मुकुन्दराव और धार्मिक यात्राएं हमारी परंपरा------!
जैसे वेद अपौरुषेय है यदि यह कहा जाय की भारत वर्ष का
निर्माण स्वयं ईश्वर ने की यानी अपौरुषेय तो इसमे कोई अतिसयोक्ति नहीं भारत भूमि कोई
जमीन का टुकड़ा नहीं बल्कि जीता -जागता राष्ट्र पुरुष है सर्व प्रथम ईश्वर ने मनुष्य
यानी शृष्टि की रचना की तो भगवान ने मनुष्य की शिक्षा, सभ्यता, संस्कृति और उसकी उन्नति हेतु
'वेद ज्ञान' एक ग्रंथ भी भेजा, हिन्दू समाज की मान्यता है कि 'वेद अपौरुषेय' ईश्वर की वाणी है यह सत्य भी है कुछ
पश्चिम के लोग अथवा पश्चिम से प्रभावित (सेकुलर) लोग यह कहते हैं कि वेद मे तो ऋषियों के
नाम है लेकिन वे यह नहीं समझते पाते कि ऋषि उसके रचयिता नहीं बल्कि वे मंत्र द्रष्टा
थे, सम्पूर्ण वेद का ज्ञान सर्वप्रथम ऋषि ब्रम्हा जी के कंठ मे आया ब्रम्हा जी ने
अपने शिष्यों अग्नि, वायु, आदित्य और
अंगिरा को दिया उन ऋषियों ने सप्त ऋषि अथवा अन्य ऋषियों को शिक्षित कर सरस्वती नदी
के किनारे वैदिक गुरुकुल खोलकर सम्पूर्ण मानव जाती को वेदों का ज्ञान अर्थात मानवता का ज्ञान दिया ।
हमारे ऋषियों अगस्त,
विश्वामित्र, वशिष्ठ, लोपामुद्रा, लोमहर्षिनी, ऋचिक, जमदग्नि जैसों
ने राष्ट्र की एकता अखंडता हेतु तीर्थों का निर्माण किया सभी नदियों को माता तुल्य
स्थान दिया इतना ही नहीं वनस्पतियों की रक्षा हेतु पीपल,
तुलसी का विशेष महत्व का स्थान दिया एक पुत्र के बराबर पाँच बृक्ष लगाना इस प्रकार की परंपरा बनाई गयी, सभी के अंदर आत्मा का वास है, सभी तीर्थों जैसे अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवन्तिका का निर्माण के साथ-साथ उनके महत्व को भी दर्शाया मानवता
के कल्याण मे ही अपना कल्याण है ऐसा विचार हमारे महापुरुषों ने समाज को दिया सभी
छोटे-बड़े तीर्थों की परिक्रमा, नदियों की भी परिक्रमा का
धार्मिक विधान इसी मे मुक्ति है, ऐसा मानकर प्रत्येक भारतीय को लगता है कि विश्व मे
हमारा धर्म सर्वश्रेष्ठ है वहीं विश्व मे हमारा देश सबसे सुंदर, सबसे अच्छा इससे अच्छा कोई देश नहीं जहां देवता भी जन्म लेने के लिए तरसते हैं ऐसा विस्वास हम भारतियों को है इसी
का परिणाम है हम आदि काल से हैं और अनादि काल तक रहेगे ।
हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने राष्ट्र की
एकता अखंडता हेतु जहां प्रत्येक कंकड़-कंकड़ मे शंकर को देखा वहीं प्रत्येक वनस्पतियों
मे देवी- देवताओं का दर्शन किया प्रत्येक नदी को गंगा जी के समान पवित्र मानकर
मोक्षदायिनी समझना सभी का वैज्ञानिक आधार है क्योंकि वेद अपौरुषेय है विश्व का
ज्ञान कोश है जो वेद मे नहीं वह ज्ञान कहीं नहीं जहां गंगा श्रेष्ठा है वहीं
