इस्लाम का खलीफाई संघर्ष

 


इस्लाम का खलीफाई संघर्ष

मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा किया

अरब इस्लाम की जन्मभूमि और इस्लामिक आतंकवाद की भी भूमि है इस्लामिक देशों की इजरायल का युद्ध क्या है यह तो सभी को पता है। जिस दिन यहूदियों ने अपना राष्ट्र स्थापित किया उसी समय से इस्लामी आतंकवादी हमले का शिकार हो रहा है यह बात सही है कि इस्लाम के सभी 56 देशों पर इसरायल भारी रहता है इनको उसी उनकी भाषा में जबाब देता रहता है। अरबों ने फिलिस्तीन नाम का एक इस्लामी आतंकवादी देश ही खड़ा कर दिया है। इस्लाम में जिहाद की संकल्पना तो हमेशा से थी, पहले इस्लामी लुटेरों जिसे हम मुस्लिम राजा या सुल्तान भी कह सकते हैं उनके नेतृत्व में इस्लामी जिहाद यानी लूट अथवा युद्ध होता था। विश्व में तीन सबसे आतंकवादी संगठन एशिया के है, तालिबान, आई.एस.आई.एस. और अलकायदा। तालिबान पिछले 30 वर्षों से सक्रिय है और पिछले डेढ़ दसक में 25000 से अधिक लोगों की हत्या कर चुका है। तालिबान एक सुन्नी इस्लामिक कट्टरपंथी आंदोलन है जो अफगानिस्तान को पाषाण युग में पहुचाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है।

अभी तक दूसरे नंबर का इस्लामी आतंकवादी संगठन "अल कायदा" है जिसका मुखिया पहले ओसामा बिन लादेन था जिसकी "आई.एस." के उदय के पश्चात गतिविधियां ठंढ़ी पड़ गई। 2014 के बाद जो सबसे बड़े पाँच आतंकवादी संगठन थे उसमें अल कायदा का नाम नहीं है, 2011 में अमेरिका ने पाकिस्तान में छुपे आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को मार डाला। ये तीनों आतंकवादी संगठन "वहाबी सुन्नी" मुसलमानों का संगठन है। और लेबनान का "हिजबुल्लाह," यमन का "हौथी," इराक में "एसाहिब अल हक" जैसे शिया आतंकवादी संगठन हैं। तो "लश्करे -ए- तैयबा" पाकिस्तान का सबसे बड़ा इस्लामी आतंकवादी संगठन है जिसकी स्थापना हाफिज सईद ने किया था। अफ्रीकी देशों में कुकुरमुत्तों के समान स्थान स्थान पर आतंकी संगठन पैदा हो गए हैं। सोमालिया, नाइजीरिया, माली, ट्यूनीशिया, मिश्र, चाड, कैमरून इत्यादि देशों में कई जिहादी संगठन सक्रिय हो गए हैं जैसे मुजाओ, अंसार अल शरिया, साइनड इन ब्लड बटालियन आदि आदि। नाइजीरिया का "बोकोहरम" सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन माना जाता है। 

