''गद्दी समाज (हिंदू जाती)'' भगवान बलराम के वंशज अहीरों की सातवीं कूरी, अपनी पहचान का संकट -----!

      

भगवान बलराम के वंशज ''गद्दी समाज'' के पहचान का संकट का


पूरे देश मे गद्दियों की संख्या लाखों मे है इनका खान-पान, रहन-सहन सब हिन्दू (यादवों) की तरह है कोई किसी तरह का अंतर-भेद नहीं फिर ये हिन्दू समाज से अलग क्यों--? यह एक विचारणीय प्रश्न है! ये 'गद्दी मुसलमान' बने कैसे ! हम सभी को पता है कि पाँच हज़ार वर्ष पहले जातियाँ थी ही नहीं कलयुग मे कुछ जातियाँ बनी जो कर्म से थीं जैसा कि भगवान कृष्ण ने गीता मे कहा '' चातुर्य वर्णमया शृष्टा, गुण कर्म बिभाग सः'' यानी जातियाँ कर्मानुसार थीं, पिछले 1000 वर्षों की गुलामी अथवा संघर्ष या अंधकार युग का समय परिणाम हिन्दू समाज ने अपनी सुरक्षा हेतु छोटे -छोटे नियम बनाए जो समयानुसार परिवर्तित न होने के कारण स्वयं के लिए आत्मघाती सिद्ध हुआ इस्लामिक और अंग्रेज़ो के काल मे हिन्दू समाज बहुत विभाजित हुआ या योजना वद्ध तरीके से उसे विभाजित किया गया आज यह समाज हजारों जतियों मे बटा हुआ है, कुछ लोग यह मानते हैं की 'गद्दी घुमंतू' जाती है हो भी सकता है लेकिन इस समय तो यह सब कहीं कोई घुमंतू नहीं, हो सकता है की ऐसी ही हिमांचल मे भी एक घुमंतू जाती गद्दी कहलाती है, लेकिन चंपारण के गद्दी या गंगा जी के किनारे के गद्दी वे नहीं।


पराजित होकर भी परकियो को अछूत घोषित किया

कौन कब कहाँ कैसे गया इस्लामिक काल मे औरंगजेब का क्रूरतम समय था ने बलात इस्लामीकरण किया मुल्ला -मौलबियों ने कहा कि इस्लाम मे कोई उंच-नीच नहीं, कोई भेद-भाव नहीं लेकिन यह तो कोरा साबित हुआ जो जिस जाती मे था वह मुसलमान बनने के पश्चात वह उसी जाती मे है जो धोबी का काम करने वाला धोबी ही रह गया जो जुलाहा था वह जुलाहा ही रहा जो नाई था वह नाई ही रहा इन सब जातियों का कोई भी ब्यक्ति किसी भी पठान अथवा शेख की चारपाई पर नहीं बैठ सकता है यहाँ तक कि जूता चप्पल पहनकर भी दरवाजे पर नहीं जा सकता, ईसाई होने के पश्चात भी यही हाल सवर्णों की चर्च मे लाइन अलग कबरिस्तान भी अलग कोई समरसता नहीं, वे जहां थे वही रह गए उलट अछूत बन गए हिन्दू समाज ने एक कदम आगे जा शासक जाति (मुसलमान-ईसाई) को अछूत घोषित किया वे जगीरदार थे, नबाब थे हिन्दू उनके यहाँ नौकरी तो करते लेकिन पानी अपने घर का ही पीते, यह दुनिया के लिए अद्भुत था गुलाम जाती का अदुतीय स्वाभिमान !


पत्थर पुजवा मुस्लिम


इसी प्रकार आइए गद्दियों पर विचार करते हैं कहाँ-कहाँ, कब और कैसे ये गद्दी हुए वास्तविकता यह है कि जब मुगलों की पल्टन पूरब की तरफ बढ़ी उस समय नदियों के रास्ते का उपयोग होता था जहां-जहां फौज रात्री विश्राम हेतु रुकती वहाँ खाना बनाने हेतु मुगल हिन्दू समाज को अपमानित करने हेतु (वह तो पराजित समाज) गाय काटकर खाना गाय किसके पास है तो हम सभी जानते हैं की गाय तो अहीरों के पास यानी गोपालकों के पास जबर्दस्ती छीनकर ले लिया जब पल्टन वहाँ से चली गयी तो सारे गाँव के लोग इकट्ठा हुए किसके -किसके यहाँ से गाय मुगल ले गए जिसके यहाँ से गायें गयी उन्हे उसी समय जाती से निकाल दिया, गाय दिया -गाय दिया वे गद्दी कहलाने लगे, पश्चिमी चंपारण मे तो 250 वर्ष हो गया वे 45000 लोग आज तक इंतजार कर रहे हैं कि कब उन्हे यादव लोग अपनी जाती मे सामिल करेगे ! वे आज भी अपनी हिन्दू परंपरा से जुड़े हुए हैं कोई भी पुरोहित उनके यहाँ नहीं जाने से मुल्ला मौलवी उनके जाते हैं आज भी उनके नाम रामचन्द्र गद्दी, ललचन्द गद्दी यही भारतीय नाम हिन्दू ही है जहां स्थानीय यादव उन्हे स्वीकार नहीं करते वहीं स्थानीय मुसलमान उन्हे पथर पुजवा मुसलमान कहते हैं।


