वोट न देने का परिणाम

 

मतदान का महत्व और शत्रु की पहचान

देश बंटवारे की मुहीम चल रही थी जिन्ना पाकिस्तान निश्चित तौर पर बनाना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता की राग अलाप रही थी। वैसे हिंदू समाज कांग्रेस को अपनी पार्टी मानता था लेकिन कांग्रेस ऐसा विचार नहीं था उसे मुस्लिम तुष्टिकरण का भूत सवार था। यदि यह कहा जाय कि कांग्रेस का जन्म ही भारत को गुलाम बनाये रखने के लिए हुआ था तो यह अतिश्योक्ति नहीं हो सकता। गांधी जी अंग्रेजों की शत प्रतिशत विचार लागू करने का काम किया करते थे इसीलिए पटेल को 13 वोट आचार्य कृपलानी को एक वोट लेकिन प्रधानमंत्री वह बना जिसे एक भी वाट नहीं मिला जवाहरलाल नेहरू। कांग्रेस पार्टी हमेशा हिंदू समाज और भारत व भारतीय संस्कृति के दुश्मन के समान कार्य करती दिखाई देती है। देश का विभाजन लगभग तय हो चुका था 1946 में विभाजन के लिए मतदान होना शुरू हो गया था, बहुत सारे ऐसे स्थान थे जहाँ हिंदू बहुल था लेकिन वह भाग पाकिस्तान में चल गया विशेष रूप से बिहार उत्तर प्रदेश के मुसलमानों ने पाकिस्तान के लिए मतदान किया। हरियाणा पंजाब इत्यादि के मुसलमानों ने भी पाकिस्तान के लिए मतदान किया लेकिन बिहार उत्तर प्रदेश व हरियाणा के मुसलमान पाकिस्तान नहीं गए अथवा गाँधी नेहरू की जोड़ी ने उन्हें जाने नहीं दिया। 

सियालकोट  वोट न देने की कीमत

अभी कुछ दिन पूर्व वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह जिनका एक अखबार चैनल चलता है, प्रदीप सिंह ने अपने चैनल पर वोट न देने की कीमत पर क्या होता है यह बताया मैं उसी को आधार मानकर इस सियालकोट की घटना का वर्णन कर रहा हूँ।सियालकोट हिंदू बहुल प्रान्त था कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों एक भारत के पक्ष और दूसरा पाकिस्तान के पक्ष में चुनाव लड़ा। पूरे देश में चुनाव हो रहे थे मुसलमानों के लिए यह चुनाव किसी जिहाद से कम नहीं था। सुबह ही मुसलमान लाइन में लग गए हिंदू समाज ने देखा कि अभी बड़ी लाइन है वह इंतजार करता रहा तब तक दोपहर हो गया धूप बहुत तेज हो गई। एक ओर मुसलमानों की पंक्ति समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा था दूसरी ओर हिंदू लाइन समाप्त होने का इंतजार कर रहा था जब तक हिंदुओ को ध्यान में आया कि किसी भी कीमत पर वोट डालना चाहिए तब तक मतदान का समय समाप्त हो गया और इस हिंदू बहुल प्रांत में 58 हज़ार वोट से हिंदू पराजित हो गया। फिर क्या था ऐलान होने लगा मस्जिदों से आवाज आने लगी हिंदू अपनी संपत्ति अपनी बहन बेटियों को छोड़कर जा सकता है और हिंदू समाज पर हमले शुरू हो गए लाखों हिंदुओं का नरसंहार हो गया। बूढ़े बूढ़े मुल्ला मौलाना छोटी छोटी बच्चियों से बलात निकाह करने लगे कुछ हिंदू पलायन कर भारत आ गए शेष मारे गए हिंदू बहुल प्रांत की हिंदू जनसंख्या केवल दस हजार बची अभी 2017 के जन गड़ना के अनुसार केवल पांच सौ हिन्दू बचे हुए थे अभी क्या है कुछ पता नहीं। इसलिए वोट देते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि देश और धर्म के लिए कौन सी पार्टी काम करती है रोजगार, धन तो मिलेगा लेकिन जब हमारा देश हमारा धर्म बचा रहेगा। नहीं तो आज के सेकुलर कल के मुसलमान हैं यह बात ध्यान रखना चाहिए।

