उन्होंने बावन युद्ध लड़े और सभी में उन्होंने विजयश्री हासिल की वे अपराजेय योद्धा थे और जीवन के अंत तक अपराजेय ही रहे। 

       “छत्ता तोरे राज में धक- धक धरती होय। 

       जित जित घोड़ा मुख करे उत-उत फत्ते होय॥”

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