गार्गी वाचकनवी
गार्गी ब्रम्हवेत्ता भारतीय नारी थी, गार्गी के बारे में उसके समय काल के बारे में इतिहासकारों, ब्रम्हवेत्ताओं में बड़े मत-भेद हैं। कुछ लोगों का मत है कि जो रामायण और उपनिषदों के प्रमाणों से ज्ञात होता है कि गार्गी का समय त्रेता युग के अंत का समय है। राजा जनक के दरबार के शास्त्रर्थो में गार्गी का उल्लेख मिलता है, कुछ इतिहासकारों का मत है कि गार्गी द्वापर के अंत में महाभारत कालीन है, वर्णन मिलता है कि राजा जनक के दरबार में याज्ञवळक्य से शास्त्रर्थ का वर्णन मिलता है। ऐसा भी हो सकता है कि जनक एक उपाधि से सम्वधित हो, जनकपुर का राजा यानी जनक। इतना तो सत्य ही है कि वह वैदिक ऋषिका है, मंत्र दृष्टा है कुछ लोगों यानी आधुनिक मत से प्रभावित लोगों के अनुसार ये ऋग्वेद के मंत्रो की लेखिका है, लेकिन वेद तो अपौरूशेय है वेद मंत्रो के तो दृष्टा होते है न कि लेखक, तो ब्रम्हवेत्ता गार्गी भी मंत्र दृष्टा थी।
वैदिक मंत्र दृष्टा
गार्गी प्राचीन भारतीय वैदिक दार्शनिक थी, वैदिक साहित्य में उन्हें एक महान प्राकृतिक दार्शनिक, वेदों की प्रखर व्याख्याता और ब्रम्हा विद्या के ज्ञान के साथ ब्रम्हावादी के नाम से भी जानी जाती हैं। वह त्रेता युग में राजा जनक के समकालीन थी जो हिन्दू युग काल खंड में 'आठ लाख पचास हजार' वर्ष ईसा पूर्व का समय हम समझ सकते हैं। गार्गी का पूरा नाम गार्गी वाचकनवी बृहदारण्यकोपनिषद 3.6और 3.8 श्लोक में वही मिलता है जहाँ वह जनक की राज्यसभा में याज्ञवळक्य से आध्यात्मिक संवाद करती है।
वेदांत की प्रखर वेत्ता
बृहदारण्यक उपनिषद के छठी और आठवीं ब्राह्मण, में उनका नाम प्रमुख रूप से है। क्योंकि वह विद्या के राजा जनक द्वारा आयोजित एक दार्शनिक संवाद में ब्रम्हांड्या में भाग लेती है और संयम (आत्मा) के मुद्दे पर परेशान करने वाले प्रश्नों के साथ ऋषि याज्ञवल्क्य को चुनौती देतीं है। यह भी कहा जाता है कि ऋग्वेद के कई मंत्रो की दृष्टा भी हैं जिन्हें सभी ब्रम्हचर्य धारण करने वाले और परंपरागत हिन्दुओं, सनातन धर्मावलंबियो द्वारा पूजा में आयोजित रहता है।
ऋषि गर्ग महाभारत कालीन 3500 ईसा पूर्व के समय में थे। उनके पूर्व वंश में ऋषि वाचक्नु की बेटी गार्गी, का नाम उसके पिता के नाम पर वाचक्नवी के रूप में किया गया था एक युवा उम्र से वे वैदिक ग्रंथों गहरी रूचि लेने लगी और वैदिक अध्यात्म दर्शन के क्षेत्र में बहुत ही कुशल थी। वह वैदिक काल में वेद और उपनिषद में अत्यधिक अध्ययन था और अन्य ऋषियों के साथ शास्त्रर्थ में आयोजन में भाग लेती थीं। वचक्नवी, वाचक्नु नाम के महर्षि की पुत्री थी। गर्ग गोत्र में उत्पन्न होने के कारण वाचक्नवी गार्गी के नाम से प्रसिद्ध हुई। आगे जिसके कारण गार्गी को प्रसिद्धि मिली उस संवाद का कुछ भी तो वर्णन होना चाहिए नहीं तो गार्गी के साथ अन्याय होगा।
