सृष्टि के आदि पुरुष मंत्रद्रष्टा कश्यप ऋषि


 आदि पुरुष

यदि हम कश्यप ऋषि को आदि पुरुष माने तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा। इस ऋषि के अंदर जीव-जंतु, पशु-पक्षी या ये कहें कि सारी की सारी सृष्टि समाई हुई है तो यह भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। वेद पूरा का पूरा विज्ञान है और ऋषि शोधकर्ता जिसने सारी प्रकृति का वैज्ञानिक दृष्टि से दोहन किया। आज सर्वाधिक कश्यप गोत्र के लोग धरती पर पाये जाते हैं। जैसे वेदों में अधिकांश "इंद्र देव" का वर्णन मिलता तो ये क्यों है वहाँ पर "इंद्र" अलंकारिक भाषा का प्रयोग है उसके प्रत्येक स्थान पर अर्थ प्रयोग बदल जाते हैं। कहीं पर इंद्र देवताओं के राजा हैं, तो कहीं पर सेनापति हैं, कहीं पर वर्षा के देव हैं, कहीं पर वरुण देव के रूप में हैं, ऐसे अनेकों अलंकारिक शब्दार्थ दिए गए हैं। इसी प्रकार कश्यप ऋषि भी अलंकारिक भाषा में भगवान ब्रम्हा जी के आदेश पर सृष्टि का निर्माण करने के दृष्टि से सब कार्य किया है। जिसे अवैज्ञानिक मानने योग्य नहीं है समझने की अवश्यकता है जैसे वेदों को समझने के लिए निघंटू की अवश्यकता होती है ठीक उसी प्रकार भारतीय ग्रंथों को समझने के लिए भारतीय मन की आवस्यकता होती है।

कश्यप ऋषि 

कश्यप ऋषि एक वैदिक ऋषि हैं ऋग्वेद में ऋचाओं के मंत्र दृष्टा हैं। बृहदरायण उपनिषद में सबसे प्राचीन ऋषि माना गया है। सृष्टि निर्माण में उनका अतुलनीय योगदान माना गया है। वैदिक वांगमय में यह स्पष्ट है कि इस ब्रम्हांड में अनेकों सूर्य हैं इस प्रकार के अनेकों ग्रह उपग्रह हैं जिनमें कुछ की खोज हुई है हो रही है कुछ अभी हमारी खोज से बाहर है। ऋग्वेद में वर्णन आता है कि पहले पृथ्वी पर अंधेरा ही अंधेरा था। उस समय पृथ्वी पर किसी भी जीव जंतु के रहने की कल्पना भी नहीं की जा सकती, लेकिन जब सूर्य का प्रभाव पृथ्वी पर दिखा यानी सूर्योदय हुआ तो धीरे -धीरे पृथ्वी पर जीव -जंतु विकसित होना शुरू हो गए। उसी समय कश्यप ऋषि का प्रदुर्भाव हुआ, कुछ की मान्यता है कि सूर्य उनके पुत्र हैं लेकिन ऐसा संभव नहीं लगता क्योंकि जब पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश आया तभी मनुष्य का प्रदुर्भाव पृथ्वी पर हुआ और वह प्रथम मनुष्य कश्यप ऋषि थे। इसलिए उन्होंने सूर्य और पृथ्वी का पुत्र माना गया है। कुछ लोगों का मत है कि ऋषि कश्यप अँधेरे में पृथ्वी पर घूम रहे थे सूर्य का प्रदुर्भाव हुआ उन्हें प्रकाश मिला इसीलिए वे सूर्य पुत्र हुए।

