विभाजन की विभीषिका और प्रतिकार के नायक हिंदू रक्षक मथुरा सिंह

मथुरा सिंह का परिचय

मैं अपने प्रवास पर पटना से गयाजी के लिए जा रहा था हल्की सी नीद आ रही थी जहानाबाद पहुंचे थे कि कुछ लोग लाल झंडा लिए मथुरा सिह मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे, मेरी नीद खुली ध्यान में आया कि ये लोग मथुरा सिंह मुर्दाबाद का नारा लगा रहे हैं, मैंने विचार किया कि अगर ये बामपंथी किसी का मुर्दाबाद कर रहे हैं तो निश्चित ही वह ब्यक्ति अच्छा ब्यक्ति होगा मैंने रूककर किसी ब्यक्ति से पूछा कि ये किसका मुर्दाबाद कर रहे हैं, कुछ पता नहीं लेकिन मैं रूक गया और जब जानकारी ली तो ध्यान में आया कि कोई मथुरा सिंह थे जिन्होंने नोवाखाली दंगों में कुछ किया था, मैंने उनका घर पता लगा कर जहानाबाद में ही उनके परिवार के लोग रहते हैं मैं गया तो ध्यान में आया कि इन्होंने ही नोआखली हिंदू नरसंहार का बिहार में प्रतिकार करके हिंदू समाज की रक्षा की थी, तब ध्यान में आया कि ये बामी क्यों छाती पीट रहे हैं, जब आप इनके बारे में जानना चाहेंगे तो पता चलता है कि गया, जहानाबाद अरवल इत्यादि जिलों में बहुत प्रकार की किंबदंती प्रचलित है, जिन्हें खोजा नहीं गया क्योंकि ये राष्ट्रवादी थे ये तो हिंदू धर्म के रक्षक की भूमिका में थे कथाये तो उनकी हैं जो देश आज़ादी की मांग नहीं करते थे उपनिवेश वाद चाहते थे मेरे मन में आया कि इस अनाम क्रांतिकारी का जन्मदिन 22 जुलाई को है उसी को लेकर मैंने उन्हें अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करने का प्रयास किया है।

क्रांतिकारी का अभिर्भाव

मथुरा सिंह का जन्म जहानाबाद जिला के मोदनगंज प्रखंड के जयकिशुन बिगहा गांव में 22 जुलाई 1895 में हुआ था और उनकी मृत्यु 11 जनवरी 1977 प्रयागराज में हुई, वे खाते पीते जमींदार परिवार से थे बचपन में कुश्ती दंगल लड़ने का शौक़ था, जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि गांव गाँव में पहले अखाड़े हुआ करता था गांव के सभी नवजवान कुश्ती लड़ते थे, मथुरा सिंह गांव गांव में कुश्ती लड़ाने सिखाने जाया करते थे प्रतियोगिता के कारण बहुत अधिक परिचय था, वे बड़े धार्मिक थे लोहगढ़ भगवती के पुजारी व भक्तों में से थे, अधिक आने जाने से लोहगढ़ के महंत से आत्मिक संबंध हो गया था, इसी बीच गयाजी के एक जमींदार ''कृष्णवल्लभ नारायणा सिंह'' प्रेम से लोग उन्हें ''बबुआ जी'' कहते थे वे बबुआ जी के नाम से प्रसिद्धि थे, 1934 में 'हिंदू महासभा' का अधिवेशन ''भागलपुर'' में था, जिसमे महान क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी वीर ''विनायक दामोदर सावरकर'' आने वाले थे बबुआ जी स्वागताध्यक्ष थे अपने साथ मथुरा सिंह को लेकर गए थे, उसी अधिवेशन ने 'मथुरा सिंह' की जीवन यात्रा को बदल दिया और मथुरा सिंह हिंदुत्व और देश के लिए जीने लगे देशभक्ति उनके जींस में थी ही जो 'हिंदू महासभा' ने उभार कर देश हित मे उपयोग करने लगी, स्थान-स्थान पर जो अखाड़े थे वे सब हिन्दू महासभा की ईकाई बन गई, जिन्ना के 'डायरेक्ट ऐक्शन' के प्रतिकार हेतु उन्होंने तैयारी कर रहे थे हिंदू समाज के जागरण में जुटे ही थे तभी ''लाशों से भरी ट्रेन'' जहानाबाद - गयाजी में आ पहुंची और मुसलमानों ने विजय उत्सव मनाने शुरू कर दिया और फिर मथुरा सिंह ने अपने अखाड़े को सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार करना शुरू किया।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस के प्रति भक्ति

