आर्थिक ही नही संसकृति क़ा भी बिरोधी है बामपंथ

      
         पश्चिम में जो भी बिचारक हुए वे सभी एकांगी थे किसी ने समग्रता से कोई बिचार नही किया, किसी ने केवल अर्थ पर चिंतन किया, कहा की मनुष्य केवल आर्थिक प्राणी है, तो किसी ने केवल शेक्स पर चिंतन किया कहा कि मनुष्य का मिलन केवल शेक्स पर आधारित है, किसी ने अध्यात्मिक चिंतन किया तो कहा केवल हमारा रास्ता सत्य पर आधारित है इस नाते इसी को मानने योग्य है । इस नाते पश्चिम का चिंतन अधुरा है । जब कि भारतीय चिंतन पूर्ण समग्रता लिये धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, चारो बिचार किया मानव को परिपूर्ण मानव बनाना यानी भारतीय, हिंदू चिंतन। जर्मनी में पैदा हुए काल मार्क्स ने जो बिचार दुनिया को दिया उसमे, हत्या, घृणा, बर्ग संघर्ष के अलावा कुछ नही दिया, केवल करोणों लोगो कि हत्या के द्वारा भी शान्ति नही। प्रयोग पूरा असफल होने पर एक दुसरे को सुधारबादी बताकर हिंसा करते रहना और स्वार्थ की रोटी सेंकते रहना मात्र उद्देश्य। 
         कुछ नेता तथाकथित बुद्धिजीबी कहते है कि इसका मुख्य कारन गरीबी है, परन्तु ऐसा नही है, इनका उद्देश्य मात्र भारत व भारतीय चिंतन का बिरोध। काल मार्क्स यह अच्छी तरह जनता था कि जबतक भारतीय वाग्मय रहेगा तबतक बामपंथ का सिद्धान्त सफल नही होगा। इस नाते उसने बड़ी सावधानी से कहा कि संस्कृति भाषा "मृत भाषा" है। कामरेड नेहरू बिचार से खोखले होने के कारन बड़े शैक्षणिक संस्थानों में सभी स्थानों जगहों पर बामपंथियो को बैठाया । धीरे- धीरे संस्कृत भाषा को भारत से समाप्त करने का षड्यंत्र किया, यदि संस्कृति भाषा समाप्त हो जाती है तो सारा हिंदू धर्म का साहित्य, इतिहास लुप्त हो जाएगा। भारत की अस्मिता अपने आप समाप्त हो जाएगा कैसे बचेगी हिंदू संस्कृति यह हिन्दू समाज को सोचना पड़ेगा।

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