नेपाल मे अराजकता के अपराधी कौन ---!

         

 नेपाल के मूल अपराधी माओवादी

आर्यावर्त कभी भारत वर्ष के बृहत्तर भाग में बिभिन्न राजे महराजे हुआ करते थे देश को एक सूत्र में बढ़ने के लिए चक्रवर्तियों की ब्यवस्था हुआ कराती थी नेपाल एकीकरण महाराजा पृथ्बी नारायण शाह ने की १०४ वर्ष राणाओं ने श्री तीन की उपाधि हासिल कर सेना और सत्ता दोनों पर कब्ज़ा कर शासन अपने हाथ में ले लिया, जब भारत आज़ाद हुआ तो एक समझौते के तहत पुनः "राजा त्रिभुवन नारायण शाह" के नेतृत्व में सत्ता आई, राजा त्रिभुवन के पश्चात दरबार में एक खेल शुरू हुआ जिसमे मूल नेपालियों के अतिरिक्त भूटान, सिक्किम, नार्थ ईस्ट इत्यादि से जिनकी कोई पहचान नेपाली नहीं लेकिन उनका चेहरा नेपाली था मूल सत्ता यानी दरबार में उनको प्रभावी किया गया, जलियावाला कांड, लखनऊ लूट नेपाली सेना के द्वारा हुआ था अंग्रेजों ने उसके बदले ''नया मुलुक'' (बांके, बर्दिया, कंचनपुर, कैलाली) नेपाल को दिया सुगौली संधि के तहत पर्सा जिला से लेकर झापा जिला तक नेपाल को दिया इसका मतलब क्या था ? जमींन  लेंगे तो वहां की जनता भी तो लेना पड़ेगा ऐसा नहीं हो सकता की जमींन लेंगे जनता को भगा देंगे !

जन आंदोलन का परिणाम

 यह देश आंदोलनों का देश होकर रह गया है अदूरदर्शी नेतृत्व के कारन विदेशी कुचक्रों में नेपाल देश फंस गया, राणाओं को सत्ता से हटाने हेतु वी.पी कोइराला के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के साथ नेपाल स्वतंत्रता यानी राजा पूर्ण सत्ता में आया (राणा शासन यानी अंग्रेजों का शासन) इसका आंदोलन शुरू हुआ जब भारत आज़ाद हुआ, साथ में १९५० की संधि हुई जिसमे नेपाल आज़ाद यानी राजा की सत्ता की वापसी, एक दूसरा जन आंदोलन हुआ जिसमे राजा बिरेन्द्र थे जिसमे नेपाली जनता का कितना बिरोध था एक जो नारा दिया जा रहा था उससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है नेपालियों ने नारा लगाया ''हाम्रो रानी कस्तो हो, रंडी जस्तो हो'' इस प्रकार का नारा दिया हम समझ सकते हैं की किस प्रकार राजा का बिरोध जनता में रहा होगा उसी जन आंदोलन पका परिणाम नेपाल में लोकतंत्र आया जिसमे राजा और लोकतंत्र दोनों को मिश्रित सम्मान (संविधान मल्टीपार्टी डेमोक्रेसी विथ मोनार्की) लेकिन यह भी बहुत दिन नहीं चल सका १९९९ में चीन के प्रश्रय से माओवादियों ने हिंसा, हत्या का जन आंदोलन शुरू किया गिरजा प्रसाद कोइराला प्रधानमंत्री थे उनको राजा बिरेन्द्र ने सेना का उपयोग माओवादियों के बिरुद्ध लड़ने के लिए नहीं करने दिया राजा ने गिरजा बाबू से कहा ''नेपाली -नेपाली को मार्दै न'' तब गिरजा बाबू ने सशत्र प्रहरी दल का गठन किया सन २००० में नेपाली जनता के लोकप्रिय राजा बिरेन्द्र की सपरिवार हत्या हो गयी नेपाल की पूरी जनता में आज भी यह भ्रम है की ये हत्या राजा ज्ञानेन्द्र ने करायी जबकि आरोप ''यूवराज दीपेन्द्र'' के ऊपर लगा युवराज अपनी माँ से अत्यधिक प्रेम करते थे वे नेपाल में सर्वाधिक लोकप्रिय थे आज भी नेपाली जनता इस आरोप मानने को तैयार नहीं है ।

लोकतांत्रिक गंठजोड़

एक समझौते में लोकतंत्रवादी और मावोवादी एक हो गए सहमति के आधार पर एक बार फिर गिरजा बाबू प्रधानमंत्री बने माओवादी आंदोलन समाप्त हुआ तत्कालीन संविधान स्थगित कर दिया गया राजा को सत्ता से हाथ धोना पड़ा, लगा कि नेपाल में शांति आ जाएगी लेकिन नेपाली जनता की आस पूरी नहीं हुई २००७ में संविधान सभा का चुनाव हुआ ६०० सदस्यों की सभा चुनी गयी लेकिन नेताओं की नियति ठीक नहीं थी संविधान नहीं बना दूसरा चुनाव हुआ फिर वही 'ढाख के तीन पात' माओवादियों ने जाती के आधार पर जन आंदोलन खड़ा किया था उन्हें अलग- अलग प्रदेश देने की बात कही जब सत्ता में आये तो कुछ नहीं किया जनता को लगा की हमें ठगा गया अब जातीय आधार पर प्रदेश नहीं देना चाहते। 

