महान हिंदू साम्राज्य (खालसा) के संस्थापक महाराजा रणजीत सिंह

 


18 साल की उम्र में लाहौर जीतने वाले महाराजा रणजीत सिंह की कहानी

जब भी देश के इतिहास में महान राजाओं के बारे में बात होगी तो शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह का नाम इसमें जरूर आएगा। महाराजा रणजीत सिंह ने 10 साल की उम्र में पहला युद्ध लड़ा था वहीं 18 साल की उम्र में लाहौर को जीत लिया था। 40 वर्षों तक के अपने शासन में उन्‍होंने अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के आसपास भी नहीं फटकने दिया, इसके बाद 1802 में उन्होंने अमृतसर को अपने साम्राज्य में मिला लिया और 1807 में उन्होंने अफगानी शासक कुतुबुद्दीन को हराकर कसूर पर कब्जा किया।

साम्राज्य का विस्तार

रणजीत सिंह ने अपनी सेना के साथ आक्रमण कर 1818 में मुल्तान और 1819 में कश्मीर पर कब्जा कर उसे भी सिख साम्राज्य का हिस्सा बन गया। महाराजा रणजीत ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं और उन्हें पश्चिमी पंजाब की ओर खदेड़ दिया। अब पेशावर समेत पश्तून क्षेत्र पर उन्हीं का अधिकार हो गया। यह पहला मौका था जब पश्तूनों पर किसी गैर-मुस्लिम ने राज किया। अफगानों और सिखों के बीच 1813 और 1837 के बीच कई युद्ध हुए। 1837 में जमरुद का युद्ध उनके बीच आखिरी भिड़ंत थी। इस भिड़ंत में रणजीत सिंह के एक बेहतरीन सिपाहसालार हरि सिंह नलवा मारे गए थे। दशकों तक शासन के बाद रणजीत सिंह का 1839 को निधन हो गया, लेकिन उनकी वीर गाथाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

शेरे पंजाब 

खालसा साम्राज्य के वे पहले महाराजा थे जो शेरे पंजाब के नाम से प्रसिद्ध थे महाराजा रणजीत सिंह का जन्म महाराजा महा सिंह माता राजकौर के यहां 13 नवंबर 1780 को गुजरवाला में हुआ। महाराजा रणजीत सिंह एक ऐसे राजा थे जिन्होंने पूरे पंजाब को ही एकजुट नहीं किया बल्कि जीते जी पंजाब में अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के आस पास फटकने नहीं दिया। खालसा साम्राज्य की केवल स्थापना ही नहीं किया बल्कि लेह, लद्दाख, जम्मू कश्मीर और अफगानिस्तान तक खालसा यानी हिन्दू साम्राज्य का विस्तार किया। जब वे 12 वर्ष के थे पिता जी का स्वर्गवास हो गया सारे साम्राज्य का बोझ अपने ऊपर आ गया। 12 अप्रेल 1801को महाराजा की उपाधि ग्रहण किया, गुरु नानक देव जी के वंश के लोगों ने ही इनकी ताजपोशी की और महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी राजधानी लाहौर बनाया।महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानिस्तान तक के प्रत्येक मोर्चे पर दिग्विजयी पराक्रमी योद्धाओं जैसे हरिसिंह नलवा, जनरल जोरावर सिंह और राजागुलाब सिंह जैसे लोगों को नियुक्त किया । और पेशावर समेत पश्तून पर अधिकार कर लिया उसके बाद जम्मू कश्मीर लद्दाख और अफगानिस्तान तक अधिकार कर लिया। फिर जैसे को तैसा जबाब दिया।

योद्धाओं के निर्माता

महाराजा रणजीत सिंह ने पहली बार सिख खालसा सेना गठित किया, महाराजा स्वयं अनपढ थे लेकिन उन्होंने शिक्षा और कला को बढ़ावा दिया । बहुमूल्य कोहिनूर हीरा उनके मुकुट की सोभा हुआ करता था, उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार कराया और शिखर गुम्बद को स्वर्ण जड़ित कराया। उन्होंने अपने जीवन में बड़े-बड़े योद्धाओं का निर्माण किया जिसमें हरिसिंह नलवा, जनरल जोरावर सिंह, राजा गुलाब सिंह प्रमुख थे, आगे चलकर ये सब बड़े बड़े राजा हुए, हरिसिंह नलवा ऐसा था जिनके नाम से आज भी अफगानिस्तान में बच्चों को माताएं डरवाती हैं "सो जा बेटे नहीं तो नलवा आ जायेगा"। 

महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु 1839 में हुई उनकी समाधि स्थल आज भी लाहौर में मौजूद है।

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