भारतीय सत्ता का केंद्र मेवाड़
मेवाड़ राज्य की सीमाओं का विस्तार इसी काल में हुआ और भारतीय हिंदू राजाओं ने अपना नेतृत्व भी महाराणा सांगा को सौंपा ही नहीं बल्कि अपने नायक के रूप में मेवाड़ का नेतृत्व स्वीकर किया। खानवा युद्ध में सामिल राजा महराजा इसके प्रमाण हैं। मेवाड़ का इतिहास अगर देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि राणा सांगा जैसे अद्भुत ब्यक्तित्व का धनी और कोई नहीं है। शायद ही कोई ऐसा वीर, बहादुर शासक हुआ, जिसके शरीर पर अस्सी घाव (एक हाथ, एक पांव, और एक आँख न रहे और पूरा शरीर घावों से छलनी) हो फिर भी उसने राजसिंहासन पर बैठने के पश्चात निरंतर युद्ध लड़ा हो। विश्व प्रसिद्ध "खानवा युद्ध" इन्हीं युद्धों में से एक है। यह राणा सांगा ही थे, जिन्होंने उत्तर पश्चिम से प्रवेश करती मुगल सेनाओं व दिल्ली के सुल्तानों से भारत को बचाने के लिए निरंतर संघर्ष किया। सुप्रसिद्ध इतिहासकार गौरीशंकर ओझा ने ठीक ही लिखा है कि, "महाराणा सांगा वीर, उदार, कृतज्ञ, बुद्धिमान और न्याय परक शासक थे। अपने शत्रु को कैद कर छोड़ देना और उसे उसका राज्य वापस कर देना सांगा जैसे उदार शासक और वीर योद्धा का ही कार्य था।" ओझा आगे लिखते हैं कि वह सच्चे क्षत्रिय थे, उन्होंने कितने शहजादे, राजाओं आदि को अपने शरण में आने के बाद अच्छे से रखा और आवस्यकता पड़ने पर उनके लिए युद्ध भी किया, राणा सांगा ऐसे ही थे। निश्चित ही उनके ब्यक्तित्व की विशेषता हम सब भारतीयों के लिए गर्व का विषय है।
राजपुत्रों का संघर्ष
राणा सांगा तीन भाई थे जिसमें पृथ्वीराज सबसे बड़ा, छोटा कुमार जयमल और मझला भाई संग्राम थे लेकिन तीनों भाइयों में सबसे योग्य संग्राम सिंह थे कुमार पृथ्वीराज को लगता था कि पिता महाराणा रायमल का स्नेह सर्वाधिक संग्राम को हैं कहीं ऐसा न हो कि राजसिंहासन संग्राम को मिल जाये। लेकिन संग्राम सिंह के मन में भाइयों के प्रति बड़ा प्रेम था वे कभी राजसिंहासन के लिए आग्रही नहीं थे। लेकिन एक चचेरे चाचा सूरजमल यह षड्यंत्र रचा, पृथ्वीराज के मन में खोट था वह सूरजमल के बहकावे में आ गया, तीनों भाइयों में गद्दी को लेकर संघर्ष हो सकता है लेकिन वे कोई भाई राजद्रोही नहीं थे और दोनों भाई शिकार खेलने गए थे दोनों को प्यास लगी। बात बात में पृथ्वीराज ने संग्राम से कहा "तुम्हारे कारण मेरे राजा बनने में बाधा न आ रही होती तो मैं इन गरीब वनवासियों का उद्धार कर देता।झाड़ियों को काटकर समतल कर देता।" संग्राम ने उत्तर दिया "मेरे कारण कोई बाधा नहीं आएगी भ्राताश्री!" लेकिन एकाएक पृथ्वीराज ने तलवार से संग्राम पर प्रहार कर बोला "आज हर उस बाधा को दूर कर दूँगा जो मेरे अधिकार का हनन करेगा।" संग्राम हक्का बक्का होकर बोला भ्राता श्री ये क्या कह रहे हैं? पृथ्वीराज ने तलवार से वॉर किया संग्राम को घाव लगा वे सम्हलते की उनकी आँख में तलवार घुसा दिया लेकिन तब तक वे अपनी तलवार निकाल नहीं सके थे उन्होंने एक मुट्ठी बालू पृथ्वीराज की आखों में झोंक दिया और पीछे की ओर भागे।
