अभ्युत्थानमधर्मस्य
यह भारत वर्ष है यहाँ उतार- चढ़ाव स्वाभाविक है क्योंकि ये सनातन है, न इसका आदि है न अंत यहाँ की संस्कृति आदि काल से है अनादि काल तक रहने वाली है जिसे हम वैदिक धर्म अथवा सनातन धर्म के नाते जानते हैं, दुनिया हमें हिन्दू के नाते जानती है इसके क्षत्रित्व के गुण को हिंदुत्व कहते हैं यहाँ समय- समय पर महापुरुषों का आवागमन होता है वे ईश्वरांश यानी अवतारी महापुरुष होते हैं, भगवान श्रीकृष्ण गीता का उपदेश देते हुए कहते हैं "यदा- यदाहिधर्मस्य------" जब-जब धर्म की हानी होती है मै आता हूँ स्वधर्म की रक्षा करता हूँ और वे आये-----! बिलुप्त होते हिन्दू धर्म को बचाने सुदूर दक्षिण केरल के कालड़ी ग्राम में शंकर के रूप में आये पूरे भारत वर्ष में वैदिक धर्म समाप्त के कगार पर था कुमारिल भट्ट जैसे आचार्य संघर्ष कर ही रहे थे की इन महापुरुष ने २५०० वर्ष पहले अवतरित हुए उन्होंने उत्तर से दक्षिण पूरब से पश्चिम सम्पूर्ण आर्यावर्त में बौद्ध हो चुके राजाओं के आचार्यों से शास्त्रार्थ कर अवैदिक मतों को पराजित कर वैदिक धर्म की श्रेष्ठता सिद्ध की जिस साम्राज्य की स्थापना आचार्य चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के नेतृत्व में की थी उसे आचार्य शंकर ने जागृत राष्ट्र के रूप में खड़ा कर दिया।
और फिर जन्मे उद्धारक
पुष्यमित्र शुङ्ग के पश्चात् सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमदित्य ने भारतवर्ष में हिन्दू पुनुरुत्थान शुरू कर भारत के सर्बाधिक लोकप्रिय धर्मनिष्ठ सम्राट होने का गौरव प्राप्त किया, उन्होंने अयोध्या, मथुरा, जनकपुर और तमाम ऐतिहासिक धार्मिक नगरों की खोज कर उनकी पुनर्प्रतिष्ठा की कहते हैं की राजा विक्रमादित्य शिकार खेलने सरयू नदी तट आये थे उन्होंने देखा कि एक काला-काला ब्यक्ति काले घोड़े पर सवार होकर सरयू जी में कूद पड़ता है थोड़ी देर बाद जब वह बाहर आता है तो गोरा चिट्टा सफ़ेद घोडे पर उन्होंने उसका पीछा किया पूछा आप कौन हैं उसने बताया कि मै प्रयागराज हूँ वर्ष भर संगम पर हिन्दू समाज स्नान करके अपना पाप संगम में धो देते हैं सारे मनुष्यों का पाप लेते-लेते मै घोडा सहित काला हो जाता हूँ आज रामनाउमी है आज के दिन यहाँ स्नान के पश्चात् सुद्ध होकर निकल आता हूँ यहीं पर अयोध्या है प्रयागराज ने राजा विक्रमादित्य को कहाँ श्रीराम का जन्म हुआ था अथवा अन्य स्थानों को बताया विक्रमादित्य ने इस वर्तमान अयोध्या का पुनर्निर्माण किया इतना ही नहीं मक्का में मक्केस्वर्नाथ की स्थापना से लेकर पूरे भारत वर्ष का उन्होंने पुनः धार्मिक जागरण कर सम्पूर्ण राष्ट्र को खड़ा कर दिया इसे हम हिन्दू धर्म के पुनुरुत्थान का दूसरा चरण कह सकते हैं।संघर्ष फिर उत्थान
