चक्रवर्ती सम्राट पुरुषोत्तम श्री राम ---------!

न राज्यम न राजाशीत--!

 महाभारत के युद्द समाप्त होने के पश्चात "भगवान श्री कृष्ण" 'युधिष्ठिर' से कहते हैं कि हे युधिष्ठिर 'पितामह' वाणशैया पर पड़े हैं उनसे उपदेश लेना चाहिए। वहाँ जाने पर युधिष्ठिर ने प्रश्न किया, हे पितामह जब राज्य नहीं था और राजा नहीं थे तो धरती पर शासन व्यवस्था कैसे चलती थी ? "पितामह भीष्म" कहते हैं कि हे पुत्र जब राजा नहीं थे और राज्य नहीं था तब सभी मनुष्य वैदिक रीती से चलते व वैदिक जीवन व्यतीत करते थे। न कोई गलत कार्य करता था न ही कोई दंडाधिकारी ही था (न राज्यम न राजाशीत न दंडो न दण्डिका) ऐसी शासन व्यवस्था वैदिक युग में थी। जबसे राजा होने लगे और समाज को अनुशासित रखने उसे संस्कार क्षम बनाने व ग़लत काम करने पर दण्डित करने हेतु राजा और राज्य की आवश्यकता होने लगी। तब 'भगवान मनु' ने धरती की शासन सत्ता अपने हाथ में ली और अपनी राजधानी 'अयोध्या' बनाई यानी राजनैतिक दृष्टि से 'अयोध्या' ''पृथ्वी'' की प्रथम राजधानी है और "मनुस्मृति" प्रथम विधान जिसका शासन सम्पूर्ण जगत में था। आज भूगर्भशास्त्रियों ने वैज्ञानिकों ने यह स्वीकार कर लिया है कि विश्व का प्रथम गांव अयोध्या है।

मर्यादा पुरुषोत्तम--!

इस वर्तमान चतुर्युगी का त्रेता युग के अंत में भगवान श्री राम का जन्म होता है इसका अर्थ होता है कि वर्तमान कलियुग का 5100 वर्ष बीत चुका है इसमें द्वापरयुग का आठ लाख चौसठ वर्ष इसका मतलब यह हुआ कि भगवान श्री राम को आये लगभग 9 लाख वर्ष हुए। इतना पहले उस समय हम समझ सकते हैं कि हमारा विज्ञान कितना उन्नत रहा होगा कि श्रीरामचंद्र जी ने खरदूषण की हज़ारों की सेना को अपने आयुद्धों से अकेले ही पराजित किया था। भारतीय वांगमय ही नहीं वल्कि सारे जगत में "श्री रामचंद्र जी" जैसा चरित्र नहीं मिलता जहां वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं वहीं वे महान योद्धा धनुर्धारी भी हैं। वे भारतीय और मानवीय मूल्यों के रक्षक हैं और उनका आदर्श चरित्र भी है जिसकी प्रेरणा सम्पूर्ण हिन्दू समाज लेता है। भाई से भाई का प्रेम व व्यवहार, माता -पिता के साथ ब्यवहार कैसा -! जहां राजा दशरथ चक्रवर्ती सम्राट थे तो अयोध्या की जनता मे भगवान राम अति लोकप्रिय थे। मित्र कैसा तो "केवट गुह" जैसे, अपने साथ अत्याचारी "राक्षस राज रावण" 'वानर राज बाली' को समाप्त करने के लिए उन्होंने अयोध्या से सेना नहीं बुलाई बल्कि वनबासियों जैसे वानर सेना, भालू, जटायू जैसे दलित पिछड़ों को साथ लिया उन्हें सम्मानित भी किया कि यह अत्याचार तुम्ही समाप्त कर रहे हो। वे पूरे धरती के सम्राट हैं जब 'राजा बाली' का वध करते हैं तो कहते हैं कि मैं इस पृथ्वी पर अनाचार अत्याचार को समाप्त करने आया हूँ ये सारे राज्य स्वच्छंद होते जा रहे थे इसलिये इन्हें दण्डित करना आवश्यक था। इसीलिए "बाली" कहता है कि मेरे पुत्र अंगद को अपनी शरण में ले लीजिए। पुरुषोत्तम राम "रावण" का वध करते हैं क्योंकि 'राक्षस राजा रावण' निरंकुश हो गया था वे पाताल पुरी की निरंकुशता को 'अहिरावण' का वध करके समाप्त करते हैं । वे बार -बार यह याद दिलाते हैं कि वे भगवान मनु, विवस्वान मनु, महाराजा इक्ष्वाकु के वंशज हैं जो इस धरती के सम्राट थे इसी अधिकार के साथ उन्होंने पृथ्वी से निरंकुशता, अनाचार, अत्याचार और कुसंस्कार समाप्त करने हेतु चौदह वर्ष वनबास में रहना पड़ा । तभी उन्होने आम जनता की कठिनाइयों को समझा और समाधान करने का प्रयास किया और रामराज्य की स्थापना की। ऐसा शासन जिसमें (सब नर करहि परस्पर प्रीति, चलहिं स्वधर्म करइ श्रुति नीति) वैदिक काल जैसे स्वतंत्र देश का स्वतंत्र गांव जिसमें शासन का कोई हस्तक्षेप नहीं!

