बद्र की जंग का ऐलान
मुस्लिम लीग के नेता सुहरावर्दी बंगाल का मुख्यमंत्री था केंद्र में कांग्रेस और मुस्लिम लीग की साझा सरकार थी। रमजान का महीना चल रहा था, देश के अंदर मुहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम लीग को देश विभाजन के लिए तैयार किया था यदि हम यह कहें कि मुस्लिम लीग की स्थापना ही पाकिस्तान के लिए हुई थी तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। 16 अगस्त 1946 का दिन था, मुसलमान एक मैदान में इकट्ठा हो रहे थे, सभी के हाथों में लाठियां, तलवार, डंडे कटार, चाक़ू इत्यादि थे। कुछ हाथों में बंदूके भी थीं, लोगों ने हरी टोपी, हरी वर्दी पहन रखी थी, ये सभी मुस्लिम लीग के संगठन मुस्लिम नेशनल गार्ड के सदस्य थे लग रहा था कि कहीं से ट्रैनिंग करके सभी आये हों धीरे-धीरे यह संख्या हज़ारों में हो गई। इस्लामिक कलेंडर के अनुसार हिजरी 1365 के रमजान महीने की सत्तरहवी तारीख थी। जिन्ना के डायरेक्ट एक्सन डे को सफल बनाने के लिए यह प्रत्येक मुसलमानों के पर्चा, जो इस प्रकार था।
मुसलमान भाइयों,
''तुम्हें याद रखना चाहिए कि रमजान के पाक महीने में ही आसमान से कुरान उतरी थी, रमजान के17वे दिन अल्लाह के नेमत से हमारे पैगम्बर ने अपने 313 मुसलमानों के साथ बद्र की लड़ाई में बहुत सारे काफिरों पर पहली जीत हासिल की थी। यह जेहाद का आगाज था, ये वही रमजान का महीना है जिसमे सिर्फ 10 हज़ार मुसलमानों ने मक्का पर फतह पाई थी और इस तरह से इस्लाम की हुकुमत की नींव डाली गई थी। लेकिन ये बदकिस्मती है कि हिंदुस्तान में हम 10 करोड़ मुसलमान होने के बाद भी हिंदुओं और अंग्रेजों के गुलाम बन गए हैं। हम लोग अल्लाह के नाम पर उसी रमजान के महीने में जिहाद शुरू करने जा रहे हैं। दुवा कीजिये कि हम मजबूत बने और इस जिहाद के लिए कुर्बानी दे। अल्लाह की मर्जी से हम हिंदुस्तान में दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामी मुल्क कायम करने में कामयाब होंगे।जो जन्नत में जाने का अरमान रखते हैं वो आगे आएं। जो सीधे हैं, परेशान हैं वो आगे आएं। जो चोर हैं, गुंडे हैं, बदकिरदार हैं और बे-नमाजी हैं वो सब भी आगे आएं। जन्नत का चमकता हुआ दरवाजा आपके लिए खुल चुका है। हम हज़ारों की तादात में उसमें दाखिल होंगे। इस हिंदुस्तान में मुसलमानों के सर पर ताज था। मूसा! सोचो फिर आज हम काफिरों के गुलाम क्यों है? काफिरों से मोहब्बत करने का अंजाम अच्छा नहीं होता। ऐ काफिर! घमंड मत कर, तुम्हारी सजा का वक्त करीब आ गया है। कत्लेआम होगा, हम हाथ में तलवार लेकर फख्र के साथ तुम पर जीत हासिल करेंगे। 'डायरेक्ट एक्सन डे' कयामत का दिन होगा।''
इस पर्चे को शहर के मेयर मुस्लिम लीग के नेता सैयद उस्मान ने छपवाया था, मुस्लिम लीग के नेताओं के बहुत ही शातिर तरीके से रमजान को बद्र की जंग जिहाद और हिंदुओं (काफिरों) से कर दिया। अब तक मैदान में दोपहर3 बजे तक करीब दो लाख मुसलमान इकट्ठा हो चुके थे।
बंगाल मुख्यमंत्री की भूमिका
जिन्ना और बंगाल के मुख्यमंत्री सुहरावर्दी दोनों वैरिस्टर थे, 1946 में सुहरावर्दी बंगाल का मुख्यमंत्री बना और उससे बेलगाम कोई हो नहीं सकता था ब्रिटिश पत्रकार लियोनार्ड मोसले ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "द लास्ट डेज ऑफ द ब्रिटिश राज" में लिखा, "सुहरावर्दी को दौलत, शराब और सुंदर औरतें बहुत अधिक पसंद थीं, लेकिन अंदर से बहुत क्रूर था। जब उस दिन सुहरावर्दी ने माइक संभाला तो भीड़ ने जिहादी नारे लगाए, उसने कहा "मैं ब्रिटिश सेना और पुलिस पर लगाम लगाने के लिए पर्याप्त हूँ। पाकिस्तान बनाने के लिए आपके पास 24 घंटे तक का समय है, इस दौरान जो चाहो कर लो"। भीड़ ने वह तांडव किया जिससे नादिरशाह और तैमूरलंग भी शर्मा जाते। लिचुबगान में उड़िया बस्ती पर हमला कर 15 मिनट में 300 हिंदुओं को मार गिराया। जिहादियों ने औरतों, बच्चों और बूढ़ो पर भी तरस नहीं खाई। ब्रिटिश पत्रकार लियोनार्ड मोसले ने क्रूर घटना का वर्णन करते हुए लिखा!
