शिवाजी की योजनाबद्ध आगरा गए थे। वे औरंगजेब का वध औरंगजेब के वध कर हिंदवी साम्राज्य स्थापित करना चाहते थे !

 


छत्रपति शिवाजी की जयंतीपर विशेष

शिवाजी महाराज को औरंगजेब की कैद से मुक्त करवाने में वीरवर दुर्गादास राठौड़ व आमेर नरेश जयसिंह जी की भूमिका।

वीर दुर्गादास राठौड़ शिवाजी की महाराष्ट्र में रहते हुए पूर्ण योजना बन चुकी थी। उसी समय औरंगजेब को शक हो गया की जसवंत सिंह मारवाड़ शिवाजी से मिल गया है। अतः अतः महाराष्ट्र से जसवंत सिंह जी को हटाकर आमेर के कच्छावा जय सिंह को नियुक्त कर दिया । पुरंदर की संधि के बाद शिवाजी को जयसिंह ने वीर दुर्गादास राठौड़ की योजना अनुसार ही आगरा भेजने के लिए तैयार किया। 5 मार्च 1666 को शिवाजी      100 सेवक  ढाई सौ मराठा अंगरक्षक (100 घुड़सवार 150 पैदल ) 10 बंजारे ऊंट बैल गाड़ियों सहित दल के रसद आपूर्ति के लिए रवाना हुए इनके साथ सरदार गज सिंह की कमान में 4000 चुनिंदा कछवाहा घुड़सवार भी थे। वह सारे कछवाहा घुड़सवार और उनके घोड़े पीतल के कवच और लोहे की कड़ियों के जिरह बख्तर से लैस थे। समस्त घोड़े   इराकी अरबी नस्ल के थे। और  घुड़सवार ओं की आयु 25 वर्ष से अधिक नहीं थी। इनमें एक भी घुड़सवार साढे 6 फुट से कम ऊंचाई का नहीं था। आवश्यकता पड़ने पर शत्रु विनाशक कमांडो दस्ता शिवाजी की पूर्ण सुरक्षा करता हुआ वह साथ चल रहा था।

वीर दुर्गादास राठौड़ से गुप्त सूचना के आधार पर 12 मई 1666 को औरंगजेब का 50 वां जन्मदिन था। इसी अवसर पर वह आगरा के तख्ते हाउस पर बैठकर भारत का वास्तविक बादशाह है यह साबित करना चाहता था।

 पूरे भारत के राजे रजवाड़े इस दिन बादशाह को मुबारकबाद और भेंट देने के बहाने एकत्रित होने वाले थे शिवाजी महाराज योजनाबद्ध ऐसी चाल चले कि 11 मई को आगरा के निकट "मलिक की सराय" में डेरा लगाया । यह रास्ता उन्होंने 2 माह है 6 दिन में पूरा किया 12 मई को आमेर नरेश जय सिंह जी का कुंवर राम सिंह इन्हें लेने आया और ताजमहल के निकट अपने महल के सामने मैदान में तंबू में ठहराया। उधर मारवाड़ के जसवंत सिंह और दुर्गादास राठौड़ बड़ी बारीकी से स्थिति पर नजर रखे हुए थे। हर क्षण उनका गुप्तचर विभाग हर क्षण की स्थिति से उन्हें अवगत करा रहा था। अब सोचने वाली बात यह है कि क्या बिना सोचे समझे और बिना सुरक्षा के यूं ही शिवाजी 500 मील दूर से यात्रा करके आगरा गुलामी स्वीकार करने पहुंचे थे! प्रत्यक्ष रूप में माना ढाई सौ 300 लोगों के सहारे शिवाजी खूंखार, चालाक, निर्दयी, कपटी और धूर्त औरंगजेब के पास "आगरा" शेर की मांद में वह स्वयं भी जा पहुंचे थे। वहां शिवाजी इतिहास निर्माण करते हुए आगरा पहुंचे थे । औरंगजेब के 50वें जन्म दिवस के अवसर पर राज्यरोहण के दिन ही तख्त हाउस पर बैठे भारतेश्वर अर्थात शंहशाह औरंगजेब का भरे दरबार में भारत के समस्त राजा महाराजाओं व नवाबों के सामने हत्या करना ऐसी योजना। उसी तख्ते हाउस की  खातिर जिस औरंगजेब ने अपने जन्मदाता शाहजहां को कैद कर लिया था अपने भाइयों की निर्मम हत्या कर दी थी। "उस पर हिंदू पद पादशाही की स्थापना करना एक ही दिन में भारत माता को विदेशी मुगलों की बेड़ियों से मुक्त कराना और हिंदू साम्राज्य की घोषणा करना क्योंकि यह संभव था! कि शिवाजी के साथ वीर दुर्गादास राठौड़ की योजना के अनुसार 4000 कछवाहा राजपूतों के साथ आगरा में जय सिंह के पुत्र राम सिंह के साथ 10000 राजपूत पहले से तैनात थे। साथ में जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह के साथ दुर्गादास राठौड़ के नेतृत्व में 25000 राठौड़ राजपूत आगरा के चप्पे-चप्पे में नियुक्त थे। जैसलमेर, बीकानेर, झालावाड़ और मालवा के राजाओं के साथ आगरा में मौजूद थे जिनकी संख्या सारे भारत से आए मुगलों, पठानों से अधिक थी। शंकालु औरंगजेब मुगलों को भारत के ही प्रांतों में अधिक मात्रा में रहने के आदेश दिए थे। राज्यरोहण के दिन अवसर का लाभ उठाकर अन्य प्रांतों में कहीं विरोध भड़क न उठे।  औरंगजेब कांईयां व शंकालु  प्रवृत्ति का था। उसके सारे जासूस आगरा में फैले हुए थे। उसे पता था कि प्रत्येक मैदान में राजपूत राजाओं ने शिविर गाड़ दिए हैं सारे अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित हैं। औरंगजेब के जासूसों ने हिंदू राजाओं से भी शिवाजी के भेंट के समाचार औरंगजेब को दे दिए थे। यह कहना कि सारे राजे रजवाड़े मुगलों की चाटुकारिता करते थे यह गलत है सभी संगठित और अवसर की प्रतीक्षा में थे। लेकिन यह हो न सका विधि ने कुछ और ही लिखा था।

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