"वयं राष्ट्रँ जाग्रयाम पुरोहिता"
मंत्रदृष्टा ऋषि गौतम
वेद अपौंरुसेय है, आदित्य, अग्नि, वायु और अंगिरा के कंठ में वेद आया उन्होंने उसे आत्मशात किया और भगवान ब्रह्म जी को दिया। अब ये सप्त ऋषि जिनके नाम से गोत्र चलता है वे भी ऋग्वेद के मंत्र दृष्टाओं में से हैं। उसमें गौतम ऋषि का नाम प्रमुख है। गौतम ऋषि सप्त ऋषियों में से एक हैं, वे वैदिक काल के महर्षि और मंत्र दृष्टा हैं, जो सप्त ऋषि हैं जिनके नाम से गोत्र चलता है उसमें से एक गोत्र महर्षि गौतम के नाम से है। उनकी धर्म पत्नी अहिल्या थी जो प्रातः स्मरणीय पंच कन्याओं
में से एक थीं। अहिल्या ब्रम्हा जी की मानस पुत्री थीं जो सुंदरता में अद्वितीय थीं। दैत्य गुरु शुक्राचार्य देवताओं से तिरस्कृत होने पर महर्षि गौतम के द्वारा शिक्षा ग्रहण किया था। कुछ विद्वानों का मत है कि गोमती नदी ऋषि गौतम के तपस्या की परिणीति है इसीलिए इस नदी का नाम गोमती नदी है।
गौतम ऋषि की तपस्या परिणीति
"त्रियम्बकेश्वर शिवलिंग" जो "द्वादश ज्योतिष लिंगो" में से एक है, उनकी तपस्या का परिणाम है इतना ही नहीं गोमती नदी के समान ऋषि गौतम की तपस्या की परिणीति गोदावरी नदी भी है और इस क्षेत्र में बारह वर्षो में एक बार कुंभ भी लगता है। गौतम ऋषि अंगिरस ऋषि वंश के थे, उनकी और अहिल्या के एक पुत्री थीं जिसका नाम था अंजनी जो हनुमान जी की माँ मानी जाती हैं। महर्षि गौतम ने न्यायसूत्र की रचना की और वैदिक मंत्रदृष्टा के अतिरिक्त न्याय दर्शन के प्रणेता भी थे। इन्होने ज्ञान और तर्क को व्यस्थित रूप दिया, उन्होंने जिस न्यायसूत्र की रचना की वह सनातन दर्शन के न्याय दर्शन का मूलभूत पाठ है। न्याय दर्शन ज्ञान-मीमांसा पर अधिक जोर देता है, जिसका अर्थ है ज्ञान प्राप्त करने का साधन और तरीकों का अध्ययन। यह दर्शन प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द को ज्ञान प्राप्त करने के चार मुख्य प्रमाण मानता है। न्याय दर्शन का मुख्य उद्देश्य तत्वों की तार्किक और व्यस्थित तरीके से व्याख्या करना जो तर्कशास्त्र के माध्यम से किया जाता था। यह दर्शन न केवल ज्ञान प्राप्ति पर केंद्रित था बल्कि बौद्ध और जैन धर्म के प्रभाव के जबाब में वेदों की सत्ता को स्थापित करने वाला सफलतम दर्शन था।
एक प्रक्षेप जो बौद्ध मतावलम्बियों द्वारा गढ़ा गया
हम सभी जानते हैं कि भारतीय बांगमय में इंद्र जैसा कोई देव नहीं माना जाता, इंद्र तो देवताओं का राजा माना जाता है साथ में वे जल वर्षा के भी देवता हैं। वेदों में कई स्थानों पर उनका नाम है कहीं उन्हें देवताओं का सेनापति कहीं राजा कहीं अन्य उपनामों से जाना है, इंद्र के पास वज्र जैसा अजेय हथियार है उन्होंने अपना रथ भगवान श्री राम को रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए भेजा था। प्रत्येक स्थानों पर इंद्र का ही उदाहरण दिया जाता है, राजा कैसा तो इंद्र जैसा!योद्धा कैसा तो इंद्र जैसा, सेनापति कैसा इंद्र जैसा। भगवान श्री कृष्णा ने गीता के उपदेश में भी इंद्र का उदाहरण दिया है, वेदों में ब्राह्मण ग्रंथों में, उपनिषदों में तथा महाभारत और रामायण में भी इन्द्र का वर्णन पाया जाता है। अहिल्या जो ब्रम्हा जी की मानस पुत्री हैं इसलिए जिन लोगों ने पुराणकारों ने ये लिखा और व्यास ऋषि के मुख में डाल दिया, उन्होंने सनातन धर्म के मर्यादा की परवाह नहीं किया इसलिए हम बड़ी दृढ़ता से कह सकते हैं कि ये केवल सनातन धर्म को बदनाम करने की साजिश मात्र है। सम्पूर्ण हिंदू समाज उनकी पूजा करता है वे भारतीय वाँगमय की थाती धरोहर हैं। बड़ी योजना वद्ध तरीके से हिन्दू सनातन धर्म को बदनाम करने के लिए भगवान इन्द्र और मनुस्मृति पर विधार्थियो द्वारा आरोप प्रत्यारोप किये जाते हैं इसलिए हिंदू समाज को सावधान रहने की आवश्यकता है, प्रतिकार करने की भी आवश्यकता है। सनातन धर्म को अपमानित करने के लिए ये सब झूठा गढ़ा गया था।

0 टिप्पणियाँ