वेद अपौरुषेय और सत्य विद्यायों का ग्रंथ है
ईश्वर ने जब शृष्टि निर्माण करने का विचार किया होगा तो मानव समाज को शिक्षित,संस्कारित करने हेतु उसने पृथ्बी पर वेद यानि सत्य विद्या की पुस्तक मानव मात्र के लिए भेजा वेद को श्रुती भी कहा जाता है क्योंकि यह परम्परा से आया हुआ ज्ञान है, आचार्य गुरुकुल के विद्यार्थियों को कंठस्थ कराते थे लिखा नहीं जाता था परंपरागत शिष्य के पास आता था इसलिए चुकी श्रुती के आधार होने के कारण वेद को श्रुती भी कहते हैं। सबसे पहले वेद ईश्वर ने आदित्य, अग्नि, वायु और अंगिरा को यह ज्ञान दिया इन चारों ऋषियों ने भगवान ब्रह्मजी को यह ज्ञान दिया, जिसे कहा जाता है कि वेदों का ज्ञान भगवान ब्रम्हा जी के कंठ मे आया इसलिए ब्रम्हा जी को शृष्टि का नियंता कहा जाता है । भगवान ब्रम्हा जी के चार मुखों का वर्णन यानि चारों वेदों का ज्ञान- ऋग्वेद, अथर्वेद, शामवेद, यजुर्वेद तथा प्रत्येक के अपने अपने ब्राह्मण ग्रंथ है एतरेय ब्राह्मण, शतपथ ब्राह्मण, गोपथ ब्राह्मण ऐसे अनेक शाखाएँ हैं। ऋषि स्वामी दयानन्द सरस्वती कहते हैं की ब्राह्मण ग्रंथ ही हमारे इतिहास हैं, भगवान ब्रम्हा जी ने अपने चार शिष्य अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को प्रथम ज्ञान दिया यानी वेदों का अभ्यास कराया इन ऋषियों ने ऋषि अगस्त, लोपा मुद्रा, वशिष्ठ, विश्वामित्र, जमदग्नि जैसे ऋषियों द्वारा सरस्वती नदी के किनारे -किनारे आर्यावर्त मे गुरुकुलों को खोलकर मानव मात्र को शिक्षा देना शुरू किया। धीरे- धीरे विकाश के क्रम मे वेदों को समझने के लिए निघंटु ग्रंथ का निर्माण किया गया महर्षि स्वामी दयानन्द जी ने तो ''ऋग्वेद भाष्य भूमिका'' लिखकर वेदों को समझने हेतु अच्छा प्रयास किया, वेदों का ज्ञान मानव समाज के भीतर इस प्रकार उसका संस्कार पड़ा की हजारों लाखों वर्ष ही नहीं करोणों वर्ष बीत जाने के पश्चात भी वैदिक संस्कार आज भी हिन्दू समाज के अंदर मौजूद है। आज जो भी हम घर परिवार मे करते हैं सब वैदिक ही है इसी कारण कहा जाता है कि 'हमारे प्रथम गुरु हमारे माता पिता ही है' अतिथि देवो भव का भाव हमारा संस्कार बन सा गया है बड़ों का आदर करना, पूरे गाँव मे छोटे-बड़े का विचार न करते हुए काका- काकी, भाई- बहन जैसा भाव का निर्माण व परिवार ब्यवस्था प्रत्येक प्राणी मात्र के अंदर वही आत्मा है यह विसवास, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी सभी की चिंता इतना ही नहीं तो पेड़ -पौधे तक की चिंता पीपल का बृक्ष नहीं काटना हमे चौबीसों घंटे प्राण वायु देता है तुलसी नहीं नष्ट करना औषधि है ऐसा विचार ज्ञान वेदों द्वारा ही है । ऋषि रचियता नहीं मंत्र द्रष्टा
कुछ विद्या विहीन कहते हैं कि वेद मे तो ऋषियों के नाम लिखा है वास्तविकता यह है वे रिचाओं के रचयिता नहीं वे मंत्रद्रष्टा थे जैसे हिन्दू समाज व भारत वर्ष मे बारह महीने, बारह राशियाँ तथा नक्षत्रों का वर्णन है तो ये कल्पना न होकर हमारे ऋषियों ने उस समय के अक्षांश व देशांतर को देखा कि ब्रह्माण्ड मे ये कौन सा प्रकार का आकार उभर रहा है, जैसे ब्रांहांड मे जब ऋषियों ने मछली का आकार देखा तो उस समय पैदा होने वाले वच्चे की राशि ''मीन'' हो गया इसी प्रकार सारे नक्षत्र, राशियां अथवा महिना तय किए गए यह सब वैदिक अथवा वैज्ञानिक है, जैसे बहुत से लोग मानते हैं की विश्वामित्र ने ही 'गायत्री मंत्र' की रचना की वास्तविकता कुछ और है वे इसके रचनाकर नहीं बल्कि वे मंत्रद्रष्टा थे उन्होने गायत्री मंत्र की साधना करते -करते जब तपश्चर्या मे लीन हो गए तो देखा ब्रह्माण्ड के संघर्षण मे जो आवाज़ हो रही है वह क्या है उन्होने सुना "ओम भूर्भूवः स्वः तत्स वितुर्वरेणय भर्गों देवस्य धीमहि धियों यो नः प्रचोदयात" तो विश्वामित्र मंत्र के रचनाकर न होकर वे मंत्रद्रष्टा थे। गीता वेदों का सार
गीता को भी वेदों का सार कहा जाता है भगवान श्रीक़ृष्ण के श्री मुख से निकली हुई श्री गीताजी यानी 'वेद अपौरुषेय' ईश्वर का दिया हुआ ज्ञान मानव कल्याण हेतु गीता भगवान के श्री मुख जिसमे उन्होने कहा "माँ मेकम शरण ब्रज" 'तुम चिंता मत करो मेरी शरण मे आओ मै तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा' सम्पूर्ण विश्व मे भगवान कृष्ण के अलावा कौन कह सकता है इसी कारण जैसे वेद ईश्वर प्रदत्त है उसी प्रकार श्रीगीता जी भी भगवान के श्री मुख से निकली हुई उनकी वाणी है यानी वेदों का सार ही है।
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