कलकत्ता को पाकिस्तान में सामिल करने की जिन्ना योजना
नोआखाली का हिंदू बिरोधी दंगा यानी जिन्ना ने अपने "डायरेक्ट एक्सन" के लिए कोलकाता को चुना क्योंकि वे चाहते थे कि कोलकाता पाकिस्तान में हो कोलकाता! उस समय बड़ा ब्यवसायिक केंद्र था और जिन्ना कोलकाता को खोना नहीं चाहते थे कोलकाता को हिंदू मुक्त बनाने के लिए यह मिशन सुहरावर्दी को दिया। जो बंगाल के मुख्यमंत्री थे और जिन्ना के विस्वासपात्र भी थे जब सुहरावर्दी ने 16 अगस्त 1946 में डायरेक्ट एक्सन की घोषणा की उस समय मुसलमानों ने पूरी तैयारी कर लिया था कि कोलकाता को पाकिस्तान में मिला लेने का काम शुरू किया था। उस समय कोलकाता में हिंदू जनसंख्या 65% और मुसलमानों की 35% थी लेकिन सुहरावर्दी को लगता था कि हिंदू समाज तो कायर है लड़ नहीं सकता। और वही हुआ हज़ारों हिन्दुओं की हत्या हो गई कोई बोलने वाला नहीं था। गयाजी जाने वाली ट्रेनों पर हिंदुओं की लाशें भर भर कर भेजी जाने लगी हिन्दू समाज के अंदर भय ब्याप्त हो जाय यह प्रयत्न किया गया। अब तक दसियों हजार हिंदू मारा जा चुका था ( कुछ लोगो का मत है कि पंद्रह हजार हिन्दू मारा जा चुका था) कोई खबर लेने वाला नहीं था, आज बंगाल यदि भारत में है तो वह "गोपाल पाठा" की देन है ।
प्रतिशोध में जलता साधू
नोवाखाली में मुस्लिम जनसंख्या 80प्रतिशत और हिंदू केवल 20प्रतिशत थे लेकिन हिंदुओं के पास 80प्रतिशत संपति थी मुसलमानो के पास 20प्रतिशत। नोवाखाली में केवल हिंदू नरसंहार ही नहीं हुआ था बल्कि बड़े पैमाने पर बलात धर्म परिवर्तन भी किया गया था। नोवाखाली दंगे से लौटने के पश्चात प्रसिद्ध संत दादा महराज व्याकुल रहने लगे, बार बार उनकी आखों के सामने पीड़ित हिंदुओं की शक्ले दिखाई देती, उनका मन क्रोध और बदले की भावना से पीड़ित हो जाता। नोवाखाली में हजारों हिंदुओं का धर्म परिवर्तन किया गया था डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी और हिंदू महासभा के बुलाने पर कई हिंदू धार्मिक साधू संत नोवाखाली गए, जिन्हे बलात मुस्लिम बनाया गया था उन लोगों को सनातन धर्म में वापस लाने के लिए धार्मिक अनुष्ठान का जिम्मा सौंपा गया था। दादा महराज ने भी नोवाखाली में जाकर लगभग चार हज़ार पीड़ित हिंदुओं की सनातनी रीती नीति से घर वापसी की। दादा महराज जी की उम्र भले ही 42वर्ष थी लेकिन हिंदुओं के एक बहुत बड़े वर्ग पर उनका प्रभाव था, वे वैष्णव संप्रदाय के बड़े धार्मिक गुरु थे और उन्हे संत वल्लभाचार्य का वंशज माना जाता था। उनका नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और वीर सावरकर जी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों से अच्छा संबंध था।
हिंदुओं का नरसंहार शुरू
सुहरावर्दी ने 16 अगस्त को अपनी योजना को अंजाम देना शुरू किया, हड़ताल की घोषणा की गई और सभी मुसलमानों ने दुकानों को बंद कर दिया। मस्जिद में इकट्ठा होने लगे, रमजान का अठारहवाँ दिन था और नमाज के पश्चात एक मैदान में मुस्लिम इकट्ठा होने लगे देखते ही देखते 2 लाख से अधिक मुस्लिम भीड़ इकट्ठा हो गई। अब यह मुस्लिम लीग के नेतृत्व में हिन्दुओं पर हमलावर हो गई मुस्लिम भीड़। जैसा सुहरावर्दी को उम्मीद थी हिन्दुओं ने प्रतिरोध नहीं किया और बड़ी आसानी से हिन्दुओं ने मुसलमानों के आगे घुटने टेक दिए। लोहे की छड़े, तलवारें और अन्य हथियारों से लैस मुस्लिम संगठित भीड़ कोलकाता के अन्य इलाकों में फैल गई। सबसे पहले मुस्लिम लीग के कार्यालय के बगल वाली दुकान में आग लगा दिया गया और लूट लिया मालिक सहित हिन्दू कर्मचारियों को मार दिया और अब हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर 'सेक्स स्लेव' बनाने लगे, अब हिंदुओं को सब्जी की तरह काटा जाने लगा। 16 अगस्त को हज़ारों हिंदू मारे गए और हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार किये गए, 17 अगस्त को भी हत्यायें जारी रही 600 हिंदू मजदूर जो अधिकतर उड़ीसा से थे 'केसोराम कॉटन मिल लिचुम्बन' में सिर काट दिया गया। कोलकाता में हिंदू नरसंहार का नंगा नाच चल रहा था, अब तक पंद्रह हजार हिन्दू मारा जा चूका था। हजारो हिन्दू महिलओं के साथ बलात्कार, अपहरण के खेल जारी था कांग्रेस अथवा गाधी के कान पर जूं तक नहीं रेंगा और हिंदू कोलकाता छोड़कर भाग रहे थे।
