शिवाजी की दूरदर्शिता
19फ़रवरी 1630 को एक ऐसे महापुरुष का जन्म हुआ जिसने भारत के विचार की दिशा और दशा दोनों बदल दिया जिसने लम्बे समय के पश्चात् भारत में आत्मविश्वास पैदा किया जिसका नाम था हिन्दवी साम्राज्य के संस्थापक क्षत्रपति शिवाजी महराज। सत्रहवीं शताब्दी का समय था जब यूरोपीय, पुर्तगाली, डच अपने व्यवसायिक उद्देश्य से पश्चिमी भारत के समुद्र तट पर अपना -अपना कब्ज़ा करने का प्रयत्न कर रहे थे। उसी समय क्षत्रपति शिवाजी महराज ने नौसेना के गठन का निर्णय किया जो आज की भारत की सशक्त नौसेना (नेवी) की नीव कह सकते हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार यदुनाथ सरकार ने ठीक ही कहा था कि क्षत्रपति शिवाजी महराज के अंदर जन्मजात दूरदर्शी नेतृत्व कर्ता थे यह समझने के लिए उनके द्वारा स्थापित नौसेना एवं नौसैनिक अड्डे से अधिक बेहतर उदाहरण और दूसरा क्या हो सकता है।
सैकड़ो नौकाओ से बनाई सेना
वास्तव में शिवाजी महराज ने अपने किशोरावस्था में मुगल और आदिलशाही सल्तनतें अपना -अपना विस्तार कर रहीं थीं, उनके सारे युद्ध जमीन पर लड़े जाते थे। इसलिए इनमें से किसी का ध्यान भारत के तीन दिशाओ से घेरे विशाल समुद्र की ओर नहीं था। लेकिन कोकड़ की समुद्री पट्टी के किनारे -किनारे कभी मुगलों तो कभी आदिलशाही सल्तनत से विभिन्न युद्ध लड़ते हुए क्षत्रपति शिवाजी महराज का ध्यान इस तट की ओर गया। तो उन्होंने नौसेना बनाने का फैसला किया और 1654 में पहला मराठा युद्धपोत बनकर तैयार हो गया। इतिहासकारों का कहना है कि उनकी दो टुकड़ियों में छोटे -बड़े मिलाकर लगभग साढ़े पांच सौ नौकायें एवं युद्धपोत हुआ करते थे।
विदेशी जहाजों से भी कर वसूले
क्षत्रपति शिवाजी महराज एवं संभाजी महराज दोनों के कार्यकाल इस कार्य में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका उनके नौसेना प्रमुख कांन्होजी आंग्रे ने निभाई। कांन्होजी आंग्रे के नेतृत्व में मराठा साम्राज्य की नौसेना इतनी सक्रिय एवं मजबूत थी कि मराठा पश्चिमी तट पर आने वाले ईस्ट इंडिया कंपनी, पुर्तगाली एवं डच जहाजों से बाकायदा कर की वसूली भी करते थे। सूरत से लेकर कोकड़ सायन्तवाड़ी तक मराठा नौसैनिकों का राज चलता था। एक बार तो मराठा सैनिकों ने ईस्ट इंडिया कंपनी की एक जहाज पर कब्ज़ा कर लिया था। यही कारण था कि क्षत्रपति शिवाजी महराज के राज्यारोहड़ के समय पुर्तगालियों ने अपने दूतों के जरिये तमाम उपहार भेजकर मराठा साम्राज्य के साथ सन्धि पर हस्ताक्षर किये थे।
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