नर्मदा जेष्ठा है, लेकिन आज जहां बिहार स्थिति है हिमालय सहित यह सारा का सारा
क्षेत्र क्षीर सागर था यहीं वह क्षेत्र है जहां भगवान विष्णु शेषनाग की शैया पर
निवास करते थे भूगोल व भूगर्भ शास्त्र के क्षात्र यह जानते होंगे की हिमालय नया
पहाड़ है धीरे-धीरे हिमालय का उभार हुआ क्षीर सागर समाप्त हुआ,
यही वह क्षेत्र है जहां समुद्र मंथन हुआ था उसके प्रमाण के रूप मे आज भी हरिहरनाथ
(हरीपुर) मौजूद है इतना ही नहीं तो भागलपुर के बांका जिले मे मंदार पहाड़ आज भी है
उसमे साँप की रेघारी देखा जा सकता है यहीं से कुछ दूर बसुकीनाथ भी उपस्थिती हैं, कुछ पुराणों मे गज-ग्राह का युद्ध स्थल 'क्षीर सागर' बताया गया है कुछ पुराण यह
कहते हैं यह झील मे हुआ था लेकिन कुछ पुराण कहते हैं कि यह युद्ध नारायणी (गण्डकी)
नदी मे हुआ था इस कारण पूरा का पूरा क्षेत्र ही धार्मिक है जहां 'सरस्वती नदी' जिसे वेदों की जननी काही जाती है वहीं नारायणी नदी को वेदान्त की माता का स्थान प्राप्त है।
"हरिहरनाथ मुक्तिनाथ सांस्कृतिक यात्रा"
हमारे यहाँ धार्मिक नगरों के
परिक्रमा का विधान है चाहे अयोध्या हो अथवा चित्रकूट,
जनकपुर हो अथवा कांची सभी की पाँच कोसी, चौदह कोसी और चौरासी कोसी परिक्रमा होती है उसी प्रकार कुछ नदियों की भी परिक्रमा का विधान है नर्मदा जी की
परिक्रमा तो हमेसा चलती रहती है उसी प्रकार विशिष्ठा द्वैत के प्रथम आचार्य आदि
जगद्गुरू रामानुजाचार्य ने जहां सालिग्राम पाये जाते हैं, जिन्हे
साक्षात विष्णु माना जाता है जिसकी पूजा विना किसी प्राण प्रतिष्ठा के होती है
उनका निवास नारायणी नदी है, इस कारण इस नदी को सालिग्रामी भी कहते हैं वे दक्षिण के
आचार्य थे वे समरसता के अग्रदूत थे, उन्होने नारायणी नदी की परिक्रमा को प्रारम्भ
किया आज के ग्यारह सौ वर्ष पूर्व उन्होने इस नदी की हरिहरनाथ से मुक्तिनाथ तक
यात्रा की फिर क्या था यह तो परंपरा ही बन गयी मुक्तिनाथ भारतवर्ष के 101 मुक्ति
क्षेत्र मे से एक माना जाता है वहीं हरिहरनाथ सात तीर्थ क्षेत्रों मे से एक है, नारायणी के किनारे- किनारे आज भी रामानुज परंपरा के मठ व मंदिर दिखाई
देते हैं, हजारों तीर्थ यात्रीयों के आवास भोजन की ब्यवस्था होती है यह तो साधू संतों
की यात्रा थी, लेकिन कुछ कारणों के कारण यात्रा बंद सी हो गयी, धर्मजागरण के कार्यकर्ताओं ने विचार कर इस यात्रा को पुनः शुरू किया इसके
बिभिन्न पहलू है जितने धार्मिक क्षेत्र है वहाँ ईसाई चर्च ने अपना पैर फैलाना शुरू
ही नहीं किया है बल्कि जड़ जमाना शुरू कर दिया है, यह यात्रा
मा मुकुन्दराव, मा स्वांतरंजन जीके साथ बैठकर मार्च एकादसी सन 2011 को शुरू होना तय
