एक सार्वभौमिक सत्ता सम्पन्न राष्ट्र है इससे कोई इंकार नहीं कर सकता जिसका वर्णन पुराणों में भी मिलता है, यही भी सत्य है की भारतीय संस्कृति और नेपाली संस्कृति में कोई भेद नहीं दोनों को ही हिन्दू अथवा भारतीय संस्कृति कहा जा सकता है यह भी सत्य की सैकड़ों वर्ष पूर्व ''रावल रतन सिंह के भाई रावल कुम्भकरण '' मेवाङ से आकर यहाँ राज्य स्थापित किया आज का राजवंश उनकी ४४ वीं पीढ़ी है जिसने पुरे नेपाल का एकीकरण किया कुछ वामपंथी इसका विरोध भी कर सकते हैं क्योंकि उन्हें संस्कृति और देश से कोई मतलब नहीं जबकि वामपंथ का सूर्य जहाँ से उगा था वहीँ डूब गया नेपाल और भारत में इसका कोई स्थान नहीं, ये ऐसे देश हैं जहाँ से ब्रिटिश ने बड़ी ही कोसिस की कि सम्राट विक्रमादित्य को इतिहास से ही समाप्त कर दिया जाय लेकिन भारतीय, नेपाली समाज में ऐसी परंपरा थी कि कोई इस महापुरुष को समाप्त नहीं कर सका एक समय आया जब भारत में विदेशी ताकतों ने समाजवाद को जातिवाद में परिवर्तित करने का प्रयास किया अस्सी के दसक में जब वी पी सिंह प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अनजाने ही सही मंडल कमीशन लागु किया पुरे भारत में प्रबल बिरोध हुआ सैकड़ों नवजवान बलिदान हुए जबकि तथाकथित पिछड़े समाज का कोई लाभ तो नहीं हुआ बल्कि अगड़ा-पिछड़ों को लेकर आपस में बिरोध शुरू हुआ, देश -भक्त अथवा राष्ट्रवादी लोगों ने श्रीरामजन्म भूमि मुक्ति का आंदोलन प्रारम्भ किया था आंदोलन से हिंदुत्व का ज्वार इतना अधिक हुआ कि अगड़ा-पिछड़ा सभी विवाद ख़त्म हुआ और देश हिंदुत्व के नाम पर एक रहा औरभी मजबूत हुआ वास्तविकता यह है कि भारत और नेपाल की एकता की गारंटी हिंदुत्व ही है।
सांस्कृतिक धरोहर
आज नेपाल में १९९९ से २००८ के बीच जो जन आंदोलन था उससे भी स्थिति बहुत भयावह हो गयी है, नेपाल में राजा हिंदुत्व के नाम पर राष्ट्रिय एकता का केंद्र हुआ करता था उस राजा ने कभी हिन्दू धर्म व हिन्दू संस्कृति के लिए कोई काम नहीं किया बल्कि राणाओं के काल में हिन्दू धर्म के लिए बहुत ही काम हुआ यहाँ तक कि मुक्तिनाथ का मंदिर भी इतने दुर्गम स्थान पर राणाओं ने ही बनवाया जगह-जगह संतों को रास्ते मे रुकने के स्थान भी बनाए मुक्तिनाथ मे पूजा हेतु वहाँ के कुछ गावों के लोगो की ज़िम्मेदारी निश्चित की, काठमांडू में वाग्मती नदी के किनारे किनारे मंदिरों की श्रंखला हो अथवा घाटों की संरचना सभी राणाओं ने ही किया धर्म और मनुस्मृति के आधार पर न्याय हुआ करता था भारत आज़ादी के पश्चात एक समझौते में राजा को पूरी सत्ता मिली जिस हिंदुत्व के बल राजा धर्मावतार माना जाता था राज़वंश ने इस पर कोई विचार नहीं किया दूसरी तरफ ललितपुर के सरकारी हॉस्पिटल को चर्च को दे दिया जिससे नेपाल में मतांतरण शुरू हो गया देखते-देखते देश भर में सैकड़ों चर्च खड़े ही नहीं हुए बल्कि धर्मान्तरण जोरों से शुरू हो गया हिन्दू संस्कृति को खतरा उत्पन्न हो गया इतना ही नहीं राजा यह समझ नहीं पाया कि क्या हो रहा है ? दूसरी तरफ ''राजा वीरेन्द्र'' की सपरिवार हत्या को माओवादियों ने भुनाया माओवादी जन-आंदोलन (चर्च, मस्जिद और माओवािदयों का संयुक्त आंदोलन) शुरू हो गया राजा लोकतंत्रवादियों के साथ नहीं खड़े होने से नेपाल राज़तंत्र से लोकतान्त्रिक देश के रूप में परिणित हो गया लेकिन परिपक्व लोकतंत्र नहीं होने के कारण वह अपने को बचा नहीं पा रहा है एक अच्छा शुभ लक्षण हिन्दूराष्ट्र के आंदोलन रूप में दिखाई दिया पुरे देश में मेची से महाकाली तक हिन्दू जन -मानस चाहे जनजाति हो, चाहे गिरी-वासी हो, पहाड़ी अथवा तराई वासी हो हिन्दू नाम पर एक हो गया लगा की देश खड़ा हो जायेगा, इसमे कुछ राज़वादी चहरे शामिल होने से कुछ शंका की गुंजायश हो गयी लेकिन इसमे लोकतंत्रवादियों को शंका नहीं होनी चाहिए क्योंकी सभी इस हिन्दू राष्ट्र के अंगभूत हैं।
हिंदुत्व व नेपाल के खिलाफ षड्यंत्र
दुर्भाग्य कैसा है की विदेशी ताकतों को नेपाली पहचान नहीं पा रहा है विदेशी फंडिंग के आधार पर पुनः चर्च मस्जिद और वामपंथी इकठ्ठा हो गए हैं हिंदुत्व के आंदोलन के विरुद्ध कहीं लिम्बुवान, कहीं खंभुवान, मधेसी और पश्चिम के कुछ संगठन उग्र आंदोलन खड़ा कर रहे हैं, सरकार हिन्दू आंदोलनकारियों को बंदूख के बल दबाना चाहती है यहाँ तक की संतों में भी फूट डालने का प्रयास हो रहा है जहाँ स्वामी आत्मानंद गिरी के नेतृत्व में संत हिंदुत्व आंदोलन में शामिल हैं वहीँ जो कमलनयनाचार्य कभी राजा के साथ हुआ करते थे वे आज माओवादियों के साथ खड़े दिखाई देते हैं बड़ी ही दुर्भाग्य की स्थिति बनी हुई है आज समय की आवस्यकता है की सारा का सारा हिन्दू समाज नेपाल और नेपाली संस्कृति के लिए एक साथ खड़ा हो जिससे देश और संस्कृति बचाया जा सके नहीं तो माओवादियों के द्वारा खड़े किये हुए ये बिभिन्न जाितयों के आंदोलन देश बिखंडन के आंदोलन साबित होंगे जैसे रसिया खंड-खंड हो गया नेपाल को माओवादी उस तरफ बढ़ाना चाहते हैं समय की पुकार है हिन्दू समाज अपने कर्तब्य को समझे सभी मत-भेदों को भूल देश बचाने हेतु आगे आये।