महाराजा दाहिर के पराजय के पश्चात् हरित मुनि के असिर्वाद से बाप्पा रावल ने अरब सेनापति को पराजित कर उसकी पुत्री से विबाह कर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की लेकिन बाद में हमारे राजा महाराजा देश और हिंदुत्व को सम्हाल नहीं पाए मुस्लिम शासको के हाथ में सत्ता आ गयी यह बात ठीक है कि कभी भी भारत उनकी सत्ता को स्वीकार नहीं किया हमेसा संघर्ष जारी रहा इस्लाम मतावलंबी कभी भी पूरे भारत वर्ष पर अधिकार नहीं कर पाए फिर भी उन लोगों ने हिन्दू समाज के अन्दर छुवा-छूत, उच्च-नीच, भेद-भाव पैदा करने में सफलता प्राप्त कर हिन्दू समाज को बिखेरने का काम किया उस समय एक प्रकार से भारत वर्ष में संतो कि एक सामूहिक टोली ने जन्म ही ले लिया जैसे श्रीकृष्ण ने अपने स्वरुप को बिभिन्न संतो में समाहित कर इन मलेक्षों से हिन्दू समाज को बचाने का काम किया, और वे आये रामानुज, रामानंद और तुलसी के रूप में दक्षिण में रामानुजाचार्य तो उत्तर में संत सिरोमणि रामानंद स्वामी अपने द्वादस शिष्यों के साथ भारत भ्रमण कर हिन्दू समाज को बताया कि राजा तो केवल श्रीराम हैं इसलिए जयकारा राजा रामचंद्र जी की जय लगता था, संत रबिदास, कबीरदास, भक्त सिरोमणि मीरा, संत तुलसीदास जैसे संतों ने एक प्रकार से भक्त आन्दोलन कर हिन्दू समाज को जगाकर भारत को बचा लिया यह हिंदुत्व के पुनुरुत्थान का तीसरा चरण था।और फिर पुनः आये
और वे पुनः आये संतों के जागरण फलस्वरूप महाराणा प्रताप, क्षत्रपति शिवाजी, गुरु गोविन्द सिंह जैसे पराक्रमी योधा राजा के रूप में आये, उन्होंने भारतवर्ष को हिन्दू राष्ट्र, हिन्दवी राज्य स्थापना का संकल्प लिया इस भारत माँ के सपूतों ने इस्लामिक सत्ता को उखाड़ फेका पुनः हिंदुत्व का डंका बजने लगा भारत में राज्य हमेसा अलग रहते हुए राष्ट्र एक रहा और जागृत रहा फिर भी कुछ शिथिलता के कारण कुछ ब्यापारियों के भी हम गुलाम हुए जिन्हें अंग्रेज कहते थे वे भी सम्पूर्ण भारत शासन नहीं कर सके संघर्ष जारी रहा चाहे १८५७ का स्वतंत्रता संघर्ष रहा हो अथवा आजाद हिन्द फ़ौज या सावरकर की क्रांतिकारियों की सेना रही हो ब्रिटिश साम्राज्य के नाको में दम कर दिया, उसी समय स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्यसमाज की स्थापना कर एक तरफ ईसाईयों व इस्लाम की पोल खोलने का अभियान चलाया तो दूसरी तरफ क्रांतिकारियों की नर्सरी ही खड़ी कर दी उसी काल में स्वामी विबेकानंद भारत के नवजवानों का पुनर्जागरण के केंद्र बन गए जहाँ १९०६ में रविन्द्र नाथ टैगोर ने गंगासागर में हिन्दू मेला शुरू कर बंग-भंग को रोका, वहीँ लोकमान्य तिलक ने गणेश उत्सव, लालालाजपत राय ने संत तुलसीदास की शुरू की रामलीला को देश ब्यापी बना, तो बिपिनचंद पाल ने दुर्गा पूजा को सार्वजानिक कर हिन्दू समाज के पुनर-जागरण के अग्रदूत बनकर खड़े हो गए, इन महापुरुषों की प्रेरणा स्वरुप देश आजाद हो गया यह हिन्दू पुनर्जागरण का चौथा चरण था।
4 टिप्पणियाँ
बिलकुल, अपने अंदर के दोषों को समाप्त कर जाग्रत होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंहिन्दुत्व की यह ताकत यदि यदि राष्ट्रबाद मे परिणित हो गयी, फिर कोई इस्लामिक अथवा ईसाईयत अपने-आप भारत छोड़ने को मजबूर हो जाएगे या सुधर जाएगे--------।
जवाब देंहटाएंakal khraab karne hetu bahut jane ghoom rahe hain sasure ................!!प्रिय बन्धुओ और प्यारी बांध्वियो !!
जवाब देंहटाएंसादर - सप्रेम नमस्कार !!
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Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.)
बेहद अहम् जानकारी ! आभार !
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