बाबा साहेब अंबेडकर और डॉ योगेंद्र मंडल

उस समय की राजनीति में यह दोनों के स्तर के विद्वान शायद कोई रहे होंगे! लेकिन राष्ट्रवाद पर दोनों के विचारों मतभेद थे जहाँ डॉ आंबेडकर कहते थे कि मुसलमान एक बंद निकाय के समान है इनका प्रेम मुहब्बत केवल मुसलमानों के लिए है न कि अन्य लोगों के लिए वहीं डॉ योगेंद्र मंडल कहते थे कि वह समता मूलक समाज है। परिणाम यह हुआ कि डॉ आंबेडकर के विपरीत डॉ योगेंद्र मंडल पाकिस्तान के पक्ष में चले गए इतना ही नहीं वे पाकिस्तान के प्रथम विधि मंत्री भी बने लेकिन ठीक छः महीने बाद हिंदू समाज (दलितों) पर हमले शुरू हो गए मंडल कुछ नहीं कर पाए सारे मंदिर टूटने लगे हिंदू बहन बेटियों को मुसलमान बलात ले जाने लगे। डॉ योगेंद्र मण्डल मजबूर होकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली को एक पत्र लिखा कि "जैसा मैंने इस्लाम को जाना" आज भी यह पत्र नेट पर उपलब्ध है। पत्र लिखकर डॉ योगेंद्र मंडल वापस कोलकता आ गए अपनी बेनामी जिंदगी बिता कर 1996 में चले गए। डॉ योगेंद्र मंण्डल जब आये उसी समय से पीड़ित हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन भागकर जान बचाकर कोई न कोई बहाना बनाकर भारत अपने देश में आने लगे एक अनुमान के अनुसार पश्चिम बंगाल में दसियों लाख "मतुआ समुदाय" ( दलित) के लोग योगेंद्र मण्डल के समय ही आ गए थे। जो आज दसियों लोकसभा सीटों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। लेकिन हिंदू समाज का दुर्भाग्य तो देखिए उन्हें आज तक भारत की नागरिकता नहीं मिली वे यहाँ वोट नहीं दे सकते । दूसरी ओर रोहंगिया और बांग्लादेशी घुसपैठियों को खुलेआम नागरिकता वोट देने का अधिकार। अभी बर्तमान "मोदी सरकार" में "CAA कानून" के तहत इन हिंदू अभागों को नागरिकता देने और वोट देने का अधिकार मिल रहा है तो ये सभी राष्ट्र विरोधी विपक्षी दल हाय तौबा मचाये हुए हैं।

डॉ आंबेडकर का स्पष्ट चिंतन

उस समय के ख्यातनाम हिन्दू नेताओं मैं डॉ आंबेडकर ही मात्र ऐसे नेता थे जिनको सारी समस्याओं की स्पष्ट समझ थी।  उन्होंने जनसंख्या अदला-बदली को स्वीकार करने का पहले ही यह सुझाव दिया था । डॉ आंबेडकर ने1940 में ही पाकिस्तान के सवाल पर "थॉट्स ऑन पाकिस्तान" नामक पुस्तक लिखी, जिसका संसोधित संस्करण "पार्टीशन ऑफ इंडिया पाकिस्तान"  1945 में प्रकाशित हुई। जिसमें इस्लाम की रूपरेखा, सिद्धांत, इतिहास आदि पर ब्यापक विचार किया गया था। हिंदू नेताओं की सूझबूझ की कमी से निराश डॉ आंबेडकर ने टिप्पणी की थी, "मैं अनुभव करता हूँ कि जो हिंदू जन अपने बांधवो के भाग्य का पथ प्रदर्शन कर रहे हैं, उनकी देखने की सक्षम आँख लुप्त हो गई है और वे कुछ खोखले भ्रम जालों की चमक ओढ़े घूम रहे हैं जिनके परिणाम, मुझे भय है, हिंदुओं के लिए घातक होंगे। हिंदू पक्ष से ऐसी बाते सुनकर आश्चर्य होता है। पता नहीं हिंदू बुद्धि इतनी मंद और शिथिल कैसे हो गई।"

