ऋषिका घोषा का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को हुआ था वे मंत्र दृष्टा थीं ऋग्वेद के दशम मंडल में दो शुक्तों की दृष्टा थी जो इनके नाम से जाना जाता है ।
ब्रम्हवादिनी घोषा
सनातन धर्म में चार युग माने गए हैं, सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग। कलयुग की आयु चार लाख बत्तीस हजार वर्ष माना गया है, इसी प्रकार द्वापर आठ लाख चौसठ हजार वर्ष, त्रेता युग की आयु सत्तरह लाख अटठाइस हजार वर्ष और सतयुग की आयु चौतिस लाख छप्पन हजार वर्ष की मानी जाती है। ऋषिका घोषा वैदिक कालीन होने के कारण ये निश्चित है कि घोषा सतयुग के प्रारंभिक काल में रही होंगी। घोषा मंत्र दृष्टा है ऋग्वेद के दशम मण्डल में दो सूक्तों 39-40 की मंत्र दृष्टा है, जिसमें चौदह ऋचायें हैं।
सायण के अनुसार
घोषा, ऋग्वेद की एक महिला ऋषि थी, वहाँ घोषा के दो मंत्रो को अश्वनीकुमारों द्वारा संरक्षित किया गया है ऐसा सायण कहते हैं। घोषा, कक्षीवान ऋषि की पुत्री बताई गयी है। वाचपन मे कुष्ट रोग होने के कारण विवाह नहीं हुआ वह साठ वर्ष तक अविवाहित रही। एक बार उदासी के क्षणों मे अचानक उसे ध्यान मे आया कि उसके पिता कक्षीवान ने अश्वनीकुमारों की कृपा से आयु, शक्ति तथा स्वास्थ्य का लाभ प्राप्त किया था। इस प्रकार घोषा ने तपस्या प्रारम्भ की साठ वर्षीय मंत्रदृष्टा हुई वह। उसने अश्वनीकुमारों का स्वतन किया। अश्वनीकुमारों ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और उसकी उत्कट आकांक्षा जानकर उसे निरोग कर रूप-यौवन प्रदान किया।
साठ वर्ष कुष्ट रोग से पीड़ित
ऋषिका घोषा का जन्म भारत में वैदिक काल में हुआ था। उनके पिता कक्षीवान और दादा दीर्घतमा थे, दोनों वेदों के मंत्रदृष्टा थे। कुछ पश्चिम के विद्वान अथवा पश्चिम से प्रभावित आधुनिक तथाकथित भारतीय विद्वान यह मानते हैं कि ये ऋषि, ऋचाओं के लेखक हैं लेकिन वेद तो अपौंरूशेय है, ईश्वर प्रदत्त है, तो इसमें ऋषि क्या है ? तो ऋषि मंत्रो के दृष्टा है, शोधक है और मंत्रो के साधक भी है। घोषा बचपन से ही त्वचा की वीमारी से पीड़ित थी, अपने पिता की देख भाल तक ही सीमित रहती थी। एक ऋचा के अनुसार वह कुष्ट रोग से पीड़ित थी जिसने उसे विकृति कर दिया था। इसलिये वह घर तक ही सीमित रहती थी। इस प्रकार वह लम्बे समय यानी साठ वर्ष तक ब्राम्हचारिणी रही। उसने उस समय के दिव्य चिकित्सक अश्विनी कुमारों से प्रार्थना किया जिन्होंने अपने तपोबल से कायाकल्प कर घोषा को स्वस्थ कर दिया। और उन्होंने उसे "मधु विद्या" सिखाई जिससे उसे अपनी युवा अवस्था को पुनः वापस लाने और अपार ज्ञान प्राप्त करने का ज्ञान, उसकी त्वचा की बीमारी ठीक करने के लिए, इस प्रकार कथित तौर पर ठीक हो गयी। फिर उसने विवाह किया। उसके एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम "सुहस्त्य" था ईश्वर की कृपा से वह भी मंत्र दृष्टा था।
ऋचाओं के भावार्थ
घोषा ऋग्वेद के दशवे मण्डल में जिन दो सूक्तों की मंत्रदृष्टा है वे अश्वनीकुमारों पर आधारित है, दूसरा सूक्त विवाह से सम्वन्धित है। जो विवाहित जीवन की अंतरंग भावनाओं को व्यक्त करता है। घोषा के ऋचाओं के शब्दार्थ इस प्रकार है --
1- हे अश्वनी तुम्हारा तेजस्वी रथ -वह अपनी राह पर कहाँ जा रहा है ? वीरों, इसे तुम्हारे लिए कौन सजाता है ? ताकि वह भोर से ही हर सुबह प्रत्येक घर से होकर प्रार्थना के माध्यम से यहाँ तक बलिदान की ओर ले जाए।
2- अश्वनी, तुम शाम को कहाँ रहते हो ? सुबह कहाँ रहते हो? तुम्हारा विश्राम स्थल कहाँ पर है ? रात्रि को तुम कहाँ विश्राम करते हो ? हे वीरों मैं तुमसे यही प्रार्थना करता हूँ कि तुम दिन मेरे पास रहो और रात्रि मे भी मेरे पास रहो।।
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