जिहाद की अवधारणा यानी आतंकवाद बुनियादी सिद्धांतों में से एक है।

इस्लाम के विख्यात इतिहासकार डॉ के.एस. लाल जिहाद के लिए "कुरान" को जिम्मेदार मानते हैं, वे कहते हैं, "कुरान मानवजाति के विरुद्ध एक युद्ध की नियम पुस्तिका जैसी है।" वे कहते हैं, "कुरान अन्य पंथों के अस्तित्व और उनके धार्मिक रीति रिवाजों के बने रहने की इजाजत नहीं देता, कुरान की 6326 आयतों में से 3900 आयतें प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से काफिरों, मुशरिकों, मुनकीरों, मुनाफ़िक़ों अथवा अल्लाह एवं उसके पैगम्बर मुहम्मद पर ईमान न लाने वालों से संबंधित है। पहली श्रेणी की आयतें उनके ईमान लाने वालों के लिए दूसरी श्रेणी की आयतें उन काफिरों तथा इनकार करने वालों से संबंधित है जिन्हें इस संसार में दंड दिया जाना है और मृत्यु के बाद निश्चित रूप से जहन्नुम में जाएंगे।" वे आगे कहते हैं कि कुरान भाई चारे का ग्रंथ न होकर मानवजाति के विरुद्ध एक युद्ध की नियम पुस्तिका जैसी है। अन्य पंथों के अनुयायियों के विरुद्ध जिहाद अथवा स्थायी युद्ध, कुरान का आदेश है इस्लाम अन्य पंथों के अनुयायियों के खिलाफ जिहाद अथवा लगातार युद्ध की सिफारिश करता है, ताकि उन्हें पकड़ लिया जाय, उनके सिर काट दिये जायँ और उन्हें जहन्नुम की आग में जलाया जा सके।   (थ्योरी एंड प्रैक्टिस ऑफ मुस्लिम स्टेट इन इंडिया, पृ.5-6)

कुरान मुसलमानों को स्वर्ग के बदले अपनी जान देने को प्रेरित करती है और बताती है जिहाद में जान देने वाले सीधे स्वर्ग जाते हैं, जहाँ उन्हें हर तरह के ऐशो आराम मिलते हैं। गैर मुस्लिमों पर विजय प्राप्त करना और उन्हें अपमानित करना यह पैगम्बर मुहम्मद के जिहाद का प्रमुख अंग है। जिहाद में जीतने वाले को गाजी कहा जाता है, जिहाद से यश प्राप्त होता है, उसे 'धनीमाह' कहा जाता है, जिसका अर्थ है लूट। यह लूट भी दो प्रकार की बताई गई है- एक पराभूत काफिरों की संपत्ति की लूट-पाट तथा दूसरी इन हारे हुए काफिरों की महिलाओं, बाल, बच्चों की लूट। इन अर्थों में 'जिहाद' धर्म युद्ध कैसे हो सकता है ?

मुस्लिम विद्वानों का मत

कई बुद्धिजीवियों, लेखकों ने जिहाद के बारे में अपने विचार प्रकट किये हैं। इस्लाम के बारे में कई आलोचनात्मक पुस्तकें लिखने वाले अनवर शेख की राय भी कुछ ऐसी ही है।-- "जिहाद अरबी भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ 'प्रयास' होता है किंतु इस्लामी दर्शन में इसका आशय अल्लाह है (अरब का देवता) के लिए युद्ध रत होना, जिससे काफिरों पर अल्लाह की प्रभुता स्थापित हो सके और जब तक कि वे अपना पंथ त्यागकर मुसलमान न हो जाय या अपमानजनक जजिया नामक कर देकर उनकी अधीनता स्वीकार न कर लें। "जिहाद गैर मुस्लिमों के बिरुद्ध एक अंतहीन युद्ध है, जिसमें हिंदू, बौद्ध, अनीश्वरवादी, देवबादी, संशयवादी तथा यहूदी, ईसाई सभी सामिल हैं। मुहम्मद और अल्लाह पर ईमान लाने और अल्लाह के पूजे जाने तक के एक मात्र अधिकार को नहीं मानता है। इसलिए एक मुस्लिम देश को गैर मुस्लिम देश को दास बनाने आक्रमण करने का पर्याप्त कारण है।"

डॉ. मुहम्मद सैयद रमादान अल बूती ने अपनी पुस्तक' 'ज्यूरिसप्रूडेंस इन मुहम्मदस बायोग्राफी' में लिखा--- "जैसा कि इस्लामी कानून में ज्ञात है--- 'मजहबी युद्ध' (इस्लामी जिहाद) बुनियादी तौर पर एक आक्रमण संघर्ष है। हर समय मुसलमानों का जब उन्हें आवश्यक सैन्य शक्ति उपलब्ध हो जाती है, यह एक फर्ज है,यह वह दौर है जिसके दौरान मजहबी युद्ध के अर्थ ने अपना अंतिम रूप धारण किया है। इस प्रकार अल्लाह के पैगम्बर ने कहा,-- मुझे उन लोगों के तब तक लड़ने का हुक्म हुआ है जब तक कि वे अल्लाह पर ईमान नहीं लाते।" (पृ.134)