नेताजी सुभाष चंद्र बोस जब कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए तो कांग्रेस के एक ग्रुप को यह रास नहीं आया जहाँ पूरी पार्टी और भारतीयों में खुशी की लहर दौड़ गई वहीं गांधी और नेहरू को यह अच्छा नहीं लगा अब कांग्रेस सुभाष बाबू की नेतृत्व में राष्ट्रवाद की ओर बढ़ चली थी अब देश को अच्छा नेतृत्व मिल गया था लेकिन वे गांधी के कोपभाजन जैसे बन गए थे इसलिए दुबारा सुभाष अध्यक्ष नहीं बने इसके लिए गांधी नेहरु ग्रुप जोर लगा रहा था। लेकिन देश भर के क्रांतिकारी सुभाष को बदलना नहीं चाहते थे, 1938 में कांग्रेस का चुनाव था राँची के पास रामगढ़ में जो जहानाबाद गया से लगभग 125 किमी दूरी पर था लोगों को भय था कि गांधी कोई गुल न खिला दें इसलिए मथुरा सिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों की एक टोली रामगढ़ पहुचती है और चुनाव का परिणाम सुभाष बाबू के पक्ष में हो जाता है दुबारा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर आसीन होते हैं।


धर्मवीर लोहगढ़ महंत

लोहगढ़ के महंत सिसौदिया कुल के थे, राजस्थान चित्तौड़ से उनका संबंध था, वे सन्यासी वनकर यहाँ आये थे ब्लड तो सूर्यवंशी ही था। आध्यात्मिकता के साथ साथ पुरुषार्थी भी थे कुश्ती लड़ना लड़ाना उनका शौक था तलवारबाजी तो पूछिये ही न! पटना जहानाबाद के रास्ते बायें ओर बराबर की गुफा है जहाँ भगवती का मंदिर है विश्वनाथ भारती यानी लोहगढ़ के महंत उसी मंदिर में पूजा अर्चना करते थे। अखाड़ों के शौक होने के कारण जहानाबाद के पहलवान मथुरा सिंह से अभिन्न मित्रता थी, दोनों अधिकांश समय साथ साथ विताते थे जब "वीर सावरकर" 1946 में जब भागलपुर आये तो ये दोनों साथ साथ उनके कार्यक्रम में गए थे। वहीं से इन दोनों के अंदर राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का प्रवाह होने लगा था। जब कलकत्ता हिंदुओं का नरसंहार सुहरावर्दी के नेतृत्व में हुआ हज़ारों हिंदुओ का कत्लेआम हुआ लाशें ट्रेनों में भरकर गयाजी के लिए आयीं। महंत जी का खून तो सिसौदिया का था उबाल तो आना ही था, महंत विश्वनाथ भारती की तलवार सात फिट की थी। हिंदुओं की सुरक्षा हेतु महंत विश्वनाथ भारती और मथुरा सिंह ने कमान सम्हाला। कहते हैं कि यानी जनश्रुतियों में जो वर्णन है कि बराबर की गुफा में भगवती के मंदिर से शुरुआत हुई कहते हैं कि पहली बलि महंत विश्वनाथ भारती ने भागवती को चढ़ा फिर हिंदू रक्षार्थ सशस्त्र संघर्ष शुरू किया।

खिलाफत आंदोलन

''डॉ भीमराव रामजी आंबेडकर'' अपनी पुस्तक "पार्टीशन ऑफ इंडिया अथवा पाकिस्तान" में लिखते हैं कि मुस्लिम तुष्टिकरण उसी दिन शुरू हो गया जिस दिन गांधी जी खिलाफत आंदोलन की पहली बैठक में गए और अपने साथ 'स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती' को लेकर गए, बैठक में जब ''कुरान की आयतें'' पढ़कर काफ़िरों की हत्या करने का ऐलान होने लगा उसी समय "स्वामी श्रद्धानंद जी" ने गाँधी से कहा कि सुन रहे हैं ये काफ़िरों की हत्या की बात कर रहे हैं गांधी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया कि यह सब ब्रिटिश शासन के खिलाफ बोल रहे हैं, इसको क्या माना जाय ? गांधी की मूर्खता अथवा नादानी, डॉ आंबेडकर कहते हैं कि उसी दिन भारत के विभाजन की नींव पड़ गई थी, यह घटना 1921 की है उसी का परिणाम 'मोपला हत्या कांड' हुआ जिसमें हजारों हिन्दुओं की हत्या हुई, महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और बलात धर्मांतरण, पूरे देश में इस घटना को लेकर हाहाकार मच गया और कांग्रेस ने इसे मामूली घटना बताते हुए कहा कि यह तो उनका धार्मिक कृत्य था और ठीक प्रकार से निंदा भी करना उचित नहीं समझा, कांग्रेस का मुस्लिम तुष्टिकरण नीति रूकी नहीं और हिंदुओं का नेतृत्व गांधी जी के हाथ में स्वाभाविक रूप से चला गया और हिंदू बाद में ठगा महसूस करने लगा।

