दे दी आज़ादी हमे खड्ग बिना ढाल ---क्रांतिकारियों का अपमान ---!

 क्रांतिकारियों का अपमान

जब-तक देश आज़ाद नहीं हुआ था तब-तक भारत का हिन्दू समाज संघर्ष शील था उसने कभी भी गुलामी स्वीकार नहीं की चाहे बाप्पा रावल रहे हों अथवा पृथ्बीराज चौहान, हिन्दू कुल गौरव महाराणा प्रताप रहे हों अथवा क्षत्रपति शिवाजी महाराज, गुरु गोविन्द सिंह सभी ने भारतीय बलिदानी परंपरा कायम रखी उन्होंने कभी भी भारतीय मस्तिष्क को झुकने नहीं दिया, एक ऐसी परंपरा पड़ गयी कि देश के अंदर कहीं राजपुताना खड़ा हो गया, तो नहीं मराठा कहीं गुरु शिष्य (सिक्ख) खड़े हुए, तो कहीं जाट क्रांतिकारियों की परंपरा अक्षुण बनाए रखी अपने प्रिय देश और धर्म के लिए हज़ारों लाखों बलिदानियों ने तनिक भी झिझक नहीं कि लेकिन पं जवाहर लाल नेहरु ने इन सब देशभक्त क्रांतिकरियों का घोर अपमान करने में कोई कोताही नहीं बर्ती जो अवर्णनीय है।

मध्यकाल मे संतो की भूमिका

हमारे संतों, महात्माओं और बिभिन्न मतों के आचार्यों ने नागा सांधुओं को खड़ा किया यह एक प्रकार की धार्मिक सेना ही थी, इसने इस्लामिक आतताइयों से युद्ध भी किया ऐसा वर्णन मिलता है इसी क्रम में स्वामी रामानन्द ने द्वादश भगवत शिष्य खड़े किये इनके शिष्यों (संत रबिदास, कबीर दास, धन्ना जाट, कुम्भंन दास) ने हिन्दू समांज को खड़ा करने में बड़ा ही उत्कृष्ट काम किया यदि कहा जाय तो वे समरसता के अग्रदूत थे, एक समय ऐसा आ गया की अयोध्या में हिन्दुओं के प्रवेश पर सिकंदर लोदी ने प्रतिबन्ध सा लगा दिया स्वामी रामानन्द के नेतृतव में युद्ध कर विजय प्राप्त किया उसे समझौता करना पड़ा, उसी समय धर्मान्तरित ३४ हज़ार लगो को स्वामी जी ने घर वापसी की, गुरु अर्जुनदेव का बलिदान, गुरु गोविन्द सिंह अपने पिता, पुत्रों सहित शिष्यों के अपने बलिदान को कैसे भुलाया जा सकता है, जाटों, मराठों और राजपूतों के संघर्ष को हम कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं वास्तविकता तो यह है की सारे विश्व में भारत जैसा किसी देश ने संघर्ष नहीं किया इस्लामिक काल तो पूरा देश ही खड़ा हो गया था सारी की सारी सत्ता हिन्दुओं के हाथ में आ गयी थी, कौन कहता है कि "देदी आज़ादी हमें खड्ग बिना ढाल"--? यह हमारे महापुरुषों का अपमान है । 

ब्रिटिश काल के क्रांतिकारी संत

ब्रिटिश काल के ऋषि दयानन्द, स्वामी बिवेकनंद, स्वामी श्रद्धानन्द, राम सिंह कूका, विरसा मुंडा, सिद्धू कानू के नेतृतव में हज़ारों क्रन्तिकारी खड़े किये इन्हे कैसे भुलाया जा सकता है, १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम को हम कैसे भुला सकते हैं जहाँ रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, कुंवर सिंह, अमोढ़ा (बस्ती) के राज़ा जालिम सिंह, नाना साहेब पेशवा, मंगल पांडेय इन क्रांतिकारियों के नेतृतव सारा का सारा देश खड़ा हो गया कौंन समझाए इन नेहरु वादियों को की अंग्रेजों को जब पता लगा की यह संघर्ष गांव-गांव में हुआ, तो कौन किया किसने कराया ! पता चला की प्रत्येक गांव में गुरुकुल है उसके आचार्यों ने यह काम किया जिसमे सभी जाती बिरादरी के लोग थे ब्रिटिश ने बहुत विचार पुर्बक काम किया उसने भारत के सारे पढ़ेलिखे लोगों का संहार करना शुरू किया मैं पुरे देश का तो नहीं बता सकता लेकिन "आउट लुक" पत्रिका ने क्षपा था की केवल उत्तर प्रदेश और बिहार में १८५७ से १८६० के बीच नरसंहार चलता रहा जितने पढ़े लिखे लग थे हत्या कर दी गयी जिनकी संख्या लगभग बीस लाख तक पहुंचती है, आज भी जब इन क्षेत्रों में जाएंगे तो पता चलेगा की इस गांव के इस पेंड पर सैकड़ों लोगों की फांसी हुई है, यह कुंवा तो लाशों से भर गया था ऐसे अनेक किंबदन्ती मिलेंगे, बहराइच जिले के नेपाल बार्डर पर आज भी गुरुकुल का खँडहर दिखाई देता है जिसमे हज़ारों क्षात्र पढ़ते थे, जहाँ 'नानासाहेब पेशवा' सहित बहुत सारे क्रन्तिकारी सैनिक रुके थे जिसे कोटिया घाट कहा जाता है, तोप लगाकर गिरा दिया गया ऐसे कितने गुरुकुल, किले ढहा दिए गए कौन कहता है कि "देदी आज़ादी हमें खडग बिना ढाल"---!    
         