नेपाली एकता का सूत्र हिंदुत्व

 एक शुभ लक्षण दिखाई दिया नेपाल की एकता का एक ही सूत्र है वह है हिंदुत्व, पुरे देश में हिन्दू राष्ट्र की मांग को लेकर एक बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ हिंदुत्व के अंदर तराई, मधेश, थरुवान, लिंभुआवन, खंभुवन तथा पहाड़ी सभी समाहित हो जाते हैं हिन्दुत्व मे नेपाल की एकता, अखंडता सुनिश्चित हो जाती है लेकिन यह बात विदेशी मिशनरियों को पच नहीं पा रहा है उन्होंने सभी जातियों को योजना वद्ध तरीके से आंदोलित कर दिया इस समय नेपाल विदेशी षडयन्त्रों का शिकार हो गया है।  

प्रशासन के खिलाफ संघर्ष

 एक दूसरा जन आंदोलन जो नेपाली सरकार और नेताओं के अविस्वास के कारन हो रहा है मधेश की मांग समग्र मधेश एक प्रदेश या गंडक के पश्चिम थारु प्रदेश गंडक के पूरब तराई प्रदेश एक मधेश दो प्रदेश जिसमे कोई बुराई नहीं है मधेसी, थारु सहित सभी नेपाली ही हैं उन्हें गोली- बन्दुक से दबाया नहीं जा सकता माओवादी आंदोलन से वे लड़ना जरूर सीख गए हैं टीकापुर में २१ पुलिस सहित कई लोगो की हत्या अभी तक देश भर में मरने वालों की संख्या तीन अंक पार कर चुकी है थारुओं पर अनायास ही पुलिस ने कार्यवाही किया थारु कितना सीधा होता है आखिर कौन सा कारन था की उनको पुलिस पर हमला करना पड़ा, भैरहवा में पहाड़ियों ने मधेशीयों पर हमला किया क्या मधेसी नेपाली नहीं है ? और फिर मधेसी इकठ्ठा न होने पाये कर्फु लगा दिया गया इसका मतलब क्या है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि पुलिस का विस्वास ख़त्म हो रहा कोई साजिस तो नहीं कि मधेसी उन्हें अपना शत्रु मानना शुरू कर दे, सप्तरी, रुपन्देही मे एक-एक मधेसी मारे गए हैं पुलिस द्वारा गोली चलाए जाने पर 200 से अधिक लोग घायल हैं आप गोली बंदूक द्वारा आंदोलन को दबा नहीं सकते, मधेसियों, थारुओं को उनका उन्हें अधिकार मिलना ही चाहिए अब किसी को गुलाम बनाकर रखना संभव नहीं है पहाड़ में तीन और मधेश में दो राज्य बनाकर इस समस्या का समाधान कर सकते हैं इक्षा शक्ति की आवस्यकता है। 

अविष्वसनीय

 नेताओं को अपनी ज़िम्मेदारी समझ आगे बढ़ कर मधेस, तराई, पहाड़ तथा थारुओं का विस्सवास जीतना चाहिए मधेसी नेता अपने विस्वास खो चुके हैं उन्होने तराई की जनता को धोखा के अतिरिक्त कुछ नहीं दिया है इस कारण स्थिति और भयावह हो गयी है आंदोलन मे नेता से आगे जनता हो गयी है कुछ नवजवानों के हाथ मे आंदोलन का नेतृत्व आ गया है हो सकता है कि आंदोलन मे विदेशी हाथ हो इससे इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन मधेश के साथ न्याय होना चाहिए उन्हे पहाड़ियों के बराबर का अधिकार मिलना ही चाहिए नहीं तो आंदोलन तो किसी तरह समाप्त हो सकता है लेकिन यदि समस्या का समाधान ठीक प्रकार से नहीं हुआ तो यह कठिनाई हमेसा के लिए बनी रहेगी।   

एक ही विकल्प लोकतांत्रिक हिंदू गणतंत्र

एक ही बिकल्प ''लोकतान्त्रिक हिन्दू राष्ट्र'' जिसमे सभी जातियों के साथ कोई भेद-भाव नहीं तराई, मधेश, पहाड़ी, थारु, राई, लिम्बु, सवर्ण और अवर्ण सब हिन्दू सभी नेपाली, वास्तविकता तो यह है कि नेपाल में कोई प्रांतीय ब्यवस्था होना ही नहीं चाहिए छोटा देश है, लेकिन माओवादी देशद्रोही होते हैं यह बात नेपाली जनता समझ ही नहीं पायी और फंस गयी आज जो भी आंदोलन में हिंसा- हत्या हो रहा है उसके जिम्मेदार केवल और केवल माओवादी ही है उन्हें इसकी सजा मिलनी ही चाहिए वे नेपाल में अराजकता फ़ैलाने के सर्व प्रथम अपराधी हैं .