" छोटी लड़कियों और बूढ़ों को रेंगकर ऐसी जगह पर जाना पड़ा जहाँ पहले से ही गायें तैयार रखी गई थी। उनके हाथ में छुरी पकड़ा दी गई और फिर उनसे जबर्दस्ती गाय कटवाई गई, किसी भी हिंदू के लिए गो हत्या घोर पाप था।"
सुहरावर्दी की तैयारी
डायरेक्ट एक्सन डे के पहले ही मुख्यमंत्री ने कलकत्ता के सभी 24 थानों से हिंदू पुलिस अधिकारी हटा दिया था, इनमें 22 थानों में मुस्लिम पुलिस अधिकारी नियुक्त किए गए। कोलकाता में 73 प्रतिशत हिंदू और 23 प्रतिशत मुसलमान थे लेकिन मुसलमानों के सामने हिंदू लाचार थे। पूरे शहर में हिंदू संहार सुहरावर्दी के इशारे पर हो रहा था, सुहरावर्दी की योजना थी कि कोलकाता से हिन्दू जनसंख्या को कम कर दिया जाय चाहे मार कर अथवा भगाकर। वह कोलकाता को पाकिस्तान में शामिल करना चाहता था इसके लिए हिंदुओं से कलकत्ता को ख़ाली कराना यह लक्ष्य था। नरसंहार होता रहा कोई फौज कोई गाँधी नही आया ।
लेकिन पांसा पलट गया
हिन्दू अपनी जान बचाकर भाग रहे थे उनके पास कोई चारा नहीं था लड़ो अथवा मरो! तभी एक गोपाल पाठा नाम का ब्यक्ति जो बकरे के मांस बेचने का काम किया करता था और एक अखाड़ा चलाने वाला जुगलचंद घोष दोनों ने अपने बस्ती के युवकों की बैठक की ओर तय किया कि एक युवक केवल दस मुसलमानों को मरेगा बस क्या था अगले दिन कलकत्ते की सड़क पर ये युवक निकले तो उ लोगों ने बताया!
"मैंने बेसुमार लांशे देखी, हिंदुओं की लाशें। एक जगह चार ट्रक खड़े थे, सभी मे कम से कम तीन फीट ऊँचाई तक लाशें भरी हुई थी। खून टपक रहा था, इस पूरे दृश्य ने मेरे ऊपर बहुत बुरा असर डाला।"
जुगलचंद घोष ने ऐलान कर दिया कि हिंदुओ की हत्या का बदला लिया जायेगा, गोपालपाठा छोटे कद का था परंतु साहसी युवक था गोपालपाठा सबसे आगे निकल अपनी टीम के साथ जिहादियों को ठिकाने लगाने शुरू कर दिया, सुहरावर्दी की बिछाई विसात उलट गई, मुस्लिम आतंकी भागने लगे अब सुहरावर्दी क्या करते उन्हें पछतावा होने लगा मुल्ला मौलवी जो मस्जिदों में भाषण दिया करते थे कि हिंदू कायर है एक मुसलमान सौ हिंदुओं को मार सकता है अल्लाह उनके साथ है लेकिन अल्लाह की निमत भी काम नहीं आयी। सुहरावर्दी और मुस्लिम लीग को यह कल्पना नहीं थी कि हिंदू ऐसा कर सकते हैं! अब सभी बंगाली उसे हिंदुओं का रक्षक मानने लगे कुछ लोग उसे "कोलकतार रखकर्ता" यानी कलकत्ता का रखवाला कहने लगे। वैसे गोपालपाठा का नाम गोपाल मुखर्जी था लेकिन मांस की दुकान चलाने के कारण उनका नाम गोपालपाठा हो गया था। कुछ लोगों का मत था कि गोपालपाठा ने कई सौ लोगों का सफाया किया और मारे जा रहे थे तभी कायर मुस्लिम लीग नेताओं ने जो पूरे इलाके को पाकिस्तान में शामिल करने वाले किंकर्तब्य विमूढ़ हो उठे। "👍गोपालपाठा ने यह सब याद करते हुए कहा कि देश के लिए बड़ा नाजुक समय है यदि पूरा इलाका पाकिस्तान हो गया तो बड़ी मुश्किल होगी। इसलिए मैंने अपने आदमीयों को बुलाया और कहा कि अब पलटवार करने का समय आ गया है। गोपालपाठा ने इसे अपना राष्ट्रधर्म समझा। उनका कहना था कि हम आप रिक्शावालों, खोमचेवाले, औरतों और बच्चों को क्यों मारते? हमने सिर्फ उन्हीं को मारा जिन्होंने हम पर हमला किया।"
जब बिहारी जागे !
