धरा के प्रथम राजा- महाराजा पृथु --!

वैदिक कालीन राजाओं की महत्ता क्यों---?

कोई १६ लाख वर्ष पूर्व यानी त्रेता युग के प्रारंभ की बात है जब बैदिक काल का समय था, धरती पर अन्न केवल यज्ञ हवन के लिए प्रयोग किया जाता था मनुष्य केवल वनों, जंगलो में फल-फूल खाकर अपना समय अध्यात्म और साधना में लगाता था राजा बेन जो ऋषियों, महर्षियों को अनसुना कर जनता पर आततायी हो शासन कर रहे थे, किन्ही कारणों से उनका संहार ऋषियों द्वारा हुआ, लेकिन उन्ही ऋषियों को लगा की शासक तो चाहिए ही समाज में अनुशासन सत्ता सञ्चालन और संस्कार हेतु राजा तो चाहिए, ऋषियों ने राजा बेन के शरीर का मंथन किया उनके दाहिने भाग से एक काला शरीर वाला ब्यक्ति पैदा हुआ जिसे आज केवट, मछुवारा, साहनी इत्यादि नामो से हम जानते हैं, ऋषियों को लगा कि ये राज़ा नहीं बन सकता तो उन्होने राजा के शरीर का पुनः मंथन किया तो बाम भाग से महाराज पृथु का उद्भव हुआ यानी यहाँ संतो की तपश्या का परिणाम पृथु नाम के बालक का जन्म हुआ, यह बालक महान पराक्रमी, योधा और प्रजा पालक था।

मैं कामदुहा--!

एक बार धरती पर अकाल पड़ा जनता भूखो मरने लगी क्यों की जब मनुष्य ने अन्न खाना शुरू किया खेती की ब्यवस्था नहीं होने के कारन भोजन सामग्री थी ही नहीं । यज्ञो के लिए भी अनाज नहीं था जंगलो में फल -फूल समाप्त हो गए अकाल पड़ सा गया। जनता में हाहाकार होने लगा और सभी ने राजा पृथु के यहाँ गुहार लगायी राजा को बड़ा ही क्रोध आया और उन्होंने सोचा की यदि धरा को ही समाप्त कर दिया जाय तो कोई भी भूखा नहीं रहेगा। तत्क्षण धरा "गाय" के रूप में प्रकट हुई राजा ने उसे मारने के लिए पीछा किया भागती गाय (पृथ्बी) रुकी! देव मुझे क्षमा करे, निबेदन किया राजन रुको मुझे मरो नहीं, मेरा सम्मान करो, मेरा दोहन करें। मै तुम्हारी सारी प्रजा का उदरपूर्ति और जीवन को साधनों से भर दूँगी। जिसमे वर्षा का जल टिक सके योग्य वत्स हो तो मै कामदुहा हूँ। राजा पृथु ने गाय की आवाज़ सुनी, उसे अपनी कन्या स्वीकार किया  फिर उसका दोहन कर प्रजा को सुखी -संपन्न बनाया। 

नगर व ग्राम का निर्माण

राजा पृथु ने धरती का दोहन शुरू किया, भूमि समान की गयी कृषि प्रारंभ हुई। मनुष्य ने कंदराओ, गुफाओ का निवास छोड़कर समाज का निर्माण किया । ग्राम -नगर बसाये गए इस प्रकार राजा पृथु ने समाज ब्यवस्था की। महाराजा पृथु ने धरा को पुत्री माना तब से यह भूमि "पृथ्बी" कही जाती है। वे धरती के प्रथम नरेश थे जिनका राजतिलक ऋषियों ने बिधि पुर्बक किया मनुष्य को कृषि करना जीवन जीने के तौर -तरीके, नगर- ग्राम आदि बसाकर बर्तमान संस्कृति एवं सभ्यता का निर्माण किया, जीवन भोग के लिए नहीं आराधना के लिए है। उन आदि शासक का जिन्होंने सर्व प्रथम हमें एक सामाजिक ढाचे में करके सभ्य बनाया आज आवस्यकता है की उस महापुरुष महाराजा पृथु को हम याद कर अपने इतिहास को बनाये रखे। 

प्रथम सम्राट महाराजा पृथु 

 शतपथ ब्रह्मण ने ही बताया है कि पृथ्बी के पहले राजा पृथु का ही राज्याभिषेक हुआ। पृथु ने जो प्रतिज्ञा की, शपथ ग्रहण किया, क्या आज हमारे राष्ट्रपति, राज्यपाल, प्रधानमंत्री कर सकते है--? उन्हें यह शपथ उठाना चाहिए --! राजा पृथु अपनी प्रतिज्ञा में कहते है कि ''मै प्रजा को धरती पर आया ईश्वर मानकर उसका पालन करुगा, निडर हो धर्म पर चलता हुआ, राग द्वेष छोड़कर, सबको बराबर मानता हुआ, काम- क्रोध, लोभ -अहंकार को दूर फेककर हर उस ब्यक्ति को दंड दुगा जो धर्म का आचरण नहीं करेगा''।     

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3 टिप्पणियाँ

  1. हम अपने अदि पुरुष राजा पृथु को भूलते जा रहे है जिन्होंने हमें जीवन जीने का तरीका और कृषि करना सिखाया और एक रास्ता बताया जिससे आज भी हम बड़े गर्व से कह सकते है की हमारे पुर्बजो का समाज के लिए कितना योगदान था.

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    1. हम महाराज पृथु के वंशज वेणुवंशी क्षत्रिय हैं।

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  2. हमारे इतिहास मे ऐसे ही महापुरुषों का जीवन चरित्र पढ़ाया जाता है यही भारतीय इतिहास की विशेषता है---।

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