डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ------- महान क्रन्तिकारी और भारत माता क़े अद्भुत सपूत थे.

डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी क़े जन्म दिवस पर

वे  देश क़े स्वतंत्रता सेनानियों में श्रेष्ठ स्थान रखते थे डॉ मुखर्जी केवल क्रांतिकारियों क़ा नेतृत्व ही नहीं करते थे बल्कि भारत क़े महान शिक्षाविद भी थे उनके पिता जी कोलकाता हाईकोर्ट क़े चीफजज ही नहीं वे कोलकाता विश्वविद्यालय क़े कुलपति भी थे वे महान पिता क़े सपूत पुत्र थे, जब मुखर्जी ने हाईस्कूल में सर्बोच्च स्थान प्राप्त किया तो कोलकाता क़े कलेक्टर ने उनसे कहा कि आपको विदेश यानी लन्दन पढ़ने क़े भेजा जा सकता है, लेकिन शर्त यह है कि आपको धोती, कुर्ता क़े स्थान पर पैंट, शर्ट पहनना होगा मुखर्जी ने तुरंत उत्तर न देकर सोचने क़े लिए कहा।

संस्कृति रक्षार्थ विदेश जाना अस्वीकार 

 श्यामा प्रसाद जी प्रातः काल एक पार्क में घुमने क़े लिए गए थे और इस सोच में डूबे थे कि विद्यालय में क्या उत्तर देना है ? यह उनके मस्तिस्क में उधेड़ बुन चल ही रहा था कि तब तक एक नबाव पार्क में घूमता हुआ दिखाई पड़ा वह  हाथ में एक तेडिया [दंड] लिए हुए घूम ही रहा था कि उसका एक नौकर दौड़ा हुआ आया हजूर हजूर घर में आग लग गयी है नबाव ने उत्तर दिया कि चलो हम अभी आते है, थोड़ी देर में दूसरा नौकर आया' हजूर घर आधा जल गया, तब तक तीसरा नौकर आया हजूर विबिया भी निकल नहीं पाई, तब तक नबाव ने गुस्से में आकर नौकर को तीन-चार बेत लगाया कहा कि चाहे घर जले या बिबिया तो हम क्या करे, क्या नबाव अपनी चाल बदल देगा ? नबाव अपनी चाल से ही चलेगा।
        श्यामा यह सब देख और सुन रहे थे उन्होंने सोचा कि जब घर और पत्नियों क़े जलने पर भी नबाव अपनी चाल नहीं बादल रहा है तो छोटे से स्वार्थ में हम अपनी संस्कृति यानी धोती, कुर्ता कैसे बदल दे श्यामा प्रसाद को उत्तर मिल चुका था और दुसरे दिन ही उन्होंने बतला दिया कि हम ब्रिटेन पढने नहीं जायेगे, उन्होंने स्वदेश में ही उच्च शिक्षा ही नहीं प्राप्त किया बल्कि पी.एच.डी. की डिग्री भी ली वे बाद में डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी क़े नाम से बिख्यात महान विद्वान हुए, अब तक क़े इतिहास में वे सबसे कम आयु के ३३ वर्ष में कलकत्ता वि.वि. क़े कुलपति हुए. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी क़े साथ- साथ वे हिन्दू महासभा क़े अध्यक्ष भी थे, भारतीय पहचान और हिन्दू राष्ट्र क़े लिए प्रतिबद्ध थे इसीलिए अपना सारा जीवन जिया ।

