भगवान जगन्नाथजी यात्रा समरसता व राष्ट्र जागरण यात्रा---!


यात्रा की पृष्ठभूमि

देश पर तो वैसे परिकियो के हमले होते ही रहे हैं, सिकंदर व सेल्युकस के पश्चात लंबे समय तक परकियो की भारत में घुसने की हिम्मत नहीं हुई, लेकिन भारत की ललचाई आँखों से वे भारत के वैभव को सह नहीं सके भारत की नीति "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः" की है पहले भी थी आगे भी रहने वाली है, इसी उदारता को परकीय हमारी कायरता समझने की भूल कर बैठते हैं, ईसवी सन 712 में मुहम्मद बिन कासिम ने सिमा रक्षक सिंध के राजा महाराजा दाहिर के ऊपर हमला किया कई बार राजा दाहिर ने कासिम को पराजित किया लेकिन हिन्दुओ की सद्गुण विकृति की भारतीयों जैसा ब्यवहार परकियो से मुसलमान क्या जाने आपकी नीति उसने रात्री में हमला कर दिया धोखे से राजा दाहिर पराजित हो गए, यह बात ठीक है कि उनकी पुत्रियों ने उसका बदला उसे मरवाकर चुका लिया, देश खड़ा हुआ लोग इस्लाम को पहचानने लगे कोई बप्पारावल का नेतृत्व पर हिन्दवी विजय तो जिनको मुसलमान बनाया गया था देवल ऋषि ने सबकी घर वापसी कर नया अध्याय लिखना शुरु कर दिया।

षड्यंत्र का शिकार

डॉ आंबेडकर कहते हैं कि छुवा-छूत, ऊँच-नीच, भेद-भाव यह वैदिक काल में नहीं थायह इस्लामिक काल की देन है मुसलमानों ने हिन्दू समाज में भेद पैदा करना शुरू कर दिया यहाँ तक कि हमारे बड़े -बड़े संतों जगद्गुरु, शंकराचार्य, महामंडलेश्वर इत्यादि को सोने चाँदी का क्षत्र व चवर भेंट कर सामान्य हिन्दू समाज से दूरी बढ़ा दी 'चवरसेन वंश' जो सीमा रक्षक था, जिसने मुस्लिम लुटेरों को तीन सौ वर्षों तक भारत में घुसने नहीं दिया उन्हें अछूत घोषित किया बड़ी व छोटी जातियों का निर्माण किया कुछ को दबाया जो लड़े संघर्ष किये उन्हें चिढ़ वस अछूत घोषित किया, यह बड़ा विचित्र दौर शुरू हो गया, लेकिन संतों महात्माओं ने समाज सुरक्षा का विणा उठाया जगह -जगह संघर्ष शुरू हो गया बौद्ध काल में भगवान बुद्ध की मूर्तियों को बनाकर पूजा करने की परंपरा शुरु किया था धीरे- धीरे देश में कापुरुषता पैदा होना शुरू हो गया इतना ही नहीं बौद्ध भिक्षु भारत विरोधी गतिविधियों में भाग लेने लगे हिन्दू समाज ने भी विकल्प रूप में मूर्ति पूजा शुरू कर दिया धीरे- धीरे बहुत प्रचलित भी हो गया।

धर्म व राष्ट्र बचाने का अस्त्र---!

वैदिक धर्म में मूर्ति पूजा का विधान बौद्ध व जैन मत से प्रारम्भ हुई वेदों में मूर्ति पूजा का कोई प्रमाण नहीं मिलता है, जब अपने देश में बौद्ध व जैन मतावलंबियों ने महात्मा बुद्ध व महात्मा महावीर की केवल पूजा ही नहीं करना शुरू किया बल्कि मुर्तियों का प्रचार प्रसार कर स्थान स्थान पर इन महापुरुषों की मूर्तियों की स्थापना करना आंदोलन जैसा हो गया फिर क्या था वैदिक मतावलंबियों ने वैदिक महापुरुषों श्रीराम, श्रीकृष्ण, भगवान शंकर, विष्णु, भगवती दुर्गा जी, सरस्वती इत्यादि मूर्तियों की पूजा व स्थान स्थान पर मूर्तियां स्थापित करने की परंपरा प्रारंभ हो गई वास्तव मे हिन्दू धर्म कभी रूढ़िवादी नहीं रहा मूल तत्व में कोई परिवर्तन न करते हुए अपनी पूजा पद्धति को समयानुकूल परिवर्तन करने में कोई गुरेज नहीं किया लेकिन मूल तत्व वेद व बैदिक वांग्मय के विस्वास को बनाये रखा।

मंदिर का निर्माण---!