मूर्ति पूजक और गौ रक्षक समाज


इनकी कद-काठी और रहन-सहन राजस्थान मरुभूमि के राजपूतों से मिलती जुलती है गद्दी अपने को राजस्थान के गढ़वी राजवंश के वंशज बताते हैं इनका विस्वास है कि मुगलों के आक्रमण के पश्चात अपने धर्म की पवित्रता बनाए रखने हेतु ये हिमालय की पहाड़ियों के शरण मे यहाँ के सुरक्षित भागों मे आकर वस गए, इस समय यह गद्दी जाती के लोग अधिकांश हिमांचल, राजस्थान, गंगा जी के किनारे कानपुर के कुछ भागों, प्रयाग के आस-पास तथा बिहार के पश्चिमी चंपारण तथा उप्र के कुशीनगर देवरिया जिले मे नारायणी नदी के तटों पर दोनो तरफ पायी जाती है, ''गद्दी जाती'' के लोग हिन्दू धर्मावलम्बी होते हैं यह 'शिव और पार्वती' के बिबिध रूपों की शक्ति आराधना के रूप मे पूजा कराते हैं पूजा के समय उत्तम स्वस्थ्य और संपन्नता की कामना करते हैं और ''गो'' आराधक होते हैं, ये सब शाकाहारी होते हैं दूध, दहि, चावल, मोटे अनाज, जौ, गेहूं और मौसमी सब्जी का सेवन करते हैं।    


गद्दी- यादवों की आठवीं कुरी


'नेपाल देश' की राजधानी "काठमांडू" मे लगभग 3 साल पहले एक 'बृहद यादव सम्मेलन' हुआ था जिसमे यादवों की आठ कुरियों मे एक कूरी ''गद्दी'' बताया गया उसकी एक पुस्तिका भी प्रकाशित की गयी, कुछ लोगो का मत है गद्दी समुदाय "भगवान बलराम" के वंसज हैं, "भगवान बलराम" के पुत्र "गदाधर" या कुछ लोगों का कथन है कि "बलराम" का दूसरा नाम 'गदाधर' ही था, गदाधर के वंशज ही "गद्दी" कहलाए नेपाल के यादव जाती ने अपनी  पुस्तिका मे यह स्पष्ट लिखा है कि 'गद्दी -यादवों' की एक कुरी ही है, जो भी हो ये उच्च कुलीन "यदुवंशी" ही हैं जिन्हे यादव कहा जाता है और गद्दी (हिन्दू) यादव समाज का अटूट अंग है अभी भी उनका सारा का सारा संस्कार हिंदुओं (यादवों) का ही है "भगवान कृष्ण जन्म अष्टमी" व "छठ (सूर्य पूजा)" मानना, कपड़े का पहनावा, गाय और भैस पालना, दूध -दही का ब्यापार करना इत्यादि इस कारण "यादव समाज" को चाहिए कि उन्हे स्वीकार कर रोटी-बेटी का संबंध बनाएँ "यह यादव समाज की जिम्मेदारी है" जिससे वे राष्ट्र की मुख्य धारा मे मिल सकें ।       

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4 टिप्पणियाँ

  1. गद्दी मूलत: अहिर (यादव) ही हैं यह भारत का एक समय का बड़ा राजवंश था इस्लामिक काल मे मुसलमानों के अत्याचार से ये पददलित हुये है अब ये पुन: अपने गौरव प्राप्त करने को आतुर हैं।

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  2. मेरा सभी यदुवंशी(अहीर) गद्दी भाइयों से निवेदन है कि कृपया अपने नाम में अब गदाधर और यादव सरनेम लगाया करें। और साथ ही अखिल भारतीय यादव समाज से हाथ जोड़कर निवेदन है कि सभी यदुवंशियो को एक सूत्र में बांधकर इस महान वंश की महानता को आगे बढ़ायें। जिससे अपना कोई भाई उपेक्षित न हो सके न बिखर सके। ये सभी अपने भाई ब्राह्मण और राजपूत के कुटिनीति के शिकार हैं।
    जय यदुवंश जय श्रीकृष्ण जय बलराम

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  3. प्रिय शिवनाथ जी
    इसमें किसी को दोष देना ठीक नहीं है उन्हें अपने समाज में मिलाने की आवश्यकता है यादव समाज यदि चाहेगा सब सम्भव है।

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