एक निरीह सम्राट अशोक वर्धन ---!

  • जब बौद्धो ने सम्राट अशोक को अपने चंगुल मे फंसाया

 जो देश चक्रवर्तियों का हो जिसके पूर्वजों ने सिकंदर जैसे आतताई को पराजित कर जिंदा वापस जाने नहीं दिया, जिनके दादा ने सैल्यूकस जैसे सेनापति की बेटी लेकर सीमा समझौता किया, उसी के वंशज को क्या हो गया ? जब हम विचार करते है तो ध्यान मे आता है कि वे बौद्धों की कापुरुषता के जाल मे फसे थे, हमारे पूर्वज बड़े ही विबेक पूर्ण थे वे भरतीय वांग्मय को जानते थे, ईशा से 1100 वर्ष पूर्व देश के अंदर हिंसा व तांत्रिक विद्या जहाँ पंच मकार का प्रचलन था लगभग मानवता विरोधी हो चुका था देश में वेदों के नाम पर हिंसाचार फैला था, उसी समय सिद्धार्थ नामक बालक राजा सुद्धोधन के यहां पैदा हुआ आगे अपनी तपश्चर्या के कारण भगवान कहलाये भगवान बुद्ध ने अपना जीवन वैदिक संस्कृति अनुकूल ही बिताया लेकिन उनके अनुयायियों ने उनके जीवन आदर्श को छोड़कर उनके नाम पर नास्तिक धर्म चलाया। 

महात्मा बुद्ध को भारतीय वांगमय का ज्ञान

बुद्ध कैसे थे ? वास्तविकता यह है कि वे पढ़े लिखे नहीं थे उनके जन्म लेने के साथ ही पुरोहित ने बताया कि यह बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट होगा अथवा ये बहुत बड़ा सन्यासी होगा, राजा को लगा कि यदि बालक पढ़ लिख लेगा तो सन्यासी अवस्य वन जायेगा, लेकिन उन्हें तो सन्यासी होना था, उन्होंने वेद, उपनिषद, गीता और वेदांत इत्यादि भरतीय वांग्मय पढ़े ही नहीं इसलिए उन्हें भरतीय वांग्मय का ज्ञान नहीं था, उन्होंने समाज में जब अति हिंसा देखी वे ब्यथित हो बैठे उन्होंने इस मांसाहार व हिँसाचार का विरोध किया, पुरोहितों से पूछा कि ये उचित नहीं तो तांत्रिकों ने कहा यह ईश्वर को चढ़ता है इस पर उन्होने कहा मैं ऐसे किसी ईश्वर को नहीं मानता, जब पंडितों ने बताया कि यह "वेदों" में लिखा है तो उन्होंने कहा कि मैं ऐसे "वेद" को भी नहीं मानता, यहां तक तो सब ठीक था लेकिन उन्होंने विना "वेद" पढ़े उन पाखंडियों की बात मान ली उन्होंने ईश्वर के स्वरूप को नहीं जाना और सम्पूर्ण आर्यावर्त में अपने मत का प्रचार करने लगे, वे राजा के लड़के थे उसका उन्हें लाभ मिला सभी रजवाड़ों को लगा कि एक राजा सन्यासी हुआ है बिना जनता के मत को जाने ही राज्य के राज्य बौद्ध मतावलंबी बन गए मठों की स्थापना होने लगा धीरे- धीरे बौद्ध भिक्षुणियाँ भी बनने लगी फीर क्या था मठों में ब्याभिचार फ़ैल गया भारत में अहिंसा के नाम पर कापुरुषता फैल गयी।