श्रीनगर रियासत में संग्राम सिंह
संग्राम भागते भागते ''सेवंतरी गांव'' के ''चतुर्भुज नारायण मंदिर'' में पहुंचे ही थे कि मेवाड़ के सामन्त 'जैतमलोट' जो सपरिवार दर्शन के लिए पहुँचे थे, वे कुँवर संग्राम को पहचानते थे। अरे ये तो राजकुमार संग्राम सिंह हैं, सरदार जैतमलोट दौड़कर संग्राम सिंह के पास पहुंचे और उन्हें सम्हाला, कुमार मैं राठौड़ बींदा जैतमलोट.. आपकी यह दशा किसने किया, अब आप सुरक्षित हैं! तभी वे मूर्छित हो कर गिर गए। राठौड़ जोर से चिल्लाया "इन्हें हमारे शिबिर में पहुचाओ।" कुमार की मुर्छा टूटी! संग्राम सिंह मुझे पहचाना मैं आपका सेवक..! संग्राम सिंह अब एक सैनिक के रूप में श्रीनगर नामक रियासत में कार्य करने लगे, एक दिन राजा 'राव करमचंद सिंह' ने कहा कुँवर सिंह को मेरे पास लाया जाय! उन्होंने उपस्थित हो सबका अभिवादन किया, राजा ने कहा "कुँवर यह सिद्ध हो गया कि तुम एक वीर पुरूष हो। तुम्हारी दक्षता और युद्ध कला विशेष है। लेकिन इस योग्यता का श्रीनगर को कोई लाभ हो, "महराज मैं आपका सैनिक हूँ मेरा कार्य आपके आदेश का पालन करना है हमे आदेश करें और हमारी निष्ठा देखें, सांगा को राजा ने अपनी सेना का प्रशिक्षक बना दिया। एक दिन राजा ने प्रसंशा करते हुए कहा "तुम वीर ही नहीं नीतिवान भी हो। राव करमचंद दिनोंदिन सांगा की वीरता, निष्ठा और कर्तब्यपरायणता से परिचित होते हुए उनका स्नेह बढ़ता गया। "वह कौन सी शुभ घड़ी थी जब कुँवर सिंह ने हमारी रियासत में कदम रखा राव कर्मचंद भावविभोर होकर कहते थे, हमारी सेना अपराजेय हो गई है, प्रजा प्रसन्न है, निर्भय है, सीमाएं सुरक्षित हैं।" राव कर्मचंद के राज ज्योतिषी का कहना था कि कुँवर किसी उच्च कुलीन वंश का छद्मवेशी सैनिक कोई राजपुत्र है।" राजा ने कई स्थानों पर पता लगाने का प्रयास किया। एक दिन राजा ने कुँवर सिंह को बुला विनोद स्वर में बोले, ऐसी निष्ठा साधारण पुरूष में मिलना मुश्किल है, तुम अपने विषय में कुछ छुपा रहे हो! "महाराज मेरे विषय में जानकर आप क्या करेंगे? नहीं कुँवर अब नहीं राजा विनम्रता पूर्वक बोले तुम इसे हमारी प्रार्थना समझो अथवा आज्ञा! जबतक तुम अपना परिचय नही देते तबतक मैं भोजन नहीं करूंगा।" यह बात सुनकर सांगा आहत हो गए, और हां हम बचन देते हैं कि यदि तुम नहीं चाहोगे तो तुम्हारा परिचय हम तक ही रहेगा। राव कर्मचंद उत्सुकता से बैठ गए, सांगा ने कहा, महाराज मैं राजपूताने की सबसे महान रियासत भारतीय सत्ता का केंद्र मेवाड़ के महाराणा कुम्भा का पौत्र, महाराणा रायमल का पुत्र कुँवर संग्राम सिंह.! राव अपने स्थान पर खड़े हो गए कुँवर सांगा, अहा मेरे सौभाग्य. पर कुमार इस दशा