कर्मकांडी ब्राह्मण परिवार में जन्म
पंडित श्रद्धाराम शर्मा पंजाब जालंधर जिले के महान क्रन्तिकारी थे, अट्ठारहवी शताब्दी में उस समय वे लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिनचंद पाल जैसे ही थे यह कहना अतिसयोक्ति नहीं होगा की ये उनके प्रेरणा श्रोत भी रहे होगे। इनकी तुलना तो राष्ट्रगीत 'वन्देमातरम' लिखने वाले 'बंकिमचंद' से की जाय तो अच्छा होगा जैसे उन्होंने बंदेमातरम गीत लिखा और वह गीत क्रांतिकारियों का प्रेय साधना बन गया। उसी प्रकार 'ॐ जय जगदीश हरे' भगवान की स्तुति लिखकर हिन्दू समाज के एकता और जागरण का अद्भुत कार्य किया। यह आरती देश भक्तो की प्रेरक आरती बनकर उभरा और आज़ादी का महामंत्र बन गया। आज सारे विश्व में जहाँ कहीं भी हिन्दू समाज रहता है प्रत्येक पूजा-पाठ अथवा मठ-मंदिरों सभी स्थानों पर यही आरती होती है। श्रद्धाराम शर्मा का जन्म जालंधर जिले के "फिल्लौरी" गाव में ३० सितम्बर १८३७ में जयदयाल और उनकी पत्नी महताब कौर की तपस्चर्या के पश्चात् एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम "श्रद्धाराम" रखा। पिता जयदयाल स्वयं अच्छे ज्योतिषी सनातनी पुरोहित थे ब्राहमण कुल में जन्म लेने के कारण पिता का संस्कार बेटे पर पड़ा बालक सात वर्ष में गुरुमुखी भाषा सीख ली। दस वर्ष में हिंदी, उर्दू, फारसी भाषा का ज्ञान हो आया धार्मिक संस्कार होने के कारण धार्मिक साहित्य का अध्ययन स्वाभाविक ही था।भारतीय राष्ट्र की आत्मा धर्म
उनका स्वभाव सनातन धर्म के प्रचार मुखी हो गया लेकिन उन्हें अपनी गुलामी बर्दास्त नहीं थी, वे हिंदी के ही नहीं तो गुरुमुखी के भी एक अच्छे साहित्यकार थे। बहुत कम आयु में कई साहित्य रचना की, देश भक्ति ने उन्हें आर्य समाज से जोड़ दिया आर्यसमाजी होते हुए भी 'ॐ जय जगदीश हरे' को आधार बनाकर गाव-गाव में भजन गाकर जो तमाम संस्कृत श्लोको को जोड़कर एक हिंदी लोकप्रिय रचना की। जो आज हर मंदिर में गाया जाने लगा उपनिषद, पुराणों, ब्रह्मण ग्रंथो, महाभारत और रामायण का अध्ययन अल्प आयु में कर लिया। उन्हें अच्छी तरह पता था कि भारतीय राष्ट्र- धर्म में बसता है यानी "हिन्दू राष्ट्र" की आत्मा "धर्म" है उन्होंने ''ॐ जय जगदीश हरे'' को भारत का आराध्य गीत बना दिया। जिस प्रकार बालगंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव, बिपिनचंद पाल ने दुर्गापूजा और लाला लाजपत राय ने पश्चिम भारत में राम लीला शुरू किया। ठीक उसी प्रकार देश भक्ति को जगाने का एक अस्त्र 'ॐ जय जगदीश हरे' देश भक्ति मंत्र बनकर उभरा, और देश के तमाम स्वतंत्रता सेनानी इसी मंत्र के धुन पर नाच उठे ।
जब ॐ जय जगदीश हरे राष्ट्रगीत बन गया
वे गुरुमुखी भाषा के जनक कहे जाते है और हिंदी का प्रथम उपन्यास 'भाग्यवती' लिखने का भी श्रेय उन्हें ही प्राप्त है वे बहुत अच्छे वक्ता थे। धार्मिक कथाओ में ऐसा उदहारण, व्याख्यान देते समाज को जगाने में सहायक होते उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ गाव-गाव में धार्मिक आयोजनों के माध्यम से जन जागरण शुरू किया। स्वतंत्रता आन्दोलनों में वे महाभारत का उदहारण देते और ब्रिटिश को उखाड़ फेकने जनता को ललकारते, अपील करते श्रद्धाराम क्रन्तिरियो के प्रेरणा केंद्र बनकर उभरे उनके हजारो अनुयायी खड़े होने लगे ब्रिटिश सरकार की नीद हराम हो गयी। उनके अनुयायी चारो तरफ फ़ैल गए ब्रिटिश सरकार की मुश्किले खड़ी होने लगी इसलिए उन्हें गाव से निष्कासित कर दिया और किसी से मिलने पर भी पाबन्दी लगा दी उनके भाषण में एक सम्मोहन था जादू जैसा काम करता था । बड़े ही विद्वान होने के साथ-साथ उनकी रचना पूरे भारत में लोकप्रिय होने लगी आज भी भारत ही नहीं विश्व के प्रत्येक मंदिर और भजन कीर्तन के पश्चात् आरती यही 'ॐ जय जगदीश हरे' ही होती है। यह लगभग १५० वर्षो में इतना लोकप्रिय हो गया कि जैसे करपात्री जी द्वारा रचित उद्घोष 'धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो लोकप्रिय हुआ, आज यह श्रद्धाराम द्वारा निर्मित जो देश आजादी का गीत था वह आज जो आरती (ॐ जय जगदीश हरे----) हम करते (गाते) हैं लेकिन कितने लोग जानते हैं कि यह रचना किसकी है इनकी मृत्यु ४४ वर्ष की अल्पआयु में २४ जून १८८१ को लाहौर में हुई ।
पंजाब के बंकिमचंद्र
आज इस अनाम क्रांतिकारी जिन्हें इस्लामिक काल से हो रहा बलात धर्मांतरण अपच था वे बड़े ब्यथित रहते थे। फिर उन्होंने देखा कि ब्रिटिश काल में भी वही चल रहा है अंग्रेजों को लगता था कि ब्रिटिश सत्ता को स्थायित्व देने के लिए ईसाईकरण आवस्यक है इसलिए वे हिन्दू समाज के जागरण हेतु रातो दिन शरीर को गला दिया। उन्हें याद करना भारत माता के प्रति आभार प्रदर्शन करना है ऐसे ही सपूतो के कारण आज हम खुली हवा में स्वास ले रहे हैं। आज भी प. श्रद्धाराम फिल्लोरी को आदर्श मानकर हम धर्म को बचाए तो अपनी धरती अपने-आप ही सुरक्षित रहेगी नहीं तो जहाँ-जहा हिन्दू धर्म नहीं बचा ( पाकिस्तान, बंगलादेश, वर्मा ) आज हमारे पास नहीं है सेकुलरिस्ट तो भारत बिरोध की भूमिका में हैं ही हमें अपने विवेक पूर्ण अभ्यास करने की आवस्यकता है। श्रद्धाराम शर्मा पंजाब के बंकिमचंद थे, आइये हम इन क्रांतिकारियों का अनुसरण करे!