जब दक्षिण के एक आचार्य ने जब दिग्विजय किया

ईशा के 1000 वर्ष पूर्व दक्षिण सुदूर केरल के कालड़ी नाम के गांव में शंकर नाम के बालक ने जन्म लिया जिसे हम आदि जगतगुरू शंकराचार्य के नाम से जानते हैं, उस समय सम्पूर्ण आर्यावर्त में वेद बिरोधी नास्तिक मत जो जनता के विरुद्ध राजाओं का मत था अहिंसा के नाम पर जनता पर अत्याचार ब्याप्त हो गया था देश में अराष्ट्रीता का बोल बाला था आलसी और अकर्मण्यता छा गई थी शंकराचार्य ने शास्त्रर्थ के बल नास्तिकता पर विजय पाकर पुनरवैदिक धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा की तिब्बत से लेकर दक्षिण इंडोनेशिया लंका तक पश्चिम अफगानिस्तान से लेकर पूर्व ब्रम्हदेश तक वैदिक धर्म की पताका फहराया, इसी आर्यावर्त को चाणक्य चंद्रगुप्त को माध्यम बना एक नए भारत वर्ष का निर्माण किया जहां जहाँ हिंदू वहाँ वहाँ भारत चंद्रगुप्त मौर्य चक्रवर्ती सम्राट बना वह लगातार युद्ध करता रहा चाणक्य के नेतृत्व में बिन्दुसार ने भी चंद्रगुप्त मौर्य के समान पराक्रमी जीवन जीकर भारत का महान सम्राट बना, लेकिन भारत का भाग्य अधिक दिन तक नहीं चला सम्राट बिन्दुसार का एक पुत्र अशोक हुआ वह भी बड़ा ही पराक्रमी वीर था, सत्ता के लिए उसने अपने 99 भाइयों की क्रूरता पुर्बक हत्या की और मगध साम्राज्य की गद्दी पर बैठा, इस प्रकार इसने मौर्य वंश के नाश करने का बीजारोपण किया, महाराज की अपनी संतान ही उसके विरुद्ध विद्रोह करने लगी, इस पारिवारिक विग्रह के कारण ही अशोक के पुत्र कुणाल को अंधा किया गया था, भारत का दुर्भाग्य यहीँ नहीं छोड़ता उसने चंद्रगुप्त मौर्य की नीति त्याग अपने ही (पड़ोसियों) लोगों पर हमला करने लगा, कलिंग युद्ध इसका एक उदाहरण है लाखों लोगों का संहार किया देश में धिक्कारने व स्थान- स्थान पर बिद्रोह होने के कारण उसने बौद्ध धर्म का सहारा लिया दोनो ने एक दूसरे को साधने का प्रयास करने लगे धीरे-धीरे सम्राट अशोक के ऊपर बौद्ध प्रभावी हो गए, मात्र वे उपकरण ही रह गए । 

जब देश व समाज कापुरुषता प्रभावी होने लगी

बौद्ध धर्म का विस्तार प्रायः अनपढ़ और मूर्खो में प्रारंभ हुआ, बौद्ध धर्म को जब भारत सम्राट देवानांप्रिय प्रियदर्शी अशोक का समर्थन मिला तो और भी ऐसे लोग इसमें सम्लित होने लगे जो अन्यथा सँसार में प्रमाद, आलस्य और अज्ञान में धसे थे, राज्य की ओर से चैत्यों को लाखों स्वर्ण मुद्राएं प्रति वर्ष मिलने लगी और उसमें निम्न श्रेणी के लोग, जो अपनी जीवन गाड़ी चलाने में असमर्थ थे, प्रवेश पाने के लिये आने लगे,कहते हैं अशोक ने अपने जीवन काल में चौरासी हज़ार चैत्यों का निर्माण कराया और एक अनुमान के अनुसार उसमें दो करोड़ के लगभग स्त्री-पुरूष श्रावक वनकर रहते थे, इस प्रकार बौद्ध धर्म राजाश्रित धर्म वन गया बौद्ध मठों में राजदरबार से सभी ब्यवस्थायें होने लगी, बौद्ध मठ इतना प्रभावी हो गया कि भिक्षु भिक्षुणियों की संख्या में बहुत तेजी से बढ़ोतरी होने लगी लेकिन जनता इसे अच्छा नहीं मानती थी, जो अकर्मण्य थे आलसी थे यानी कामचोर थे सभी भिक्षु बन मठों में आ रहने लगे, भिक्षुओं ने सम्राट अशोक को देवप्रियदर्शी की उपाधि दी ऐसा राजा जो देवताओं को प्रिय है धीरे-धीरे राजा पूरी तौर पर मठों के चँगुल में फंस गया धर्मपाल ने सम्राट अशोक को समझाया कि भगवान बुद्ध बिना हिँसा के शासन चाहते थे इस प्रकार धर्मपाल के सलाह के कारण सारी सेना को चँवर पहिना दिया, धीरे- धीरे सेना समाप्त प्राय हो गई।