हुआ, एक टीम बनी जिसके अध्यक्ष श्री गोपाल नारायण सिंह तय
किए गए, सारा मार्गदर्शन श्री सूबेदार जी क्षेत्र प्रमुख
धर्मजागरण विभाग (उत्तर-पूर्व क्षेत्र) के निर्देशन मे टीम का गठित हुआ बिभिन्न
प्रकार के साहित्य तैयार होने लगे मार्ग तय किए गए पोस्टर, फ्लेगस
होर्डिंग से युक्त टीम ।
चर्च का षड्यंत्र धीरे-धीरे भारतीय परंपरा
को समाप्त कर देना ही लक्ष्य है, हमने देखा काठमाण्डू पशुपतिनाथ मंदिर के किनारे-
किनारे भगवान के मंदिर को घेरकर अपने जनसेवा के नाम पर धर्मांतरण का कुचक्र रच
लिया है इतना ही नहीं जनकपुर, सीतामढ़ी सहित लगभग सभी तीर्थ स्थान इनके
शिकार हो चुके हैं सारे विश्व मे इस्लाम व चर्च जहां पहुचे वहाँ की स्थानीय संस्कृति
को समाप्त कर दिया यही हाल भारत और नेपाल की होने वाली है यदि हम सावधान नहीं हुए
तो---! नारायणी नदी केवल नदी ही नहीं है यह हिन्दू समाज के श्रद्धा का केंद्र विंदु भी
है इस कारण चर्च नारायणी के किनारे किनारे अपना जाल बुन रहा है इस संबेदन शील स्थिति
को ध्यान मे रखकर इस रामानुज परंपरा की इस यात्रा को प्रारम्भ किया है, यह यात्रा केवल यात्रा
नहीं है नारायणी के किनारे जितने विकाश खंड है उसके प्रत्येक गाँव मे "धर्म रक्षा समिति"
बनाना संबेदन क्षेत्रों मे लाकेट, हनुमान चालीसा बाँटना यात्रा
मे जगह जगह धर्म सभाएं करना, यह यात्रा हरिहरनाथ मंदिर से शुरू
होती है वहाँ एक विशाल धर्म सभा तथा कुछ कलाकारों का मंचन और गंगा आरती का भव्य
रूप दिखाई देता है प्रथम बार कार्यक्रम मे प्रारम्भ करने मा मुकुन्दराव पणशीकर और
मा स्वांतरंजन जी पूरे समय उपस्थित रहे, यात्रा 765 किमी की
है 24 स्थानों पर धर्म सभा सैकड़ों स्थानों पर स्वागत होता है धर्म सभा मे सामाजिक
कार्यकर्ता वरिष्ठ राजनीतिज्ञ धार्मिक संत महात्मा संबोधित करते हैं।
यात्रा पथ मे नेपाल के तीन बिहार मे चार स्थानों
पर आरती होती है हजारों की संख्या उपस्थिती रहती है धार्मिक दृढ़ता की
दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है यह नव दिवसीय यात्रा गण्डकी व गंगा जी के संगम
हरिहरनाथ मंदिर से निकल कर तिब्बत सीमा 1250 फिट की उचाई पर अवस्थित नारायणी
के उद्गम स्थल मुक्तिनाथ मंदिर तक 765 किमी की दूरी तय करती है,
यात्रा पथ से जुड़े उत्तर बिहार के 16 खंडों एवं तीन नगरिया क्षेत्रों तथा नेपाल के
6 जिलों मे बिभिन्न प्रकार के धार्मिक साहित्य स्टिकर लाकेट होर्डिंग, फ्लेग्स पोस्टर बड़ी संख्या मे लगाए आते हैं, यात्रा
की सफलता हेतु मार्ग मे अवस्थित सभी सोलह खंडों के 900 गाँव,
98 वार्डों के लगसभी परिवारों मे संपर्क किया जाता है तथा संगठन की दृष्टि से सभी गावों मे 'धर्म रक्षा समिति' बनाई जाने का प्रयत्न किया जाता है, नेपाल का साधू संतों को बड़ी संख्या मे इस यात्रा मे जोड़ा गया है।
