''भारतीय प्रशासनिक सेवा'' नहीं ''भारतीय नागरिक सेवा'' होना चाहिए --!

              

सबसे बड़ा गुण देश के मालिक को मूर्ख समझना

 अंग्रेजों ने भारतीय जनता के ऊपर शासन करने के लिए जो पद्धति अपनाई थी आज भी वही पद्धति कायम है अंग्रेज़ भारतीय जनता की सेवक नहीं शासक थे आज हमे शासक नहीं सेवक की अवस्यकता है लेकिन भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों यानी आईएएस -आईपीएस मे कोई  सुधार न करते हुए इंनका ब्यवहार अंग्रेजों से भी बदतर है। लगता ही नहीं की ये भारत के अधिकारी हैं ये आज भी भारतीय जनता के ऊपर शासन ही करते हैं क्योकि इनका प्रशिक्षण उसी प्रकार का है जैसे अंग्रेजों के समय 'आईसीएस' का था ये जनता को मूर्ख समझते हैं, ये नेताओं को भी हमेसा नीचा दिखाने का प्रयास करते रहते हैं । इनके अंदर देश -भक्ति नाम की कोई चीज नहीं जो देशभक्ति की बात करे उसे ये मूर्ख समझते हैं, जनता को तो ये घास- मूली समझते हैं। जैसे गाय चारागाह मे चरती रहती है चारागाह मे घास समाप्त नहीं होती उसी प्रकार ये अधिकारी भारतीय जनता को घास समझते हैं इनको जितना चरते रहो कोई फर्क नहीं, जनता से कोई ममता नहीं शत्रुओं जैसा व्यवहार, भारतीय नेताओं को हमेसा नीचा दिखाने का प्रयास, जबकि आज यदि समाज मे कोई सर्वाधिक ईमानदार है तो वह राजनैतिक नेता। क्योकि उसे जनता के बीच जाना होता है, जबाब देह होता है प्रशासनिक अधिकारी को तो जनता के सम्मुख जाना ही नहीं इसकी सीधी ज़िम्मेदारी बनती ही नहीं केवल नेताओं को बदनाम कर लोकतन्त्र को खतरे मे डालते रहना, यदि इन्हे किसी निगम का अध्यक्ष बना दिया गया तो वह निगम ही समाप्त हो जाएगा ये अधिकारी बैठा रहेगा इसकी जनता के लूटने का ही प्रशिक्षण है, इनके ट्रेनिंग का जैसे हिस्सा हो कैसे खाना, क्या कपड़ा पहन कर खाना, सोते समय कौन सा कपड़ा पहनना, शराब कौन सी पीना, जिसका भारतीय संस्कृति से कोई मेल नहीं खाता वही इनके प्रशिक्षण का हिस्सा होता है। शायद ही कोई आईएएस-आईपीएस अधिकारी भारतीय संस्कृति से जुड़ा हुआ रहता हो, उसे भारत भारतीय संस्कृति अच्छी लगती हो--!

किसी भी आपदा मे वजट

मै दिल्ली से मुंबई जा रहा था कुछ देर तक दिल्ली एयरपोर्ट पर वायुयान की इंतजार मे बैठना पड़ा वहाँ कुछ आईएएस अधिकारी आपस मे बात कर रहे थे वे सब बजट की बात कर रहे थे की छत्तीसगढ़ के वनवासी क्षेत्र मे कैसे बजट बढ़ाया जाय जिन इलाकों मे नक्सलवाद नहीं है यानी नक्सली नहीं है वहाँ वजट कैसे बढ़े और आईएएस- आईपीएस दोनों कैसे इस वजट का दुरुपयोग कैसे करें यानी नक्सल के नाम पर केवल अधिक से अधिक वजट बनाना और उसका दुरुपयोग करना ऐसे ही मानसिकता इन अधिकारियों की रहती है, वास्तविकता यह है की इनको देश से कोई मतलब नहीं अनावस्यक किसी विषय को लेकर विदेश यात्रा जनता के धन का दुरुपयोग हमे बहुत गहरे अध्ययन की आवस्यकता है मैंने तो थोड़ा सा ही अदाहरण दिया है जब विचार करेगे तो आप तब सब ध्यान मे आयेगा।  

 राष्ट्रवाद का कोई अर्थ नहीं

भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे  प्राचीन संस्कृति है वेद अपौरुषेय है। वेदों की ऋचायेँ जिसमे ऋषियों के नाम हैं वे मंत्र लेखक नहीं तो वे मंत्र द्रष्टा हैं। भारत के प्रशासनिक अधिकारी भारत की रीढ़ हैं, इस कारण उन्हे इस बात का ध्यान रखना होगा की वे किस देश के वासी हैं उनकी ज़िम्मेदारी बनती है कि वे इस पुरातन मानवतावादी संस्कृति के रक्षक बने न कि भक्षक --! भारत विश्व गुरु था इसी संस्कृति के बदौलत न कि सेकुलर से, भारत को पुनः अपने पुराने गौरव को प्राप्त करना है विश्व का मार्ग दर्शन करना है विश्वकी आतंकवादी, अमानवीयता की अप-संस्कृति से विश्व को उबारना भारत का कर्तब्य बन जाता है। उसमे प्रसासनिक अधिकारियों की भूमिका महत्व की हो जाती है, ऐसे मे भारत को विचार करना होगा कि अपने प्रत्येक अधिकारी अपनी संस्कृति द्वारा शिक्षित हो जिससे उसके समझ मे भारत आए क्योंकि भारत केवल एक जमीन का टुकड़ा नहीं बल्कि जीता जागता राष्ट्र पुरुष है ।   

