मुक्तिनाथ- यात्रा हमारी परंपरा का एक हिस्सा है जो हमें संजीवनी देता है.

              हरिहरनाथ- मुक्तिनाथ सांस्कृतिक यात्रा ---- हम सभी को पता है की किसी भी संस्कृति को जब नित्य नया नूतन बना रहना या समयानुकूल होना होता है तो उसे बिभिन्न प्रकार से अपने को मार्डन सम सामयिक होना होता है चाहे वह बरकारी संतो की यात्रा हो या अलवार संतो की या हमारी बिभिन्न स्थानों पर पवित्र भूमि जैसे अयोध्या काशी की परिक्रमा होती है, आज पूरे भारत में बिभिन्न स्थानों पर शंकर जी को जल चढाने हेतु कावरिया यात्रा निकाली जाती है  इतना ही नहीं सबरी मलाई की यात्रा तो अद्भुत है इतनी उचाई पर प्रति वर्ष करोनो लोग इस यात्रा करते है अपने समाज को बचाने और उसे सक्रिय बनाये रखने हेतु इस प्रकार की परंपरा डाली गयी होगी इसी प्रकार यह मुक्तिनाथ-हरिहरनाथ सांस्कृतिक यात्रा हो रही है.
         पूर्व काल की तरह साधू संतो के नेतृत्व में धर्म परायण जनता नारायणी व गंगा जी के संगम हरिहर क्षेत्र हरिहरनाथ मंदिर सोनपुर से उद्गम स्थल मुक्तिनाथ [नेपाल] तक नदी के किनारे -किनारे सड़क मार्ग से यात्रा जाएगी यह यात्रा ३ अप्रैल से शुरू होकर ७ अप्रैल मुक्तिनाथ पहुचेगी, यात्रा मार्ग में चमन ऋषि का आश्रम, बाबा सोमेस्वर नाथ, बाल्मीकि आश्रम और गज-ग्राह युद्ध की साक्षी त्रिबेनी, भागवान का नाभि स्थल कमल रूपी 'देवघाट' अन्नपूर्ण क्षेत्र में स्थित जुमसुम है.
            मान्यता है की इस तीर्थ क्षेत्र में हरिहर क्षेत्र से त्रिबेनी क्षेत्र तक की भूमि हिन्दू धर्म की दृष्टि से छः तीर्थक्षेत्रो में से एक है वही सनातन धर्म मान्यता अनुसार मुक्तिनाथ १०८ दिब्य क्षेत्रो में से एक है, इस यात्रा को पुनर्स्थापित करने हेतु धर्मजागरण समन्वय बिभाग इस यात्रा का दिब्य आयोजन कर अपने हिन्दु बंधुओ का आवाहन, निबेदन करता है की अपने क्षेत्रो में होने वाली धर्म सभाओ में भाग लेकर पुण्य के भागी हो और सामाजिक समरसता, राष्ट्रीय एकता को मजबूत करे।   

इस सम्पूर्ण यात्रा का उद्देश्य भारत- नेपाल के मध्य धार्मिक एवं सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देना नारायणी तट पर अवस्थित हरिहरनाथ से मुक्तिनाथ तक के सभी तीर्थक्षेत्रो का विकाश, धर्मभाव की जाग्रति एवं मतान्तरण को रोकना व अपने मतांतरित बंधुओ को पुनः स्वधर्म में लेन के पवित्र उद्देश्य से इस यात्रा को प्रारंभ किया जा रहा है।
       पूर्व काल में साधू-संतो के नेतृत्व में नारायणी और गंगाजी के संगम स्थल हरिहरनाथ से मुक्तिनाथ के दर्शन हेतु नारायणी के किनारे-किनारे यात्रा होती थी, इस यात्रा पथ में हरिहरनाथ से मुक्तिनाथ के मध्य बाबा सोमेस्वर नाथ [अरेराज] महर्षि बाल्मीकि आश्रम, त्रिवेणी, देवघाट, नारायण घाट इत्यादि पड़ाव स्थल के रूप में इस यात्रा के महत्व को बढ़ाते है।
     इस यात्रा पथ में तीर्थ क्षेत्रो के महात्मका वर्णन नाना पुराणो में वर्णित है श्री भगवत पुराण के अष्ठम स्कन्द में गज-ग्राह युद्ध, गजेन्द्र द्वारा स्तुति, नारायण का प्रादुर्भाव एवं इसके उद्धार की कथा है इस कथा वर्णित गज-ग्राह युद्ध के साक्षी त्रिबेणी व नारायणी के प्रकटीकरण का साक्षी हरिनाथ तीर्थ का वर्णन है. इसी प्रकार पद्मपुराण के पातालखंड में गण्डकी के तीर्थयात्रा एवं शालिग्राम भगवन की महिमा का प्रसंग है | इस कथा मे नृप रत्नग्रीव की तीर्थयात्रा, शालिग्राम महिमा प्रसंग में पुल्कस की कथा का वर्णन है | इसी के साथ पद्मपुराण के उत्तरखंड में (नारायणी) के महातम्य, प्रादुर्भाव के साथ ही ब्रम्हा, महादेव और श्रीराम द्वारा स्तुति का वर्णन है|
      इसी प्रकार देवी भागवत के नवम स्कन्द एवं स्कन्दपुराण में नारायणी एवं नारायणी के तत्क्षेत्रो के तीर्थो का अनुपम वर्णन है | भारतीय जनमानस पर अमित छाप छोड़नेवाले रामायण में वर्णित वाल्मीकि आश्रम भी इसी तीर्थक्षेत्र के मार्ग में अवस्थित है|
                     गण्डकी गडयोमध्येक्षेत्रा हरिहर मिषितम |
                      तत्रा स्नात्वा जलम पीत्वा नर: नारायणोभवेत् ||    
  पद्मपुराण का यह श्लोक हरिहर क्षेत्र के महत्व को दर्शाता है |
ज्ञातव्य हो कि मुक्तिनाथ स्वामीनारायण सम्प्रदाय के प्रवर्तक पूज्य स्वामीनारायण की तपस्थली है| मुक्तिनाथ तीर्थयात्रा सम्पूर्ण कष्टों से मुक्ति, शोक से रहित करनेवाला, सुख, समृद्धि, शांति प्रदान करने वाली है| हिन्दू धर्म की मान्यताओं में चार धाम की पूर्णता मुक्तिनाथ की यात्रा के बाद ही माने जाने की परंपरा रही है| इसी पुनायादयिनी, सदानीरा, गण्डकी (नारायणी) के गर्भ से नारायण स्वरुप भगवान् शालिग्राम प्रादुर्भूत होते है| अतएव प्रत्येक हिन्दू पुण्य दायिनी मोक्ष दायिनी नारायणी के तट पर अवस्थित तीर्थ क्षेत्रो का दर्शन करना चाहता है | 
     

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3 टिप्पणियाँ

  1. चमन ऋषि से मतलब च्यवन ऋषि से तो नहीं.

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  2. हिन्दु बंधुओ का आवाहन, निबेदन करता है की अपने क्षेत्रो में होने वाली धर्म सभाओ में भाग लेकर पुण्य के भागी हो और सामाजिक समरसता, राष्ट्रीय एकता को मजबूत करे....
    सार्थक अपील....

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  3. lokrndra ji bahut-bahut dhanyabad .
    chaman rishi ka matlab chyawan rishi hi hai.

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