एक असुरक्षित साम्राज्य

एक समय आया ''मगध साम्राज्य'' सेना विहीन हो गया बड़े ही चालाकी से बौद्ध भिक्षुओं ने अशोक के पुत्र महेंद्र व पुत्री संघमित्रा को धर्म प्रचार हेतु लंका भेजा दिया, क्योंकि बौद्ध यह चाहते थे कि सत्ता पर बौद्ध भिक्षुओं का नियंत्रण हो रातो-दिन मठों में यही साजिश की जाने लगीं, सम्राट अशोक के एक पुत्र कुणाल था जो अंधा था उसके एक पुत्र सम्प्रति था उस पर बौद्ध भिक्षुओं का प्रभाव नहीं था लेकिन उसने भी सैनिक शिक्षा ग्रहण नहीं किया था सम्राट अशोक तो रणनीति के कारण बौद्ध धर्म स्वीकार किया था लेकिन कुणाल मनोयोग से बौद्ध था लेकिन संप्रति इन दोनों से अलग था, उसके राजा होने पर हो सकता है कि राज्य पर ब्रह्मणत्व (राष्ट्रवाद) का प्रभाव पड़ता, भिक्षुओं ने वैशाली के एक ज्योति नाम की वैश्या पुत्री जो बौद्ध भिक्षुणी बनाना चाहती थीं उसे राजमहिषी का स्वप्न दिखा पाटलिपुत्र ले आये और उसका विवाह राजकुमार से करा राजतिलक की तैयारी में लग गया, सम्राट अशोक व राजमाता की ईक्षा थीं कि संप्रति का राजतिलक होना चाहिए, इसी बीच मिथिला के एक ब्राह्मण वज्रबाहु के मंदिर को बौद्ध मठ मे परिवर्तित कर दिये जाने के कारण वैशाली में अपनी पुत्री भामिनी के साथ रोजगार हेतु आया था, वह नगर शेठ लक्ष्मीचंद के यहां कार्य करता था जो इस वैश्या ज्योति से विवाह करना चाहता था, लेकिन उसका बहुत सारा धन लेकर ज्योति पाटलिपुत्र की महारानी बनने पहुंच गई थी यह ब्राह्मण वज्रबाहु केवल पुजारी ही नहीं बल्कि एक योद्धा भी था उस नगर सेठ के लड़के को छुड़ाने पाटलिपुत्र पुत्र गया, (नगर सेठ का लड़का माधव उस वैश्या से अपना धन वापस लेने गया था कि वहीं वह गिरफ्तार कर लिया गया था) लडक़ी भामिनी को अकेले कैसे छोड़ता उसे अपने साथ एक नगर की अतिथि शाला में रूक गया। 

महारानी की एक अच्छी परख

वज्रबाहु दिन में अपने कार्य में लग गया वह भामिनी नगर में घूमते हुए एक आभूषण की दुकान में पहुंच गई उसे कर्णफूल लेने थे वह देख ही रही थी तब तक दुकानदार घबराकर भामिनी से कहा जल्दी करो ! भामिनी ने कहा तुमनें दिखाया ही क्या है? दुकानदार ने क़ुछ महँगे कर्णफूल दिखाए भामिनी ने कहा इतना पैसा मेरे पास नहीं है मैं कोई महारानी थोड़े ही हूँ कम दाम का दिखाए लेकिन वह जेवर बहुत सुंदर लग रहा था, जिसके कारण दुकानदार घबराकर बोला था वह बृद्धा पाटलिपुत्र की महारानी पद्मावती थीं कहा बेटी तुम महारानी नहीं लेकिन राजकुमारी लग रही हो, नहीं मां मैं तो ब्राह्मण कन्या हूँ राजमाता ने कहा तुम्हें यह पसंद है तो ले लो ! भामिनी का ध्यान उस बृद्ध महिला (राजमाता) की तरफ गया बोली मां मेरे पास इसे लेने के लिए धन नहीं है, बेटी यदि तुम्हें यह पसन्द है तो इसे हमारी तरफ से ले जाओ आखिर तुमने मुझे मां कहा उसने माँ का पैर छुआ, राजमाता ने अपनी एक मुद्रा देते हुए कहा जब भी तुम्हारा जी कहे तुम मुझसे मिलने बेधड़क दरबार में आ सकती हो।