इस्लामी कानून के जानकार और लेखक मुजफ्फर हुसेन लिखते हैं कि-- "चौदह सौ साल का इतिहास बताता है कि दुनिया कितनी प्रगतिशील साधन संपन्न हो जाये, फिर भी इस्लाम में आतंकवादी पैदा होते रहेहैं और आगे भी होते रहेंगे। इस आतंकवाद में हथियार से अधिक महत्व उस ब्यक्ति का है जो अपनी जान हथेली पर लेकर मरने के लिए निकल चुका है, यह जुनून की अंतिम सीमा है, जो नशे में बदल जाता है। वहाबियों और नजदियों का यह मानना है कि हम इस मार्ग को छोड़ने वाले नहीं हैं। उनका कहना ठीक है क्योंकि इसी मार्ग से उन्हें सत्ता प्राप्त होती है। मुसलमान आतंकवादियों का दर्शन उनके मस्तिष्क पर नियंत्रण करता है जिससे वे स्वर्गरूपी मृगतृष्णा के पीछे भागते रहते हैं। इस्लाम जब तक सत्ता प्राप्त का हथियार रहेगा, आतंकवाद भी तब तक चलता रहेगा।"

वहाबी विचारधारा

डॉ खुर्सीद अनवर कहते हैं,-- "वहाब ने एक एक करके इस्लाम में विकसित होती खूबसूरत और प्रगतिशील परंपराओं को ध्वस्त करना शुरू किया और उसे इतना संकीर्ण रूप दे दिया कि उसमें किसी तरह की आजादी, खुलेपन, सहिष्णुता और आपसी संबंधों की गुंजाइश न रहे। कुरान और हदीस के बाहर की जो भी है उसको नेस्तनाबूद करने का बीड़ा उठाया, लेकिन मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब की आमद और प्रभाव ने इन सभी पहचानों पर तलवार उठा ली। उन्होंने लिखा, जो किसी कब्र, मजार के सामने इबादत करे या अल्लाह के अलावा किसी और से रिश्ता रखे, वह मुशरिक है और हर मुशरिक का खून बहाना उसकी संपत्ति हड़पना हलाल और जायज है।" 

इस्लाम में बहुत सारे पंथ बनने लगे शिया, सुन्नी, कादियानी, सूफी जैसे कोई बहत्तर फिरके हो गए और यही इस्लाम में धीरे धीरे अपने प्रकार का समाज सुधार की ओर अग्रसर होने लगे। विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक अमेरिका के कटु आलोचक "नोआम चाम्सकी" ने सऊदी अरब द्वारा आतंकवादी गुटों के सहयोग का उल्लेख करते हुए कहा-- "वहाबी विचारधारा चरमपंथ का मूल श्रोत है, सऊदी अरब विश्व के चरमपंथ का केंद्र है और यही देश सीरिया, यमन में युद्ध को जारी रखने में अड़ा हुआ है। सऊदी अरब आतंकवादी गुटों को वित्तीय सहायता करता है। वास्तव में इसी विचारधारा के कारण ही सऊदी अरब चरमपंथ का केंद्र बना हुआ है।"

