जेएनयू जैसे संस्थानों पर विचार करने का समय-------!

          

जेएनयू की उपलब्धियों पर विचार का समय---!

अब समय आ गया है कि देश और राष्ट्र के हित मे विचार धाराओं पर बहस होनी चाहिए बंहस इस पर भी होनी चाहिए कि ''देदी आज़ादी हमे खड्ग विना ढाल'' क्या यह हमारे हजारों क्रांतिकारियों का अपमान नहीं ! यदि आज़ादी विना संघर्ष के मिला तो 'भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, विस्मिल' जैसे हजारों को अपनी कुर्बानी क्यों देनी पड़ी । जालिया वाला बाग कांड का क्या होगा ? आज़ाद हिन्द फौज के हजारों सैनिकों के बलिदान के बारे मे सोचना होगा क्या इस प्रकार के प्रचार इन देश आज़ादी के दीवानों का अपमान नहीं है! वास्तव मे यह सब भारत के प्रथम प्रधानमंत्री 'जवाहरलाल नेहरू' ने किया वास्तविकता यह है कि नेहरू स्वयं अहिन्दु- अराष्ट्रीय थे। उन्होने देश बिरोधी विचार को बढ़ावा देने का काम किया जिन लोगों ने "नेताजी सुभाषचन्द्र बोस" को ताजो का कुत्ता कहा उसी वामपंथी विचार को बढ़ावा दिया। इस कारण नेहरू नाम का संस्थान द्वारा कभी भी देश हित अथवा राष्ट्र हित की कल्पना करना अपने-आप को धोखा देना होगा  ।

वामपंथियों का प्रशिक्षण केंद्र 

नेहरू जी के जाने के पश्चात श्रीमती इंद्रा गांधी ने 1969 मे जेएनयू की स्थापना की। नेहरू जी चाहते थे कि विश्वविद्यालय मानवता परक होना चाहिए जहां सहिष्णुता, विवेक, साहसिक विचारों और सत्य की खोज हो। यदि विश्वविद्यालय अपने सम्यक दायित्यों का निर्वाहन करते हैं तभी वे राष्ट्र और जनता के साथ हैं । क्या जेएनयू नेहरू की अपेक्षाओं को पूरा कर रहा है, लगता है 'जथा नामे तथा गुणे' वाली कहानी चरितार्थ हुई। जिसमे तथा कथित बुद्धिजीवी नाम पर इस संस्थान मे खोज-खोज कर वामपंथियों को भर्ती किया गया। प्रारम्भ से देश का यह वामपंथी ट्रेनिंग सेंटर वन सा गया जहां 'जेएनयू' के प्रथम अध्यक्ष प्रकाश करात चुने गए तबसे आज तक वहाँ वामपंथियों का ही वर्चस्व कायम है । 'जेएनयू वामपंथियों' के गिरफ्त मे आ गया वहाँ किसी भी अन्य विचार धारा को ये पनपने नहीं देते। वहाँ इस प्रकार की ब्यवस्था है कि कोई भी गैर वामपंथी प्रोफेसर की नियुक्ति नहीं हो सकती यदि हुई भी तो उसे 'आरएसएस' का कहकर हँगामा खड़ा करना जैसे यह देश कम्यूनिष्टों का हो बुद्धिजीवी केवल वामपंथी ही होते हैं। एक ऐसा वातावरण खड़ा करना यहाँ के चरित्र मे आ गया है कोई भी अन्य विचार धारा इन्हे स्वीकार नहीं क्या यह असहिशुणता नहीं ?

वामपंथ इस्लामिक गठबंधन 

जेएनयू मे एक अजीव प्रकार की राजनीति शुरू हो गयी वामपंथी और इस्लामिक क्षात्र संगठनों का गठजोड़ हुआ और देश बिरोधी गतिविधियां शुरू हो गयी। विचार धारा इतना प्रबल हो जाय कि अपनी पार्टी और संगठन के लोग आतंकी गुटों या राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के समर्थन मे आ जाय। फिर भी हम उनका समर्थन करे ! अगर लोकतन्त्र और देश नहीं बचेगा तो विरोध और आलोचना जैसे अप्रतिम अधिकारों का क्या होगा --?

जेएनयू ने देश को क्या दिया-?