और कलिंग राजकुमारी भामिनी

एक दिन भामिनी अकेले वीथिका में थी उसके मन में आया कि वह राजमाता से मिले मिलने दरबार पहुंच मुद्रिका दिखाने पर तुरंत ही राजमाता के पास पहुंच गई, देखते ही राजमाता ने अपने साथ बैठा लिया कुछ लोगों को निपटाने के पश्चात उससे देर तक बातें करती रही वह अब समय पाते लगभग प्रतिदिन दरबार मे आने लगी राजमाता के पूछने पर उसने बताया कि उसके माता पिता नहीं हैं कलिंग युद्ध में मारे गए वह जिसके पास है वे मंदिर के पुजारी थे बौद्धों ने मंदिर को बौद्ध मठ में परिवर्तित कर दिया इसलियें हम यहां हैं राजमाता ने पूछा बेटी कलिंग युद्ध में राजपरिवार से कोई बचा की नहीं लङकी ने बताया कि एक राजकुमारी बची है राजमाता ने तुरंत कहा कि यदि वह मिल जाती तो मैं उसे कलिंग का राज्य सौंप देती यह कोई और नहीं यह तो वही कलिंग राजकुमारी थी, तभी वह सम्हल गई कि वह पाटलिपुत्र के राजमहल में है महरानी पद्मावती ने बात बदलते हुए पूछा तुम्हारे पिता जी यहां क्या करने आये भामिनी ने बताया कि सेठ लक्ष्मीचंद के पुत्र माधव को छुड़ाने आये थे वह छूट गया अब मैं जाने आज्ञा लेने आयी हूँ राजमाता ने कहा कि तुम्हारे पिता यहाँ से नहीं जा सकते !भामिनी ने पूछा क्यों? राजमाता ने बताया कि उनकी लड़की हमारे पास बन्दी है भामिनी समझी नहीं तभी राजकुमार सम्प्रति राजमाता के दर्शन हेतु आये भामिनी वहां से हटना चाहती थी कि राजमाता ने रोक लिए तभी सम्प्रति ने संकोच त्याग भामिनी को देखा भामिनी की आँखे सम्प्रति से मिल भामिनी की आँखे झुक गई और चेहरा सुर्ख हो गया, राजमाता ने भामिनी से कहा बेटी जिस दिन मैंने तुझे जौहरी की दुकान पर देखा उसी दिन मैंने तय कर लिया कि तुम इस राजमहल की शोभा बनोगी तुम अपनी कीमत नहीं समझ रही हो मैंने तो उसी दिन 'कर्णफूल' देकर अपनी बहू स्वीकार कर लिया था, भामिनी विस्मय से देखती हुईं खड़ी रही उसके समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें ? पिता जी को रुकने के लिए कहे तो कैसे? क्या बताएगी पिता को उसके मन में महत्वाकांक्षा जाग उठी वह इस अवसर को खोना नहीं चाहती थी! वज्रबाहु भामिनी, माधव सहित जाने को तैयार ही थे कि दरबार से बीस भट रथ को रोक दरबार मे ले जाने लगे भामिनी को ध्यान में आया कि ये सब उसके पत्र के कारण हुआ है, महाराज अशोक ने वज्रबाहु से कहा कि भमिनी का कुमार सम्प्रति से बिबाह के कारण आपको रोका गया है वज्रबाहु ने कहा महराज यह लड़की हमें बहुत प्रिय है इसकी ईक्षा ही प्रबल है भमिनी नीचे मुह किये अपने पैरों को देख रही थी।

