पश्चिम की संस्कृति से उपजा आतंकबाद

              
            आज सारा विश्व आतंकबाद से त्रस्तहै आखिर यह कैसा कल्चर है जो मानव को मानव से भेद करता है जहा उदारता  क़े लिए कोई स्थान नहीं है इसाई राष्ट्रों क़ा इतिहास हिंसा हत्या से भरा है अपनी कलिमाओ को धोने क़े लिए पोप बार-बार माफ़ी मागते फ़िरते है अपने को सभ्य कहने क़े लिए इंग्लॅण्ड,अमेरिका अपनी करतूतों हेतु छमा याचना करते है ,मुस्लिम इतिहास तो बर्बरता से और भी भरा है उसने तो मानवता को तो ताख पर रख दिया जिसका इतिहास मानवता क़े बिपरीत है जहा गए वह की संस्कृति सभ्यता को समाप्त करने की लिए जगह-जगह नरसंहार किया और यह बताते रहे की यह सब इस्लाम क़े लिए है ,बामपंथी इतिहास को भी इससे अलग नहीं किया जा सकता सम्पूर्ण दुनिया में इस बर्तमान सभ्य युग में सर्बाधिक हत्या हिंसा इन्ही क़े खाते में है रशिया,चीन,नेपाल,भारत इत्यादि पसचो देशो में कुल मिलकर दशियो करोर निरीह लोगो की हत्या इन लोगो ने की आखिर ये पश्चिम की धरती कैसी है .
              पश्चिम में जो भी चिन्तक बिचारक हुए वे सभी एकांगी सोच क़े थे सभी ने एक ही बात कही की केवल मेरा बिचार ही सर्बोत्तम है शेष बिचार ठीक नहीं है जब इशैयत दुनिया में आया तो उसने धोका ढोग राज्य बिस्तर को ध्यान में रख कर कहा की इशु ही मात्र इश्वर क़े पुत्र है सभी पाप की संतान है बाइबिल को अधर बनाकर सभ्यता क़े नाम पर अमेराकन राष्ट्रबाद प्रचार अशभ्य तरीका अपनाया दुनिया को अशांत करने में कोई कोर कसार नहीं छोड़ा,यही अतिबदी चिंतन इस्लाम क़ा था जिसने भी यही कहा की केवल मेरा बिचार रहिक है दुनिया को इसी को मानना पड़ेगा और हिंसा ,हत्या आतंकबाद अभी तक जारी है हम यह नहीं कहते की सारा मुस्लमान आतंकबादी है लेकिन जो भी आतंकबादी है वे सभी मुसलमान है ,एक दूसरा भी पंथ है जो अपने को अध्यात्मिक नहीं मानता मार्क्स क़े अनुयाई उन्होंने तो आतंकबाद की सीमा को ही पर कर दिया है ,वास्तव में पश्चिम क़ा चिंतन ही अतिबदी चिंतन है जिससे सम्पूर्ण विश्व हिंसा ,हत्या की चपेट में है .
          एक दूसरी भी धारा भी विश्व क़े पटल पर है वह है हिन्दू संस्कृति यानि भारतीय  सनाकृति भारतीय भूमि जिसने किसी देश पर हमला नहीं किया यहाँ पर चिन्तक पैदा हुए उन्होंने समग्र मानवता क़ा चिंतन किया जियो और जीने दो कहा [मुंडे-मुंडे.मतिर्भिन्ने ]सभी को सोचने क़ा अधिकार है प्रकृति से उतना ही लेना जितना आश्यकता है दोहन करना शोषण नहीं ,इश्वर एक है हम उसे  बिभिन्न   मार्गो  से प्राप्त  कर सकते है, सत्य को लेकर शास्त्रार्थ करना न की युद्ध यानि हिंसा को कोई स्थान  नहीं सभी क़े बिचारो क़ा आदर ,सम्मान हिन्दू सनाकृति का अर्थ अध्यात्मिक बिकाश के साथ भौतिक बिकाश ,मानवता क़ा बिकाश यानि [सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया ,सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माँ कश्चित् दुःख भाग्वेत] हिन्दू बिचार ही दुनिया में सुख समृद्धि ,शांति दे सकता है.

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