कोलकाता  और नोआखाली

'नोआखाली' आज के 'बांग्लादेश के चटगांव मंडल' का एक जिला है जो कोलकाता से चार सौ किमी की दुरी पर सटा हुआ है समुद्री इलाका है, देश के अंदर दो प्रकार की धारा चल रही थी एक जिसका नेतृत्व ''सुभाषचंद्र बोस'' अथवा क्रांतिकारी कर रहे थे वह धारा थी ''स्वराज्य'' की एक दूसरी धारा थी जो गांधी जी, नेहरू अथवा कांग्रेस जिसका नेतृत्व कर रहे थे वह ''उपनिवेश वाद'' की लेकिन कांग्रेसी षडयंत्र द्वारा राष्ट्रवादियों को दबाने में सफल हो गए और देश को मूर्ख बनाने में उनका विस्वास प्राप्त करने में सफलता प्राप्त किया, अभी देश समझ नहीं पा रहा था, जिन्ना दबाव बनाने में सफल हो गया उसके दबाव में दिन व दिन कांग्रेस झुकती चली गई और वही समय था जब मालवीय जी काशी, स्वामी श्रद्धानंद हरिद्वार चले गए और जिन्ना ने 16 अगस्त १९४६ को ''डायरेक्ट ऐक्शन डे'' का आह्वान किया, एक ओर गांधी हिंदू समाज को शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ा रहे थे दूसरी ओर जिन्ना पाकिस्तान की मांग हिंसा के आधार पर कर रहे थे, देश के अन्दर दंगे भड़क गए कोलकाता और ''नोआखाली'' में सुहरावर्दी के नेतृत्व में 'हिन्दू नरसंहार' शुरू हो गया चारो ओर से सुहरावर्दी को कुरान की आयतें पढ़कर मस्जिदों में दुवाएं मांगी जा रही थीं, मुस्लिग़ के नेतृत्व में लाखो मुस्लमान जन्नत में हूरों के लिए जिहाद कर रहे थे एक ओर जहाँ हिन्दुओ की लाशे बिछ रही थी वहीँ हिन्दू समाज कांग्रेस और गांधी की राह देख रहा था, 16 अगस्त 46 से हिन्दू समाज का नरसंहार होने लगा हिंदू समाज गाँधी की बात मानकर अहिंसा पर अडिग था और समाप्त हो रहा था, यह दंगा यानी हिंदुओं का नरसंहार 15 अगस्त 1946 से 17  सितंबर 1946 तक चला यह केवल नोआखाली तक नहीं रुका बल्कि कलकत्ता को भी चपेट में ले लिया वहाँ से भी हिन्दू भागने लगे, एक अकड़े के अनुसार लगभग ''पचास हजार हिंदू'' मारे गए कितने बलात्कार हुए कितने लोगों को मुसलमान बनाया गया कुछ पता नहीं! जो ट्रेनें बिहार की ओर जा रही थी लाशों से भरी हुई थी ये लाशें जो ट्रेनों के द्वारा भेजी जा रही थी वह हिंदू समाज की कायरता को सौगात थी।

