मां-नर्मदा- सामाजिक कुम्भ-! एक बार फिर भारतीय चेतना जगाने क़ा प्रयत्न -।


एक ब्रह्मचारी 

दो हज़ार पाच सौ वर्ष पूर्व बौद्ध भिक्षु संघो क़े अनाचार, भ्रष्टाचार से समाज पीड़ित था,एक बौद्ध राजा की रानी भारतीय चेतना से दुखी अपना दुःख किससे बाटती काशी बिद्वानो की नगरी में जा एक भवन क़े क्षत पर बैठी सोच ही रही थी कि कौन बचाएगा भारतीय संस्कृति को वैदिक संस्कृति को अनायास ही उसके आखो से अबिरल आसू क़े धारा टपकने लगी -नीचे गली में एक विद्यार्थी ब्रम्हचारी जा रहा था उसके सिर पर आसू की बूद पड़ी ही थी कि उसने ऊपर देखा ----माता क्यों रो रही हो क्या कष्ट है? - रानी बरबस ही बोल पड़ी कि कौन बचाएगा लुप्त होती वैदिक संस्कृति को --!अनायास ही बालक बोल पड़ा कि मै कुमारिल भट्ट बचाऊगा इस हिन्दू संकृति  को। ये बालक वैदिक बिद्वान तो था ही लेकिन बौद्धों से शास्त्रार्थ हेतु बौद्ध गुरुकुल राजगिरी में प्रबेश लेकर शिक्षा ग्रहण करना शुरू कर बौद्ध विद्वान हो गया। लेकिन जब धर्मपाल यानी कुलपति को जानकारी हुई कि यह तो वैदिक ही  है, कुमारिल को सजा सुनाई, दो मंजिल से सिर क़े बल नीचे फेक दिया जाय यानी मृत्यु -दंड ,कुमारिल ने कहा कि यदि वेद सत्य है तो उन्हें कुछ नहीं होगा। ऊपर से फेकने पर वे नीचे पैर क़े बल गिरे और पैदल चलते गए । यह समाचार जंगल में आग क़े समान पूरे देश में फ़ैल गया। ऐसे वैदिक दिग्विजय करने वाले जिन्हें आदि जगदगुरु शंकराचार्य उन्हें गुरु स्थान पर रखते थे। उनकी कर्मभूमि भी मंडला ही थी, यही पर उन्होंने उस गुरुकुल की स्थापना की थी जिसमे मंडन मिश्र की शिक्षा दीक्षा हुई। यह वह भूमि है जो नर्मदा नदी क़े  किनारे ही नहीं उनके गोद में बसा है। यही "महारानी दुर्गावती" ने गौडो क़ा नेतृत्व करते हुए अकबर क़ा छक्का छुडाते हुए वीरगति को प्राप्त हुई थी! जीते जी गौड़ राज्य को अकबर गुलाम नहीं बनापाया  अपनी स्वतंत्रता अक्षुण रखी। नर्मदा में जब तक जल रहेगा तब तक रानी दुर्गावती क़ा नाम अमर रहेगा।

नर्मदा तट वैदिक ऋषियों की तपस्थली 

नर्मदा नदी दक्षिण की जीवन धारा है मध्य प्रदेश, गुजरात आंध्र,कर्णाटक इत्यादि प्रदेशो को पानी उपलब्ध कराती है इसी नदी क़े किनारे ऋषि भृगु, बशिष्ठ, परसुराम इत्यादि लोगो ने तपस्या कि प्रथम बार सन्यास लेते समय शंकराचार्य नर्मदा क़े तट पर नर्मदाष्टक लिखा था । इसी नदी में नर्वदेस्वर पाए जाते है बिना प्राणप्रतिष्ठा क़े ही जिनकी पूजा होती है । समाज को जगाने संस्कृति की रक्षा क़े लिए अनेक बार यहीं से हमारे संतो ने प्रयत्न किया था । आज पुनः वही समय आ गया है एक बार फिर मां नर्मदा बुला रही है ।

समरसता हेतु कुंभ 

जाति ,समाज ,पंथ जो हिन्दू समाज में ब्यवस्था क़ी एक प्रमुख कड़ी थे आज बिकृत होकर वर्ग-भेद क़ा रूप ले चुके है। अनेक परम्पराए रुढियो क़ा स्वरूप धारण कर चुकी है, धार्मिक आयोजन व संस्कार भी कर्मकांड क़ा रूप ले चुके है हिन्दू समाज की इन ब्यवस्थाओ क़ा वास्तविक रूप सामने लाने कि महती आवस्यकता है। प्राचीन समय में कुम्भ जैसे बड़े आयोजन देश की अखंडता व एकात्मता को सुदृढ़ बनाने क़ा माध्यम होता था सामाजिक ब्यास्थाओ परम्परा क़े मूल्याङ्कन व संसोधन की ब्यवस्था थी इसी पवित्र उद्देश्य को लेकर मां नर्मदा कुम्भ क़ा आयोजन किया गया है जिससे समरसता, उदारता, एकता और संगठन क़ा भाव जगा सके।

