महर्षि वेदब्यास----!


 कृष्ण द्वैपायन 

महर्षि पाराशर  को रास्ते में गंगाजी को पार करना था देखा कि केवटराज पुत्री नवका लेकर खड़ी है तब -तक उन्होंने बिचार किया कि इस समय जिस किसी महिला के गर्भ में बच्चा रह जायेगा वह महान तपस्वी, विद्वान व अध्यात्मिक  होगा। अब वे करते क्या --?  मुहूर्त निकला जा रहा था, उन्होंने उस "योजन गंधा" से यह प्रस्ताव किया उसने प्रस्ताव तो स्वीकार किया लेकिन कहा कि प्रभु मेरा शरीर तो एक योजन से बदबू करता है ऋषि ने अपने तपोबल से योजन गंधा को "योजन- सुगंधा" बना दिया। और अपने तपोबल से अँधेराकर उससे समागम किया जिससे सुगंधा ने एक बालक को जन्म दिया। द्वीप पर पैदा होने के कारण "द्वैपायन" तथा उनका कृष्ण वर्ण होने के नाते "कृष्ण द्वैपायन" नाम पड़ा। 

वेदों का संकलन 

जन्म लेते ही माता की आज्ञा लेकर वे तपस्या करने चले गए। आदि काल में वेद एक ही था जिसका इन्होने केवल सरलीकरण ही नहीं, वेदों को चार भागो में नियोजित किया। भगवान ब्यास ने उसमे से ऋचाओ को, गायन योग्य मंत्रो और गद्य भाग को पृथक- पृथक संकलित किया। इस प्रकार ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद का बर्तमान स्वरुप निश्चित हुआ इसी कार्य से वे वेद्ब्यास कहलाये। 

राज्य और कुल रक्षक की भूमिका 

वे केवल तपस्वी ही नहीं थे मानव जीवन का चिंतन कर उन्होंने ग्रंथो की रचना की। वे अपनी माता को बहुत प्रेम करते थे जब भी वे किसी संकट में याद करती ब्यास जी वही आकर समाधान देते। जब देश पर संकट आया तब भी वे आकर खड़े हो गए चाहे वह चित्रवीर- बिचित्रवीर के संतानों का विषय रहा हो अथवा महाभारत का विषय हमेसा उन्होंने न्याय का पक्ष लेकर उपयुक्त सलाह दिया। यहाँ तक कि युद्ध के समय उन्होंने अपनी प्रिय माता सत्यवती से कहा अब हस्तिनापुर आपको देखने लायक नहीं रहेगा जो कुछ यहाँ होगा आपसे देखा नहीं जायेगा इसलिए अपनी माता को लेकर अपने साथ चले गए। जब कुल की रक्षा का समय आया तो वे अस्वस्थामा के ब्रम्हास्त्र के सामने भी खड़े दिखाई दिए। 

पंचम वेद 

उन्होंने महाभारत यानी पंचम वेद लिखकर समाज के सभी समस्यायों का निराकरण का प्रयास किया आज सम्पूर्ण विश्व की जो भी समस्याए है सभी का निदान महाभारत में उपलब्ध है। इस नाते उसे पंचम वेद कहा जाता है, श्रुति में जो कुछ है, महाभारत में भगवान ब्यास ने सब इकठ्ठा कर दिया । ब्यासजी बोलते जाते श्रीगणेश जी लिखते जाते बताते है कि गणेशजी की एक शर्त थी यदि ब्यासजी रुक गए तो मै लिखना बंद कर दुगा इसी पर ब्यासजी ने शर्त रखा की जो मै श्लोक बोलूगा उसका अर्थ समझ कर लिखना। इसी कारण बीच -बीच में कठिन स्लोको की रचना दिखाई देती है इसी प्रकार इस पंचम वेद की रचना हुई। 

चिरंजीवी 

महर्षि बेदब्यास समरसता के प्रति मूर्ति थे हिन्दू समाज के पथ प्रदर्शक ही नहीं वे हमारे बर्तमान स्वरुप के निर्धारण करता थे, भगवान वेदब्यास ने  वेदांत -दर्शन या उत्तर-पूर्व मीमांशा को सिद्धांत रूप में ग्रंथित किया वे चिरंजीवी है हमेशा हमारे बीच में रहेगे । उनका दर्शन आदि जगद्गुरु शंकाराचार्य ने बद्रिकाश्रम में किया था और भी महापुरुषों को प्रत्यक्ष लाभ हुआ था, उनका स्थानीय आश्रम बद्रीनाथ धाम है। 
           उन्होंने वेदों की रचना नहीं की थी वेद तो इश्वर प्रदत्त है हिन्दू संस्कृति का बर्तमान स्वरुप महर्षि ब्यास द्वारा सम्हाला, सजाया गया है। यह अनादि सनातन संस्कृति आज भगवान ब्यास के पुराणों, महाभारत व दुसरे ग्रंथो पर अवलंबित है। 
आज उनके जन्मदिन पर हिन्दू समाज को हार्दिक बधाई---।       
                

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5 टिप्पणियाँ

  1. Muhurt ka dhyan rakh kar bachche paida karne wale ab kahan milte hain ?
    apni patni sada saath rakhni chahiye, pata nahin kab achcha muhurt aa jaaye .

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  2. wastaw me islam to aiyasi, lutero atankbadiyo ka hi dharm hai jitni patniya chaho rkhlo .

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  3. बहुत सुन्दर जानकारी दी है आपने। हमें गर्व हैं हमारे ऋषि-मुनियों पर। उनके ज्ञान का लाभ ले रहे हैं हम आज। समस्त हिन्दू समाज को बधाई ।

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  4. अयाज़ अहमद की टिप्पणी, अर्थ का अनर्थ कर रही है। इन्होने पोस्ट को ढंग से समझा ही नहीं। बस 'समागम' में ही उलझ कर रह गए।

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