मौलाना अबुल कलाम आजाद के 27 अक्तूबर 1914 को कलकत्ता में दिए गए भाषण के कुछ अंश
"य़ह (मुस्लिम) बिरादरी अल्लाह द्वारा स्थापित की गयी है•••सारे दुनियावी सम्बंध खत्म हो सकते हैं पर य़ह (मुस्लमान का मुस्लमान से) सम्बंध अटूट है। एक पिता अपने पुत्र के खिलाफ जा सकता है, एक माता अपने बच्चे को अपनी गोदी से अलग कर सकती है,भाई अपने भाई का दुश्मन हो सकता है •••किन्तु एक चीनी मुस्लमान का अफ्रीकी मुस्लमान से, एक अरब के रेगिस्तान में रहने वाले खानाबदोश का तातार चरवाहे और एक भारत के नए मुस्लमान का मक्का (के शुद्ध रक्त) के कुरेशी से जो सम्बंध है उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं तोड़ सकती।"
जब यह भाषण दिया गया था उस समय
प्रथम विश्व युद्ध प्रारंभ होने से, जिसमें तुर्की जर्मनी के गुट के पक्ष मे युद्ध में सम्मिलित हुआ था।
तुर्की के खलीफा के साम्राज्य के लिए खतरा पैदा हो गया था। मौलाना ने आगे कहा "यदि यह सच है कि इस्लाम के दिल को चीरने के लिये तलवार पर सान दी जा रही है तो हमे उसके लिए ढाल तैयार करने मे कोई झिझक नहीं होनी चाहिए। ईसा मसीह की पूजा और अल्लाह की पूजा में प्राचीन काल से चली आ रही दुश्मनी है इसलिए यह ईसाइयों का नया षडयंत्र नहीं है और इसलिए बहुदेव वादियों के हमले से रक्षा के लिए तौहीद (इस्लामी एकेश्वरवाद) के अनुयायियों का एकजुट होना नयी युद्धनीति नहीं है।"
उन्होंने वैश्वीक इस्लाम की धारणा को अभिव्यक्ति देते हुए कहा "यदि मुसलमानों के मन मे इस्लाम का लेशमात्र भी शेष है तो में कहूँगा कि यदि युद्ध के मैदान में एक तुर्क के पैर में कांटा भी चुभता है तो में अल्लाह की कसम खा कर कहता हूं कि वह हिंदुस्तान का मुस्लमान कहलाने काबिल नहीं है जो पैर में नहीं बल्कि हृदय में चुभन नहीं महसूस करे क्योंकि विश्व मुस्लिम समुदाय एक शरीर है।
इस समय
Mohammedan Anglo-Oriental College को विश्वविद्यालय मे प्रोन्नत करने के लिए प्रयास चल रहा था। मौलाना आजाद मुसलमानो के राष्ट्रों में बंटे होने को ठीक नहीं मानते थे इस कारण उन्होंने अलीगढ़ संस्थान को काबा (दुनिया भर के मुसलमानो के लिए पवित्र स्थान) की संज्ञा दी। उन्होंने कहा "जिस दिन यह विश्वविधालय स्थापित हो जायगा••उस दिन(A M U के) स्ट्रेची हॉल की छत पर 'वाही' उतर जाएगी "।
'वाही' का तात्पर्य ऐसी प्रेरणा से है जिसे ऐसा व्यक्ति ही महसूस कर सकता है जो दूसरों को प्रेरित करना चाहता है।
मौलाना अबुल कलाम आजाद के 27 अक्तूबर 1914 को कलकत्ता में दिए गए भाषण के कुछ अंश- "य़ह (मुस्लिम) बिरादरी अल्लाह द्वारा स्थापित की गयी है•••सारे दुनियावी सम्बंध खत्म हो सकते हैं पर य़ह (मुस्लमान का मुस्लमान से) सम्बंध अटूट है। एक पिता अपने पुत्र के खिलाफ जा सकता है, एक माता अपने बच्चे को अपनी गोदी से अलग कर सकती है,भाई अपने भाई का दुश्मन हो सकता है •••किन्तु एक चीनी मुस्लमान का अफ्रीकी मुस्लमान से, एक अरब के रेगिस्तान में रहने वाले खानाबदोश का तातार चरवाहे और एक भारत के नए मुस्लमान का मक्का (के शुद्ध रक्त) के कुरेशी से जो सम्बंध है उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं तोड़ सकती।"
प्रथम विश्व युद्ध
प्रथम विश्व युद्ध प्रारंभ होने से, जिसमें तुर्की जर्मनी के गुट के पक्ष मे युद्ध में सम्मिलित हुआ था। तुर्की के खलीफा के साम्राज्य के लिए खतरा पैदा हो गया था। मौलाना ने आगे कहा "यदि यह सच है कि इस्लाम के दिल को चीरने के लिये तलवार पर सान दी जा रही है तो हमे उसके लिए ढाल तैयार करने मे कोई झिझक नहीं होनी चाहिए। ईसा मसीह की पूजा और अल्लाह की पूजा में प्राचीन काल से चली आ रही दुश्मनी है इसलिए यह ईसाइयों का नया षडयंत्र नहीं है और इसलिए बहुदेव वादियों के हमले से रक्षा के लिए तौहीद (इस्लामी एकेश्वरवाद) के अनुयायियों का एकजुट होना नयी युद्धनीति नहीं है।"
उन्होंने वैश्वीक इस्लाम की धारणा को अभिव्यक्ति देते हुए कहा "यदि मुसलमानों के मन मे इस्लाम का लेशमात्र भी शेष है तो में कहूँगा कि यदि युद्ध के मैदान में एक तुर्क के पैर में कांटा भी चुभता है तो में अल्लाह की कसम खा कर कहता हूं कि वह हिंदुस्तान का मुस्लमान कहलाने काबिल नहीं है जो पैर में नहीं बल्कि हृदय में चुभन नहीं महसूस करे क्योंकि विश्व मुस्लिम समुदाय एक शरीर है।
Mohammedan Anglo-Oriental College को विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University)मे प्रोन्नत करने के लिए प्रयास चल रहा था। मौलाना आजाद मुसलमानो के राष्ट्रों में बंटे होने को ठीक नहीं मानते थे इस कारण उन्होंने अलीगढ़ संस्थान को मक्का के काबा (दुनिया भर के मुसलमानो के लिए पवित्र स्थान) की संज्ञा दी। उन्होंने कहा "जिस दिन यह विश्वविधालय स्थापित हो जायगा••उस दिन(A M U के) स्ट्रेची हॉल की छत पर 'वाही' (कुरान की आयत) उतर जाएगी"।
(महावीर जैन के लेख के आधार पर)
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"बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से होय"!
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