प्रजापति की पुत्रियों का विवाह और ब्रम्हाजी की आज्ञा

कश्यप ऋषि, ब्रम्हा जी के मानस पुत्र मारीची के पुत्र थे इनकी माता 'कला' कर्दम ऋषि की पुत्री थी। और इन्हे "अनिष्ठनेमी" के नाम से जाना जाता है। सनातन धर्म मे सर्वाधिक कश्यप गोत्र के ही लोग पाये जाते हैं कश्यप ऋषि इतने प्रतिष्ठित ऋषि हैं कि जिसका कोई गोत्र नहीं मिलता उनका कश्यप गोत्र मान लिया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार पृथ्वी पर सर्व प्रथम ब्रम्हांजी का प्रदुर्भाव हुआ फिर उनके मानस पुत्रों का प्रदुर्भाव हुआ। ब्रम्हा जी से दक्ष प्रजापति का जन्म हुआ, ब्रम्हा जी के मानस पुत्र यानी बिना योनि की संतान क्या यह संभव है हां ये संभव है आज उत्तरी ध्रुब और दक्षिणी ध्रुव पर हिम मानव पाया जाता है ये भी बिना योनि के तो उस समय भी मानस पुत्र थे। ये क्यों हुए क्यों आवस्यकता थी तो ब्रम्हा जी सृष्टि निर्माण करना चाहते थे इसलिए ये सभी सोधार्थी थे सभी वैज्ञानिक श्रेणी में थे। कश्यप ऋषि उनमें सर्वश्रेष्ठ थे इसलिए ब्रम्हा जी ने ये कार्य कश्यप ऋषि को सौपा और कश्यप ऋषि ने इसको ठीक प्रकार से किया उसके हम सभी जीवित प्रमाण हैं। ब्रम्हा जी के कहने यानी सृष्टि निर्माण हेतु दक्ष प्रजापति ने 66 कन्याएं पैदा किया जिनमें तेरह कन्याओं का बिबाह कश्यप ऋषि के साथ हुआ। इस प्रकार कश्यप ऋषि की तेरह पत्नियां अदिति, दनु, दिति, काष्ठा, अरिष्ठा, सुरसा, इला, मुनी, क्रोधवसा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनीता, कदु, पतंगी और यामिनी इत्यादि। मुख्यतया इन्हीं के द्वारा सृष्टि का विकास हुआ और कश्यप सृष्टिकर्ता कहलाये। ऋषि कश्यप सप्त ऋषियों मे प्रमुख ऋषि माने जाते हैं।  विष्णु पुराण के अनुसार सतावें मंन्वंतर के सप्त ऋषियों में वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमद्गनि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज। कश्यप ऋषि को ऋषियों मुनियों में श्रेष्ठ माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हम सभी उन्हीं की संतान हैं। सुर-असुर के मूल पुरुष समस्त देव, दानव एवं मानव।