और निरीह सम्राट

 विबाह तय हो गया तुरंत ही राज्य का उत्तराधिकारी राजकुमार सम्प्रति घोषित होने वाले थे महराज अशोक अपने मंत्रियों से राज्यसभा बुलाने का विचार कर ही रहे थे कि चैत्य के श्रावकों को ले सुनंद दरबार में जा पहुंचा उसने राजा से मिलने का समय मांगने के ही प्रवेश कर गया, अशोक ने उसे उदंडता के लिए घूरा सुनंद ने कहा महराज मैं जानता का प्रतिनिधि हूँ अशोक क़ुछ कहते कि दरबार बौद्ध भिक्षुओं से भर गया राजा को वंदी वना लिया गया सुनंद ने राजा से कुणाल को युवराज घोषित करने को कहा परन्तु राजा ऐसा नहीं किया, सुनंद ने कहा महराज ये बौद्ध संघ की आज्ञा है और बौद्ध संघ ही देश की सर्बोच्च संस्था जो जनता का प्रतिनिधि करती है, अशोक के इनकार करने के पश्चात सुनंद ने अपने वक्षस्थल पर हाथ रखते हुए कहा "यह है देश, महाराज"
"मैं इसे देश नहीं मानता"!
इस पर सुनंद ने द्वार की तरफ देखा आवाज दी,
"और आ जाओ" दस श्रावक और भीतर आ गए,
तभी महाराज ने देखा कि दरबार पर पीत वस्त्र धारियों का कब्जा जैसे हो गया, तभी उनके समीप बैठा महामात्य विष्णुचरण ने राजा से कहा "भाग जाइये महराज" तभी सुनंद ने आज्ञा दी महराज को बंदी बना पीछे आगार में डाल दो श्रावकों ने महामात्य और महराज को घेर लिया और कुणाल को युवराज घोषित करने की मांग की राजा ने कहा--!

"मैं बन्दी हूँ औऱ बन्दी आज्ञा नहीं दे सकता"!

सुनंद जो चैत्य का प्रमुख था उसने अपने झोले से एक पत्र निकाल पढ़ने लगा "आज हमारा स्वास्थ्य ठीक है इस कारण मैं प्रजा परिषद में उपस्थित नहीं हो सकता इस प्रकार बौद्ध संघ की ईक्षा है कि राजकुमार कुणाल भारत की गद्दी पर बैठे, हमारे पूर्ण जीवन की नीति कि बौद्ध संघ को सुदृढ़ रखा जाए"
 दरबार घेर लिया गया राजा को अपने कब्जे में ले लिया सेना तो थीं नहीं कौन सुरक्षा देता? तभी महराज को उसी आगार में बन्द कर दिया और बाहर श्रावकों को बैठा दिया गया, इसी राजप्रासाद के आंगन में युवराज कुणाल के जयघोष के नारे लगाये जाने लगे ।