क्रन्तिकारी गोपालपाठा
लेकिन 18 अगस्त को एक हिंदू ने मुस्लिम अत्याचार का विरोध करने का फैसला लिया उसका नाम था गोपाल मुखर्जी उसके मित्र उसे पाठा कहते थे। वे कोलकाता के बोबा बाज़ार में मलंगा लेन में रहते थे, गोपालपठा का जन्म 1913 कोलकाता में हुआ था। गोपाल उस समय 33 वर्ष के थे और एक कट्टर राष्ट्रवादी सुभाषचंद्र बोस के दृढ़ अनुयायी थे। 18अगस्त को गोपाल ने तय किया कि अब भागेंगे नहीं मुसलमानों पर जबाबी हमला करेंगे, वहाँ एक 'हिंदू हित रक्षक गोपाल पाठा' नाम के सीधे सादे ब्यक्ति थे उन्होंने एक स्थान- स्थान पर समितियां बना रखी थी जिसमे लगभग सात आठ सौ प्रशिक्षित नवजवान थे। गोपाल पाठा उस समय "जाति वाहिनी" चलाते थे मुहल्ले- मुहल्ले में हिंदू नवजवान खड़े होने लगे। उनकी टीम में 500 से 700 लोग थे सभी अच्छी तरह प्रशिक्षित पहलवान थे। एक मारवाड़ी ब्यापारी ने धन व्यय करने का आस्वासन दिया और उन्होंने पर्याप्त धन दिया। उन्होंने आह्वान किया कि "हर एक हिंदू दस मुसलमानों को मार डालो"। पहले तो हिंदू मारा जाता रहा लेकिन पासा पलट गया और हिंदू गोपाल पाठा के नेतृत्व में जबाब देने लगा जब हिंदू समाज लड़ने लगा तो मुस्लिम भागने लगे सुहरावर्दी को यह कल्पना भी नहीं थी कि हिंदू लड़ भी सकता है! 15 अगस्त 46 से 17 अगस्त 1946 तक कोलकाता दंगे के दौरान हज़ारों हिंदू कोलकाता छोड़कर भागने लगे। मुस्लिम भीड़ ने रायपुर, लक्ष्मीपुर, बेगमगंज, फरीदगंज, हाजीगंज, चाँदपुर, छुड़ग्राम इत्यादि स्थान शामिल थे इस मुस्लिम हमलों में पचास हजार हिंदू मारे गए थे। मरने का जहाँ कांग्रेस ने दो हजार वहीं जिन्ना ने बीस हजार हिन्दुओं को मारे जाने की पुष्टि की। इतना ही नहीं ट्रेने जो बिहार उत्तर प्रदेश की ओर जा रही थी उन्हें लाशों से भर दिया गया था ऐसी एक ट्रेन गयाजी में आयी थी जो हिंदू लाशों से भरी हुई थी जिसके प्रतिकार के लिए जहानाबाद के "मथुरा सिंह और लोहगढ़ के महंत" आगे आये और हज़ारों मुसलमानों की हत्या हुई जिससे कोलकाता और नोआखाली शान्ति हुआ।
और पांसा पलट गया
दो दिनों तक हिंदुओं का संहार होता रहा अंग्रेज और गांधी सहित कांग्रेस की नीद नहीं टूटी, फिर गोपालपाठा के नेतृत्व में संगठित हिंदुओं ने 16-.17 अगस्त को हिंदुओ को मारने वाले सभी जिहादियों को चिन्हित कर 20 अगस्त को उन पर कार्यवाही करना शुरू कर दिया। 19 अगस्त तक सभी हिन्दुओं तक संदेश पहुँच गया कि गोपाल पाठा के नेतृत्व में सारे हिन्दू .. मुसलमानों से लड़ रहे हैं। 21 तारीख तक बहुत सारे हिंदू इकट्ठा हो चुके थे उन्होंने दो दिनों में इतने मुसलमानों को मारा। कि मुसलमानों की मौत अब हिंदुओ से अधिक हो गई। 22 अगस्त तक खेल बिगड़ चुका था अब मुसलमान कोलकाता से भागने लगे। सुहरावर्दी ने पराजय स्वीकार कर लिया और कांग्रेस नेताओं से निवेदन किया कि गोपाल पाठा को रोका जाए नहीं तो गोपाल पाठा मुसलमानों के लिए यमराज बन गए हैं। गोपाल इस शर्त पर तैयार हो गए कि मुसलमान अपने हथियार सौंप दें जिसे सुहरावर्दी ने स्वीकार कर लिया। कोलकाता पर कब्जा करने की जिन्ना की योजना को गोपालपाठा ने चकनाचूर कर दिया। अब कोलकाता में भगवा ध्वज फहरने लगा इस दंगे के पश्चात गोपालपाठा शान्ति नहीं बैठे, बंगाल के हिंदुओं को बचाने की मुहीम जारी रखा।
अचानक गाँधी की नीद टूटी ! --गोपालपाठा से संवाद .!
