बिना स्वराज्य के स्वधर्म का पालन संभव नहीं --!


'' बिना स्वराज्य के स्वधर्म का पालन नहीं हो सकता'' उसके कई उदाहरण है वीर हकीकत राय अपने धर्म का अपमान नहीं सह सकने के कारण मौत को स्वीकार करना पड़ा। सिख गुरुओं व गुरू गोविंद सिंह का बलिदान इसी बात का द्योतक है कि बिना स्वराज्य के स्वधर्म का पालन नहीं किया जा सकता इसलिए स्वराज्य अपना राज्य आवश्यक है। भारत में दो राजवंशों की अगर चर्चा न की जाय तो हिंदू समाज का अपमान माना जाएगा। एक मेवाड़ महाराणा वंश दूसरा मराठा साम्राज्य हम समझ सकते हैं कि मेवाड़ राजवंश ने स्वराज्य के लिए कितना बलिदान दिया है और उसी प्रकार क्षत्रपति शिवाजी महाराज हिन्दवी साम्राज्य की स्थापना कर आक्रांता बर्बर मुगलों को पराजित ही नहीं किया बल्कि वही उसकी समाधि बना दिया। बीच के काल खंड में विमर्श गढ़ा गया कि देश अलग है और धर्म अलग, राजनीति अलग। और फिर सेकुलरिज्म की धारा के रास्ते देश का इस्लामीकरण! ये चाहे वामपंथी विचारधारा हो अथवा समाजवादी ये सभी विचारधारा विदेशी हैं जिनसे भारत के कल्याण की कामना नहीं किया जा सकता। 

आदि जगद्गुरु शंकराचार्य

आज के कोई ढाई हजार वर्ष पूर्व केरल के कालड़ी नाम के एक गांव में एक बालक का जन्म एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ, बड़ा ही मेधावी था चार वर्ष की आयु में ही सभी धर्म ग्रंथों का अभ्यास कर लिया था उसका नाम शंकर था। भगवान बुद्ध वैदिक धर्म मानने वाले थे उनके अनुयायियों ने विकृति धर्म का पालन शुरू कर दिया सनातन वैदिक धर्म के प्रति घृणा फैलाना शुरू कर दिया परिणामस्वरूप शंकराचार्य ने शास्त्रार्थ के बल पुनः "राजा सुंधवा" को माध्यम बनाकर स्वराज्य स्थापित किया। लेकिन सम्राट अशोक की बर्बर धर्म विरोधी नीति ने सम्पूर्ण भारत वर्ष में वेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ, रामायण, महाभारत को जलाकर समाप्त करने का प्रयास किया वैदिक धर्म का ह्रास होने लगा गौ गंगा गायत्री का अपमान शुरू हो गया और फिर परकियो के हमले शुरू होने लगे। पुनः धर्म रक्षार्थ सेनानी पुष्यमित्र शुंग ने बौद्ध राजा बृहद्रथ का बध कर पुनः स्वराज्य की स्थापना कर स्वधर्म की रक्षा की। पुनः गुरुकुलों, ऋषियों और ब्राह्मणों द्वारा वेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों को पुनर्स्थापित कर स्वधर्म पालन का दरवाजा खोल दिया। इस प्रकार शंकराचार्य के अनुयायी सम्राट विक्रमादित्य ने बौद्ध काल में ध्वस्त हुए अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवंतिका, जनकपुर इत्यादि धर्मस्थलों का पुनरुत्थान किया। इस प्रकार बिना स्वराज्य के स्वधर्म का पालन सम्भव नहीं है।

हरित मुनि

आठवीं शताब्दी में महाराजा दाहिर की पराजय का बदला लेने हेतु भीलों के सरदार बप्पारावल जिसे भीलों ने अपना राजा मानलिया था। चित्तौड़ के राजा मान को जब पता चला कि यह बाप्पा कोई और नहीं बल्कि मेरा भांजा है उन्होंने उसकी योग्यता क्षमता देख चित्तौड़गढ़ का राज्याभिषेक कर दिया। बप्पा रावल भील नवजवानों को तलवार, धनुष बाण चलाना सिखाता जिसका सारा प्रशिक्षण हरित मुनी देते थे। हरीत मुनी ने अपने देखरेख में बप्पा को सैनिक प्रशिक्षण दिया था, ब्राह्मणवाद के राजा दाहिर की पराजय को कोई भी ऋषि -मुनि बर्दास्त नहीं कर पा रहा था तभी हरीत मुनि को बप्पा रावल में यह सब गुण दिखायी दिया और चित्तौड़गढ़ के राज्यारोहण कराने के पश्चात, जो अफगानिस्तान बप्पा रावल के पूर्वजों का था आक्रमण कर पुनः विजय प्राप्त किया। अब चित्तौड़ की सेना वापस नहीं लौटी बल्कि गजनी पर भगवा ध्वज फहराया इतना ही नहीं बप्पा रावल ने अरब तक पर आक्रमण कर उनसे कर ही नहीं लिया बल्कि खलीफा के जितने सेनापति पराजित हुए सभी की बेटियों से विवाह किया वर्णन मिलता है कि बप्पारावल ने बीस मुस्लिम लड़कियों से विवाह किया। अरब से लौटते समय प्रति सौ मील पर एक एक गढ़ का निर्माण कराया और वहां सेना स्थापित कर वापस आये, इसलिए ध्यान में आता है कि आठवीं शताब्दी से लेकर ग्यारहवीं शताब्दी तक किसी मुस्लिम आक्रांता की हिम्मत नहीं हुई कि भारत की ओर आँख उठाकर देख सके।

