भारतीय नारी अबला नहीं सबला

नारी तुम केवल श्रद्धा हो

भारतीय में नारी का जो सम्मान है विश्व की किसी भी संस्कृति में शायद ही होगी, यहां जब भी पुकारा जाता है तो माता-पिता यानी हम देखते हैं कि प्रथम महिला, जब हम ईश्वर का भी नाम लेते हैं तब भी "सीता-राम, गौरी-शंकर" ही कहते हैं ऐसी हिंदू संस्कृति की अवधारणा है, यहाँ जिन्हें हम प्रमुख देवी व देवताओं में स्थान देते हैं वे जहाँ सबकी रक्षा करने वाली भगवती दुर्गा जी, धन की देवी भगवती लक्ष्मी जी और विद्या की देवी सरस्वती जी हैं ऐसा हिन्दू धर्म, हिंदू संस्कृति और हिंदू समाज की मान्यता है, "नारी तुम केवल श्रद्धा हो" ऐसा केवल हमारे "वांग्मय" में ही नहीं हमारे ब्यवहार में भी है।

भारतीय नारी माँ के रूप में


भारत में माँ को जो स्थान प्राप्त है अथवा जो माता की कल्पना की गई है वह पूरी दुनिया के लिए आश्चर्यजनक ही माना जायेगा, लेकिन यह प्रकृति प्रदत्त है गाय अपने बच्चे को कितना प्रेम करती है यदि शेर आ जाता है तो गाय अपने बछड़े को बचाने हेतु उससे लड़ जाती है परिणाम जानते हुए कि क्या होने वाला है, हाथी अपने वच्चे को झुंड के बीच में रखती है किसी भी परिस्थिति से निबटने के लिए तैयार रहती है, मनुष्य तो विबेक शील प्राणी है, एक बार एक महिला ट्रेन में यात्रा कर रही थी वह गर्भवती थी अकस्मात उसे बहुत तेज दर्द उठा वह भागकर सौचालय में गयी असहि पीड़ा से उसका होस-हवास गायब था, उसने उसी शौचालय में बच्चे को जन्म दिया लेकिन बच्चा शौचालय के रास्ते नीचे गिर गया, माँ चिल्लाई और चलती हुई ट्रेन से कूद पड़ी लोगों ने गाड़ी का चैन खीचकर ट्रेन रोका देखा जच्चा - बच्चा दोनों सुरक्षित यह है "भारतीय नारी व भारतीय माँ", (संघ के सह सरकार्यवाह मा. दत्तात्रेय होसबले ने वास्तविक घटना बताया) 'क्षत्रपति शिवाजी महाराज' के "रायगढ़ किले" में "हिरम्बी बाई" नाम की महिला प्रतिदिन काम के लिए आती थी रात्रि वापस घर चली जाती थी लेकिन एक दिन वह कार्य में ब्यस्त होने के कारण बिलम्ब हो गया किले का गेट वंद हो गया उसका बच्चा भूखा घर पर होगा अकेले होगा कुछ सूझ नहीं रहा था क्या करे ? उसने एक ओर जाकर किले से छलांग लगा दी जब दूसरे दिन महराज को पता चला तो उन्होंने 'हिरम्बी बाई' को बुलाया उस स्थान पर ले गए जहाँ से उसने छलाँग लगायी थी "महाराज" ने उससे पूछा पुनः कूदने के लिए कहा तो वह डर गई कहा इतना ऊँचे से मैं कैसे कूद सकती हूं पूछने पर कहा जो छलांग लगाई थी वह "माँ" थीं, इस प्रकार की कितनी ही घटनाये हैं। "स्वामी विवेकानंद" अपने अमेरिका के प्रवास पर थे उनसे एक 'पादरी' मिलने आया उसने स्वामी जी से पूछा कि भारत में पुरातन काल से ही महिला यानी "माता" को प्रमुख स्थान दिया गया है देश को 'भारतमाता', नदियों को 'गंगामाता', वनस्पतियों में भी 'तुलसीमाता', जानवरों में भी 'गऊमाता' सभी मे "अपनी माँ" को देखने की प्रबृत्ति आखिर इसका तातपर्य क्या है ? "स्वामी जी" ने बिना कुछ बताये एक पत्थर का 2 किलो का टुकड़ा उसके पेट पर कपड़े से बांध दिया और कहा कि कल इसी समय आना पादरी 3-4 घण्टे वाद ही वापस आ गया और बोला स्वामी जी पेट बहुत ही दर्द हो रहा है बर्दास्त नहीं हो रहा तब "स्वामी जी" ने बताया कि 'एक माँ' अपने बच्चे के 2 किलो के मांस के लोथड़े को 9 महीने अपने पेट में रखती है और बच्चे को जन्म देने के पश्चात वह बच्चे के द्वारा गीले किये हुए बिस्तर पर लेटती है, बच्चे को सूखे बिस्तर पर सुलाती है यह है "भारतीय नारी- भारतीय माँ" और हिंदू संस्कृति इसी कारण जिसके प्रति हमारा सम्मान, श्रद्धा, व पूज्यभाव रहता है, हम भारतीय उसे माँ कहते हैं हम अपने देश, अपनी वनस्पति, अपनी नदियों में माँ का स्वरूप देखते हैं और इसके निर्माण में हज़ारों लाखों वर्ष ऋषियों- मुनियों के तपस्चर्या के परिणाम स्वरूप इस महान संस्कृति का विकास हुआ है।

