नेपाल में बार- बार भारत बिरोधी आवाज कोई नई बात नही है माओबादी प्रमुख प्रचंड ने फ़िर से पुराना राग अलापना प्रारम्भ किया है किंग महेंद्र भारत बिरोध की नीव में है. महेंद्र की ही कार्य योजना को प्रचंड ने अपनाया है जहा तक १९५० के मैत्री -संधि का सवाल है जब माओबादी सत्ता से बाहर रहते है तो जनता भ्रमित करने हेतु नारा बाजी करते रहते है.
एक बार जब मनमोहन अधिकारी नेपाल के पीएम् थे भारत के प्रवास पर आना था सभी पार्टियों की बैठक थी, एक नेता ने १९५०कि संधि का विषय भारत के समक्ष उठाने की बात की तो बरिष्ठ माओबादी नेता बाबुराम जी ने तुरंत इसका बिरोध किया, कहा की यह हमारा नेपाल का राजनैतिक विषय है, संधि हमारे हित में है ज्ञातब्य हो १९५० की संधि में नेपाल के हित निहित है इस संधि में यह नियम है की भारत या नेपाल कोई भी देश ६ महिन की अग्रिम सुचना देनेपर संधि अपने आप निष्प्रभावी हो जाएगी. जब प्रचंड जी पी.एम थे. संधि समाप्त की पहल क्यो नही की. यह मात्र जनता को मूर्ख बनाने के अलावा कुछ नही मओबदियो की जनता के बीच छबी ख़त्म हो गई है राजा और माओबादी एक सिक्के के दो पहलू है लोकतंत्र ही नेपाल और भारत के हित में है आज उसे मजबूत करने की आवस्यकता है.
एक बार जब मनमोहन अधिकारी नेपाल के पीएम् थे भारत के प्रवास पर आना था सभी पार्टियों की बैठक थी, एक नेता ने १९५०कि संधि का विषय भारत के समक्ष उठाने की बात की तो बरिष्ठ माओबादी नेता बाबुराम जी ने तुरंत इसका बिरोध किया, कहा की यह हमारा नेपाल का राजनैतिक विषय है, संधि हमारे हित में है ज्ञातब्य हो १९५० की संधि में नेपाल के हित निहित है इस संधि में यह नियम है की भारत या नेपाल कोई भी देश ६ महिन की अग्रिम सुचना देनेपर संधि अपने आप निष्प्रभावी हो जाएगी. जब प्रचंड जी पी.एम थे. संधि समाप्त की पहल क्यो नही की. यह मात्र जनता को मूर्ख बनाने के अलावा कुछ नही मओबदियो की जनता के बीच छबी ख़त्म हो गई है राजा और माओबादी एक सिक्के के दो पहलू है लोकतंत्र ही नेपाल और भारत के हित में है आज उसे मजबूत करने की आवस्यकता है.
1 टिप्पणियाँ
वास्तव में प्रचंड न तो नेपाल क़े हितैसी है न भारत क़े ही वे तो केवल प्रधान मंत्री बनना चाहते है --सत्ता क़े अतिरिक्त कुछ नहीं.
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