सूर्या सावित्री
किसी देश का चरित्र कैसा होता है ? वह उस देश के महापुरुषों के चरित्र को देखना चाहिए उसका उदाहरण भारतीय महापुरुषों से लिया जा सकता है। जैसे शूद्रों को स्त्रियों को वेद पढ़ने का अधिकार है कि नहीं..! यह देश में बहस का विषय वन गया था लेकिन यह कितना खोखला था इस पक्ष को हम आगे देखेंगे। अभी हम भारतीय नारियों मे "सूर्या सावित्री" के सन्दर्भ में देखते हैं कि महिलाओ, शूद्रों के विषय में यह विमर्श कितना व्यर्थ था ? क्योंकि समाज इससे अनिभिज्ञ था अब धीरे-धीरे जागरूक समाज आगे आ रहा है। ध्यान में आता है कि इस प्रकार का कोई प्रतिबन्ध था ही नहीं, हमारे इतिहास में पिछले हजार बारह सौ वर्षो में यह सब कुछ हुआ जिसके फल स्वरुप देश गुलामी, दरिद्रता और अशिक्षा के रूप में भुगता है और आज भी भुगत रहा है।
शास्त्रों में विकृति के कारण
हमारा वैदिक काल यानी पृथ्वी का प्रदुर्भाव यानी सृष्टि संवत ''एक अरब छनबे करोड़ आठ लाख वर्ष'' पहले हुआ था वह समय वैदिक काल था। महाभारत के शांति पर्व में भीष्म पितामह युधिष्ठिर को उपदेश करते कहते हैं.. "न राज्यम् न राजाशीत न दंडो न दण्डिका " वैदिक काल इस प्रकार था। कलियुग में जब बौद्ध काल आया उस समय सनातन धर्म के ग्रंथों को विकृत करने अथवा कल्पित इतिहास रचने की प्रक्रिया शुरू किया क्योंकि वे हीन ग्रंथी से उबर नहीं पा रहे थे।
मै प्रयागराज में 1985 से 1992 तक था बहुत सारे स्थानों पर जाना होता था यदि ये कहें कि गंगापार में मेरा सघन संपर्क था। दुर्वासा प्रखंड में एक गांव है जमुनीपुर कोटवा वहाँ संघ के एक अधिकारी रहते थे श्री रामशिरोमणि मिश्रा वे एक इंटर कालेज में प्रिंसिपल थे उनसे मिलने मै अक्सर जाया करता था। वहाँ पर दुर्वासा आश्रम में एक बड़े प्रतिष्ठित संत "त्रिड़ंडी स्वामी" रहते थे। अक्सर उनके पास बैठता, एक दिन वहाँ एक कार्यक्रम में मै और रामशिरोमणि मिश्रा गए देर तक बार्ता हुई उन्होंने बात -चीत में बताया कि पहले हमारे जगद्गुरुओं के पास क्षत्र और चवर नहीं हुआ करता था ये मुगल काल मे अकबर द्वारा पोषित है। अब इसके पीछे कारण क्या हो सकता है? तो हिंदू समाज पर सर्वाधिक प्रभाव संतों जगद्गुरुओं का था राजा कोई भी हो प्रतिष्ठा केवल संतों की, अकबर ने क्षत्र चवर भेंट कर संतों का मुख बंद कर दिया। अब संत कहने लगे "कोउ नृप होइ हमई का हानि।" अब इन्हीं बिके हुए कुछ लोगों ने हमारे ग्रंथों को विकृत करने का प्रयास करना शुरू कर दिया।
ब्रिटिश काल था महारानी विक्टोरिया ने दो प्रोफेसर को भारत में भेजा कि अंग्रेजी शासन कैसा चल रहा है वे प्रोफेसर पूरे वर्ष भर भ्रमण कर महारानी को अपना विनती पत्र चढ़ाया, उसमें लिखा था कि भारत मे पुरोहितों, साधू सन्यासियों का शासन है न कि आपका क्योंकि वहाँ की जनता इनकी बात मानती है न कि शासन की, महारानी ने पूछा कि इसकी राजधानी कहाँ है? उत्तर मिला काशी..! महारानी विक्टोरिया का पहला दौरा काशी मे हुआ। उसने एक कालेज खोला जिसका नाम था "क्विंस कालेज " ये अंग्रेजी कालेज नहीं तो संस्कृत विद्यालय था जिसे आज हम सम्पूर्णनंद के नाम से जानते हैं। उसमें हमारे ग्रंथों मे क्षेपक डालने का काम किया और आज भी वहाँ यही विकृत युक्त ग्रन्थ पढ़ाये जाते हैं जिसमें महिलाओं, शूद्रों को गायत्री पढ़ने का अधिकार नहीं है। आज मेरा विषय ये नहीं है मै तो "मन्त्र दृष्टा" "सूर्या सावित्री" की बात करने जा रहा हूँ। यह बताना इसलिए जरुरी था क्योंकि हिन्दू समाज मे विकृत का कारण क्या है और क्यों है ?