भारतीय नारी वेदों, उपनिषदों में


इस देश में पुरूषों और स्त्रियों में कोई अंतर नहीं माना जाता है, वेदांत शास्त्र में तो कहा है कि एक ही "चित सत्ता सर्वभूतेषु" विद्यमान है, भारत में "वैदिक काल" से ही महिलाओं का स्थान पुरुषों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण रहा है जहाँ 'ऋग्वेद में मंत्रद्रष्टा' के नाते ऋषियों का वर्णन है तो महिलाएं भी पीछे नहीं है कहीं "लोपामुद्रा" हैं तो कहीं "लोमहर्षिणी" मंत्रद्रष्टा के नाते उपस्थित है जब "भगवान ब्रह्मा जी" ने अपने चार ऋषि शिष्यों को वेदों का ज्ञान दिया, उन ऋषियों ने "सरस्वती नदी" के किनारे ब्रम्हा जी के मानस पुत्रों सप्त ऋषियों को वेदों का ज्ञान दे गुरुकुलों के माध्यम सारे जगत को वेदों का ज्ञान दिया उसमें भी "लोपामुद्रा" जैसी ऋषिकाये भी थीं भारतीय समाज व भारतीय संस्कृति में हमेशा महिलाओं के प्रति सम्मान व बराबरी का भाव रहा है। उपनिषदों के काल में प्रसिद्ध ऋषि अद्वैत के प्रख्यात प्रवक्ता "ऋषि याज्ञबल्क्य" को जबाब देने वाली शास्त्रार्थ करने वाली हम "ऋषिका गार्गी" को कैसे भुला सकते हैं, मध्य काल में "संत रविदास" की शिष्या चित्तौड़ के महाराणा की कुल बधू "मीराबाई" मराठा हिन्दू साम्राज्य होल्कर वंश की महारानी "अहिल्याबाई होल्कर" इत्यादि राजनैतिक आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान किया भारतीय संस्कृति में महिलाओं का विशेष महत्व रहा है।

भारतीय नारी का देवत्व स्वरूप


भारत में जहाँ आध्यात्मिक विषयो में ऋषियों महर्षियों का योगदान रहा है तो ऋषिकाओं का कोई कमतर नहीं था इतना ही नहीं तो जब ऋषियों ने सरस्वती नदी के किनारे गुरुकुलों के माध्यम से सम्पूर्ण मानव जीवन को शिक्षित संस्कारित करने का काम किया तो इस समाज ने कृतज्ञता ज्ञापित करने हेतु सरस्वती नदी की उपासना शरू किया उस नदी को वाग्देवी, सरस्वती माता, विद्या की देवी देवता कहा गया लाखों वर्ष पुरानी परंपरा रूढ़ होने के कारण गांव गांव में सरस्वती जी की मूर्तियां स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है इतना ही नहीं बिहार तथा उत्तर प्रदेश के अधिकांश विद्यालयों में सरस्वती पूजा धूम धाम से किया जाता है।