रामानुजाचार्य और रामानंदाचार्य

देश में बलात धर्मान्तरण हो रहा था बर्बर आतंकी इस्लामी शासन हिंदू धर्म पर जजिया कर, हिंदू धर्म के पूजा अर्चना करने में प्रतिबंध होने के कारण सुदूर दक्षिण में रामानुज का जन्म हुआ था। कोकण का दक्षिण पूर्वी भाग कर्नाटक राज्य कहलाता है तिरुशरः पल्ली से नेल्लोर तक चोलराज्य है। कांची चोलराज्य की राजधानी थी। हिंदू समाज की जैसी प्रकृति है--- वह विचार करता है कि जैसा मैं हूँ अथवा मेरा धर्म है वैसा ही सामने वाला है लेकिन सामने वाले का तो कोई धर्म ही नहीं है उसका धर्म तो हिंसा, हत्या, बलात्कार ही है उसी से उसे जन्नत मिलती है। रामानुज मेधावी आचार्य थे वे सामने वाले को समझते थे उन्हें यह ध्यान में था कि विना स्वराज्य बचाये स्वधर्म का पालन नहीं किया जा सकता। इस लिये विशिष्टा द्वैत यानी वैष्णव संप्रदाय को आधार बनाकर सारे भारत वर्ष में समरसता को कायम रखते हुए हिन्दू समाज के अंदर जागरण करते हुए हिंदू राजाओं को शिक्षित, समृद्धि और विवेकपूर्ण बनाकर हिंदू समाज और हिंदू धर्म की रक्षा की। धर्म दण्ड की आज्ञा मानकर अथवा संतो ने विभिन्न राजवंशों को खड़ा किया, अथक परिश्रम कर पाल, मौखरि, चालुक्य, प्रतिहार, पल्लव, राष्ट्रकूट, प्रद्योत, होयसल, चेदि, चेर, सातवाहन, शुंग, वर्धन, गुप्त, उत्पल, वाकाटक इत्यादि राजवंशों के राजाओं-महाराजाओं ने अनेक वर्षों के आक्रमणों से त्रस्त भारत की आत्मा की सुरक्षा की। रामानंद स्वामी का जन्म पंद्रहवीं शताब्दी में हुआ उस समय इस्लामी आतंकवाद चरम पर था स्वामी रामानंद जी ने अपने द्वादश भागवत शिष्यों के साथ सम्पूर्ण भारत वर्ष का भ्रमण कर सभी हिंदू राजाओं को जागृत करने का काम किया। स्थान स्थान पर राजाओं को दीक्षित कर अपने अपने राज्य को सुदृढ़ करने की शिक्षा दी। अयोध्या राज्य के राजा हरिसिंह को खड़ा कर चौतीस हजार मुस्लिम बने हिंदुओं को पुनः अपने धर्म मे वापसी किया। इतना ही नहीं जो भी मुसलमान अयोध्या से जाता तो उसका दाढ़ी गायब हो जाता उसके "टीका, चंदन" हो जाता और "मोछ" उग आती थी। इस्लामी जगद में हाहाकार मच गया बहलोल लोदी ने स्वामी जी से छमा याचना की और जजिया हटाया। 