जब तक मुसलमान हिन्दुओं की हत्या करता रहा हिंदू बहन बेटियां लुटती रही हिन्दुओं की दुकाने लूट व अग्नि का शिकार होती रही तब तक कोई कांग्रेसी नहीं आया और गाँधी जी भी दिखायी नहीं दिए। लेकिन जैसे ही गोपालपाठा के नेतृत्व में हिंदुओं ने प्रतिकार करना शुरू किया और हिंदू भारी पड़ने लगे तुरंत महात्मा गांधी प्रकट हो गए गांधी वायसराय की बग्घी से गोपालपाठा से मिलने पहुंचे और अनशन शुरू कर दिया हिन्दुओं को शांति करने की अपील करने लगे। वे गोपालपाठा से मिलना चाहते थे लेकिन गोपालपाठा उनसे नहीं मिलना चाहते थे। बहुत कांग्रेसियों ने दबाव बनाया और निवेदन किया कि वे गाँधी जी से मिल ले अंत में वे तैयार हो गए और मिलने पहुंचे तो गाँधी ने उन्हें अहिंसा का उपदेश देने शुरू कर दिया गोपालपाठा पर इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उलटे ही गोपालपाठा ने कहा अत्याचार करने वाले से अधिक दोषी अत्याचार सहने वाला होता है और आगे गोपालपाठा ने गाँधी से कहा महाभारत के युद्ध में ''भगवान श्रीकृष्ण'' ने ''गीताजी'' का उपदेश दिया था। जिससे अट्ठारह अक्षोहिणी सेना मारी गई थी जिसे हम 'धर्मयुद्ध' कहते हैं। गीता पढ़ने वाला धर्म रक्षक होता है मैने वही किया है आपको भी गीता रखने नहीं बल्कि पढ़ने की आवश्यकता है फिर गांधी जी चुप हो गए। गोपालपाठा ने गांधी से कहा आप नोआखाली जाकर देखो कि आपके प्यारे मुसलमान हिंदुओं के साथ क्या कर रहे हैं?
हिंदूधर्म रक्षक गोपालपाठा के साथ कांग्रेसियों ने अपमान जनक ब्यवहार
जिस गोपाल पाठा के कारण पश्चिम बंगाल व कोलकत्ता भारत में है वे कांग्रेसियों के दुश्मनी के शिकार हुए, नोवाखाली कि घटना के पश्चात् पूर्वी भारत में वे सर्वाधिक लोकप्रिय हो गए। इसलिए गाधी व कांग्रेस को अपने नेतृत्व पर खतरा दिखाई देने लगा फिर गाधी और कांग्रेस ने अनसन का ढोंग करना शुरू कर दिया। देश बिभाजन के पश्चात् गोपाल मुखोपाध्याय जैसे हजारो देशभक्त क्रन्तिकारी गुमनामी जीवन ब्यतीत करने को मजबूर हो गए, गोोपालपाठा की मृत्यु सन २००५ में कोलकाता में हुई। वे उपेक्षा के शिकार हुए कांग्रेसियों ने बार-बार उन्हें अपमानित करने का काम किया और जब भी चर्चा की तो उन्हें गुंडा बताया। गोपाल पठा खटिक समाज के थे आज अपने महान पूर्वजो के पराक्रम को याद करना है प्रिय बंधुओ पौरुष का कोई बिकल्प नहीं है। आइये हम गोपाल पाठा को याद करे उन्होंने कहा था एक हिन्दू के मरने पर दस दंगाई मारे जायेगे यह संकल्प लेना होगा! आज भी हमें गोपलपाथा को याद करने की आवस्यकता है, आज देश जाग रहा है इन बिलुप्त क्रांतिकारियों को उचित स्थान मिले यह प्रयत्न होना चाहिए ।
1 टिप्पणियाँ
गोपाल पाठा की वीरता से प्रेरणा लेकर आज भी वैसे वीर तैयार करने की आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएं