अद्भुत सन्त
दिल्ली में सिकंदर लोदी का शासन था हिन्दू धर्मावलम्बियों का जीना दूभर हो गया था, उन पर बिभिन्न प्रकार के कर लगाये जा रहे थे शादी-ब्याह पर जजिया कर, पूजा -पाठ पर जजिया, तीर्थ यात्रा पर जजिया -कर, यहाँ तक की शव-दाह पर जजिया -कर, हिन्दू समाज त्राहि-त्राहि कर रहा था, स्वामी रामानंद की भगवत भक्ति, देश भक्ति में परिणित हो गयी और इस्लाम की चुनौती को स्वीकार किया, इसके लिए रामानंद स्वामी ने द्वादश भागवत शिष्य तैयार किये जो बिभिन्न जाति के थे, उस समय देश में भक्ति आन्दोलन के प्रवर्तक जगद्गुरु रामानंद अपने शिष्यों के साथ भारत भ्रमण कर धर्म रक्षा का संकल्प दिला रहे थे उनके प्रमुख शिष्यों में एक संत रविदास भी थे, जो सर्बाधिक प्रभावशाली लोकप्रिय तथा अत्यंत पिछड़ी जाति से थे रामानंद स्वामी अपने हिन्दू समाज की विकृती को जानते थे, उन्होंने मुसलमानों की उस चुनौती को स्वीकार कर सभी जातियों में चमत्कारी संतो की शृंखला खड़ी कर दी और बहुत से पिछड़ी जाति के संतो को समाज में सम्मान दिलाया इतना ही नहीं वे संत इतने बड़े हो गए की धर्मान्तरण को रोक ही नहीं तो घर वापसी का अलख जगा दिया, कही भी सूफियो अथवा कठमुल्लों को जबाब देने के लिए संत रविदास को ही खड़ा कर देते, संत रविदास समरसता के वाहक बनकर खड़े हो गए और तमाम पिछड़ी जातियों में होते धर्मान्तरण को रोक दिया आज हम देखते हैं की तथा-कथित उच्च जातियों में पिछले पांच-छह सौ वर्षो में तेजी से धर्मान्तरण हुआ जो आज भी हमें दिखाई देता है लेकिन तथा- कथित पिछड़ी जातियों हमें बहुत कम इस्लाम मतावलंबी दिखाई देते हैं यह संत रविदास के प्रभाव का ही परिणाम है।अद्भुत श्रद्धा भक्ति और निष्ठा
संत रविदास का जन्म ६२३ वर्ष पूर्व माघ पूर्णिमा (सन 1377) १४३३ बिक्रम सम्बत दिन रविवार को काशी के मडुवाडीह में हुआ था वे अत्यंत निर्धन परिवार में पैदा हुए थे घर में जूता बनाने यानी मोची का पैत्रिक काम अपनाया, रामानंद स्वामी के शिष्य बनने के पश्चात् उनका जीवन ही बदल गया जैसे उन्हें कोई पारस पत्थर ने छू लिया हो, वे भारत वर्ष के महान संत हो गए जैसे किसी हीरे को तरास कर उसको उपयोगी बनाया जाता है उसी प्रकार रविदास को तरासकर रामानंद ने चमत्कारी संत बना दिया एक कहावत है ----
''जौ मन चंगा तो कठौती में गंगा''
कहते है की एक बुढ़िया माता जी गंगा जी में स्नान करने गयी थी उनका एक कंगन गंगा जी में गिर गया उस माताजी को बड़ा ही विस्वास था कि संत रविदास यदि चाहेगे तो उसका दूसरा कंगन मिल जायेगा बड़ी ही भक्ति- भाव से रविदास से आकर बताया संत रविदास मोची का काम करते थे यानी जूता बनाकर जीवको-पार्जन करते थे कठौती में पानी भरा रहता था उसी में चमडा भिगोकर सिलते थे बुढ़िया माता जी पर बड़ी दया आई और उन्होंने कहा 'जो मन चंगा तो कठौती में गंगा' और अपना हाथ उसी कठौती में घुमाया कंगन मिल गया उस माता जी को कंगन दे दिया वह बुढ़िया भगवान का बंदन करती चली गयी, तबसे यह कथा प्रचलित हो गयी की ''जो मन चंगा तो कठौती में गंगा'' उनके चमत्कार का प्रभाव पूरे देश में पड़ा केवल हिन्दू समाज पर ही नहीं तो तमाम मुसलमान भी उनसे प्रभावित होने लगे ।
महाराणा के कुलगुरु
महाराणा परिवार की महारानी मीरा को कौन नहीं जानता --? वे चित्तौड़ से चलकर काशी आयीं और रामानंद स्वामी से निवेदन किया कि वे उन्हें अपना शिष्य बना ले स्वामी जी ने वहीँ बैठे संत रविदास की ओर इशारा करते हुए कहा तुम्हारे योग्य गुरु तो संत रविदास ही है महारानी मीरा ने तुरंत ही संत रविदास की शिष्या बन गयी और वे महारानी मीरा से कृष्णा भक्त मीराबायी हो गयी इससे बड़ा समरसता का उदहारण कहाँ मिलेगा, उन्हें भगवान कृष्ण का साक्षात्कार हुआ ये संत रविदास की ही कृपा है संत रविदास चित्तौड़ किले में कई महीने रहे उसी का परिणाम है आज भी पश्चिम भारत में बड़ी संख्या में रविदासी हैं।
जब बहलोल लोदी ने बलात मुसलमान बनाने का प्रयास किया
संत रविदास का चमत्कार बढ़ने लगा इस्लामिक शासन घबड़ा गया सिकंदरसाह लोदी ने सदन कसाई को संत रविदास को मुसलमान बनाने के लिए भेजा वह जनता था की यदि रविदास इस्लाम स्वीकार लेते हैं तो भारत में बहुत बड़ी संख्या में इस्लाम मतावलंबी हो जायेगे लेकिन उसकी सोच धरी की धरी रह गयी स्वयं सदन कसाई शास्त्रार्थ में पराजित हो कोई उत्तर न दे सके और उनकी भक्ति से प्रभावित होकर उनका भक्त यानी वैष्णव (हिन्दू) हो गया उसका नाम सदन कसाई से रामदास हो गया, दोनों संत मिलकर हिन्दू धर्म के प्रचार में लग गए जिसके फलस्वरूप सिकंदर लोदी क्रोधित होकर इनके अनुयायियों को चमार यानी चंडाल घोषित कर दिया ( तब से इस समाज के लोग अपने को चमार कहने लगे) उनसे कारावास में खाल खिचवाने, खाल-चमड़ा पीटने, जुती बनाने इत्यादि काम जबरदस्ती कराया गया उन्हें मुसलमान बनाने के लिए बहुत शारीरिक कष्ट दिए गए लेकिन उन्होंने कहा -----
''वेद धर्म सबसे बड़ा अनुपम सच्चा ज्ञान,फिर मै क्यों छोडू इसे पढ़ लू झूठ कुरान।
वेद धर्म छोडू नहीं कोसिस करो हज़ार,
तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार''।।----(रैदास रामायण)
छुवा छूत इस्लामिक काल की देन
यातनाये सहने के पश्चात् भी वे अपने वैदिक धर्म पर अडिग रहे, और अपने अनुयायियों को बिधर्मी होने से बचा लिया, ऐसे थे हमारे महान संत रविदास जिन्होंने धर्म, देश रक्षार्थ सारा जीवन लगा दिया इनकी मृत्यु चैत्र शुक्ल चतुर्दसी विक्रम सम्बत १५८४ रविवार के दिन चित्तौड़ में हुआ, वे आज हमारे बीच नहीं है उनकी स्मृति आज भी हमें उनके आदर्शो पर चलने हेतु प्रेरित करती है आज भी उनका जीवन हमारे समाज के लिए प्रासंगिक है, हमें यह ध्यान रखना होगा की आज के छह सौ वर्ष पहले चमार जाती थी ही नहीं, इस समाज ने पद्दलित होना स्वीकार किया परन्तु धर्म नहीं छोड़ा, धर्म बचाने हेतु सुवर पलना स्वीकार किया, लेकिन बिधर्मी होना स्वीकार नहीं किया आज भी यह समाज हिन्दू धर्म का आधार बनकर खड़ा है, हिन्दू समाज में छुवा-छूत, भेद-भाव, उंच-नीच का भाव था ही नहीं! ये सब कुरीतियाँ इस्लामिक काल की देन है, हमें इस चुनौती को स्वीकार कर इसे समूल नष्ट करना होगा यही संत रविदास के प्रति सच्ची भक्ति होगी।।
सूबेदार जी
पटना
सूबेदार जी
पटना
18 टिप्पणियाँ
वेद सबसे प्राचीन है। रविदास महान मानव थे।
जवाब देंहटाएंसंत रविदास महामानव थे.
जवाब देंहटाएंआभार भारत के अनुपम श्रेष्ठ चमकते हीरे को और झाड़ बुहार कर सुप्त समाज के सामने लाने के लिए
जवाब देंहटाएंइससे सोये हुये समाज को कुछ जानकारी मिल पाएगी आपकी यह पोस्ट मेरे समाचार वेव साइट पर कृपया आकर देखे तथा टिप्पणी जरुर करें इससे मुझे आपके आने की खुशी मिल पाएगी।यह पोस्ट राष्ट्र धर्म पर भी देख सकेगें जिससे ज्यादा से ज्यादा पाठक आपकों तथा सन्त श्री रविदास जी के बारे में जान सकेंगे मुझे भी आज ही पता लगा है कि ये श्री रामदास जी के शिष्य थे ।
यह पोस्ट सरासर गलत है क्योँ की रविदास जी तो चारो वेदो का खण्डन करने वाले थे ।चारो वेद करै खंडौती जन रविदास करे दंडौती।।अर्थात जो मनुष्य वेद जैसे झूठे ग्रन्थ मेँ विश्वास न करके उसका खण्डन करेगा वही मुझे प्रणाम करेगा।उपरोक्त बात से ज्ञात होत है की यह रविदासियो को भ्रमित कर ब्राह्मणवाद के अधीन लाने की चाल से यह पोस्ट लिखा है
हटाएंआप अपने इतिहास कि जानकारी टीक करे
हटाएंइतिहास की जानकारी तुझे नही है बेशर्म जिसका जीवन भर ब्राह्मणो से संघर्ष किया वह वेद का समर्थक कैसे हो सकते है , ब्राह्मण झूठे वेद है झूठा झूठे शास्त्र आधार सुनहु हे बन्धु मानवता सच्ची कहे रविदास चमार ।।
हटाएंरविदास ब्राह्मण मत पुजिए जो होवेँ गुण हीन ,पूजिए चरण चंडाल के जो होवेँ ज्ञान प्रवीण ।।
जिन्होने ब्राह्मणोँ और वेदोँ की आलोचन की वे हिन्दू तथा वेद समर्थक नही है समझा जाके पहले इतिहास पढ़ तुम लोग कितना भी सच्चाइ छिपाओगे फिर सभी जान गये है ।
बहुत सी नई जानकारियाँ भी मिलीं । यह सब अगर सच है तो क्यूँ इन बातों का प्रचार नहीं हुआ ?दुःख भी है और आश्चर्य भी !