और स्वामी विद्यारण्य

हरिहर राय-बुक्का राय ये जन्म से हिंदू धर्म के थे इन्हें तत्कालीन मुस्लिम आक्रमणकारियों मुहम्मद तुगलक ने दक्षिण इस्लामी साम्राज्य के विस्तार हेतु आक्रमण किया और कम्पली राज्य के दो मंत्रियों हरिहर और बुक्का को गिरफ्तार कर लिया, इन दोनों को इस्लाम स्वीकार करने के बाद इन्हें दक्षिण विजय के लिए भेजा। लेकिन जब वे दक्षिण में पहुंचे तो वह गोदावरी नदी के किनारे भागकर पहुचे वहीं उनकी भेंट वहां के शंकराचार्य स्वामी विद्यारण्य से हुई बुक्का को अपनी सनातन धर्म में था ध्यान में था सब कुछ स्वामी जी को बताया और वहीं शंकराचार्य विद्यारण्य ने उन्हें सनातन धर्म में वापसी की। और विजयनगर साम्राज्य की स्थापना किया। हरिहर राय बुक्का राय राजा संगम के पुत्र थे वे निषाद  (बेदार) शिकारी समुदाय से थे, दक्षिण में मुसलमानों का प्रवेश अलाउद्दीन खिलजी के समय हुआ था। अलाउद्दीन खिलजी ने विभिन्न राज्यों को पराजित कर वार्षिक कर लेने तक ही सीमित था। विजयनगर साम्राज्य भारतवर्ष का एक समृद्धशाली साम्राज्य बनकर खड़ा हो गया और स्वधर्म का तेज आगे बढ़ने लगा।

ऋषि दयानंद सरस्वती

ब्रिटिश काल में दयानंद सरस्वती एक क्रांतिकारी महात्मा थे बचपन में उन्होंने सन्यास ग्रहण कर लिया उनके गुरू स्वामी विरजानंद थे जो जन्मांध थे लेकिन ईश्वर की कृपादृष्टि से वे अपने समय के सबसे बड़े व्याकरणाचार्य थे। अष्टाध्यायी, वेद, उपनिषदों पर उनका अधिकार था ऋषि दयानंद को उन्होंने वेदों का सारा ज्ञान उड़ेल दिया। उन्होंने अपने गुरू दक्षिणा में अपने देश की आजादी और वेदों का प्रचार माँगी थी स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपना सारा जीवन गुरु के नाम पर समर्पित कर दिया यानी देश आजादी के काम में लग गए। शंकराचार्य से लेकर सभी आचार्यों का मत था बिना स्वराज्य के स्वधर्म का पालन नहीं हो सकता। इसी ध्येय को लेकर स्वामी दयानंद ने भारत भ्रमण करने का काम शुरू कर दिया सर्वाधिक वे उदयपुर राणा के यहां रुकते थे सभी राजाओं को धार्मिक शिक्षा और देश आज़ादी का मंत्र देते थे। 1857 का स्वतंत्रता संग्राम इन्ही स्वामी दयानंद सरस्वती के नेतृत्व में लड़ा गया था जिसमे सारा देश खड़ा हो गया था सारे राजवंश इस युद्ध में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से शामिल हो गए थे। असफलता मिलने के बाद स्वामीजी कोलकाता पहुँचे वहां वे ब्रम्हसमाज के कार्यालय में रुके प्रतिदिन अपने प्रवचन में स्वधर्म और स्वराज्य की बात करते। यह समाचार वायसराय के पास पहुँचा वायसराय उस कोलकाता में रहता था स्वामी जी उससे मिलने पहुँचे। वायसराय ने स्वामीजी से पूछा कि स्वधर्म का क्या अर्थ है स्वामी दयानंद ने बताया सनातन वैदिक धर्म ही स्वधर्म है और स्वराज्य क्या है ? मैं तुमको इंग्लैंड भेज दूँ यह स्वराज्य है ऐसा कहने वाला ऋषि दयानंद के अतिरिक्त और कौन हो सकता था? 

हमारे राजा धर्मपालक प्रजावत्सल

वैदिक ऋषि यह कामना करता है कि राजा धर्म रक्षक, लोक संरक्षक और योगक्षेम वाहन में इतना तत्पर और उद्यत हो कि समस्त जनता उसको प्रेम करे। वनवास कालखंड में भगवान राम अयोध्या के शासक भरत से राजा के रूप में प्रजावत्सल, दयालु, निष्पक्ष, संवेदनशील, सुलभ तथा स्थिरमना होने की अपेक्षा करता है। वाणशैया पर पड़े भीष्म पितामह युधिष्ठिर को राजधर्म की शिक्षा देते हैं कहते हैं कि राजा का प्राथमिक दायित्व धर्मयुक्त लोकरंजन है। बस्तुतः भारत में राजा होना अधिकार नहीं अपितु दायित्व और धर्मपालन का द्योतक रहा है। इसलिए अधर्म की बृत्ति ब्यक्ति को राजा बनने से रोकती है। प्रथम शताब्दी में करिकाल चोल द्वारा काबेरी नदी पर बाढ़ तट वंध निर्माण, राज राजेंद्र चोल द्वारा सिंचाई ब्यवस्था, राजमार्ग, निर्माण, बृहदीश्वर का निर्माण, कृष्णदेव राय, चमराज राजेन्द्र वाडियार एवं अहिल्याबाई होलकर इत्यादि राजाओ ने औद्योगिक क्रांति, ब्यापार और आधारभूत संरचना का विकास, न्याय, समृद्धि शान्ति के लिए अविस्मरणीय देशव्यापी प्रयास। विधर्मियों द्वारा नष्ट किये गए मंदिरों के जीर्णोद्धार आदि असंख्य श्लाघनीय कार्य विभिन्न क्षेत्रों में और राज्यों में भारतवर्ष के राजाओं ने किया जिसका स्मरण आज भी हमें श्रद्धा से भर देता है।

