वैदिक भारत में माओवादी भारत नहीं, माओवादी, भारत, हिन्दू, मजदूर, लोकतंत्र बिरोधी भी है -।

         बामपंथ क़ा नाम झूठ फ्राड जिसे  सम्पूर्ण विश्व नकार चुका है जिसकी जमीन अब खिसक चुकी है रुश, चीन जो इनकी प्रेरणा भूमि कही जाती है वहा बुरी तरह फेल होकर भारत की धरती पर जहा वर्षो से जनता ने नकार दिया है देश आज़ादी क़े समय में इन्होने नेता जी सुबासचंद बोस को ताजो क़ा कुत्ता कहा गाधी को बार-बार गाली किया यदि मास्को में पानी बरस रहा हो तो यहाँ छाता लगाना नहीं भूलते इन बामपंथियो को इतना समझ में नहीं आता की यह देश बहु बिचार बहु देव वादी यहाँ कंकड़ में शंकर, प्रत्येक नदियों में गंगा, प्रत्येक बृक्ष में बरगद देखने की बृत्ति है यहाँ एकेश्वर की परंपरा नहीं है ईशाई, इस्लाम और मार्क्सबाद इनका चिंतन एक समान है यह तीनो बिचार भारत में लागु नही हो सकता क्यों की यहाँ एक-दुसरे को सम्मान देने की परंपरा है न की अपना बर्चस्व कायम करने की आज हमारा ही बिचार ठीक है सबको मानना ही पड़ेगा, भारत में नहीं चल सकता .
         एक तरफ जहा मुसलमान दंगो क़े सहारे ओट की राजनीती कश्मीर में आतंकबाद क़े समर्थन द्वारा भारत डराने की कोशिस, वही ईशाई नार्थ ईस्ट में जहा इनकी संख्या अधिक  है देश बिभाजन की माग कर रहे है वनवासी अंचलो में माओबदियो  को धन जन से सहायता  कर भारत को खोखला बनाना हिंसा हत्या हेतु धन उपलब्ध करना  ये तीनो ताकते भारत क़े बिरोध में एक है पाकिस्तानी जेहादी या विदेशी मिशनरी समर्थित बिखंडन बादी -सभी माओबादी मुख्य शत्रु [ भारत] क़े बिरुद्ध स्वाभाविक मित्र है, नक्सली दलों क़े पार्टी क़े कार्यक्रम में किसी बिकास की माग या जन समस्या की माग, इक्षा शुरू से ही नहीं रही, उसमे डंके की चोट पर सशस्त्र युद्ध करके सत्ता पर अधिकार करना खुली योजना है सभी माओबादी मात्र सत्ता प्राप्त की उद्देश्य क़े लिए लड़ रहे है , अतः जैसे देश पर बाहरी आक्रमण होता है उसी तरह यह भीतरी बिद्रोह है,  इनके किसी भी संगठन क़े बिधान में गरीबी, बेरोजगारी, अथवा जनहित  किसी भी लाइन क़ा  उल्लेख तक  नहीं रहता  है अपने बिधान में लिख रखा है की कश्मीर, नागालैंड, असम अथवा अन्य स्थानों पर अलगाव बाद को मदद करना इसलिए उपयोगी है जिससे दुश्मन कई मोर्चे पर फस जाय, इस प्रकार यह खुला  युद्ध क़ा  प्रकार  है इस  चुनौती को स्वीकार ही चाहिए ये भारत और भारतीयता क़े खिलाफ खुला युद्ध है.
           देश आज़ादी क़े बाद ऐसा नहीं की केवल छत्तीसगढ़ या झारखण्ड, आंध्र,अथवा बंगाल क़े वनवासी क्षेत्र की उपेक्षा हुई है बल्कि असम बिहार उत्तर प्रदेश उड़ीसा इत्यादि क्षेत्रो की भी उपेक्षा हुई है हर जगह तो नक्सलबाद नहीं जन्मा वास्तव में ईशाई मिशनरी की तरह ही  माओबादी क़े लिए भी जंगल पिछड़ा दूर देहात दुरूह इलाका ही  पसंद है क्यों की युद्ध क़े सामरिक ठिकाने बनाना वहा छिपने, घात लगाने लोगो पर हथियार  क़े बल पर जबरन शासन चलाना, मनमानी वसूली करना इत्यादि कार्यो में इन्हें सुबिधा होती है झारखण्ड में तो एक-एक टमाटर क़े लगाने पर प्रति पौधे पर दस रुपये तक टैक्स लगाते है गरीब देने को मजबूर है ये इन क्षेत्रो में इन्ही गरीबो क़ा ही शोषण कर रहे है .