इस विषय पर हमे विचार करना होगा देश की जनता की गाढ़ी कमाई पर चलने वाले इस जेएनयू का देश के लिए क्या योगदान है ? इस विश्वविद्यालय ने कितने वैज्ञानिक दिये, क्या कोई राष्ट्र वादी नेता पैदा किया, अच्छे पत्रकार दिये तो खोजते रहिए --! वास्तविकता यह है की जेएनयू ने देश को राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का केंद्र दिया, देश विरोधी पत्रकार, भारत की बर्बादी तक जंग करेगे, कश्मीर की आज़ादी तक करेगे, भारत के हज़ार टुकड़ों करने वालों को दिया भारतीय संस्कृति बिरोध का अड्डा, प्रगतिशीलता के नाम पर वहाँ के क्षात्रों को ब्यभिचारी, अनाचारी बनाना वामपंथ विचार का हिस्सा, कैंपस मे वुद्धिजीवी व स्वच्छंद विचार के नाम पर ऐयासी व ड्रग्स का चरागाह बनाना, आतंकियों के समर्थक खड़ा करना देश भर मे माओवादी आतंकी बना देश भर मे भेजना राष्ट्रीय चरित्र का मखौल उड़ाना। लगता है कि जेएनयू कैंपस देश का हिस्सा हो ही न! यही जेएनयू की उपलब्धि है, उमर खालिद को यह कोई पहली बार राष्ट्र विरोधी गतिविधि नहीं है 2010 मे छत्तीसगढ़ के दांतेवाड़ा मे सीआरपीएफ़ के जवानों की हत्या पर डीएसयू के क्षात्रों ने जश्न मनाया था आतंकी अफजल गुरु के फांसी के समय भी जेएनयू कैंपस मे मातम मनाया गया था। वास्तविकता यह है की जेएनयू असामाजिक तत्वों का अड्डा बना हुआ है जहां राष्ट्र विरोधी गतिविधियां बराबर होती रहती हैं आज यह देश के सामने आ चुका है।

जांच आवश्यक 

समय आ गया है की 'जेएनयू' की पूरी जांच होनी चाहिए उनके प्रोफेसर क्षात्र नेता कहाँ कीसके संबंध है देश को जानना चाहिए। जो नेता इन क्षात्रों के समर्थन मे आ रहे हैं उनके राष्ट्र बिरोधी कृत्यों पर मुकदमा चलना चाहिए आखिर इन सबको किसने यह अधिकार दिया की जो राष्ट्र बिरोधी, देश बिरोधी नारे लगाए देश बिरोधी कृत्य मे सामील हो उनका राजनेता समर्थन करे ये नेता भी शक के घेरे आ गए हैं या तो जेएनयू  को बंद करना चाहिए या तत्काल प्रभाव से अमूलचुल परिवर्तन करना चाहिए। पूरे के पूरे वामपंथी तो राष्ट्र विरोधी हैं ही उनका सारा ऐजंडा सिर्फ मोदी सरकार के प्रति प्रतिक्रियावादी बनकर रह गया है। आप राहुल गांधी को अलग नहीं रख सकते जिन्हें राष्ट्र क्या है देश क्या है का कोई समझ नहीं! चाणक्य ने कहा था की विदेशी माँ के पुत्र को देश को बागडोर देना खतरनाक हो सकता है यानि नहीं देना चाहिए। इस कारण इन सबकी आंच होनी चाहिए कैंपस केवल शिक्षा का केंद्र होना चाहिए नहीं तो यह शिक्षा का केंद्र न होकर समाप्त होते हुए वामपंथी राजनीति का केंद्र व आतंकवादियों की नर्सरी मात्र बनकर रह जाएगा-!

अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर 

इन्हे इस बात का एहसास होना चाहिए कि इस गैर जिम्मेदाराना राजनीति से जनता मे गुस्सा है और इसका खामियाजा जेएनयू के आम क्षात्रों को भी भुगतना पड़ेगा। उन्हे यह समझना होगा कि यह मामला सरकार का नहीं बल्कि देश का है जिसकी संप्रभुता और अखंडता पर अभिब्यक्ति की आज़ादी के नाम पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। यह न तो संविधान सम्मत है और न ही देश की जनता को स्वीकार, सरकार को चाहिए कि ऐसी घटना को सख्ती से रोके।          

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