जवाब देंहटाएंउचित समय अब आ गया हे इक्कीस बी सदी हिन्दु नबजागरण काल के महान सँत बाबा रामदेब जी के दिशा निर्देस मे कलयुग के अर्जुन नरेन्द्र मोदी .
हटाएंकौरब रुपी काँग्रेश से. लोकतन्त्र रुपी कुरुक्षेत्र मे धर्मलङ रहे । इसमे मे मित्रो अपना एक बोट देकर सहयोग करे
SAMAJ BAHUT DABAW ME THE MUSALMANO KE SHASAN KE KARAN HINDU USKI SAJIS KA SHIKAR HUA, AAJ HAME YAH GALTI SUDHARNA CHAHIYE.
जवाब देंहटाएंसंत रविदास के प्रति और ऐसे सभी महामानवों के प्रति हम कृतज्ञ हैं। सच कहूँ तो यह जानकारी मेरे लिये भी नई ही हैं। जैसा आपने कहा कि हिन्दु साजिश का शिकार हुये, ऐसी साजिशों का पर्दाफ़ाश होना ही चाहिये।
जवाब देंहटाएंHINDU SAMAJ KO ISE CHUNAUTI KE RUP ME LEKAR HINDU SAMAJ KA JAGRAN KARNA CHAHIYE.
जवाब देंहटाएंwonderful post. thanks.
जवाब देंहटाएंadbhut jankari dene ke liye dhanywad
जवाब देंहटाएंवेद धर्म छोड़ू नहीं कोशिस करो हज़ार,
जवाब देंहटाएंतिल-तिल काटो चाहि गोदो अंग कटार.
(रबिदास रामायण )
कुछ लोग ईसाइयत के द्वारा पोसित होकर संत रविदास के मुख में वेद विरुद्ध बातें डाल रहे हैं हिन्दू समाज हमेसा समरस समाज रहा है इस्लामिक काल, ईसाई काल की दें है छुवा छूत अथवा भेद भाव आज परिवर्तन का समय है हमें संत रबिदास के चरण चिन्हों पर चलना है जहाँ रबिदास जैसे संत की शिष्य मेवाड़ की महारानी मीरा बनती हैं!
जवाब देंहटाएंयह पोस्ट सरासर गलत है क्योँ की रविदास जी तो चारो वेदो का खण्डन करने वाले थे ।चारो वेद करै खंडौती जन रविदास करे दंडौती।।अर्थात जो मनुष्य वेद जैसे झूठे ग्रन्थ मेँ विश्वास न करके उसका खण्डन करेगा वही मुझे प्रणाम करेगा।उपरोक्त बात से ज्ञात होत है की यह रविदासियो को भ्रमित कर ब्राह्मणवाद के अधीन लाने की चाल से यह पोस्ट लिखा है
जवाब देंहटाएंबहलोल लोदी का शासन था सन्त रविदास जी चँवर बंश के क्षत्रिय थे राजा थे रामानन्द के शिष्य के कारण हमला हुवा पराजित हुये इस कारण उन्हें दंडित कर काशी भेजा, इस्लामिक काल के पहले "चमार" नाम की कोइ जाती थी ही नही ये सब इस्लामिक काल की देन है जो धर्म योद्धा थे उन्हें दलित अछूत बनाया गया सन्त रविदास इसलामी अत्याचार से संघर्ष करते लिखते है
जवाब देंहटाएं" वेद धर्म सबसे वडा, अनुपम सच्चा ज्ञान।
फिर मैं क्यों छोड़ू इसे, पढ़ लूँ झूठ क़ुरान।।
वेद धर्म छोड़ू नही, कोशिश करो हज़ार ।
तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार ।।
प्रेरणादायक और चमार शब्द का उद्गम जानकर मन को खुशी मिली जिसे हम हिन्दू समाज में बता सकेंगे कि समरसता की नींव इन्हीं जातियों में समाहित है।
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