भारतीय चिति को जगाने का काम 

जिस भारतीय चिति को जगाने क़ा कार्य नर्मदा क़े तट पर हमारे ऋषियों मुनियों ने पूर्व काल में भारत की आध्यात्मिकता, राष्ट्रीयता क़े आधार पर भेद- भाव  रहित समाज क़ा निर्माण किया था आज हमारे देश में बिधर्मी देश क़ा ईशाईकरण, इस्लामी करण व समाज में बिघटन क़ा जो स्वप्न देख रहे है। नर्मदा सामाजिक कुम्भ हिन्दू समाज में भारतीय चेतना जगाकर समरस समाज क़ा निर्माण कर धर्मान्तरण क़े कुचक्र को रोकना तथा जो बंधू बिधर्मी हो गए है उन्हें स्वधर्म में वापस लाना, ऊच-नीच की अवधारण भेद- भाव रहित समाज, ऐसे कल्पना को साकार करने हेतु इस सामाजिक कुम्भ क़ा आयोजन हो रहा है।
सम्पूर्ण देश से सबरी कुम्भ में १३ लाख लोग आए थे दाग जो कभी ईशाई बहुल जिला हो गया था सभी पुनः स्वधर्म में वापस आ गए गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान,केरल इत्यादि प्रदेशो में जागरण कि लहर आ गई, दूसरा सामाजिक कुम्भ नर्मदा क़े तट मंडला में हो रहा है, जिसमे महाकौशल, बिदर्भ, मालवा, झारखण्ड, आंध्र और मध्य भारत इत्यादि प्रदेश प्रभावित होगे तथा पूरे भारतीय समाज में चेतना क़ा उभार देने में सक्षम होगा, मंडला पुनः अपना गौरव प्राप्त करेगा -१०,११,१२ फरवरी २०११ को हम सभी पुण्य क़े सहभागी बने जिसमे पूरे भारत क़ा संत समाज, सभी जातियों क़े मुखिया, भगत जो हिन्दू समाज क़े लिए कार्य करते है प्रतिनिधित्व करेगे।।

एक टिप्पणी भेजें

7 टिप्पणियाँ

  1. aadarniy sir,
    aapke post ko padh kar apni sabhyta aur sanskriti ke baare me jyadaa se jyadaa jaankaari milti hai lisme bahuto ke baare me hame jaankaari hi nahi hai.is baat ke liye aapko bahut bahut dhanyvaad.
    poonam

    जवाब देंहटाएं
  2. देखे शालीग्राम मिश्र कृत "एक और सावित्री"

    जवाब देंहटाएं
  3. बेनामी जी मै ,एक और साबित्री, पढ़ चुका हू सालिक राम मिश्र की और कई साहित्य पढ़ चुका हू जैसे ,फिर चुके चौहान,,खजुराहो की नगर बधू
    आपके सुझाव क़े लिए धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  4. भारतीय समाज और हिन्दु संस्कृति मत भिन्नता को स्वीकार करता है। कुमारिल भट्ट का प्रादुर्भाव सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए हुआ था - इसके लिए उन्होने काम भी किया । आदि शंकराचार्य के आगमन के पुर्व स्थितियो के निर्माण मे उनकी भुमिका महत्वपुर्ण थी। लेकिन अपने बौद्ध आचार्य को शास्तार्थ मे हाराने के कारण उनके द्वारा किए गए अग्नि-प्रवेश के प्रायश्चित के लिए अपने जीवन का अंत भी उन्होने अग्नि-प्रवेश कर के किया। यह दर्शाता है कि सनातन वैदिक प्रबुद्ध पुरुषो के मन बौद्धो के प्रति उतना हि प्यार भी था। इसलिए उन्होने सिद्धार्थ गौतमको अवतार भी माना। आज समस्त हिन्दु समाज गौतम बुद्ध के प्रति श्रद्धा का भाव रखता है। लेकिन दोनो तरफ से कुछ लोग इस प्रेम मे दखल डालने की कोशीस करते है।

    जवाब देंहटाएं
  5. माँ नर्मदा सामाजिक कुम्भ आपके अनुसार जैसे उत्तर से दक्षिण चार कुम्भ की ब्यवस्था है जिसमे हिन्दू समाज की नव निर्मित ब्यावास्थाये बनती है उसी प्रकार यह कुम्भ होगा जिसमे वनवासी दलित व अन्य समाज सभी ऊच -नीच की भावना से मुक्त भारत हो यह प्रयास है यह आती उत्तम है .

    जवाब देंहटाएं
  6. धन्यवाद आप हमारे ब्लॉग पर आए अच्छा लगा.

    जवाब देंहटाएं
  7. माँ नर्मदा सामाजिक कुम्भ जिसका उद्देश्य समरसता है जो भारत की एकात्मता क़े लिए इतना बड़ा आयोजन है जिससे पिछड़े बंधू जिन्हें कुछ लोग राष्ट्र की मुख्या धारा में जोड़ने की बात करते है तो कुछ लोग मओबदियो से जोड़ते है वास्तव में वे राष्ट्र की मुख्यधारा में है और ये माओबादी नहीं है ये राष्ट्रबादी है जुड़वाँ सलम इसका सबूत है इस नाते माओबादी वनवासियों क़े शत्रु बनकर खड़े है .
    यह कुम्भ भारतीय समाज में समरसता ही नहीं धर्मान्तरण को भी रोकेगा तभी इसकी सार्थकता होगी.

    जवाब देंहटाएं