विभाजन की विभीषिका, नगरनौसा (बिहार) नरसंहार और नेहरू (1946)



जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन की घोषणा 

जिन्ना ने डायरेक्ट एक्सन की घोषणा की 16 अगस्त 1946 को पूरे देश में माहौल खराब होने लगा, देश की मस्जिदों में मुसलमानों का आह्वान करते हुए मुल्ला मौलवियों ने विभिन्न प्रकार के पर्चे बाटे लिखा, बद्र की लड़ाई में मुहम्मद के साथ केवल 300 लोग थे और विजय पाई थी। अल्लाह तुम्हारे साथ है जन्नत की हूरें तुम्हारा इंतजार कर रही हैं यदि कौम के काम आओगे तो जन्नत ऐसा आह्वान किया गया, मस्जिदों में भाषण किया गया कि हिंदू कायर होते हैं एक मुसलमान सौ हिंदुओं को मार सकता है। बंगाल का मुख्यमंत्री सुहरावर्दी कोलकाता को पाकिस्तान में शामिल करने की नियति से हिंदुओं पर आक्रमण किया कुछ लोग मारे जाएंगे और बड़ी संख्या में कोलकाता छोड़कर भाग जायेंगे लेकिन पांसा पलट गया और गोपालपाठा ने इसका स्वप्न ध्वस्त कर दिया। एक अनुमान के अनुसार कुल मिलाकर लगभग पच्चीस हजार लोग मारे गए मुसलमान जो सोचकर हमला किये थे उसका उल्टा हुआ गोपालपाठा के नेतृत्व में जो प्रतिकार हुआ उसमे मुसलमानों की भी बड़ी जन हानि हुई।

नोआखाली

कोलकाता से कोई चार सौ किमी दूर नोआखाली है वहाँ पर बहुत कम साधन चलता था छोटे छोटे द्वीप होने के कारण अबयवस्थित सा हो गया था। वहाँ मुस्लिम आबादी 80 प्रतिशत और हिंदू बिस प्रतिशत थे। एक और बात लेकिन हिन्दू सम्पन्न थे सारी खेती, दुकानदार विजनेस, डॉक्टर सब हिन्दू थे। लेकिन विश्व में शायद ही कहीं इतना मस्जिद और मदरसे रहे होंगे मस्जिदों में भाषण शुरू हो गया पूरे भारत का इस्लामीकरण करके विश्व का सबसे बड़ा इस्लामी मुल्क बनाना है, अल्लाह का यही आदेश है जिसे प्रत्येक मुसलमानों को मनाना उसका कर्तब्य है। कोलकाता के नरसंहार में लोगों का कत्ल किया गया था, लेकिन नोआखाली योजना कुछ और थी। जस्टिस खोसला के मुताबिक, "नोआखाली के मुसलमानों का लक्ष्य हिंदुओं को आतंकित करना, औरतों को बेज्जत करना, उनके मूर्तियों, मंदिरों को अपवित्र करना और उनका धर्म परिवर्तन कराके मुसलमान बनाना था।" इस प्रकार उन्होंने चतखिल, रामपुर और देसबेरिया गांव के हिन्दुओं को मुसलमान बना दिया। बंगाल के गवर्नर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा,  "पहले हिन्दुओं को कलमा पढ़वाया जाता और फिर गाय का मांस खिलाया जाता था। इसके बाद महिलाओं के शरीर से सभी हिंदू धर्म के चिन्ह जैसे सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां को हटा दिया जाता था। इसके बाद पुरुषों को लूंगी और जालीदार टोपी पहनने का हुक्म दिया जाता। इसके बाद हिंदू नामों को बदलकर मुस्लिम नाम दिया जाता और उन्हें बाकायदा रजिस्टर में दर्ज किया जाता था, इन पर कई दिनों तक नजर रखी जाती थी कि ये लोग रोज पांचों वक्त की नमाज पढ़ते हैं कि नहीं और गोमांस खा रहे हैं या नहीं।"