डॉ आंबेडकर ने दबाव देकर कहा कि भारत देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ है इसलिए भारत में एक भी मुसलमान नहीं रहना चाहिए और पाकिस्तान में एक भी हिंदू नहीं रहना चाहिए। लेकिन नेहरू - गांधी हीन भावना से ग्रसित होने के कारण अम्बेडकर का सामना नहीं कर सकते थे और उनकी बात नहीं मानी, डॉ आंबेडकर कहते थे यदि मुसलमान यहाँ रह गए तो पचास साल बाद फिर ये एक नए पाकिस्तान की मांग करेंगे क्योंकि इस्लाम में जो अल्लाह, मुहम्मद साहब और कुरान को नहीं मानता वह काफिर है उसे जिंदा रहने का अधिकार नहीं है यह धरती अल्लाह की है काफिरों को रहने का अधिकार नहीं है। अम्बेडकर द्वारा ब्यक्त की गई आशंकायें सौ प्रतिशत सही सिद्ध हुई। लाखों लोगों की नृशंस हत्या और अकथनीय अपमान और उत्पीड़न के लिए जिन्ना, मुस्लिम लीग, और मुसलमानों के साथ ये हिंदू नेता भी उतने ही जिम्मेदार थे। आज जो डॉ आंबेडकर ने कहा था उसका प्रकटीकरण हो रहा है।

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना

डॉ योगेंद्र मंडल बड़े विद्वान थे लेकिन विवेक लगता है कि कम था जैसा कि डॉ आंबेडकर ने कहा है कि पता नहीं कैसे हिंदुओं की बुद्धि शिथिल सी हो गई थी वास्तव में योगेंद्र मंडल की भी बुद्धि शिथिल हो गई थी वे इस्लाम को प्रेम मुहब्बत का धर्म कहते थे वे कहते थे कि इस्लाम में समरसता व समानता का ब्यवहार होता है उन्हें यह नहीं पता था कि इस्लाम में 72 सम्प्रदाय है जो एक दूसरे के शत्रु है उनकी न एक मस्जिद है न नमाज पढ़ने का तरीका एक है। पाकिस्तान जाने के बाद उन्हें इस्लाम समझ में आया। आज हिंदू समाज के सामने कोई बिकल्प नहीं है अगर आज भी हिंदू समाज नही जागा तो इसका ईश्वर ही मालिक है, एक हजार वर्षों से हिंदुओं के मंदिर तोड़े जा रहे हैं धर्म ग्रंथ जलाये जा रहे हैं प्रत्येक वर्ष रामनवमी, दुर्गापूजा व अन्य हिन्दू त्योहारों पर पथराव किया जाता है आखिर मुसलमानों के घरों के ऊपर, मस्जिदों में ये पत्थर कहाँ से आ जाते हैं यह हिंदू समाज को समझना होगा यह उनके लिए कोई नई बात नहीं है यह तो उनकी ट्रेनिंग चौदह सौ वर्षों की है इसलिए हिंदू समाज का सबसे बड़ा शत्रु है-- "मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना" यह शिक्षा हिंदू समाज के साथ धोखा देने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है क्योंकि उनके किताब में ही लिखा है कि 