             केंद्र सरकार में माना की बामपंथी नहीं है लेकिन सभी बौद्धिक स्थानों पर उन्ही क़ा कब्ज़ा है मनमोहन सरकार राष्ट्र बादियो को सांप्रदायिक बताकर देश द्रोह पर उतारू है या तो ये समझ नहीं पा रहे है या तो जानबूझ कर नक्सल बादियो को बढ़ावा दे रहे है जिन प्रान्तों में बिरोधी बिचारो की सरकारे है वहा भारत सरकार दोगली निति अपनाये हुए है पंजाब क़े आतंकबाद को जब समाप्त किया जा सकता है तो उनसे बड़े तो ये नहीं है लेकिन इनकी इक्षा शक्ति नहीं है , नक्सल प्रभावित उड़ीसा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, और बंगाल में यह नहीं कहा जा सकता की वहा की पुलिस सक्षम नहीं है केंद्र सरकार क़े आपसी मतभेद के कारन और कमजोर प्रधानमंत्री के कारन समस्या बनी हुई है नक्सली एक क़े बाद एक घटनाये कर रहे है १५ फरवरी  से जब उन्होंने सिल्डी कैम्प पर हमला किया और २४ फ्रंटियर रायफल्स क़े जवानों को मार गिराया यह क्रम बराबर जारी है रेलवे पर भी हमले हो रहे है २३ मार्च को भुनेस्वर-दिल्ली राजधानी को पटरी से उतर दिया २८ मार्च को ज्ञानेश्वरी पर हमला किया जिसमे करीब १०० लोग मारे गए आजाद की पुलिस मुठभेड़ में हत्या हुई तो आखिर  क्या बुरा हुआ वह तो आतंकबादी ही तो था , मोबादियो को धर्म, समाज और सरकार को ध्वस्त करने क़ा अधिकार किसने सिया -जिसे माओ ने स्वघोषित सांस्कृतिक क्रांति कहा चीनी जनता उसे घृणा कर नकार दिया, उसे अपना बैचारिक आधार बताने वाले बैचारिक अंधे नहीं तो और क्या है .आज भारत नेपाल क़े रास्ते पर बढ चला है२०००-२००१ में जब नेपाल क्र प्रधान मंत्री ने मोबादियो क़े खिलाफ सेना क़े प्रयोग क़े लिए राजा से आग्रह किया तो राजा बिरेन्द्र ने कहा की नेपाली- नेपाली  को नहीं मरेगा उस समय भी नेपाल क़े राजा को नहीं पता था की माओबादी न तो नेपाली होता है न तो भारतीय वह तो केवल माओबादी होता है अंत में हम सभी ने नेपाल क़े परिणाम को जानते है हमारे प्रधान मंत्री को यह समझ में नहीं आ रहा है की इन मोबादियो की सहानुभूति किसी गरीब गुरुवा से नहीं है इनके तथा कथित बुद्धि जीवी वातानुकूलित कमरे में बैठ कर विदेशी पैसो क़े बल पर भारत को विखंडित करने क़ा प्रयत्न मात्र है यहाँ क़े माओबादी ठीक नेपाल क़े नक्से कदम पर चल रहे है .  
            
             कुल मिलाकर ये गरीबो, मजदूरो, वनवासियों और मानवता क़े दुश्मन है इनका वह स्वाभाविक मित्र है जो भारत बिरोधी है मानवाधिकारी तो हमेसा ही भारत बिरोधी रहे है करोणों रुपये की फंडिंग भारत में आतंकबाद क़े लिए होती है , सोनिया से तो उम्मीद करना तो मुर्खता होगी क्यों की उसे भारतीय धर्म व भारतीय राष्ट्र से क्या मतलब लेकिन मनमोहन को क्या कहा जाय जो गुरु गोविन्द सिंह क़े बंसज है उन्होंने तो पिता,पुत्र सहित अपने को देश ,धर्म क़े लिए बलिदान किया लेकिन मनमोहन से क्या उम्मीद की जाय ये तो सोनिया क़े गुलाम है लगता है की देश क़ा क्या होगा क्या भारत बचेगा.

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2 टिप्पणियाँ

  1. vandemataram Bharat mata se nafrat desh ka koi bhaw nahi yani maobadi

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  2. दीर्घतमा जी आपने तो बांमपंथी गद्दारों व उनके कांग्रेसी चापलूसों की असलियत सबके सामने रख दी ।

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