मंत्र दृष्टा सूर्या
सूर्या सावित्री ने अति महत्वपूर्ण मंत्रो के दर्शन किये वैसे तो ये वेद मन्त्र है और अपौंरुशैय है लेकिन इस पर शोध सूर्या ने किया। ये विवाह सूक्त है जिसने विवाह संस्था को जन्म दिया, जिसने पारिवारिक बंधन दिया जिसने ऐसा संस्कार दिया जो सात जन्मों तक बंधन में संकल्पित होती है हज़ारों लाखों वर्षो से यह विद्यमान है कितनी तेजस्वी थी ऋषिका सूर्या सावित्री ? हम भारतीयों को वेदों के मंत्रदृष्टा ऋषियों के बारे में पता है कि वे केवल मेधावी ही नहीं थे बल्कि वे वडे वैज्ञानिक भी थे। सावित्री ने जिन मंत्रो का दर्शन किया उनकी संख्या 47 जिन्हे विवाह सूक्त (10.85) कहा जाता है। सूर्या, सविता नामक ऋषि की पुत्री थी जिसका विवाह सोम नामक ऋषि से हुआ था और वह अश्वनी कुमारों के रथ पर चढ़कर ससुराल गई थी। लेकिन सभी सुक्तों को पढ़ने से ध्यान में आता है कि केवल पांच ऋचाओं में ही सोम पाए जाते हैं। भारत में सभ्यता का विकास में इन दृष्टाओं का कितना योगदान हो सकता है यह जो विवाह सूक्त (ऋग्वेद 10.85) है भारतीय सभ्यता की धुरी है। वैदिक काल की परंपरा गत स्मृतियों में दर्ज चला आ रहा है क़ि सूर्या का विवाह सोम से हुआ था।
संस्कार और परिवार का दृढ़ीकरण
एक प्रकार से यह राष्ट्र निर्माण की एक अद्भुत प्रक्रिया है जिसने वैदिक काल से आज तक हिन्दू समाज को बांध कर रखा है, इस गाथा का हमारी सभ्यता के विकास में क्या योगदान है ? यह बड़ा ही अद्भुत और भव्य है इसी सूक्त के मंत्रो द्वारा हिन्दू समाज में होने वाले विवाहों में पाड़िग्रह के समय पढ़ा जाता है। वधू को आशीर्वाद देते समय इसी मन्त्र (ऋग्वेद 10.85.36) को पढ़ा जाता है। नव दम्पति पुत्र पौत्रो के साथ खेलें (ऋग्वेद 10.85.36) आधार पर आशीर्वाद होता है। ऐसे अनेक मंत्र हैं जिससे पाड़िग्रह के समय आशीर्वाद दिया जाता है जिसकी मंत्रदृष्टा सावित्री सूर्या है। इस प्रकार भारतीय संस्कृति में स्थायी समाज विज्ञान विकसित हुआ जो अटूट सा है जो एक दूसरे के सहयोगी ही नहीं हैं बल्कि पूरक भी महसूस करते हैं। मंत्र कैसे हैं वर को और वधू को अपने-अपने हिस्से का मंत्र बोलना रहता है जिससे उसने क्या बोला है क्या प्रतिज्ञा किया है हमेशा याद रहे। अपने यहाँ स्वयंवर की परंपरा थी वर का चयन लड़की स्वयं करती थी, राजा दुष्यंत, भगवान श्री राम फिर चाहे अन्य कोई उदाहरण दिए जा सकते हैं। यह सब होने के पश्चात् पाणिग्रह संस्कार होता है जिसमें वेद मंत्रो द्वारा विवाह सम्पन होता है। हमें लगता है कि जिस प्रकार गायत्री मंत्र का महत्व है कहीं उससे अधिक इस विवाह सूक्त का महत्व है इस कारण सूर्या सावित्री को हम ऋषि विश्वामित्र, दीर्घतमा और महिदास ऐतरेय के समकक्ष खड़े कर सकते हैं। हमें समझाना है कि वेद मंन्त्रों में सर्वाधिक महत्व, मान्यता विवाह सूक्त का है जो परंपरागत गत सांस्कृतिक प्रवाह लिए चला आ रहा है और आगे भी चलता रहेगा। यह हिन्दू समाज का हमारे जीवन का अटूट हिस्सा बना हुआ है और बना रहेगा। इसलिए भारतीय वांगमय में सूर्या सावित्री का महत्व वना रहेगा, उनका आशीर्वाद हिन्दू समाज को हमेशा मिलता रहेगा। हम सनातन धर्म के लोग कभी भी इन वैदिक ऋषिकाओं को भुला नहीं सकते।
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