दरबार मे विद्रोह

 भमिनी को बस्त्र पहनाकर विबाह के लिए उसे तैयार किया गया वह महारानी के पास आयी आशीर्वाद लिया ही था कि एक दासी महारानी भमिनी के पीछे खडी कहा "राजमाता दरबार में विद्रोह हो गया है, किसने किया"? बौद्ध उपासकों ने, "कौन कौन बिद्रोह में सामिल है?" महारानी ने दासी से पूछा क्या तुम भी उपासिका हो! नहीं महरानी तभी तो यहाँ आयी हूँ तुम सम्प्रति को बुला लाओ गई तो लेकिन लौट नहीं पायी, तभी महारानी औऱ भमिनी दोनों महराज के पास गई, तो देखा महराज का हाथ पैर बांध वंदी वना लिया गया है तभी सुनंद ने महरानी को देखा बंदी बनाकर बांधकर एक बौद्ध मठ में ले जाया गया, चैत्य का दृश्य अजीब सा था वह कोई आध्यात्मिक केंद्र न होकर राजनैतिक अखाड़ा मात्र था वे अब चैत्य में थीं! महरानी और भामिनी को अलग अलग कर दिया गया चैत्य की अध्यक्षा ने भामिनी से नाम पूछने पर उसने कहा तुम कौन हो यह सब पूछने वाली ?
में चैत्य की अध्यक्ष हूँ!
मुझको यहाँ क्यों लाया गया है?
मैं नहीं जानती हूँ।
तो मैं जा सकती हूं?
तुम अपने ईक्षा से नहीं आयी हो?
न मैं न महारानी अपनी ईक्षा से आयी हैं,
मैं पूछती हूँ कि मुझे बंदी बनाकर क्यों लाया गया है ? 
बौद्ध चैत्य बंदी गृह वन गए हैं क्या ?
संसार को मुक्ति दिलाने वाले भगवान बुद्ध के शिष्य क्या अब जनता को बन्धन में डालने वाले हो गए हैं क्या ? चैत्य में बड़ी संख्या में लड़कियों को भिक्षुणी बनाने हेतु बलात लाया जाता है गांवों के अन्दर भय का बातावरण हो गया है कि कहीं भी किसी की लड़की भिक्षुणी बनाने हेतु उठा ली जाती, चैत्यों में ब्याभिचार का बोल बाला था, भामिनी ने देखा कि बहुत सी महिलाएं जो विवाहित हैं उनके बच्चे हैं दिन में वे चैत्य में रात्रि में पति के पास, यहां तक कारागार (चैत्य) की बाउंड्री बौद्ध भिक्षु कूद कर महिलाओं के लिए आ जाते थे, पूरे देश की स्थिति ऐसी हो गई थी कि कोई भी अपनी लड़की को बचपन में ही विवाह करने लगे थे धीरे- धीरे बाल विवाह की परंपरा ही बन गई।

फिर वैदिक द्वारा ही सुरक्षा

वज्रबाहु को सम्प्रति के अपने महल में रोका गया था सम्प्रति से मिलने बहुत बौद्ध भिक्षु आ गए वज्रबाहु को समझने में देर नहीं लगा कि "ये मित्र नहीं शत्रु है ! आने दो ----!" 
वे राजकुमार को बंदी बनाकर ले जाने वाले थे कि तभी सम्प्रति ने पूछा क्या है श्रावकों ने बताया आपके जीवन की सुरक्षा हेतु चैत्य में ले जाना आवस्यक है,
"मैं बिना महराज की आज्ञा के हट नहीं सकता",
वे तो चैत्य जा चुके हैं,
"मुझे विस्वास नहीं होता।"
तो क्या हम असत्य बोल रहे हैं ?
"तो हम अपने कर्तव्य का पालन बल पूर्वक करेंगे!"
वज्रबाहु वहीं खड़े सब बाटे सुन रहा था तभी श्रावकों ने आदेश दिया कि "कुमार को पकड़ कर रथ तक ले चलो!"
ज्यों ही उपासक कुमार की तरफ बढ़े त्यों ही वज्रबाहु की तलवार प्रकाश में चमक गई !
एक ने कुमार की तरफ हाथ बढ़ाया ही था कि उसका हाथ नहीं रहा !
कुछ श्रावक वज्रबाहु की ओर बढ़े पैतरा लेकर वज्रबाहु ने अपनी तलवार से कई लोगों के मुंड काटते हुए राजकुमार को बचाकर बाहर निकल गया, तभी एक श्रावक चिल्लाया कि कोई हिंसक जन्तु घुस गया है, अब वह उज्जैन के पास था वहीं से राजकुमार सम्प्रति को सैनिक शिक्षा देने का प्रयास कर रहा था !