आधुनिक काल

डॉ भीमराव अंबेडकर जैसे आधुनिक विचारक, भारत के अत्यंत सम्मानित राजपुरुष को श्रेष्ठ शिक्षा प्रदान करने वाले सयाजीराव गायकवाड़ जैसे राजा ही थे। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के नायक 23 वर्षीय रानी लक्ष्मीबाई, मैनपुरी के महाराजा तेजसिंह, रिवाड़ी के राव तुलाराम और बिहार के बाबू वीर कुंवर सिंह की राजवंश से ही थे अपने धर्म पर अडिग रहे और अनेकानेक राजाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देकर स्वाधीनता का मार्ग प्रसस्त किया। आधुनिक भारत के निर्माण में असंख्य बलिदानियों, राष्ट्रभक्तों, स्वतंत्रता सेनानियों, राजा महाराजाओं  को प्रेरित करने का काम आधुनिक ऋषी परंपरा के वाहक स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ, स्वामी प्रणवानंद इत्यादि संतों ने किया। इन सभी लोगों का मानना था कि बिना स्वराज्य के स्वधर्म का पालन नहीं किया जा सकता इसलिए भारतीय संस्कृति में धर्म दंड का बहुत ही महत्व है, त्याग का बड़ा महत्व है और स्वराज्य का महत्व है जो आवश्यक है जिससे धर्म संरक्षित रहेगा और धर्म संरक्षित रहने पर मानवता, अनुशासन, परिवार, कुटुंब सब कुछ ठीक हो सकता है। देश विभाजन के पश्चात डॉ भीमराव अंबेडकर ने कहा ''देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ है इसलिए भारत में एक भी मुसलमान नहीं रहना चाहिए और पाकिस्तान में एक भी हिंदू नहीं रहना चाहिए''। उन्होंने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए कहा कि भारत की राष्ट्र भाषा संस्कृत होनी चाहिए जिससे भविष्य में कोई भाषाई विबाद नहीं होगा। उन्होंने अपनी पुस्तक "पार्टीशन ऑफ इंडिया पाकिस्तान" में लिखते हैं कि मुसलमान एक बंद निकाय के समान है उसमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है, मुसलमानों का प्रेम मुहब्बत केवल मुसलमानों के लिए है न कि गैर मुस्लिमों के लिए। 

समय की आवश्यकता 

आज जिस प्रकार से समाजवादी, वामपंथी और सेकुलरिस्ट देशद्रोह पर उतारू हैं हिन्दू समाज को सचेत रहना पड़ेगा। बड़ी मुश्किल से आधा -अधूरा देश आजादी के नाम पर मिला है, विश्व मे अकेला लेकिन सत्तर वर्षो में पहली बार भारत अपना दब -दबा कायम कर रहा है जिसे ये राष्ट्र विरोधी तत्व बर्दास्त नहीं कर पा रहे हैं। इन्हें भारत की उन्नति पच नहीं रही है इन्हें फोर लेन -सिक्स लेन सड़के नहीं दिख रही है, इन्हे 22घंटे विजली नहीं दिखाई देती। ये भारतीय सेना के हथियार उन्नति चाइना व पाकिस्तान की नानी याद आ रही हैं बर्दास्त नहीं हों पा रहा है आज भारत पाँचवी अर्थ व्यवस्था बनकर खड़ा है स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। आज धारा 370 समाप्त होकर भारत की मुख्यधारा मे आ गया है, श्री राम मंदिर का निर्माड़ भारतीय संस्कृति का वैभव संपन्न होना इन्हें अच्छा नहीं लग रहा है। ये बिपक्षी दल विदेशी विचार धारा में फंस चुके हैं इन्हे भारत का विकास कैसे स्वीकार हो सकता है? इसलिये हिंदू समाज को सजग होकर भारत हित हिंदू हित पर विचार कर कोई कदम उठाये और अपना मतदान करें।


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