में! मेवाड़ का राजपुत्र इस साधारण वेश में, एक तुच्छ सैनिक के रूप में! राव कर्मचंद को बड़ी ग्लानि हुई उन्होंने विनती की कि कुमार मुझे उऋण करिये। इस पर सांगा ने कहा कि आप आदेश कर सकते हैं मैं तो आपका सैनिक हूँ इस पर राव ने कहा आदेश ही समझ कर मैं अपने सैनिक को आदेश देता हूँ कि वह श्रीनगर की राजकुमारी से विवाह करे! यही मेरा आदेश है। कुमार सांगा की आँखे डबडबा आयी राव ने संग्राम सिंह को अपने गले लगा लिया।
मेवाड़ नवीन परिस्थिति में
कुमार पृथ्वीराज जो मेवाड़ के राणा नियुक्त कर दिये गए थे और वे षणयंत्र के शिकार हो गए उन्होंने वीरता पूर्वक मेवाड़ की सीमा बढ़ाई थी। जब यह समाचार राणा सांगा ने सुना तो बड़े भाव-विहबल हो उठे गुप्तचर भेजकर मेवाड़ के समाचार लिया और उन्होंने कहा कि धन और सत्ता मुझे स्वीकार नहीं। "तुम महान हो कुँवर साधारण मनुष्य इतनी मूढ़ बात सोच भी नहीं सकता। मेवाड़ का महाराणा कोई तुम जैसा वीर, धीर गम्भीर और सत्पुरुष ही होना चाहिए। आज जब भारतवर्ष में अफगानों, तुर्कों और अन्य विदेशी शासकों ने जड़े जमा ली हैं, अब हमें किसी ऐसे राजपूत नेतृत्व की आवश्यकता है जो आर्य शासन की पुनर्स्थापना कर सके।" यह सब गुण राणा सांगा में है यह बात राव कर्मचन्द ने कहा, तुम धन्य हो, वह जननी धन्य है जिसने तुम्हारे जैसे सत्पुरुष को जन्म दिया जिसकी तलवार चाहे तो पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक राजपूती साम्राज्य का डंका बजा सकती है ऐसे शत्रु भंजन वीर मेरा शत शत प्रणाम! और राव ने मेवाड़ जाने के लिए प्रेरित किया।
राणा सांगा बने महाराणा
मेवाड़ के बिपत्ति का समय है ऐसे में यह हो नहीं सकता कि सांगा मेवाड़ न जाय और वहाँ का ही नहीं तो सम्पूर्ण भारत का नेतृत्व करना है इस समय भारतीय स्वाभिमान और भारतीय सत्ता का केंद्र भी मेवाड़ था। महाराणा रायमल को यह विस्वास नहीं था कि मेरा पुत्र राणा सांगा जिंदा है, तभी सांगा ने महाराणा के पैर छुये रायमल चिल्लाये सांगा मेरा बेटा--! और 4मई 1509 को राणा सांगा का राजतिलक हुआ और वे सिंहासन पर बैठे उस समय उनकी आयु 27वर्ष थी। उन्होंने चित्तौड़ वासियों को संबोधित करते हुए कहा, "मेरे प्रिय मेवाड़ वासियों!" जीवन में सुख और दुःख का आवागमन लगा ही रहता है, इसी संघर्ष का नाम जीवन है। विधाता ने मेवाड़ को भी अनेक सुख और दुःख से आच्छादित किया है। समय समय पर इस राजकुल को गंभीर आघात लगे हैं, परंतु ये सब जीवन का एक हिस्सा है। राणा कुल आपकी सेवा में सदैव लगा रहेगा। मेरे अग्रज पृथ्वीराज ने मेवाड़ की यश पताका चारो ओर फैला दी है और अब मेरा दायित्व है कि उनके कार्यों को आगे बढ़ाऊ, मैं आपको विस्वास दिलाता हूं कि आपकी और मेवाड़ की सेवा में प्राण भी चले जाय तो मैं पीछे नहीं हटूंगा, मेरी तलवार आप सबकी रक्षक बनेगी।"
"राजकुमार संग्राम सिंह की जय!"