और कापुरुषता ही कापुरुषता

पूरे देश में कापुरुषता सा वातावरण था सभी भारत वर्ष से अलग होने लगे कश्मीर, आंध्र, कलिंग, पौंड्र धीरे धीरे विद्रोह करने लगे मगध साम्राज्य के पास कोई सैन्य अभ्यास नहीं था, बौद्ध अपने को देश का नहीं विश्व का नागरिक मानते थे बौद्ध भिक्षुओं में ब्याभिचार ब्याप्त हो गया था, जो क़ुछ काम नहीं करना चाहते थे आलसी प्रमादी थे भोजन के लिए सभी भिक्षु बन जाता, क्योंकि सभी बौद्ध मठ, चैत्य राज्याश्रित थे राज्यों का सारा का सारा धन इसी काम में दिया जाता था सुरक्षा पर कोई विचार नहीं था।
भामिनी ने अंजना (भिक्षुणी) से पूछा "बौद्ध धर्म में कितनी श्रद्धा है ?"
 उसने कहा "मैंने इस पर कभी विचार नहीं किया"! एक दिन अंजना भिक्षा लेकर आयी उसका मन मलीन हो रहा था भामिनी और दम्पा आगार में बैठी बात कर रही थीं दम्पा भामिनी को बाहर के सारे घटनाक्रम से अवगत कराते रहती थी, अंजना को देख भामिनी ने पूछा, "क्या हुआ अंजना?"
"भारी अनर्थ होने लगा है,"
क्या हुआ---? 

चैत्य बिहारों पर समाज का विद्रोह

"आज नगर में यह सूचना फैल रही है कि वीरभूमि की जनता ने बौद्ध विहारों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया है, वे विहारों को गिरा रहे हैं उसमें रहने वाले श्रावकों को खेतों में काम पर लगा रहे हैं, जो श्रावक काम नहीं करना चाहते उन्हें धक्के मारकर  वीरभूमि से बाहर निकाल रहे हैं वे श्रावक महराज के सम्मुख अपने कष्ट का वर्णन कर रहे हैं"!
भामिनी कल्याणी (चैत्य अध्यक्ष) से मिलने गई कल्याणी का मुख गम्भीर दिखाई दिया बैठते ही पूछा भगिनी!क्या बात है ?
कल्याणी ने क़ुछ उत्तर नहीं दिया, वह चुपचाप बैठे रही, भमिनी ने अंजना के मुख से सुने समाचार को बताया, कल्याणी कहने लगी, "जानती हो यह सब कौन कर रहा है ?"
"कौन कर रहा है ?"
"तुम्हारे पिता और कुमार सम्प्रति।"
"वे ऐसा क्यों कर रहे हैं ?"
"उन्होने राज्य के विरुद्ध विद्रोह खड़ा कर दिया है।"
"क्यों----?"
"देश में चौरासी हज़ार चैत्य हैं, लगभग दो करोड़ श्रावक और श्राविकाएं उसमें पल रहे हैं, ये सब पथ भ्रष्ट हो जायेंगे।" भामिनी को कुमार सम्प्रति की योजना समझ में आ गई और वह उसके गंभीर परिणाम को भी समझ लिया।

बौद्धो के चैत्य की खुली पोल

महाप्रभु सुनंद ने बौद्ध भिक्षु सम्मेलन को उद्घाटित करते हुए कहा वीरभूमि में बौधों का प्रबल विरोध शुरू हो गया है, इसके दो कारण है एक तो कुमार सम्प्रति भारत के सम्राट बनाना चाहते हैं किन्तु बौद्ध संघ कुणाल के पक्ष में है, "वीरभूमि की जनसंख्या पंद्रह लाख से अधिक है, उसमें पाँच लाख भिक्षु-भिक्षुणियाँ है, परिणाम यह है कि कृषि व अन्य उद्द्योग के लिए बहुत कम युवक युवतियां रह गई हैं, स्वाभाविक ही वहाँ असंतोष उग्र रूप धारण किया है," इस असंतोष का लाभ उठाकर वज्रबाहु और कुमार सम्प्रति ने वहां विद्रोह खड़ा कर दिया है, "पिछले तीन महीने से एक सौ से अधिक चैत्य गिराकर समतल किये जा चुके हैं औऱ सहस्त्रों की संख्या में श्रावक प्रदेश से निर्वासित किये जा चुके हैं।" दम्पा द्वारा भामिनी को बाहर का सब समाचार देती थीं चैत्य पर ग्रामीणों ने हमला कर दिया, भिक्षुणियां भय-भीत इधर उधर भागती दिखाई दे रही थी,  भामिनी गम्भीर हो "दम्पा से पूछा यह क्या हो रहा है?" पार्थ के नाम पर सब ठिठक गये भामिनी ने शान्ति की अपील की, भमिनी ने भिक्षुणियों से कहा कि एक पंक्ति में द्वार के बाहर चली जायँ क्योंकि वे बाहर साधारण कपड़ों में बच सकती हैं।