बंगाल के रिसर्चर "शांतनु सिंघा" ने जो खिस्सा नोआखाली-नोआखाली में दर्ज किया है, उससे दर्दनाक कहानी और कोई हो ही नहीं सकती। जिसमें एक हिंदू नवजवान को पहले तो जबरन मुसलमान बनना पड़ा और फिर अपनी चचेरी बहन को बचाने के लिए उसे उसके साथ शादी करनी पड़ी। उस नव जवान ने बताया-- "गाँव के मुस्लिम लीग का अध्यक्ष मेरी बहन से शादी करना चाहता था जिसकी उम्र 60 वर्ष थी मैने मौलबी से अपनी चचेरी बहन से शादी करने को कहा तो वह किसी तरह मान गया मैंने शादी का नाटक किया। बाद में जाकर सेना ने हमे उनसे मुक्त कराया।"

नोआखाली की आग बिहार में

गाँधी नोआखाली पहुचते उससे पहले उसकी आग बिहार में पहुँच गई थी बिहार में यह आग 16 अगस्त 1946 से ही सुलग रही थी जब से कलकत्ता में हिंदुओं का भीषण नरसंहार हुआ था। बिहार के बड़ी संख्या में मजदूर व अन्य लोग बिहार आ रहे थे और उन्होंने इस घटना को जन जन तक पहुचा दिया। घटना का परिणाम यह हुआ कि 24 तारीख को दीपावली थी हिन्दुओं ने त्योहार नहीं मनाने का निर्णय लिया लेकिन छपरा के स्थानीय मुस्लिम नेता ने खुशियां मनाने का आह्वान किया। ऐसे में छपरा के मुसलमानों ने दीपावली पर खुशियां मनाई, परिणामस्वरूप अगले दिन 25 अक्टूबर को शहर में दंगा भड़क गया। मुसलमानों पर हमले के लगभग पचास बरदाते हुई और पुलिस ने तीन जगहों पर गोलियां चलाई। जस्टिस खोसला के अनुसार, मुंगेर के जमालपुर में काली पूजा के अवसर पर हिंदुओं के जुलूस पर ईटा पत्थर फेंके गए। देखते ही देखते भागलपुर, पटना, जहानाबाद, गया, मुज़फ्फरपुर, नालंदा तक फैल गया। हालात बिगड़ते देख कांग्रेस सरकार ने दंगाई इलाको में गोरखा रायफल, पंजाब रेजिमेंट, मद्रास रेजिमेंट तथा डोगरा रेजिमेंट इत्यादि उतार दिया। 

नेहरू का क्रोध

1947 में प्रकाशित हुई किताब 'वाट आई सा इन बिहार' में बिहार के दंगों का आँखों देखा हाल लिखा गया है, जिसमे एक हादसा का हरदास ने उल्लेख किया है,  "एक बार जब एक हिंदू ने नेहरू से सवाल पूछा तो उसे मारने के लिए दौड़े। नेहरू की लात खाने की डर से वह भागते हुए नदी में कूद गया, उतावले नेहरू ने भी पीछा करते हुए नदी में छलांग लगा दी और तैरना शुरू कर दिया। किनारे खड़े हज़ारों हिंदू और पुलिस अधिकारी इस हास्यास्पद दृश्य को क्रोध और अपमान के साथ देख रहे थे।" 

नगरनौसा में नरसंहार

नेहरू अब अपने को धर्मनिरपेक्ष अवतार के दर्शन करवाने के लिए देशवासियों पर हवाई हमले की धमकी दी उन्होंने गया की एक जनसभा में कहा कि "सरकार की तरफ से शांति बहाल करने के लिए कड़े कदम उठाया जाएगा। यदि जबाबी कार्यवाही बंद नहीं होती है तो हवाई बमबारी का सहारा लिया जाएगा। सरकार किसी भी कीमत पर शांति व्यवस्था बनाये रखेगी।" नेहरू ने बिहार के कई स्थानों पर भाषण दिया, उन्होंने कलकत्ता, नोआखाली दंगे यानी हिन्दुओं के नरसंहार पर कुछ नहीं बोले, बस केवल हिंदुओं के खिलाफ बोलते रहे। अब यह बर्दास्त के बाहर हो गया था। पटना विश्वविद्यालय की सभा में तो उनके ऊपर हमला हो गया उनकी टोपी, कुर्ता सब फट गया था। लेकिन अब वे मानने वाले नहीं थे जहानाबाद के मथुरा सिंह और लोहगढ़ के महंत ने मोर्चा सम्हाला था नेहरु जी ने हेलीकॉप्टर से फायरिंग करवाई। अब यह साबित हो गया था कि नेहरू केवल हिंदू समाज का विरोधी नहीं बल्कि बिहार के कट्टर दुश्मन जैसा व्यवहार कर रहे थे।