उत्तर कांड क्षेपक--!!

महर्षि बाल्मीकि ने रामायण के उत्तर कांड में भगवती सीता जी के बारे में लिखा है कि भगवान श्रीराम ने उन्हें जंगल में भेजा यानि घर से निकाल दिया और उस समय जब वे गर्भवती हैं। पुरुषोत्तम श्रीराम का महिलाओ के प्रति जैसा आदर सम्मान है वे 'राजा दशरथ' से कहते हैं यह जानते हुए भी कि माता कैकेई ने ही उन्हे जंगल भेजने का वचन मांगा था, प्रथम हे पिता श्री यदि आप मुझसे प्रेम करते हैं तो आप मेरी माता "कैकेयी" को क्षमा कर दीजियेगा। वे 'सुग्रीव' व 'विभीषण' को राजा बनाते हैं लेकिन (राजमाता) राजमहिषी वही ''तारा व मंदोदरी" ही रहेगी! प्रथम रात्री जब 'भगवान राम' 'भगवती सीता जी' से मिलते हैं तो कहते हैं कि हे "सीते" तुमसे पहले मैंने किसी भी नारी को भरी आंख से नहीं देखा आगे भी नहीं देखुगा। इतना ही नहीं ऐतिहासिक दृष्टि से राम अयोध्या से जहां- जहां जाते हैं आज भी वह स्थान चिन्हित है। लेकिन सीता जी को वे निकाल देते है कहाँ गयी ? कौन सा स्थान था ? वह साक्ष्य कहीं नहीं मिलता! इसी प्रकार ''ऋषि बाल्मीकि'' ने कहीं भी रावण को ब्रह्मण नहीं लिखा है प्रत्येक स्थान पर रावण को राक्षस ही कहते है लेकिन आज प्रचलन मे "रावण राक्षस" को कुछ लोग ब्रह्मण बताने पर तुले हैं तर्क वितर्क कर रहे हैं। वर्ण व्यवस्था आर्यों में है न कि राक्षसों में! और रावण आर्य न होकर राक्षस था। वास्तविकता यह है कि बाल्मीकी रामायण मे यह क्षेपक है और पूरा का पूरा "उत्तर काण्ड" क्षेपक है गलत है उसे ऋषि बाल्मीकि ने लिखा ही नहीं यह सब बौद्ध काल की देन है। हमारे शास्त्रों में बहुत सारा ''क्षेपक'' डाला गया जो ''श्रीराम पुरुषोत्तम'' हो आदर्श है वे अपनी मर्यादा कैसे भंग कर सकते हैं ! बौद्धों ने भगवान बुद्ध को श्रेष्ठ बनाने के लिए यह सब किया। उसी तरह यह कहा जाता है कि श्रीराम ने तपस्वी 'शम्भूक' की हत्या किया यह भी क्षेपक है ये तो बौद्धों की जातक कथाओं में लिखा गया है अब हम कल्पना करें कि जो श्री राम-! शबरी के जूठे बेर खाते हैं वे 'शम्भूक' का वध कैसे कर सकते हैं! हम सभी जानते हैं कि वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था थी जिसमे 'शूद्र कुल' में पैदा हुआ 'ऋषि कवष ऐलूष', 'ऋषि दीर्घतमा' वैदिक 'मन्त्रद्रष्टा' हो ब्रह्मणत्व को प्राप्त हो गए तो 'सम्भूक' ब्राम्हण क्यों नहीं ? यह चिन्तन का विषय है ये मर्यादा पुरुषोत्तम के बारे में ऐसा लिखना उनकी मर्यादा के खिलाफ है और हिन्दू समाज का अपमान भी है। भगवान श्रीराम ने किसी सम्भूक की हत्या नहीं की और बाल्मीकि ऋषि ने रामायण में ऐसा कुछ लिखा भी नहीं यह सब हिन्दू समाज को अपमानित करने के लिए वामपंथियों के पूर्वज बौद्ध व अन्य साहित्यकारों ने क्षेपक रामायण में लिखा। यह आख्यान बौद्धों के जातक कथाओ में पाया जाता है। सन्त तुलसीदास जी ने तो 'रामचरित मानस' में एक सिरे से इन क्षेपकों को खारिज कर दिया वास्तविकता यह है कि सम्पूर्ण जगत में राक्षस, वानरों, भालुओं इत्यादि जातियोँ का शासन था जो 'वैदिक' रीति -नीति से शासन करते थे सभी ''श्रुति'' के अनुसार चलें यह जिम्मेदारी चक्रवर्ती सम्राट की होती थी जिसका पालन ''पुरुषोत्तम राम'' ने किया।