 मध्यकाल जिसे हम संघर्ष काल भी कह सकते हैं इस्लामी लुटेरे, बर्बर, आतंकियों के हमले प्रारंभ हो गए जहाँ एक तरफ राजा दाहिर, बप्पारावल जैसे राजा संघर्ष कर रहे थे वहीं हमारे साधू सन्यासियों ने भी संघर्ष में अहम भूमिका निभाई, ग्यारहवीं, बारहवीं शताब्दी में लगता था कि हिन्दू समाज शून्यता छा गई है वह निष्प्राण सा हो गया है साधू संतों ने समाज को झकझोरना शरू किया धर्म के अंदर राष्ट्रवाद का घोल मिलाकर हिंदू समाज का जागरण होना प्रारंभ किया उसी में इस भगवान जगन्नाथ जी का मंदिर निर्माण किया गया, कलिंग राजा अनंत वर्मन चोडगंग देव ने बनवाया था जिसका जीर्णोद्वार 1174 ईसवी सन में उडीसा के शासक अनंगभीम देव ने कराया कलिंग वास्तुकला का यह मंदिर चारों धामों में से एक श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा का पहला मंदिर है, 1197 में राजा अनंगदेव इसका वर्तमान स्वरूप दिया वे सोमवंशी राजा थे, यह मंदिर चार लाख वर्गफुट में फैला है इसका मुख्य ढांचा 214 फिट ऊँचे पत्थर के चबूतरे पर बनाया गया है हिन्दू समाज को बचाने के संघर्ष में इस मंदिर ने बड़ी भूमिका निभाई है।

भगवान जगन्नाथ रथयात्रा

तेरहवीं शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु का बंगाल के नदियां में प्रादुर्भाव हुआ उस समय नदिया भारत वर्ष का बहुत बड़ा आध्यात्मिक केंद्र था, संपूर्ण भारत से तर्क- वितर्क शास्त्रार्थ हेतु आते थे, भगवान जगन्नाथ मंदिर उसके कुछ समय पहले वहां के राजा ने बनवाया था यह मंदिर जहाँ मुसलमानों ने भेदभाव पैदा करने का काम करते वहीं इस मन्दिर द्वारा समरसता और हिन्दू जागरण के काम के विकल्प के रूप में खड़ा करने का प्रयत्न संत महात्माओं ने करना प्रारम्भ किया, कहते हैं कि उस समय हिन्दू समाज निर्जीव जैसे हो गया था जिस प्रकार काठ निर्जीव होता है हमारे धर्म रक्षकों ने भगवान जगन्नाथ जी में जो मूर्तियां स्थापित की गई वे लकड़ीकी मूर्तियां स्थापित की गई उसमे प्राणप्रतिष्ठा कर जीवंत किया उसी प्रकार हिन्दू समाज को जीवंत करने के लिए संतों ने केवल पूजा करने का प्राविधान नहीं किया बल्कि यात्रा का प्रावधान भी किया यह यात्रा केवल धार्मिक महत्व का नहीं बल्कि समाज जागरण की यात्रा वन गई, इस मंदिर पर विधर्मियों ने एक दो बार नहीं सत्तरह बार हमले किये जिसका हिन्दू समाज ने सफलता पूर्वक प्रतिकार किया यह यात्रा उसी प्रतिकार का परिणाम है जिसके प्रेरणा स्रोत चैतन्य महाप्रभु थे इसका श्रेय उन्हीं को जाता है, देश आज़ादी में लोकमान्य तिलक ने गणेश पूजा उत्सव व बिपिन चंद पाल ने दुर्गा पूजा उत्सव का सार्वजनिक करने और देश आज़ादी के लिए उपयोग करने की प्रेरणा इसी भगवान जगन्नाथ जी यात्रा से ही लिया था।

समरसता का अद्भुत दर्शन

यह जगन्नाथ जी का मंदिर जहाँ हिन्दू समाज के सुरक्षा कवच बनकर रक्षा करता रहा वही हिन्दू समाज में उंच नीच कि भावना पैदा करने का कम इस्लामिक सत्ता कर रही थी जिस प्रकार मंदिरों पर हमले पर हमले हो रहे थे हिन्दू समाज उसका सफलता पूर्वक पातिकर कर रहा था उसी प्रकार जो मुस्लिम सात्ता हिंद्दु समाज को कमजोर करने हेतु में भेद-भाव पैदा करने का काम कर रही थी संतों ने एक नारा दिया "जात न पात जगन्नाथ जी का भात" ऐसा नारा स्लोगन दिया सारा का सारा हिंद्दु समाज खड़ा होने लगा इतना ही नहीं आज सम्पूर्ण भारत वर्ष ही नहीं पुरे विश्व में जगन्नाथ जी कि यात्रा निकाली जा रही है बिना किसी भेद-भाव के धर्म में राष्ट्रवाद का घोल हिन्दू समाज पीता जा रहा है दृढ़ता पूर्वक समाज धर्म और राष्ट्र के लिए खड़ा हो रहा है ! 

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