खिलाफत साम्राज्य

सुन्नी इस्लामी खलीफा साम्राज्य को खिलाफत कहा जाता है। खिलाफत अरबी शब्द खिलाफा से बना है, जिसका अर्थ है उत्तराधिकार खिलाफत आंदोलन का आशय, मुहम्मद के उत्तराधिकार का शासन। शासक खलीफा कहलायेगा। जो सैद्धांतिक रूप से संसार के सारे मुसलमानों का मजहबी नेता और नायक होता है, परंतु कहने में जितना सीधा सरल लगता है व्यवहार में उतना ही जटिल सिद्ध हुआ। खिलाफत आंदोलन का इतिहास दुनिया की जटिलतम पहेलियों और उलझनों की वह कहानी है, जिसकी विरासत छप्पन इस्लामी देशों में बिखरी हुई है। इसके बावजूद खिलाफत पैगम्बर का उत्तराधिकार होने के कारण दुनिया भर में मुस्लिम नेता खिलाफत के प्रति अपना सम्मान जताने में नहीं चूकते। 1930 दिसंबर में आयोजित मुस्लिम लीग के अधिवेशन में अल्लामा इकबाल ने खिलाफत की शान में एक शेर पढ़कर कहा था--।

हो जाये अगर  शाहे खुरासान  का इशारा,

सिजदा न करूं हिंद की नापाक जमीं पर।

अर्थात यदि हमें तुर्की के खलीफा का इशारा मिल जाय तो हम इस हिंदुस्तान की नापाक जमीन पर नमाज तक न पढेंगे।

शिया--सुन्नी

1979-1983 के बीच सद्दाम हुसैन ने 48 प्रमुख शिया मौलवियों को फांसी पर चढ़वा दिया था इसमें शिया नेता मोहम्मद बकीर अल सद्र और उसकी बहन शामिल थी। 1979 में सददाम हुसैन द्वारा सत्ता हथियाने के साथ इराक के शियाओं को कुछ वक्त तक राहत मिली नए शासन ने कुछ हद तक शियाओं और सुन्नियों के साथ समान ब्यवहार किया। तभी 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रान्ति हुई, जो एक तरह से शिया क्रान्ति थी, तब सद्दाम हुसैन को डर लगने लगा कि इराक में भी ऐसी क्रान्ति हो सकती है तो उसने दमन के पुराने हथकंडे अपनाने शुरू कर दिये।

आई.एस.आई.एस.---

सुन्नी प्रतिरोध आंदोलन में एक नया और महत्वपूर्ण नाम है आई.एस.आई.एस.। आई.एस.आई.एस. का गठन अप्रैल 2013 में हुआ और ईरानी अल कायदा से अलग रहते हुए यह बहुत तेजी से बढ़ा। इसके बाद अल कायदा ने उसे अपने ग्रुप से बाहर निकाल दिया। इनके युद्ध गृह युद्धों में बदल गए, एक तिहाई सीरिया बेघर हो चुका है। 25 लाख से भी अधिक लोगों ने सीरिया से पलायन कर पड़ोसी देशों, लेबनान, जार्डन और तुर्की में शरण ली है। इसमें सबसे बड़ी संख्या महिलाओं और बच्चों की है। 7 जून 2006 को अमेरिका के हवाई हमले में अचानक जरकावी मारा गया। जरकावी की मौत के बाद 13 अक्टूबर 2006 को 'अल कायदा इन इराक' का नाम बदलकर "इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक" कर दिया गया और अबू अब्दुल्ला अल राशिद अल बगदादी को इसका अमीर बनाया गया। अप्रैल 2010 में अमेरिका इराक के एक संयुक्त ऑपरेशन में अबू अब्दुल्ला बगदादी की मौत हो गई। 

खलीफा---!