गार्गी और याज्ञवळक्य संवाद --1
गार्गी ने उनसे पूछा, 'हे याज्ञवळक्य, यह जो सब- कुछ जलों में ओत -प्रोत है, तो बताओ कि ये जल किसमें ओत -प्रोत है? याज्ञवळक्या ने उत्तर दिया, हे गार्गी! वायु में।' वायु किसमें ओत -प्रोत है? 'आकाश में, हे गार्गी!' आकाश किसमें ओत -प्रोत है? 'हे गार्गी! अंतरिक्ष लोकों में।' अंतरिक्ष लोक किसमें ओत -प्रोत है? हे गार्गी धौ लोक में। धौ लोक किसमें ओत -प्रोत है?' उसने उत्तर दिया, हे गार्गी! आदित्य लोक में।' 'आदित्य लोक किसमें ओत -प्रोत है? हे गार्गी, चन्द्रलोकों में।' चन्द्रलोक किसमें ओत -प्रोत है? नक्षत्र लोकों में गार्गी। नक्षत्र लोक किसमें ओत -प्रोत है? देवलोक में गार्गी। देव लोक किसमें ओत -प्रोत है ? गन्धर्व लोकों में, हे गार्गी!, 'गन्धर्व लोक किसमें ओत -प्रोत है ? प्रजापति लोकों में, हे गार्गी!' 'प्रजापति लोक किसमें ओत -प्रोत है? ' ब्रम्हालोक में, हे गार्गी!' ब्रम्हालोक किसमें ओत -प्रोत है?' याज्ञवळक्य बोले, हे गार्गी! इसके आगे कुछ न पूछ कि कहीं तेरा सिर न गिर जाय। तू उस देवता के विषय में पूछती है जो पूछने योग्य नहीं है। हे गार्गी, आगे मत पूछ।' तब गार्गी चुप हो गई।।
एक और संवाद --2
गार्गी ने कहा, 'हे याज्ञवळक्य, तुमको नमस्कार है कि तुमने मुझको इस प्रश्न का उत्तर दिया। दूसरे प्रश्न के लिए तैयार रहो।' याज्ञवळक्य ने कहा, हे गार्गी, पूछो --!
उसने पूछा, हे याज्ञवळक्य, जो कुछ धौ लोक के ऊपर है या पृथ्वी के नीचे है या जो कुछ पृथ्वी और धौ लोक के बीच में है, जो भूत है या वर्तमान है या भविष्य, यह सब किस चीज में ओत -प्रोत है --?
याज्ञवळक्य ने उत्तर दिया, "हे गार्गी, जो कुछ धौलोक के ऊपर है, जो पृथ्वी के नीचे, जो धौ और पृथ्वी के बीच में है, जो भूत, वर्तमान या भविष्य है, यह सब आकाश में ही ओत -प्रोत है।" उसने पूछा, आकाश किसमें ओत -प्रोत है --?
याज्ञवळक्य ने कहा, "हे गार्गी, वह अक्षर (अविनाशी तत्व ) है, ऐसा विद्वान लोग कहते हैं। वह न स्थूल है, न अणु है, न छोटा है, न बड़ा है, न लाल है, न चिकना है, न छाया है, न अंधेरा है, न वायु है, न आकाश है, न संग है, न स्पर्श है, न गंध है, न रस है, न चक्षु है, न श्रोत है, न उसमें आवागमन है, वह तेज नहीं है, न प्राण है, न मुख है, न उसका कोई नाम है, न गोत्र है, वह अजर है, अमर है, अभय है, अमृत है ; न वह रज है, न शब्द है, न वह विवृत है, न संवृत है, न उसका पूर्व है, न पर है, न भीतर है, न बाहर है, वह कुछ भी नहीं खाता, न ही उसको कोई खाता है।।
हे गार्गी, इस अविनाशी शासन में धौ और पृथ्वी स्थित है। हे गार्गी, इसी अविनाशी के शासन में चांद और सूर्य स्थित हैं। हे गार्गी, इस अविनाशी शासन में रात -दिन, पाख और महीने, ऋतु और वर्ष स्थित है।
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