हमारे धार्मिक व सांस्कृतिक चिन्ह ओउम,स्वास्तिक,श्री और कमल सभी राष्ट्रीय एकता के प्रतीक.

      ''ओम'' ---!

-वेदों में मै प्रणव अर्थात ओमकार हू,  श्रीमदभगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा था ।
'-ओम मनिपद्दे हुम' यह बौद्ध मंत्र .
-जैनों द्वारा 'ओमकार' का सम्मान.
-श्री गुरुग्रन्थसाहब जी का प्रारंभ 'ओमकार' से 
-परमेश्वरी शक्ति का दूसरा नाम ओमकार है।

'' श्री ''-----!

-वैदिक ,बौद्ध, जैन, सिक्ख आदि सभी पन्थो द्वारा 'श्री' को स्वीकार।
-बौद्ध बहुसंख्यक 'सीलोन' ने अपने देश का 'श्रीलंका ' ऐसा नाम करण किया।
-जैन साधुओ का नाम के पूर्व 'सुरि श्री १०८' लिखने की प्रथा।
-सिक्ख धर्म ग्रन्थ का नाम 'श्री गुरु ग्रन्थ साहब' है। 

''स्वास्तिक''---!

सभी पन्थो द्वारा सम्मान---
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, इन चार पुरुषार्थो का प्रतीक ।
-ब्रम्हा, विष्णु, महेश का प्रतीक।
-बाया स्वास्तिक काली का तथा दांया स्वास्तिक गणेश जी का प्रतीक।
-पूरी के मंदिर का अन्तर्भाग स्वस्तिकाकृति है।
-स्वास्तिक से पत्ते व फुल निर्माण होते है, यह बौद्धों की धारणा है। 

''चक्र '' ------!

सभी पन्थो को मान्य संकल्पना----
-वेद काल से आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक ।
-भगवान विष्णु के मंदिर पर चक्र।
-आदि शक्ति का प्रतीक।
-जैनों का 'सिद्धचक्र'।
-बौद्धों का 'धर्मचक्र'।
-सार्वभौम राजा को 'चक्रवर्ती' उपाधि।
-स्वतंत्र भारत के राष्टध्वज पर 'अशोकचक्र'। 

''कलश ''-------!

-पूजा बिधि में सर्व प्रथम ।
-किसी मंगल कार्य के पूर्व ,यहाँ तक की युद्ध के प्रारंभ मी कलश पूजा।
-'कलश ' का उल्लेख ऋग्वेद में है।
-भगवान वरुण की पूजा 'कलश' पर.
-मंदिरों के शीर्ष पर 'कलश'।
-बौद्ध गुम्फाओ में कमल पुष्प के साथ-साथ 'कलश' का उपयोग।

  ''कमल ''------!

  सभी पन्थो में स्वीकार 
-देवी लक्ष्मी का उद्गम कमल से इसलिए "कमलजा' यह नाम।
-भगवान बुद्ध का नाम आसन।
बोधिउत्सव अवलोकितेश्वर के हाथ में कमल, इसलिए 'मणिपद्म' यह नाम।
-जैन मंदिरों में कमल.
-सबद कमल को 'पुंडरिक ' तथा नीले कमल को 'पुष्कर' कहा जाता है, इसका उल्लेख ऋग्वेद मे है।
       यही हमारी एकात्मता के प्रतीक है।

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5 टिप्पणियाँ

  1. ati sundar
    vaidik se laukik jagat men ekaatmaktaa par saraahneey vichaar , badhaayee

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  2. बहुत ही बढ़िया
    युवा पहल

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  3. यह तो उपरी आवरणों की बातें आपने रखी. ठीक है. लेकिन गहराई से देखे तो सनातन धर्म के सभी मतों (वैदिक, बौद्ध, जैन, सिख) में अद्भुत समानता देखने को मिलती है. कर्म सिद्धांत और पुनर्जन्म सभी मतों में माने जाते है. दर्शन के स्तर पर हमारी सहिष्णुता भी अधिक है. मतावलम्बी कट्टरपंथियोंको अपनी हरकतों से बाज आना चाहिए. भाईचारा बढाया जाना चाहिए.

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  4. आदरणीय श्री मान सूबेदार भाई साहब के द्वारा संकलित हर एक विषय अतुलनीय योगदान देने वाला होता है, मैं उन्हें वंदन करते हुए, आलेख द्वारा प्राप्त ऊर्जा के लिए समस्त सम्मानित हिंदू परिवार से तथ्यों से अवगत होने की प्रार्थना करता हूं डा सतीश उपाध्याय पत्रकार स्वयंसेवक

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