यात्रा
पथ के तीर्थ---
हरिहरनाथ-
जहां से यात्रा निकलती है हरिहरनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध है यह स्थान शैव तथा
वैष्णव का मिलन केंद्र है यहाँ हरी और हर दोनों का विग्रह एक साथ है गजेंद्र
उद्धार हेतु भगवान यही स्थान पर अवतरित हुए थे इसी कारण हरिहरनाथ मंदिर बना है-। सोमेस्वरनाथ-
नारायणी पथ पर ही सोमेसवार स्थान जिसका वर्णन महाभारत मे भी है यह पूर्वी चंपारण
जिले के अरेराज मे अवस्थित है, बाल्मीकीनगर- जहां विश्व का
आदि कबी महर्षि बाल्मीकी की तपस्थली है जहां यह स्थान भगवती सीता जी की शरण स्थली
है वहीं लव-कुश पालन पोषण और प्रशिक्षण भूमि भी है यह स्थान नेपाल बार्डर पर अपने प्रार्क्रितिक सौंदर्य को समेटे हुए सैलानियों का जमघट बनाए रखता है, यहाँ बाघों का अभयारण्य है।
त्रिवेणी- हरिहरनाथ के समान ही यहाँ तीन नदियों
का संगम है यहीं पर सोनभद्रा, पूर्णभद्रा नारायणी मे मिलती हैं पुरानों
के अनुसार यहीं 'ग्राह ने गज' को पकड़ा था जिसका युद्ध हरिहरनाथ तक हुआ ऐसी मान्यता
है, देवघाट--- नारायण घाट के बगल देवघाट मे तृशूली, काली गण्डकी मिलती है इसे 'सदानीरा' भी कहते हैं यहाँ सप्त गण्डकी भी है यह
स्थान महाभारत कालीन है कुछ दिन पांडव अज्ञातवास मे यहाँ रहे थे यह नेपाल का
प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र है। दमौली- नेपाल के तनहु जिले का मुख्यालय है यहाँ
लोकमान्यता अनुसार महाभारत कार सहित सभी ब्यासो की मूर्ति है कहा जाता है की व्यास
जी ने कुछ रचनाए यहाँ लिखी थी। वेणी यह स्थान पोखरा के आगे म्याग्दी जनपद का
मुख्यालय है प्रार्कृतिक रूप से चंद्रगोलकर चक्रशिला के रूप मे भगवान शिव के रूप
मे गलेश्वर नाथ विराजमान हैं, यह भूमि ऋषि फुलाह, पुलस्त आदि ऋषियों की तपस्थली रही है।
कागवेणी- मुक्तिनाथ मार्ग मे भगवान
के अनन्य भक्त 'कागभुशुंडी' का स्थान है यहाँ भगवान श्री राम ने भक्तराज कागभुशुंडि
को आशीर्वाद दिया था यहाँ गया के समान ही पित्र तर्पण किया जाता है ।
मुक्तिनाथ-
आर्यावर्त के 108 दिब्य क्षेत्रों मे से एक है जिसकी पुष्टि श्रीवैष्णव मत ने समय-समय
पर की है इस दिब्य क्षेत्र की सीमा 48 वर्ग मिल है चारो धाम के पश्चात मान्यता है
की मुक्तिनाथ का दर्शन अवस्यक है यह स्थान समुद्रतल से 12500 फिट है, यहाँ प्रमुख रूप से आंध्र, तमिलनाडू, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र
तथा गुजरात से अधिक संख्या मे तीर्थ यात्री जाते हैं।
माताओं के अंदर
धर्म की भावना अधिक होती है उन्हे अपने त्योहारों की जानकारी पुरुषों से अधिक रहती