वज्रवाहु और कुमार संपति 

अब राज्य के महामात्य भी वज्रबाहु और कुमार के अभियान में शामिल हो चुके थे सीधा राज्य पर नहीं वे बौद्ध चैत्यों को अपना शिकार बना रहे थे, धीरे धीरे चैत्य खाली होना शुरू हो गए सभी श्रावक खेती करने लगे, कई माताओं पिताओं को बिछुड़े संताने मिल गई और उनके सुने घर आबाद हो गए, इस प्रकार पूरे देश में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई लोग उसके आज्ञा के अधीन चलते लगे, बौद्ध संघ समझौते के लिए तैयार किया गया तो !लेकिन कुणाल ने बताया कि शासन जरूर मैं करता हूँ लेकिन महराज अभी जिंदा हैं वे ही इस अधिकार पत्र को लिख सकते हैं, महराज अपने निवास गृह में पहुंचे कुणाल को अपने समीप बैठाकर पूछा! "कहो अब क्या हुआ है ?"

सम्राट अशोक की जय के नारे

 वज्रबाहु को इस अभियान में कलिंग में भारी सफलता मिल रही थीं जब कलिंग के जनता को पता चला कि कलिंग राजकुमारी भामिनी चैत्य में बंदी है चैत्यों पर हमले और तेज हो गए, महामात्य विष्णुचरण ने वज्रबाहु को सेना लेकर पाटलिपुत्र पहुचने का आदेश दिया, कुमार सम्प्रति व वज्रबाहु सेना सहित पाटलिपुत्र पहुचे कुमार के साथ सम्राट अशोक के जयकारों से राजधानी गूँज गई, "महराज ने सिंहासन से उठते हुए कहा कि मैंने अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया कुमार तुम ठिक कहते हो, मैं आज सिंहासन का त्याग करता हूँ!" बौद्धों ने अन्तिम समय तक महारानी को महराज से मिलने नहीं दिया और वे चाह कर भी कुछ नहीं कर सके, उन्होंने अपनी भीरुता देश को क्षत्रित्व विहीन करने की गलती स्वीकार कर ली और मौर्य वँश के पतन के कारण बने।

सम्राट की असफल नीति

"महराज, देवानां प्रिय, प्रियदर्शी सम्राट अशोक ने, अपनी नीति के असफल रहने की सत्यता का आभाष पाकर, भारतखंड का साम्राट पद त्याग दिया है, सम्राट अशोक अंतिम समय तक महारानी को अपने साथ नहीं रख सके महारानी को सुनंद महाप्रभु चैत्य में बंदी बनाकर रखा था, वज्रबाहु के साथ कुमार सम्प्रति राजमहल में साम्राट के समक्ष उपस्थित हुए तब चैत्य पर जनता ने हमला कर महरानी और भामिनी को बचाकर ले आये, कुमार सम्प्रति और भमिनी का विवाह कर वास्तविक भारत सम्राट बने, सम्राट अशोक ने अपनी नीति पर बहुत पश्चाताप किया, वे वौद्ध धर्म को समझ चुके थे, भारत राष्ट व समाज को कमजोर करने की ग्लानि का अनुभव किया और महारानी पद्मावती को साथ ले पश्चाताप हेतु वैदिक परंपरा से सन्यास ले हिमालय की ओर चले गए।

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