पटना से 40 किमी दूर नगरनौसा कस्बा है नेहरू ने जब सैनिक कार्यवाही की धमकी दी, हवाई बमबारी की धमकी दी तो फौज और सिपाहियों के हैसले बुलंद हो गए, पुलिस चारो तरफ गोली चला रही थी। नगरनौसा गांव में जो हुआ वह देश के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था। 5 नवंबर 1946 को मद्रास रेजीमेंट ने हिंदुओं की उत्तेजित भीड़ पर गोली चलाना शुरू कर दिया जिसमें सैकड़ों हिन्दू मारे गए। इस घटना के पश्चात पूरे बिहार में जबरदस्त आक्रोश फैल गया था। कुछ लोगों का मत था कि नोआखाली और कलकत्ता का नरसंहार को इस सँहार ने पीछे छोड़ दिया। मृतकों की संख्या हज़ार से अधिक थी लेकिन नेहरू 50 से 60 से अधिक मानने से इंकार कर दिया। 5नवंबर की रात्रि में नेहरू ने अपने बेहद करीबी पद्मजा नायडू को पटना से एक पत्र लिखा, ऐसा कहा जाता है कि नेहरु जी और पद्मजा नायडू के बीच बड़े कोमल रिश्ते थे। 

उस रात नेहरु जी ने पद्मजा को पत्र लिखा;

माई डियर,

"आज शाम को मैं भागलपुर से हवाई मार्ग से लौटा। आने पर मुझे पता चला कि सेना ने यहां से कुछ मिल दूर ग्रामीण इलाकों में किसानों की भीड़ पर गोलियां चलाई, जिसमें कोई 400 लोग मारे गए। आम तौर पर इस तरह की खबर ने मुझे डरा दिया होता, लेकिन क्या तुम इस बात पर विस्वास करोगी कि यह सुनकर मुझे बहुत राहत मिली। शायद इसलिए क्योंकि हम परिस्थितियों के साथ बदल जाते हैं। ताजा अनुभव और भावना की परतें हमारी पुरानी सोच को ढक लेती है।" इस पत्र के अनुसार नेहरु खुद मानरहे हैं कि चार सौ लोग मारे गए हैं। नेहरु बिहार के मुख्यमंत्री पर दबाव बना रहे थे कि वह सफ़ाई दे कि नेहरु ने फायरिंग का आदेश नहीं दिया। लेकिन नेहरू का हिंदू विरोधी बिहार विरोधी चेहरा सबके सामने आ ही गया।


नगरनौसा संहार और रामधारी सिंह दिनकर

नेहरु जी के बेहद करीबी प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर जिनको नेहरू ने 1952 में राज्यसभा का सदस्य बनाया, उन्होंने अपनी पुस्तक 'लोकदेव नेहरू' में नगरनौसा घटना का वर्णन किया है जो इस प्रकार है!

"1946 में जब बिहार में साम्प्रदायिक दंगे शुरू हुए तो पंडित नेहरू पटना आये थे। वह ज्यादातर अपनी ही देखरेख में फौजियों से काम लिया। एक दिन नगरनौसा नाम के एक गांव में फौजियों ने सैकड़ों हिंदुओं को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया। इस समाचार से पटना में बड़ी नाराजगी फैल गई। शाम को जब पंडित जी नवजवानों के बीच भाषण देने हेतु सीनेट हाल में पहुंचे थे कि लड़को ने उनका कुर्ता फाड़ डाला और उनकी टोपी उड़ा दिया।"

दिनकर जी ने यह भी लिखा कि फायरिंग से लोग इतना नाराज थे कि उन्होंने पटना 'सीनेट हाल' में विद्यार्थियों ने  नेहरु जी पर हमला बोल दिया था। वह तो भला हो जयप्रकाश नारायण का कि उन्होंने नेहरु को भीड़ के चंगुल से छुड़ाया और फिर जैसे तैसे उस दिन सभा हुई। बिहार के हिंदुओं के प्रति गाँधी का नफरत था कि उन्होंने बिहारियों को पापी कहा लेकिन कलकत्ता और नोआखाली के हिंदू समाज की हत्यारों को कुछ नहीं बोला। उल्लेखनीय है कि नेहरु, पटेल और मौलाना आजाद बिहार का दौरा तो किया लेकिन ये सब लोग कोई नोआखाली नहीं गए।

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