1924 पिछ्ली सदी में खिलाफत खत्म हो गई उस समय विश्व भर में मुसलमानों को सदमा लगा, तबसे मुसलमानों का सपना था खिलाफत की पुनर्स्थापना करना। मिश्र में बने मध्य-पूर्व के कई देशों में फैले हुए जुझारू संगठन "मुस्लिम ब्रदरहुड" ने खोई हुई खिलाफत को फिर से बनाने का लक्ष्य रखा, जिस सपने को पिछली सदी में साकार नहीं कर पाए उसे "अल बगदादी के नेतृत्व में आई.एस.आई.एस. ने साकार कर दिखाया। इराक के दूसरे महत्वपूर्ण शहर मोसुल पर कब्जा करने के बाद आई.एस.आई.एस. के नेतृत्व में बड़ी तेजी से खिलाफत की स्थापना दुस्साहसी फैसला किया। दुनिया को यह पता नहीं चला कि यह संगठन कहाँ से आया और कैसे खिलाफत बनाने का चमत्कार कर दिखाया। 29 जून 2014 में इस्लामी खिलाफत की घोषणा करने वाले "इसलामी स्टेट" ने सोशल मीडिया पर जारी एक वीडियो में मुसलमानों से कहा--समूह के नेता अबु बक्र अल बगदादी के हुक्म को माने। पाँच जुलाई को बगदादी ने एक वीडियो जारी कर अपना धर्मसंदेश सुनाया, काली पगड़ी और लबादा पहने बगदादी ने अपने संदेश में कहा-- "मैं वली 'नेता' हूँ, जो आपकी सदारत कर रहा है। हालांकि मैं आप सबमें बेहतरीन नहीं हूँ, इसलिए अगर आप देखें कि मैं सही हूँ तो मेरी मदद करें। और जब तक मैं खुदा के हुक्म मानता हूँ, आप मेरा माने।"

काफिरों का संहार

7 अगस्त, 2014 को "आई.एस." ने कई असीरियन शहरों, क्वाराकोश, ढेल, केप, बरतेला और कर्मलिसपर कब्जा कर लिया। उसके साथ एक लाख ईसाईयों को अपना घर वार छोड़कर पलायन करना पड़ा, 22 फरवरी 2015 को कुर्दों के हमले के दौरान आई.एस. ने 150 सीरियन ईसाईयों का अपहरण कर लिया उन्हें लंबे समय तक बंधक बनाए रखा। 21 ईसाईयों का सिर कलम कर वीडियो जारी किया इन लोगों को लीबिया के आई.एस.आई.एस. के आतंकियों ने बंधक बनाया था। वीडियो में एक आतंकी यह कहते हुए नजर आ रहा था, "हम अल्लाह की कसम खाते हैं, जिस समुद्र में तुमने शेख ओसामा बिन लादेन का शरीर डाला है, उसे हम खून से भर देगें।" उसके बाद सभी बंधकों के सिर झुकाकर उनके धड़ अलग कर दिया। "अल्लाह की इजाजत से हम रोम को जरूर जीतेंगे।" "मोसुल के पश्चिम में कोह संजारा के समीप यजीदिया कौम की डेढ़ सौ महिलाओं को इसलिए मार दिया गया क्योंकि उन लोगों ने जिहादियों से जबरन निकाह करने से मना कर दिया। इससे मोसुल शहर में सात सौ यजीदी महिलाओं को सरे बाजार में बोली लगाकर बेच दिया गया। एक वीडियो जारी कर इन महिलाओं को जानवरों के समान जंजीरों में बांधकर हाँकते हुए दिखाया गया था।

आई.एस का रोंगटे खड़े कर देने वाला क्रूर मामला तब सामने आया जब आई.एस. के कब्जे वाले इराक के मोसुल में इन आतंकियों ने 19 लड़कियों को जिंदा जला दिया, उनका कसूर केवल इतना था कि उन लड़कियों ने आई.एस. आतंकियों का सेक्स गुलाम बनने से इंकार कर दिया था। इराक के अल्पसंख्यक यजीदी समुदाय के लोगों को 2014 में "इस्लामिक स्टेट" ने बंधक बनाया था, बहुत सारी कोशिश के पश्चात 216 लोगों को रिहाई हुई उनकी आप बीती सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इस समुदाय की 55 लड़कियों ने जो पिछले दस महीने में देखा उसे सिर्फ नर्क कहा जा सकता है उन लड़कियों ने जो बताया बार बार गैंगरेप की शिकार! बंद दरवाजे के भीतर नहीं बल्कि सरेआम गैंगरेप तीन तीन-चार चार दरिंदे उनके साथ बलात्कार किया। आई.एस. ने दस महीने इन्हें सेक्स गुलाम बना कर रखा था।