संघर्ष से सोना जैसा निखार
यह सर्वविदित है कि संकटो में पले बढ़े होने के कारण सांगा निडर, साहसी, वीर और एक अच्छे योद्धा वन गए, स्मरण रहे कि सांगा को महाराणा बनने के लिए अपने ही दो भाइयों से न चाहते हुए भी संघर्ष करना पड़ा था। लेकिन महाराणा बनने के पश्चात उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, वे सबके थे सब उनके थे। इस नीति ने सांगा को बहुत लोकप्रिय और शक्तिशाली बनाया, जिसके फलस्वरूप वे एक के बाद एक सफलता प्राप्त करते गए। कुछ ही दिनों में वे देश के एक सर्वशक्तिशाली हिंदू राजा बन गए, अब मेवाड़ एक विशाल साम्राज्य का रूप ले चुका था। राजपूताने के लगभग सभी राजाओं ने उनकी आधीनता स्वीकार कर लिया था अथवा मित्रता के कारण उनके ध्वज के नीचे आ चुके थे। यह नजारा जब बाबर ने खानवा युद्ध में देखा तो हतप्रभ रह गया, कुछ इतिहासकार बहुत ठीक ही लिखते हैं कि राणा सांगा भारतवर्ष के अंतिम हिंदू राजा थे। जिनके सेनापतित्व में सब राजपूत जातियाँ विदेशियों (तुर्कों, मुगलों) को भारत से निकालने के लिए एकजुट हुई। स्वयं बाबर लिखता है, "राणा सांगा अपनी वीरता और तलवार के बल से बहुत बड़ा हो गया था।" यही कारण है कि खानवा युद्ध की पराजय ने भी उनके शौर्य और पराक्रम से भरे ब्यक्तित्व की आभा को कम नहीं कर सकी। उनकी इस महानता को ध्याम में रखते हुए स्वयं बाबर ने युद्ध के पूर्व कहा था कि राणा सांगा के विरुद्ध युद्ध करना साँप के बिल में हाथ डालने के बराबर है। बाबर के इस मनोदशा को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि बाबर कितनी सतर्कता से युद्ध मैदान में उतरा होगा! ठीक इसके विपरीत राणा सांगा लगातार बहुत सारे युद्धों में सफलताओं के कारण निश्चिंत थे और बाबर को हल्के में लिया, जिसके कारण उन्हें पराजय का मुख देखना पड़ा। उल्लेखनीय है कि इस पराजय ने भी बाबर को मेवाड़ की जनता ने नकारते हुए संघर्ष का रास्ता अपनाया।
भारतीय सितारे राणा सांगा
यह क्रूर कृत्य राणा सांगा के साथ विस्वासघात नहीं बल्कि भारतवर्ष के साथ घात हुआ! जिसने मुगल साम्राज्य की स्थापना के मार्ग का हिमालय जैसा प्रतिरोध हटा दिया। 21वर्ष, 5माह और 9दिन के अपने शासन काल में मेवाड़ को उन्नति और शौर्य के शिखर पर ले जाने वाले महान महाराणा सांगा 46 वर्ष की आयु में ही स्वर्ग सिधार गए। निश्चय ही वे अपने अप्रतिम पराक्रम से इतिहास में अपने नाम का एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ गए। महाराणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1484 को हुआ था सिसौदिया वंश में रायमल के पुत्र के रूप में हुआ था और उनकी मृत्यु 30 जानवरी 1528 को युद्ध के मैदान में धोखे से विष देकर हत्या की गई।
वे भारतीय सितारे थे और आज भी हैं, ये सांगा ही थे जिन्होंने मुगलों को भारतीय शक्ति और सौर्य का परिचय कराया, आगे चलकर अकबर को भी मेवाड़ के शौर्य, संघर्ष और स्वाभिमान के आगे झुकने को मजबूर होना पड़ा। इसमें कोई संदेह नहीं कि राणा सांगा इतिहास की एक अमर विभूति के रूप में जाने जाएंगे।
सांगा के पश्चात सांगा का खून
सांगा के बाद उनके जेष्ठ पुत्र रतनसिंह एवं उनसे छोटे भाई ''विक्रमादित्य'' व उदयसिंह महाराणा बनेपर मेवाड़ को वह गौरव न प्राप्त हुआ। राजस्थान के जो क्षेत्र मेवाड़ के झंडे तले थे धीरे धीरे बाबर, हुमायूं और अकबर के साथ चले गए इससे मेवाड़ पर बुरा प्रभाव पड़ा। लेकिन एक उल्लेखनीय बात यह है कि यहां के लोगों के मूल स्वभाव में कोई फर्क नहीं पड़ा, महाराणा उदयसिंह के बाद जब ''महाराणा प्रताप'' ने मुगलों से संघर्ष का बीड़ा उठाया तो चारों ओर वही बलिदानी हवा चल पड़ी।
3 टिप्पणियाँ
किसी भी साहसी शासक से सीधा लङने की हिम्मत नही होने पर धोखे का इस्तेमाल इनकी कायरता का प्रतीक ही है।
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायक!
जवाब देंहटाएंअद्भुत जानकारी प्राप्त huaa
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