और राष्ट्रवादी           

हम भारत वासियों को आज़ादी की कीमत भूलने को मजबूर किया गया आखिर क्यों-? इसकी साजिस किसने की लाला लाजपत राय को इतना मारा कि उनका सर कभी हिलना बंद नहीं हुआ वे मर गए, क्या हम महान क्रांतिकारी उधम सिंह और मदनलाल ढींगरा के बलिदान को भुला सकते हैं, बिपिनचंद पाल, लोकमान्य तिलक को हम कैसे भूल जांय.! जलियावाला बाग कांड जो आज भी हज़ारों क्रांतिकारियों के बलिदफन का गवाह बना हुआ है, चन्द्रशेखर आज़ाद का बलिदान, भगत सिंह की फांसी, नेताजी सुभाषचंद बोस जिसने 'तुम हमें खून दो हम तुम्हे आज़ादी देंगे' के नारे के साथ युद्ध शुरू किया केवल भारत में ही नहीं तो विदेशों में सेना खड़ी की चलो दिल्ली ब्रिटिश सेना के संघर्ष में "आज़ाद हिन्द फ़ौज" के चौबीस हज़ार सैनिक माँरे गए कैसे यह भुलाया जा सकता है, आखिर नेहरु यह क्यों चाहते थे की इन क्रांतिकारियों का नाम यह देश न जानने पाए ? इनकी उपेक्षा क्यों की गयी ? वास्तव में वे भारत की अगली पीढ़ी को नपुंशक बनना चाहते थे वे देश भक्त नागरिक नहीं चाहते थे वे भारत को समाप्त करना चाहते थे, वे जानते थे कि यदि हिन्दू समाज यह जान गया कि यह देश बलिदान देने के पश्चात आज़ाद हुआ है, तो हमें कोई पूछेगा नहीं, इस कारन वामपंथियों को आगे करके इतिहास क गलत लिखाया जिसमे क्रांतिकारियों को समाप्त कर दिया, इस कारन नेहरु सहित सभी कांग्रेसी अपराधी है जिंहन इस बात को छिपाया आज भी देश की जनता के मन में नेताजी, भगत सिंह, चन्द्रशेखर जैसे नाम क्रन्तिकारियों के प्रति श्रद्धा भक्ति है, भारत के क्रांतिकारियों के सेनापति "वीर सावरकर" जिन्हें दोहरा आजीवन कारावास की सजा हुई, जिसने भारतीय क्रांतिकारियों को सशस्त्र किया, जब वे २२ साल के थे तो सरे विश्व में उन्हें क्रन्तिकारी जानते थे 'लेनिन' भी जिनका लोहा मनाता था, "इंडिया हॉउस" (इंग्लैण्ड) में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन चलाना वीर सावरकर के ही बस का था जिन्होंने 36 किमी चैनल को तैरकर पार् किया, विदेशों में रह कर (इंडिया हॉउस) भारतीय क्रांतिकारियों की सारी ब्यवस्था देखने वाले उनके प्रेरणाश्रोत ''श्यामजी कृष्ण वर्मा'' को हम कैसे भुला सकते हैं, कौन कहता है ? 'देदी हमें आज़ादी हमें खड्ग बिना ढाल "-! नेहरु जी पर मुक़दमा चलना चाहिए इसकी सजा मिलनी चाहिए, जिससे इतिहास इससे सबक ले, यदि यह कहा जाय कि आज़ादी केवल और केवल क्रांतिकारियों ने दिलाई तो कोई अतिसयोक्ति नहीं होगी वास्तविकता यही है कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री शासक "लार्ड क्लेमन डेतली" ने पूछने पर यही कहा कि नेताजी सुभाषचंद बोस की आज़ाद हिन्द सेना के कारन हमें देश छोड़कर जाना पड़ा और इसी कारन वे सत्ता का हस्तांतरण एक काळा अंग्रेज (नेहरू) के हाथों किया !
इस कारन यह गीत गाना की 'देदी आज़ादी हमें खड्ग बिना ढाल' यह देशद्रोह तो है ही, ये क्रांतिकारियों का केवल अपमान ही नहीं देश के साथ धोखा भी है---!  

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