खलीफा और भारत

इराक और सीरिया का शिया-सुन्नी युद्ध भारत के लिए सुदूर मध्य-पूर्व का युद्ध नहीं रहा, जल्द ही वह हमारी देहरी तक आ पहुंचा। लोगों की धारणा थी कि हजारों मील दूर हो रहे शिया सुन्नी के युद्ध में यहां के मुसलमानों की कोई दिलचस्पी नहीं होगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। समाचार मिला कि 18 सुन्नी मुस्लिम इराक, सीरिया में जिहादियों की ओर से लड़ रहे हैं। इन आतंकियों का कितना प्रभाव भारत पर पड़ा आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि सुन्नी मौलाना सलमान नदवी ने इराक में नरसंहार करने वाले और स्वयं को खलीफा घोषित करने वाले आई.एस.आई.एस. के नेता अल बगदादी को न केवल शुभकामनाएं दीं बल्कि पाँच लाख सशस्त्र लड़को को इराक भेजने की बात कर उसे खलीफा स्वीकार कर लिया। इतना ही नहीं उन्होंने भारतीय मुसलमानों की एक फौज बनाने की सऊदी अरब से अपील की और सऊदी सरकार को एक पत्र भी लिखा, नदवी कोई छोटी मोटी हस्ती नहीं है, वे दारुल उलूम नदवा के शरीयत विभाग के डीन हैं जिसकी ख्याति दारुल उलूम देवबंद के समान है। वे आल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कोर्ट के सदस्य भी है। वास्तव में वे चाहते हैं कि यह सेना खिलाफत का हिस्सा बन जाएगी जिसके गठन की उन्होंने सऊदी अरब से अपील की है।

इस्लामिक स्टेट का दर्शन

वास्तविकता यह है कि मुसलमानों का एक हिस्सा इस्लाम को धर्म नहीं, राजनीतिक दर्शन भी मानता है, जिसके पास वैकल्पिक समाज की रूप रेखा है। अरब देशों में इस्लामवाद, इस्लामी आतंकवाद या राजनैतिक इस्लाम कहे जाने वाले आंदोलन के जनक और मुस्लिम ब्रदरहुड के नेता अल बन्ना ने नारा दिया था-- "कुरान हमारा संविधान है, जिहाद रास्ता और शहादत जज्बा।" कुत्ब इन्हीं बन्ना के अनुयायी थे और सबसे मुखर प्रवक्ता भी, हर धार्मिक कट्टरपंथी की तरह कुत्ब को भी आधुनिक सभ्यता रास नहीं आई। चंगेज खान के पोते हलाकू के बाद कई मंगोल नेताओं ने नाम मात्र के लिए इस्लाम कबूल किया था, मगर तैमियाह ने उन्हें धर्मद्रोही ही माना, उन्होंने दलील दी कि किसी मुस्लिम के लिए युद्ध में दूसरे मुस्लिम को मारना जायज है, यदि वह मंगोलों के साथ लड़ रहा है, ध्यान रहे इब्ने तैमियाह आज के जिहादियों का बौद्धिक पूर्वज है। एक तरह से वे तफ़कीरी जिहाद के मूल प्रणेता होने के कारण कुछ जानकर कहते हैं कि-- "तैमियाह आई.एस.आई.एस. के वैचारिक संस्थापक था।"

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1 टिप्पणियाँ

  1. Dear indians, you're all exposed, now we've evidence against you. Because very recently someone has debunked muslim terrorism (as well as lovejihad), without using quran, hadith and history. Links are below:
    (3 mirror link are available)

    https://muhsinulalam.wixsite.com/manikblog/post/%E0%A4%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AE-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%8F-%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%AB%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AE-%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A4%BE

    https://muhsinulalam.wordpress.com/2023/04/25/%e0%a4%87%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%ae-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%87%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%b8-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%89%e0%a4%aa%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%97/

    https://muhsinulalam2.blogspot.com/2023/04/blog-post.html

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