" 20 नवम्बर, 1659 ई. - अफजल खां का वध"
अफजल खान की सौगंध
शिवाजी महराज और अफजल खां की भेट
अफ़ज़ल खां के डेरे के निकट जाने के बाद शिवाजी महाराज ने संदेशा भिजवाकर कहलवाया कि "भेंट की जगह से सैयद बांदा को हटाना होगा।" फिर वैसा ही किया गया। शिवाजी महाराज भीतर गए, जहां दोनों पक्षों के 4-4 लोग थे। खुद नेता, 2-2 शरीर रक्षक और 1-1 ब्राम्हण दूत। जब दोनों पक्षों में मुलाकात हुई, तब शिवाजी महाराज दिखने में शस्त्रहीन लग रहे थे, परन्तु अफ़ज़ल खां ने तलवार लटका रखी थी। शामियाने के बीच में चबूतरे के ऊपर अफ़ज़ल खां बैठा था। शिवाजी महाराज चबूतरे पर चढ़े। शिवाजी महाराज का कद अफ़ज़ल खां के कंधे तक ही पहुंचता था।
और अफजल खां का वध
जब गले मिलने का वक्त आया तो अफजल खां ने बाएं हाथ से शिवाजी महाराज का गला जोर से दबाया और दाहिने हाथ से कटार निकालकर शिवाजी महाराज की बाई बगल में भोंक दी, लेकिन शिवाजी महाराज ने पहले ही अन्दर एक कवच पहन रखा था, जिससे अफजल खां का वार खाली गया। शिवाजी महाराज ने बाघनखा से उसकी आँतें चीर डालीं और दूसरे हाथ से बिछवा निकालकर अफजल खां की बगल में घोंप दिया। अफ़ज़ल खां कराह उठा और चिल्लाकर कहने लगा कि "मार डाला, मार डाला, मुझको धोखा देकर मार डाला"। शिवाजी महाराज मंच से कूदकर अपने आदमियों की तरफ दौड़े। तभी सैयद बांदा ने हमला कर शिवाजी महाराज के तुरबन (पगड़ी) के 2 टुकड़े कर दिए। शिवाजी महाराज ने पहले ही पगड़ी के भीतर लोहे की एक टोपी पहन रखी थी, इसलिए सिर में घाव नहीं लगा। इतने में जीव महाला ने सैयद बांदा का एक हाथ काट दिया और अगले ही वार में सैयद बांदा का सिर धड़ से अलग हो गया। अफजल खां के आदमियों ने जख्मी अफजल खां को पालकी में बिठाया और ले जाने लगे, लेकिन शम्भूजी कावजी ने अनुचरों के पैरों पर चोट करके पालकी गिरा दी और अफजल खां का सिर काटकर शिवाजी महाराज के पास हाजिर हुए। शिवाजी महाराज ने प्रतापगढ़ किले में जाकर तोप चलाकर अपने सैनिकों को संकेत दिया, जिससे मोरो त्रिम्बक और नेताजी पालकर ने हजारों की फौज समेत बीजापुर की फौज को घेर लिया।
और सबसे बड़ी विजय
बीजापुरी फौज के बहुत सारे ऊँट, हाथी व 3000 सैनिक कत्ल हुए। शिवाजी महाराज की सेना ने 65 हाथी, 4000 घोड़े, कई ऊँट, 2000 कपड़ों के गट्ठर, 10 लाख का धन और जेवर छीन लिए। अफजल खां के 2 बेटे, 2 मददगार मराठा ज़मीदार और एक बड़े ओहदे के सिपहसलार कैद हुए। अफ़ज़ल खां की अन्य स्त्रियां और उसका बड़ा बेटा फ़ज़ल खां भागने में सफल रहे। ये शिवाजी महाराज की अब तक की सबसे बड़ी विजय थी और इस विजय ने समूचे भारतवर्ष में शिवाजी महाराज का रुतबा फैला दिया। उन्होंने विजेताओं और वीरगति को प्राप्त होने वाले सैनिकों के परिवार वालों को धन, इनाम आदि दिए।
ऐसे थे क्षत्रपति शिवाजी महराज ! बुद्धिमान, विवेकशील और उच्चकोटि के सेनापति शत्रु के साथ कब और कैसा ब्यवहार करना ! जो नीव उन्होंने हिन्दू पद्पद्शाही की रखा वह उनके उद्देश्यों की पूर्ति बाजीराव पेशवा तृतीय ने अटक से कटक कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिन्दू पद्पद्शाही का विस्तार कर भगवा ध्वज फहराने का काम किया !
1 टिप्पणियाँ
हमारे वीर शुरू शिवाजी महाराज इतने कुशल नेतृत्व के धनी व्यक्तित्व के धन और एक लिंगी का आशीर्वाद अद्भुत अद्वितीय शोर साहस के प्रतीक थे ऐसे महान योद्धा को सादर प्रणाम जय भारत माता की
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