1 ------ काफिर तुम्हारे खुले दुश्मन हैं। (क़ुरान4:101)

2- मोमिनों को चाहिए कि मोमिनों के सिवा काफिरों को दोस्त न बनाये। (कुरान 3:28)

3- हे ईमान लाने वालों! तुम यहूदियों और ईसाइयों को मित्र न बनाओ। (कुरान 5:51)

4- मुशरिकों (मूर्ति पूजकों( को जहाँ कहीं पाओ कत्ल करो और पकड़ो और उन्हें घेरो हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। (कुरान 9:5)

5- और जब कुफ्र करने वालों से तुम्हारी मुठभेड़ हो जाये तो गर्दने मारना। (कुरान 47:4)

6- अल्लाह ने तुमसे बहुत सी गनीमतों (लूट) का वादा किया है जो तुम्हारे हाथ आएगा। (कुरान 48:20)

7- कैद की गई औरतों से संभोग करने में कोई गुनाह नहीं। ( कुरान 70:29-30)

8- "किसी भी नबी को छूट नहीं है कि वह युद्ध में लोगों को बंदी बनाये, जब तक कि वह धरती पर कत्लेआम न कर दे ----।" (कुरान 8: 67)

किसने किया हिंदुओं के साथ धोखा ?

जब हम विचार करते हैं तो ध्यान में आता है कि मोहनदास करमचंद गांधी ने मंदिरों में एक भजन गाया

 "रघुपति राघव राजाराम, ईश्वर अल्ला तेरो नाम।"

लेकिन मोहनदास ने यह भजन किसी मस्जिद में नहीं गायी और हिंदुओं ने अनजाने में इसे स्वीकार भी कर लिया, लेकिन किसी मुसलमान ने इसे स्वीकार नहीं किया। हिंदुओं का गाँधी पर विस्वास हिंदू समाज के साथ धोखाके अतिरिक्त कुछ नहीं हो सकता। जब खिलाफत आंदोलन की पहली बैठक हो रही थी तो गाँधी ने स्वामी श्रद्धानंद जी को भी अपने साथ ले गए थे मौलानाओं ने जब काफिरों की हत्या करने का ऐलान किया तब स्वामी श्रद्धानंद ने गाँधी से कहा कि ये तो हमें मारने की बात कर रहे हैं। इस पर गांधी ने उत्तर दिया नहीं ये अंग्रेजों के लिए कह रहे हैं। इस पर डॉ भीमराव अंबेडकर ने अपनी पुस्तक "पार्टीशन ऑफ इंडिया पाकिस्तान" में लिखा गांधी और नेहरू पढ़े लिखे नहीं है, जिसे कुरान के बारे में कुछ पता नहीं है ।अम्बेडकर लिखते हैं कि हिन्दुओं के विस्वास के साथ धोखा हुआ, गाँधी कहते थे देश का विभाजन हमारी लास पर होगा लेकिन देश बट गया और वे लाखों हिंदुओं की हत्या पर अंदर ही अंदर खुशी मनाते रहे। (जस्टिस खोसला) गांधी के कर्मों का परिणाम था महाशय राजपाल की हत्या, स्वामी श्रद्धानंद की हत्या, सुभाषचंद्र बोस का देश से बाहर जाना हुतात्मा भगतसिंह को फांसी दूसरी तरफ गांधी जी स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे को निर्दोष ठहराते रहे। ऐसी अहिंसा किस काम की जिसके द्वारा बीसों लाख हिंदुओं की हत्या हो जाती हो।

इसलिए "बिना स्वराज्य के स्वधर्म का पालन नहीं किया जा सकता," स्वराज्य यानी हिंदू राज्य 2014 से स्वराज्य आया है अब लग रहा है कि विश्व में हिंदू धर्म भी है भारत ताकतवर भी है इसलिए स्वराज्य आवश्यक है आइये स्वराज्य और स्वधर्म के पक्ष में मतदान करें।

           

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