सृष्टि का निर्माण 

कश्यप ऋषि के तरह पत्नियां थी जिनमें दनु से कश्यप के 61 पुत्र हुए जिनमें द्वीमूर्धा, संबर, अरिष्ट, हायग्रीव, विभावसु, अयोमुख, शम्वशीरा, स्वरभानू, कपिल, अरुण, पलोमा, वरसवर्षा, एकचक्र, अनूठापन, धूमराकेश, वीरूपाक्ष, विप्रचित और दुर्जय प्रमुख थे। ये सभी दानव कहलाये। कश्यप और दिति से दैत्य हरिणाकश्यप, हरिण्याक्ष्य के अतिरिक्त 49 पुत्र और हुए जिन्हे मारुद्गना कहा गया। कश्यप और अदिति से आदित्य पैदा हुए जो बारह थे, इनमें विवस्वान, अर्यमा, पूषा, तवस्ता, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम हुए जो देव कहलाये। कश्यप ने इला से बृक्ष- लता आदि पृथ्वी पर सभी वनस्पतियाँ, रेंगने वाले विषैले जीव -जंतु जैसे सर्प इत्यादि। धर्म पत्नी ताम्रा से गिद्ध, बाज आदि उडने वाले पक्षी, सुरभि से भैस, गाय आदि पशु, सरसा से हिंसक जानवर, तिमि से जलचर इत्यादि पैदा हुए।  विनीता से गरुण, वरुण, कदु से नाग जिनमें अनंत या शेष नाग, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक हुए। पतंगी से पक्षियों का जन्म हुआ, यामिनी कीट -पतंगों का जन्म हुआ। ब्रम्हा जी की योजना से कश्यप ने अपने पुत्र वैश्वानरजो कि दनु की संतान था की पुत्री पुलोमा और कालका से विवाह किया, इनसे पोलोमा और कालकेय नामक दानावों ने जन्म लिया, जो कालांतर में निवत कवच के नाम से विख्यात हुए। हम सभी यह जानते हैं और वेद विदु धातु से बना है जिसका अर्थ विज्ञान है अब प्रश्न उठता है कि क्या मनुष्यों के द्वारा ये ऊपर वर्णित जीव -जंतु पैदा हो सकते हैं तो नहीं! फिर ये क्या है तो हमारे यहाँ वेदों में पुराणों में बहुत सारे अलंकारिक भाषा का प्रयोग किया गया है। ये अलंकारिक भाषा है ये जीव जंतु पशु पक्षी इन्हीं के द्वारा खोजे गये हैं जैसे जो हमारे सप्त ऋषि हैं उन्ही के नाम से आज गोत्र निर्धारित हैं कुछ की मान्यता है कि इस गोत्र के लोग इन्हीं ऋषियों के वंशज हैं कुछ की मान्यता है कि जिन ऋषियों के गुरुकुलों में जिनके पूर्वजों ने शिक्षा ग्रहण किया वे उस गोत्र के हो गये हमें लगता है कि सृष्टि निर्माण में कुछ इसी प्रकार की भूमिका इन ऋषिकाओं ऋषियों की रही है इसमें कुछ भी अवैज्ञानिक नहीं है आज भी शोध जारी है। अतः मुख्यतः कश्यप ऋषि ही सृष्टि शुरू करने वाले मुख्य ऋषि हैं जो सप्त ऋषियों में गिने जाते हैं।

कश्यप ऋषि का आश्रम 

ऐसा माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर कश्मीर का नाम पड़ा। महाभारत तथा अनेक पुराणों में कश्यप ऋषि का आश्रम प्राचीन भारत के अनेक स्थानों पर माना जाता है। मुख्यतया उनके आश्रम का स्थान आज के कश्मीर क्षेत्र में बताया गया है। कश्मीर का नाम कश्यप ऋषि के नाम पर पड़ा है। जब प्रलय का समय आया तो इस ऋषि ने इस भूभाग को डूबने से बचाया था। ऐसी मान्यता है कि "कश्यप सागर" यानी "कश्यप मुनी सरोवर" का उल्लेख मिलता है। कश्यप ऋषि का आश्रम हरीत भूमि, पहाड़ो और नदियों से घिरा हुआ था। यह स्थान उन्हें ध्यान, साधना और शिक्षा के लिए आदर्श मान्यता प्रदान करता था, इस प्रकार कश्यप ऋषि का आश्रम आधुनिक कश्मीर क्षेत्र माना जा सकता है जो वर्तमान में भारत -पाकिस्तान के विभाजित सीमा पर स्थित है। कश्यप ऋषि का आश्रम "मेरु पर्वत" की चोटी पर माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि इनके नाम पर ही कश्मीर का प्राचीन नाम पड़ा इस क्षेत्र पर इनके संतानो का ही राज्य था। कैलाश मानसरोवर पर शंकर जी के रुद्र गण आदि रहते थे और उत्तराखंड हरिद्वार के आस पास के क्षेत्र पर दक्ष प्रजापति का साम्राज्य था। वैसे कश्यप ऋषि के और कई आश्रम हो सकते हैं क्योंकि जैसे आज कल के विश्व विद्यालयों में कई कालेज होते हैं उसी प्रकार उस समय ऋषियों के बहुत सारे आश्रम होते थे। उनके शिष्य, ऋषि इत्यादि उसमें शिक्षा और शिक्षण हेतु रहते रहे होंगे।

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