है, कब शिवरात्रि है कब प्रदोश है सबका पालन माताएँ करती हैं, सभी को शिखा सूत्र राखना चाहिए मै इस धर्म सभा मे निवेदन करता हूँ आदेश
देता हूँ। जिसे मुगल नहीं कर सके, आतंकी नहीं कर सके, अंग्रेज़ नहीं कर सके, उसे हम कर रहे हैं, यह बड़ी शर्म की बात है । मै इस पवित्र भूमि मे आकर अपने को धन्य मानता
हूँ, मै निवेदन करता हूँ कि इसाइयों के कुचक्र को समझें इस
यात्रा के माध्यम से मतांतरण रोके इसी से धर्म कि रक्षा होगी, हरिहरनाथ भगवान मुक्तिनाथ हमारे सनातन धर्म कि रक्षा करें।
जगद्गुरू रामानुजाचार्य
श्री श्रीधराचार्य, अशर्फी भवन अयोध्या –--
गंगा जब गोमुख से
निकलती है तो छोटी सी जलधारा के रूप मे रहती है ज्यों-ज्यों सागर कि ओर बढ़ती है
त्यों त्यों विशाल होती जाती है, यह अपने प्रवाह क्षेत्र मे
विशाल जलराशि लिए अनेकानेक सहायक नदियों को समाहित कर अपने गंतब्य को प्राप्त होती
है, उसी प्रकार हरिहर क्षेत्र से प्रारम्भ यह यात्रा भी
भविष्य मे गंगा के समान ही सभी को समेटे हुए विरत रूप धारण करेगी, धर्म के उन्नयन सर्वस्व को न्योछावर करने अपनी मातृभूमि, महापुरुषों के प्रति श्रद्धावान रहने की अवस्यकता है, पाश्चात्य अंधानुकरण से सतर्क रहें हमारी संस्कृति दिब्य है, पश्चिमी समाज अवसाद, कुंठा एवं भोग से ग्रस्त है, हमारे यहाँ बैकुंठ है बैकुंठ अर्थात जहां कुंठा समाप्त हो जाय, भारतवर्ष मे अष्ट बैकुंठ है जिसमे एक मुक्तिनाथ है।
महामंडलेश्वर स्वामी
चिंमैयानंद सरस्वती, हरिद्वार पूर्व गृह राज्य मंत्री भारत
सरकार ---
जहां धर्म की सत्ता होती है वहाँ अनाचार नहीं होता, सम्पूर्ण विश्व साक्षी है प्रयाग के कुम्भ मे एक महीने मे दिन 15 करोण श्रद्धालु आए
थे एक भी बलात्कार, दुराचार की घटना नहीं हुई जबकि एक करोण
की दिल्ली मे प्रति 25 मिनट पर औषत एक बलात्कार अनाचार व अन्य आपराधिक कुकृत्य की
घटनाएँ होती है, हमारी संस्कृति मे कुमारी बालिकाओं को देवी
मानकर पर्व त्योहारों मे पुजा करने की परंपरा है, यह धरती
हमारी माँ है, हम यहीं जन्मते और मृत्यु को प्राप्त होते हैं, हम एक ही माँ के बेटे-बेटियाँ आपस मे अनाचार नहीं करते यही हमारा संस्कार
हैं।
अतः धर्माधारित शासन की आवस्यकता है,आज देश की अविरल गंगा, निर्मल गंगा की चर्चा होती है, सरकार द्वारा एक्शन प्लान तैयार किया जाता है, गंगा
जी को राष्ट्रीय नदी घोषित करने की मांग की जाती है क्या इससे गंगा
बचेगी--!"गंगा तरंगम रमणीय जटा कलापं" ? गंगा तो
तभी बचेगी जब सुखी साबरमती को पुनः प्रवाहित करने वाला दृढ़ इक्षाशक्ति से युक्त