बिहार ने प्रतिरोध किया

जब नोआखाली और कोलकाता से हिंदुओं की लाशें भर कर ट्रेनें आने लगीं थी कि पहला खेप गयाजी पहुँची थी कि हिंदू समाज में रिएक्शन होना स्वाभाविक ही था। उसी बीच में कुछ मुसलमान विजयोत्सव मनाने लगे उन्होंने हिंदू समाज की सहनशीलता को कायरता समझने की गलती कर दी, जहानाबाद जिला के रहने वाले साधारण सा दिखने वाला ब्यक्तित्व ''मथुरा सिंह'' उनके एक मित्र लोहगढ़ के महंत ये सभी गांव-गांव में अखाड़ा चलाते थे गांवों के नवजवान कुश्ती लड़ते थे बड़े सीधे साधे लोग थे। यह दृश्य देखकर उद्योलित हो गए और इस नोआखाली दंगे का प्रतिउत्तर देना शुरू कर दिया। यह घटना अक्टूबर- नवंबर की है गया जहानाबाद और मुंगेर तारापुर, सारण तक को चपेट में ले लिया और प्रतिक्रिया में हिंदुओं ने हज़ारों मुसलमानों की हत्या हुई गांव के गांव खाली होने लगे। स्टेटमैन समाचार पत्र के अनुसार दस हजार मुसलमान मारे गए लेकिन जिन्ना ने कहा कि तीस हजार मुसलमानों का कत्लेआम हुआ और नोआखाली दंगा बंद हो गया। क्या मुसलमान अहिंसा में विस्वास करता है तो नहीं जब उन्हें ईट का जबाब पत्थर से मिला और उन्हें लगा कि हिंदू प्रतिक्रिया करेंगे और इतने बड़ी संख्या में मारे गए फिर कोलकाता और नोआखाली की हिंसा अपने आप बंद हो गयी।

गांधी और नेहरू

जब तक हिंदू समाज ''लाहौर से लेकर बंगाल'' तक मार खाता रहा हत्यायें होती रही कांग्रेस के कान पर जूं नहीं रेंगा गाँधी तो इसे अहिंसा ही मानते रहे और नेहरू तो इस्लामिक जिहाद चाहते ही थे, जब ''हिंदू समाज'' ने प्रतिक्रिया व्यक्त किया और बिहार ने नोआखाली का प्रतिकार शुरू किया जिस प्रकार लाशों से भरी ट्रेनों को बिहार भेजा जा रहा था ठीक उसी प्रकार गया जहानाबाद से भी तैयारी हो रही थी कि कोलकाता को भरी ट्रेन भेजी जाय। तभी तथाकथित प नेहरू जहानाबाद आ धमके औए कई गाओ में गए सेना उतारने का काम किया इतना ही नहीं हेलीकाप्टर से गांव गांव में गोली चलवाना शुरू हो गया। नालंदा जिले के नगरनौसा गाव में आक्रोशित हिन्दुओ पर नेहरू ने गोली चलवाई जिसमे हज़ार से अधिक हिन्दू मरे गए, जैसे हिंदू समाज ने आत्मरक्षा करके कोई अपराध किया हो गांधी जी भी जहानाबाद आ धमके एक सप्ताह तक रहे उन्होंने ''क्रांतिकारी मथुरा सिंह'' से मिलने की अपील की लेकिन मथुरा सिंह ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया। इस प्रकार गाँधी, नेहरू, कांग्रेस और वामपंथियों ने मथुरा सिंह की तथा इस प्रतिकार करने वालो की निंदा कर अपना हिंदू विरोधी चेहरा समाज के सामने दिखाना शुरू कर दिया, लेकिन मथुरा सिंह तो मथुरा सिंह थे वे और लोहगढ़ के महंत ने कभी कोई समझौता नहीं किया आज भी और जब-तक हिन्दू समाज रहेगा तब-तक हिंदू धर्म रक्षक के कारण उन्हें याद किया जाता रहेगा।

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10 टिप्पणियाँ

  1. जो समूह अन्याय सशक्त प्रतिकार करता है वही जीवित रहता है।

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  2. जो समूह अन्याय सशक्त प्रतिकार करता है वही जीवित रहता है।

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  3. जो समूह अन्याय सशक्त प्रतिकार करता है वही जीवित रहता है।

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  4. शस्त्रधारी, पौरुषवान, तेजस्वी राष्ट्र ही जीवित रहता है। धर्म की रक्षा के लिये सन्नद्ध होने वाले महापुरुष की स्मृति को शत शत नमन

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  5. शस्त्रधारी, पौरुषवान, तेजस्वी राष्ट्र ही जीवित रहता है। धर्म की रक्षा के लिये सन्नद्ध होने वाले महापुरुष की स्मृति को शत शत नमन

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  6. सनातन रक्त मे शौर्य सर्वथा ही बहता रहता है बस आवश्यकता उसे समयानुकूल जाग्रत करने की होती है, जय हिन्द

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  7. शस्त्रमेव जयते... शस्त्र और प्रभु दोनों ही परम सत्य हैं...

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  8. सनातन सभ्यता के उबलते हुए रक्त को गांधी ने अहिंसा का पानी डालकर ठंडा कर दिया है तब ही ना तो 1989 में उबला, ना 1980 के दशक में पंजाब में मारे गए हिंदुओ पर उबला और ना ही केरल बंगाल अब तो दिल्ली में मारे जा रहे हिंदुओ पर उबल रहा है

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