एक देश में दो प्रधान-दो निशान स्वीकार नहीं 

 देश आज़ादी क़े पश्चात् डॉ मुखर्जी भारत सरकार में उद्द्योग मंत्री हुए वे सेकुलर व नेहरु जी की नीतियों से संतुष्ट नहीं थे, हिन्दू महासभा बिकल्प नहीं बन सकती थी, एक शसक्त राजनैतिक दल की  आवस्यकता महसूस करते थे उन्होंने संघ क़े तत्कालीन सरसंघचालक पूज्य श्री गुरुजी से बिचार-बिमर्ष कर भारतीय जनसंघ की स्थापना की, उन्होंने सरकार में रहना स्वीकार नहीं किया स्थीपा देकर संगठन क़े कार्य में लग गए, कश्मीर की धारा ३७० उन्हें स्वीकार नहीं होने क़े नाते जन आन्दोलन शुरू किया -एक देश में दो प्रधान, दो निशान नहीं चलेगा- नहीं चलेगा, अपने ही देश में जम्बू -कश्मीर जाने परमिट, वहां क़ा प्रधान भी प्रधानमंत्री होता था यह डॉ मुखर्जी को स्वीकार नहीं था.।
         उनके इस आन्दोलन से सभी भारतीयों को बिना किसी परिमिट क़े आने -जाने की सुबिधा तो मिली लेकिन नेहरु, शेख अब्दुल्ला की  नीतियों क़े तहत उन्हें जेल में रखा गया उन्हें उचित चिकित्सा उपलब्ध नहीं कराइ गयी और स्वतंत्र भारत को अखंड रखने हतु वे देश पर २३जुन १९५३ को बलिदान हो गए उनका जन्म ६जुलाई १९०१ कलकत्ता में हुआ था. नेहरु और मुखर्जी में यही अंतर था एक देश को एक करने हेतु बलिदान हुआ दूसरा देश को समस्याओ में उलझाने क़े लिए जिन्दा रहा जिसके नाते आज कश्मीर, नेपाल, नार्थ ईस्ट सभी की जड़ो में यदि देखेगे तो नेहरु ही दिखाई देगे ।
जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी वह कश्मीर हमारा है।
  ।।ऐसे हुतात्मा को शत-शत बार नमन ।।

एक टिप्पणी भेजें

9 टिप्पणियाँ

  1. राष्टीयता के महान सपूत
    डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी को शत शत वन्दन!!

    जवाब देंहटाएं
  2. ६ जुलाई उनके जन्म दिवस पर डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी को मेरा भी नमन है.
    पहली बार इनके बारे में विस्तार में मालूम हुआ.अधिक से अधिक लोगों को ऐसे प्रेरक व्यक्तित्वों के बारे में जानकारी होनी चाहिए.
    बहुत बहुत आभार आप का इस लेख के लिए.

    जवाब देंहटाएं
  3. डा श्यामा प्र मुखर्जी एवम पण्डीत दीन दयाल उपाध्याय की विचारधारा को आगे बढाया जाना चाहिए. उनके विचार ऐसे बीज है जिनसे विशाल वृक्ष खडा हो सकता है. उन विचारो का महिमामण्डन करने भर से काम नही बनने वाला. उन पर चर्चा होनी चाहिए. उन चर्चा के आधार पर दस्तावेज एवम लेख बना कर पत्रिकाओ मे छपने चाहिए.

    जवाब देंहटाएं
  4. हिमवंत जी
    डॉ मुखर्जी क़े बिचारो क़ा प्रचार हो हम सभी चाहते है उसी से देश क़ा हिंदुत्वा क़ा कल्याण होगा .
    बहुत-बहुत धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  5. मेरा तात्पर्य सिर्फ प्रचार से नही था। विचारो की एक परम्परा होती है, वह आगे बढती रहनी चाहिए। जैसे मार्क्स/एंजल्स के विचारो को लेनिन और माओ ने नए अर्थो मे परिभाषित करते हुए आगे बढाया। मै इन दुष्टो के विचारो से सहमति नही रखता। लेकिन उनकी विचार परम्परा को आगे बढाने की शैली अनुकरणीय है।

    जवाब देंहटाएं
  6. आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,

    जवाब देंहटाएं
  7. डॉ मुखर्जी को भावभीनी श्रद्धांजलि, श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक विचारधारा हैं।विचारधारा अमर होती है।

    जवाब देंहटाएं