भारत का प्रधानमंत्री होगा एक ही साथ उर्स की टोपी और उत्सव का टीका नहीं चलेगा, धर्मनिरपेक्षता की सच्ची कसौटी धर्म आधारित राज्य ही होगा इस तरह की
यात्राओं से समाज मे धर्म भाव बढ़ता है।
हमारे प्रेरक मा मुकुंदराव पंसीकर, अखिल
भारतीय धर्मजागरण प्रमुख------
हज़ार वर्ष की पराधीनता विगत तेरह सौ वर्षों के आक्रमणीय
भारत की संस्कृति, परंपरा, रीति-नीति, चिंतन, चरित्र, विचार और
ब्यवहार सभी को प्रभावित किया है, भारत को अक्षुण बनाए रखने
हेतु इस कार्य की यात्राओं के माध्यम से समाज मे व्याप्त भेदभाव- कुरीति को समाप्त
कर समरस भाव प्रकटाएगे, हमे अपनी संख्या बढ़ाना है, जहां-जहां हिन्दू कम हुआ वह भाग अपने पास नहीं रहा,
हमे अपनी पाचन क्रिया बढ़ानी होगी, विधर्मी हुए बंधुओं को
स्वधर्म मे लाना होगा।
डा कृष्णगोपाल जी सह सरकार्यवाह
राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ---
यहाँ से मुक्तिनाथ तक जो भी तीर्थ पड़ेगा प्रत्येक स्थान
पर धर्म सभा होगी, सभी माताओं से आग्रह है घर मे रामायण,
गीता का पाठ करें, प्रत्येक घर मे तुलसी माता हो, हर घर मे पुजा-पाठ होता रहे, गाँव मे कोई गरीब चाहे
किसी भी जाती का हो कोई हिन्दू छोटा बड़ा नहीं होता, किसी के
घर मे आने से हमारा घर अपवित्र नहीं होता, कोई भी हिन्दू
हमारे घर मे आए बैठे सभी पवित्र है, वह भगवान राम, भगवान कृष्ण की जय बोलता है, गंगा मे स्नान करता है, गाय को माता मानता है, कोई भी जाती है हमारा सहोदर
है, हज़ार वर्ष के काल खंड मे कोई छोटी-मोटी गड़बड़ी आ गयी छोटी
जाती- बड़ी जाती चलने लगा।
हिन्दू समाज मे कोई छोटा बड़ा नहीं है,
धीरे-धीरे अपने घर का वातावरण अच्छा करेगे, हमारे घर मे सबको
प्रवेश मिलेगा सबको पनि मिलेगा सबको भोजन मिलेगा ये जाती ओ जाती खत्म कर देना है
सभी हिन्दू हैं, अपने समाज मे कुछ लोग गरीब है ईसाई बरीबी का
फायदा उठाकर धर्मभ्रष्ट करते हैं, धीरे-धीरे उनके हाथ से
गीता -रामायण हटा देते हैं उनके हाथ मे बाइबिल पकड़ा देते हैं, इसे रोकना है, अपने-अपने गाँव मे कोई भी ब्यक्ति
हमारा भाई व बहन किसी भी प्रकार से अपने हिन्दू धर्म, अपने हिन्दू
संस्कृति हिन्दू समाज से बाहर न जाने पाये, अचानक कुछ लोग
आकर हमारे लोगों को विधर्मी बना रहे हैं इस यात्रा के माध्यम से इसे रोकना है।
डा बालमुकुंद जी अखिल भारतीय संगठन मंत्री
इतिहास संकलन योजना----
हिमालय से विंध्याचल के बीच मे यह भूमि भगवान विष्णु का निवास
क्षीरसागर था यहीं समुद्र मंथन हुआ था, जिसका प्रमाण भागलपुर के पास मंदारचल पर्वत
और देवघर के निकट वसुकीनाथ विराजमान हैं, हम बड़े सौभाग्यशाली
हैं भगवान ने हमे इस क्षीरसागर मे जन्म दिया है, नवीनतम
भूगर्भीय अनवेषण और पौराणिक ग्रन्थों के शास्त्रीय व्याख्या से नारायणी के