 वास्तविकता से कोई मतलब नहीं

इस कारण प्रथम तो इसका नाम बदलना चाहिए इसका नाम "भारतीय नागरिक सेवा" होनी चाहिए जिससे प्रथम दृष्टि ही उसे जनता की ज़िम्मेदारी का अनुभव हो इंनका प्रशिक्षण भी भारतीय संस्कृति केन्द्रित होनी चाहिए इंनका वेश-भूषा भी तय होना चाहिए लगे की ये भारतीय हैं इन्हे वेद, उपनिषद, महाभारत और रामायण सहित भारतीय वांगमय का ज्ञान होना चाहिए जिससे ये भारत, भारतीय संस्कृति और अपने पूर्वजों पर गर्व कर सकें और शंकराचार्य का भारत, चाणक्य का भारत, चन्द्रगुप्त का भारत, पुष्यमित्र शुंग का भारत तथा हज़ार वर्ष संघर्ष-रत भारत का ज्ञान हो सकेगा, क्योंकि यही सेवा भारत की रीढ़ है फिर हम देखेगे की भारत छलांग लगता दिखेगा। आज कैसा है प्रतियोगी परीक्षाओं मे भारत की दयनीय हालत, गुलाम भारत, लुटता -पिटता भारत, ऐसा लगता है की भारत कभी वैभव सम्पन्न नहीं रहा हमारे पूर्वजों को कुछ नहीं आता था हमे वैदिक कालीन भारत का दर्शन नहीं होता हमे चन्द्रगुप्त का शौर्य नहीं पढ़ाया जाता हमे जिस पुष्यमित्र शुंग ने पुनः वैदिक धर्म की प्रतिष्ठा की बचाया नहीं पढ़ाया जाता। हमे वामपंथी व सेकुलर इतिहासकारों को पढ़ाया जाता है जिन्हें भारत का गौरव शाली अतीत अच्छा नहीं लगता, इन सारे विषयों पर विचार कर "भारतीय नागरिक सेवा" का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। 

प्रगति शीलता इस प्रकार

आज "भारतीय प्रशासनिक सेवा" के अधिकारियों को भारत व भारतीय संस्कृति से कोई मतलब नहीं है वे मुसलमानों के तुष्टीकरण के अतिरिक्त कुछ नहीं सोचते। वे अपनी नौकरी करते है उन्हे देश के भविष्य से कोई लेना देना नहीं वे  निष्पक्ष होकर कोई काम नहीं करते, हिन्दू धर्म जो भारतीय धर्म है जैसे वे इसके शत्रु हों उन्हे यह नहीं पता! जब-तक हिन्दू है तभी तक भारत है प्रत्येक मुसलमान की निष्ठा भारत नहीं कुरान, मक्का और मदीना है, उनका भारतीय महापुरुषों से भी कोई मतलब नहीं वे तो भारत को फतह कारना चाहते हैं। इस्लामिक देश बनाना चाहते हैं, जैसे अरब देशों मे पश्चिम के देशों मे आईएसआईएस, आईएस, अलकायदा, हिज्बुल मुजाहिद्दीन जैसे आतंकवादी संगठन मानवता के शत्रु बने हुए हैं वही हाल भारत की भी होगी। यदि 'आईएएस' की हालत ऐसे ही रही तो, इसलिए इस संस्था को निष्पक्ष रहने की अवस्यकता है उसके लिए इस सेवा मे लगे लोगो का प्रशिक्षण भारतीय दर्शन के आधार पर होनी चाहिए न कि वामपंथ और सेकुलर फ़िलास्फी के आधार पर...!   

 प्रशासनिक नहीं नागरिक सेवा

वास्तव मे देश मे दो प्रकार का कैडर है जो देश के बारे मे प्रतिबद्धता रखता है ऐसा माना जाता है प्रथम "आरएसएस" दूसरा "आईएएस" दोनों  मे बेसिक अंतर है एक की सोच भारतीय वांगमय की है तो दूसरे की सेकुलर व वामपंथी। वामपंथी और सेकुलर दोनों अनजाने मे देशद्रोह पर उतारू हैं अथवा वोट बैंक के कारण । इस बात को 'आईएएस' कैडर को समझना होगा हमे लगता है कि 'आईएएस' का अहंकार भी आणे आता है वे अपने को भारतीय समझने मे अपमानित महसूस करते हैं इस कारण इस कैडर का नाम "आईएनएस" सेवा होनी चाहिए जो भारतीयता से वोत -प्रोत हो जो भारतीय नागरिक को मनुष्य समझे न कि घास -भूषा, जब उनके माता -पिता आयें तो उन्हे पहचाने न कि पहचानने से इंकार कर जाय। वास्तविकता यह है कि इसमे सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका है केंद्र सरकार को इस विषय पर विचार करना चाहिए और देश के अंदर इस पर बहस चलनी चाहिए।             

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2 टिप्पणियाँ

  1. मैंने ये विचार जुलाई मे लिखा था धीरे-धीरे समाज व सरकार को यह ध्यान मे आ रहा है सारा का सारा वयूरोकेट भ्रष्ट व अधिकांश देश हित का विचार नही करता, देखिये न बैंक अधिकारियों को कैसे सरकार की योजना फ़ेल करने मे लगे है।

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  2. बहुत ही सुंदर, प्रशासन का सही स्वरूप पर्दर्शित करता यह आलेख है,,

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