गोपालपाठा के नेतृत्व में बिहार और उत्तर प्रदेश के मजदूरों, दुकानदारों तथा अन्य लोगों को भुलाया नहीं जा सकता और जब ट्रेनों में लाशें भरी जा रही थीं उसका संदेश बिहार में पहुँचा अथवा जो बिहारी इस नरसंहार से भागकर घर आये उन्होंने जब ये समाचार बताया तो ध्यान में आया कि मुसलमान क्यों खुशियां मना रहे थे फिर क्या था ? हिंदुओं का आक्रोश देखने लायक था। तीन दिन के अंदर ही सुहरावर्दी की सारी हेकड़ी निकल गई, 18 अगस्त की रात्रि में जब वे पुलिस कंट्रोल रूम में पहुँचे तो उन्होंने देखा कि इस बार हिंदू नहीं बल्कि मुसलमानों के फोन लगातार मदद की गुहार लगा रहे हैं। यह देखकर सुहरावर्दी के होश उड़ गए। पूर्व आईपीएस अधिकारी अशोक मिश्रा का कथन है कि उस दिन ''लाल बाजार'' के पुलिस कंट्रोल रूम में सुहरावर्दी बुदबुदाते हुए खुद को बोल रहा था "उफ-- मेरे बेचारे बेगुनाह मुसलमानों।"
पटेल की प्रतिक्रिया
दिल्ली में बैठे सरदार पटेल को भी सूचना मिल गई थी कि जिन्ना और सुहरावर्दी का दांव उल्टा पड़ गया है, उन्हें इस बात का अहसास हो गया था कि दंगे समाप्त होते होते हिंदुओं ने मुस्लिम लीग के गुंडो को अच्छा सबक सिखाया है। हालांकि उन्होंने यह बात सार्बजनिक नहीं की लेकिन राजगोपालाचारी को 21 अगस्त,1946 को लिखे गए एक पत्र में उन्होंने यह अपनी भावनाएं प्रकट किया था। उन्होंने लिखा, "ये मुस्लिम लीग के लिए एक अच्छा सबक होगा, क्योंकि मैंने सुना है बहुत बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी को मौत का सामना करना पड़ा है।" कलकत्ता दंगे की आग ठंढ़ी पड़ गई थी, मरने वालों की संख्या सरकारी आकड़े के अनुसार चार हजार थी लेकिन प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार यह संख्या कहीं अधिक थी। इसमें कितने लोग मारे गए थे अनुमान लगाना मुश्किल था लेकिन अपुष्ट समाचार के अनुसार यह संख्या 25 हज़ार तक लोग मारे गए थे, इसका प्रत्यक्ष सबूत हुगली नदी में तैरती हुई लाशें थीं। कोलकाता के मेनहोल जाम हो गए थे क्योंकि इनमे लाशें ठूस दी गई थी।
कलकत्ता नरसंहार पर नेहरु -गांधी चुप
कोलकाता में इतना बड़ा नरसंहार हुआ है इससे दिल्ली में बैठे बड़े बड़े कांग्रेसी नेता कुछ कहने से बच रहे थे। ब्रिटिश पत्रकार लियोनार्ड ने लिखा कि--, "यह उम्मीद की जा रही थी कि नेहरू और जिन्ना एक साथ कोलकाता दौरा करेंगे और शांति का साझा संदेश देगें लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।" लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात गाँधी की चुप्पी थी। 16 अगस्त से19अगस्त 1946 के बीच उन्होंने मैसूर, गोवा और खादी की समस्याओं पर भाषण दिया, 'जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी' की जयंती पर संदेश दिया, लेकिन कलकत्ता के नरसंहार पर कुछ नहीं बोले। गाँधी जी का मानना था कि कलकत्ता के हिंदुओं को बदला लेने के बजाय अहिंसा का पालन करते हुए मर जाना चाहिए था। वहीं मौलाना आजाद अलग रास्ते पर थे, उन्होंने कलकत्ता दंगे पर सुहरावर्दी, जिन्ना को नहीं बल्कि नेहरू को जिम्मेदार ठहरा रहे थे। जिन्ना यह साबित करने में सफल रहे कि अगर उन्हें पाकिस्तान नहीं मिला तो देश में गृह युद्ध करा सकते हैं। लेकिन यह भी कड़वा सच था कि जिन्ना की जिद करने के कारण इन दंगों में बहुत सारे मुसलमान भी मारे गए ।
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