उत्पत्ति के प्रमाण आए हैं, भूगर्भीय परिवर्तन के कारण ही
क्षीरसागर नारायणी के रूप से प्रवाहमान है।
अन्य
क्षेत्रों मे यात्राएं -----------
मा
मुकुन्द राव ने जहां हरिहरनाथ मुक्तिनाथ सांस्कृतिक यात्राओं को प्रेरित किया वहीं
उन्होने पूरे देश मे इस प्रकार की यात्राओं को प्रोत्साहित किया वे बोलते तो कम थे
लेकिन सभी कार्यकर्ता को उत्साहित करने की क्षमता उनमे थी इसी कारण बिभिन्न प्रकार
के आयाम और काम खड़ा हो गया।
जयपुर प्रांत मे चलने वाली
यात्राएं------
1-बाबा लाल दास यात्रा--- बाबा लालदास का जन्म मेव जाती मे
हुआ था (इस्लाम) उनके भक्त बड़ी संख्या मे अलवर, भरतपुर और हरियाणा के
मेवात नूह, पलवल जिले मे मेव समाज हिन्दू जाती से धर्मांतरित
हुई थी उनका मीणा जाती के 'दहगल' गोत्र के हैं यात्रा मे मेव जाती के लोगो का सहभाग
रहता है बाबा लालदास का क्षेत्रपुर ग्राम रामगढ़ जिला मे बड़ा स्थान है, मेव हिन्दू और मुस्लिम दोनों समिति मे हैं 2005 मे मा इंद्रेश जी के
मार्गदर्शन मे 'मेवात जन कल्याण समिति' का गठन कर यात्रा प्रारम्भ किया यात्रा 15 दिन
इन्हीं के गांवों मे चलती है।
2-मीन भगवान यात्रा – मीणा समाज का मूल मत्स्य अवतार से माना
जाता है व महाभारत कालीन मत्स्य क्षेत्र मे मीणा जाती का निवास है मीणा समाज से
मुसलमान हुई जाती ही मेव (मुस्लिम) है इसी समाज के वापसी हेतु इस यात्रा का आयोजन
2014 मे प्रारम्भ की गयी इस यात्रा का आयोजन मिनेश सेवा समिति है जिसके संयोजक भूतेन्द्र
मीणा, यह यात्रा पाँच दिन की है यतर मे बीआईएस हज़ार के लगभग आते हैं ।
3-क्षत्रिय गौरव रथ यात्रा--- शेखावटी क्षेत्र मे राजपूत जाती
से धर्मांतरित जाती है जिसे कायमखानी (मुस्लिम) लगभग 16 लाख है इनकी घर वापसी हेतु
2015 से चितरंजन सिंह राठौर, राम सिंह शेखावत के प्रयास से क्षत्रिय
सेवा समिति राजस्थान के तत्वधन मे यात्रा शुरू की गयी यह यात्रा छह दिन राजपूत
बहुल क्षेत्रों मे चलती है उनके पुराने गौरव को याद दिलाने का कम यह यात्रा करती
है प्रत्ये बार पाँच हज़ार से अधिक लोग सामील होते हैं।
4-संत रबीदास यात्रा --- जयपुर जिले मे 'रेगर समाज' के इष्ट संत
रबिदास हैं यह समाज बड़ी संख्या मे धर्मांतरित है धर्म जागरण के तत्वधन मे यह
यात्रा की जाती है जहां-जहां रेगर समाज की बस्ती है वहाँ 5 दिन की यात्रा निकली
जाती है बिभिन गवों मे भव्य स्वागत होता है यात्रा 2015 से शुरू की है।
मालवा प्रांत ने इंदल यात्रा शुरू की है जिसमे लाखों वनवासी वंधु आते हैं, ऐसे देश भर मे विभिन्न प्रकार की यात्राएं भारतीय सांस्कृतिक एकता के लिए आवस्यक है जिसे धर्मजागरण कर रहा है ।
0 टिप्पणियाँ