जगत की ब्यवस्था--!

वनबास से वापस 'अयोध्या' आने के पश्चात "जगत जननी सीता" को जंगल में भेजना यह भी गलत है ये तो हो सकता है कि "बाल्मीकि ऋषी" के दर्शन हेतु वे उनके आश्रम में गयीं हो! यह सत्य है कि "लव-कुश" की शिक्षा-दीक्षा 'ऋषी वाल्मीकि आश्रम' में हुई थी लेकिन यह कहना कि "श्रीरामचंद्र जी' ने उन्हें घर से निकाल वन में भेज दिया था गलत है। 'तुलसीदास जी' ने बिलकुल इसे छुआ तक नहीं, भगवान श्रीराम के चारो भाइयों सहित 1234 पोते पोतियां थी वे सबके शादी विबाह में पुष्पक विमान से ''सीता जी'' के साथ जाते हैं । अपने सभी वंश के लोगों को सम्पूर्ण जगत के शासन व्यवस्था हेतु राज्यों का निर्माण कर पूरे जगत की व्यवस्था को सुदृढ़ करते हैं। ऐसे थे "पुरुषोत्तम श्रीराम" जिन्होंने अपना जीवन हिंदू धर्म के अनुसार "महर्षि मनु" के प्रथम विधान "मनुस्मृति" के अनुसार जिया और सम्पूर्ण मानव समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत किया ।

(नोट-जब हम बाल्मीकि रामायण पढ़ते हैं तो अयोध्या कांड में ही यह ऋषि बाल्मीकि "लव -कुश" के माध्यम से बताते हैं कि रामायण में कितने श्लोक है उसमें वे उत्तर कांड का वर्णन नहीं करते यह पूरा उत्तर कांड क्षेपक दिखाई देता है, ऋषि ने बाल कांड में यह लिखा है कि कितने कांड और श्लोक लिख रहे हैं।)

 (सन्दर्भ ग्रन्थ-- बाल्मीकि रामायण, त्रेता युगीन भारत व रामचरित्र मानस  )

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