भारतीय नारी का आदर्श


भारतीय नारी को "सीता जी" के चरण चिन्हों का अनुसरण कर अपनी उन्नति करनी चाहिए यही एक मात्र पथ है, हमारी नारियों को आधुनिक भावों में रंगने की चेष्ठा हो रही है यदि उन सब प्रयत्नों में "सीता -सावित्री" का आदर्श आचार विचार कायम रहा तो वे असफल होगें, हिन्दू स्त्री के लिए सतीत्व का अर्थ समझना सरल ही है क्योंकि वह उसकी विरासत है, परम्परा गत संपत्ति है, इसलिए सर्वप्रथम यह ज्वलंत आदर्श भारतीय नारी के हृदय में सर्वोपरि रहे, जिसमे वे इतनी दृढ़ चरित्र वन जाय कि चाहे विवाहित हो या कुमारी, जीवन की हर अवस्था में अपने सतीत्व से तिल भर भी डिगने की अपेक्षा जीवन की निडर होकर आहूतिदे दें! देश के स्त्रियों का जीवन इस प्रकार गठित हो जाने पर ही तो देश में सीता, सावित्री और गार्गी का फिर से अभिर्भाव हो सकेगा।।

फिर वैदिक काल की ओर बढ़ता भारत

जहाँ इंग्लैंड व अमेरिका में महिलाओं को वोट देने के अधिकार देने मे कई शताब्दी लग गई वहीं भारतीय नारी करोड़ों वर्षों से नारी की महानता का वर्णन वैदिक साहित्य उपनिषदों तथा पौराणिक कथाओं में मिलता है भारत में एक समय था जब सुरक्षा की जिम्मेदारी भगवती दुर्गा जी को था वे दस भुजा धारणी है यानी दसों दिशाओं की रक्षा करने वाली हैं धरती धन-धान्य से परिपूर्ण हो इसलिए भगवती लक्ष्मी जी को हमने धन का देवता स्वीकारा इतना ही नहीं तो भारतीय संस्कृति में जो नारी है वही घर की मालकिन है पुरूष जो भी धन कमाता है लेकिन उसकी मालकिन उसकी पत्नी ही होती है वही पूरी गृहस्थी चलाती है, वही विद्या की देवी सरस्वती है जिसकी पूजा सम्पूर्ण देश में विभिन्न रूपों में की जाती है, यह तो वैदिक काल की परंपरा से चला आ रहा है, जब हम मध्य काल को देखते हैं तो कोई एक क्षत्राणी "रूप कुँवर" जो मीना बाजार में फँसकर अकबर के महल में पहुचा दी जाती है जब अकबर उसके साथ दुर्ब्यावहार करना चाहता है तो वह कटार लिए अकबर के शीने पर चढ़ गई, उसकी हत्या करने के लिए तैयार तब तक अकबर उससे माफी मांगते हुए 'मीनाबाजार' को सदैव बन्द करने का वचन देता है (ज्ञातब्य हो कि अकबर महिला वेष धारण कर मीनाबाजार में जाता था) फिर उसकी जान बचती है यह है भारतीय नारी, लेकिन बर्तमान भारत में जब हम देखते हैं तो दिखाई देता है कि लोकसभा अध्यक्ष कोई महिला होती है इतना ही नहीं तो विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री महिला होती दिखाई देना हमे पुरातन वैदिक काल का दर्शन याद आता है इसलिए हम विश्व के परिपेक्ष्य में यह कह सकते हैं "भारतीय नारी अबला नहीं सबला है", अब हम पुरानी नीव नए निर्माण की ओर बढ़ रहे हैं।